1. कृषि अथवा ग्रामीण बेरोजगारी क्या है
उत्तर- कृषि एवं प्राथमिक व्यवसायों में विद्यमान बेरोजगारी को ग्रामीण बेरोजगारी की संज्ञा दी जाती है। भारत में इस प्रकार की बेरोजगारी की समस्या अत्यंत गंभीर है। कृषि के पिछड़े होने तथा कुटीर उद्योगों के पतन के कारण गाँवों में रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध नहीं हैं। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त बेरोजगारी के दो मुख्य प्रकार है— मौसमी बेरोजगारी तथा अदृश्य बेरोजगारी। मौसमी बेरोजगारी का प्रमुख कारण भारतीय कृषि का पिछड़ापन और इसकी सामयिक प्रकृति है। वर्ष में लगभग चार-पाँच महीने तक कृषि में संलग्न ग्रामीण जनसंख्या का एक बड़ा भाग बेकार रहता है। जब तक कृषि कार्य होते हैं तब तक इन लोगों को काम रहता है, लेकिन कृषि का मौसम समाप्त होते ही ये लोग बेरोजगार हो जाते हैं। इस प्रकार की बेरोजगारी को सामयिक या मौसमी बेरोजगारी कहते हैं।
कृषि के क्षेत्र में आवश्यकता से अधिक व्यक्ति लगे होने के कारण छिपी हुई या अदृश्य बेरोजगारी भी पाई जाती है। इस प्रकार की बेरोजगारी दृष्टिगत नहीं होती। इसके अंतर्गत कृषक अपने-आपको कृषि-कार्य में लगा हुआ समझता है, लेकिन उसकी उत्पादकता लगभग शून्य के बराबर होती है। अत:, यदि उसे कृषि से हटा भी दिया जाए तो कृषि उत्पादन में कोई कमी नहीं होगी। इस प्रकार की बेरोजगारी को छिपी हुई, प्रच्छन्न या अदृश्य बेरोजगारी कहते हैं। हमारे देश में इस प्रकार की बेरोजगारी बहुत अधिक है
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2. अदृश्य बेरोजगारी क्या है? सोदाहरण स्पष्ट करें।
उत्तर- अदृश्य बेरोजगारी मुख्यतया अल्पविकसित देशों में पाई जाती है जिनमें कृषि की प्रधानता है। इसके अंतर्गत कृषक अपने-आपको कृषि कार्य में लगा हुआ समझता है, लेकिन उनकी उत्पादकता लगभग शून्य के बराबर होती है। अतः, यदि उसे कृषि कार्य से हटा भी दिया जाए तो कृषि उत्पादन में कोई कमी नहीं होगी। इस प्रकार, प्रकट रूप में कृषक रोजगार प्राप्त मालूम होता है, लेकिन उत्पादन में उसका कोई योगदान नहीं रहता । उदाहरण के लिए, भूमि के एक निश्चित टुकड़े पर खेती करने के लिए पाँच व्यक्ति पर्याप्त हैं, लेकिन उसपर सात व्यक्ति लगे हुए हैं। इस स्थिति में दो व्यक्ति अदृश्य रूप से बेरोजगार हैं तथा इनका फसल के उत्पादन में कोई योगदान नहीं होता है।
3. शहरी बेरोजगारों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर-शहरी क्षेत्रों में भी बेरोजगारी की समस्या वर्तमान है तथा इसमें निरंतर वृद्धि हो रही है। इसका प्रमुख कारण राज्य के आर्थिक विकास की मंद गति है जिससे उद्योग एवं व्यापार के क्षेत्र में रोजगार के पर्याप्त अवसरों का सृजन नहीं हुआ है।
4. भारत में बेरोजगारी का अनुमान बताएँ।
उत्तर- विश्वसनीय आँकड़ों के अभाव में भारत में बेरोजगारी की स्थिति का सही अनुमान लगाना कठिन है। राष्ट्रीय प्रतिदर्श जाँच के अनुसार, 1999-2000 में हमारी कुल श्रमशक्ति का लगभग 6 प्रतिशत भाग बेरोजगार था। परन्तु, वास्तविक स्थिति इससे बहुत गंभीर है। इसका कारण यह है कि बहुत-से ऐसे व्यक्तियों को भी रोजगाररत मान लिया जाता है जिनकी आय एवं उत्पादकता बहुत कम है। वे पूरे वर्ष काम में लगे रहते हैं, लेकिन क्षमता की दृष्टि से उनकी आय पर्याप्त नहीं होती है। रोजगार के अवसरों के अभाव में बहुत से व्यक्ति ऐसे काम करने के लिए बाध्य हैं जो उनकी योग्यता एवं रूचि के अनुकूल नहीं है। निर्धन व्यक्ति बेकार नहीं बैठ सकते हैं और वे न्यून आय प्रदान करनेवाले काम भी स्वीकार कर लेते हैं। इस प्रकार के व्यक्तियों का जीवन-स्तर अत्यंत निम्न होता है।
5. जनसंख्या का बेरोजगारी से घनिष्ठ संबंध है, कैसे ?
उत्तर-हमारे देश में बेरोजगारी का जनसंख्या वृद्धि से घनिष्ठ संबंध है। 1921 के बाद भारत की जनसंख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। 1951 में हमारी जनसंख्या केवल 36 करोड़ थी । वर्तमान में यह बढ़कर 100 करोड़ से अधिक हो गई है। इस प्रकार, जहाँ एक ओर देश के आर्थिक विकास की दर अपेक्षाकृत धीमी है वहाँ दूसरी ओर जनसंख्या एवं श्रम शक्ति में तीव्रता से वृद्धि हो रही है। परिणामस्वरूप, इस बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए हम रोजगार की व्यवस्था करने में असमर्थ हैं और बेरोजगारों की संख्या क्रमशः बढ़ रही है। जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि के कारण कृषि पर उसका बोझ बढ़ता जा रहा है। यह कृषि क्षेत्र में छिपी हुई अथवा अदृश्य बेरोजगारी का प्रमुख कारण है।
6. बेरोजगारी की समस्या के समाधान में गैर-सरकारी संगठन किस प्रकार सहायक हो सकते हैं ?
उत्तर- बेरोजगारी की समस्या एक अत्यंत जटिल एवं बहुआयामी समस्या है। इसके समाधान के लिए सरकार की सामान्य नीति आर्थिक विकास द्वारा रोजगार के अवसरों का विस्तार करना है। इसके साथ ही सरकार ने समय-समय पर कई ऐसे विशिष्ट कार्यक्रम लागू किए हैं जिनसे बेरोजगारी की मात्रा में तत्काल कमी लाई जा सके। लेकिन, इन कार्यक्रमों को सीमित सफलता मिली है। इसका एक प्रमुख कारण इन योजनाओं के कार्यान्वयन में जन-सहयोग का अभाव है। गैर-सरकारी, निजी क्षेत्र तथा स्थानीय संस्थाओं के सहयोग से रोजगार सृजन एवं निर्धनता-निवारण कार्यक्रमों को अधिक रोजगारपरक और उत्पादक बनाया जा सकता है।
स्थानीय सहयोग एवं भागीदारी का एक उदाहरण बिहार में पटना जिले का पालीगंज प्रखंड है। इस प्रखंड में सिंचाई प्रबंधन का कार्य सरकार के जल संसाधन विभाग से सिंचाई सुविधाओं का प्रयोग करनेवाले किसानों के हाथ में दे दिया गया है। अब इस क्षेत्र के नहरों के जल प्रबंधन, जल के वितरण तथा नहरों के रख-रखाव का कार्य इस जल का प्रयोग करनेवाले किसानों के द्वारा किया जा रहा है। इससे इस क्षेत्र में सिंचित कृषि क्षेत्र का विस्तार हुआ है तथा नहरों की मरम्मत एवं रख-रखाव में रोजगार के अतिरिक्त अवसर उपलब्ध हुए हैं।
7. अदृश्य बेरोजगारी की समस्या के समाधान के उपाए बताए।
उत्तर- कृषि के क्षेत्र में आवश्यकता से अधिक व्यक्ति लगे होने के कारण अदृश्य या छिपी हुई बेरोजगारी पाई जाती है। इसके अंतर्गत कृषक अपने-आपको कृषि कार्य में लगा हुआ समझता है, लेकिन उसकी उत्पादकता शून्य अथवा ऋणात्मक होती है। भारत में इस प्रकार की बेरोजगारी बहुत अधिक है। अदृश्य बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए कृषि पर से जनसंख्या के भार को कम करना आवश्यक है। इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अन्य साधनों का विस्तार करना होगा। आज विश्व के अनेक अर्द्धविकसित देशों में कृषि आधारित छोटे एवं घरेलू उद्योगों का शीघ्रता से विकास हो रहा है। ये उद्योग श्रम प्रधान होते हैं तथा इनमें ग्रामीण जनशक्ति का - लाभपूर्वक प्रयोग किया जा सकता है।
8. जनसंख्या का बेरोजगारी से घनिष्ठ संबंध है। कैसे ?
उत्तर- हमारे देश में बेरोजगारी का जनसंख्या वृद्धि से घनिष्ठ संबंध है। 1921 के बाद भारत की जनसंख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। 1951 में हमारी जनसंख्या केवल 36 करोड थी। वर्तमान में यह बढ़कर 100 करोड़ से भी अधिक हो गई है। इस प्रकार, जहाँ एक ओर देश के आर्थिक विकास की दर अपेक्षाकृत धीमी है वहाँ दूसरी ओर जनसंख्या एवं श्रम शक्ति में तीव्रता से वृद्धि हो रही है। परिणामस्वरूप, इस बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए हम रोजगार की व्यवस्था करने में असमर्थ हैं और बेरोजगारों की संख्या क्रमशः बढ़ रही है। जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि के कारण कृषि पर उसका बोझ बढ़ता जा रहा है। यह कृषि क्षेत्र में छिपी हुई अथवा अदृश्य बेरोजगारी का प्रमुख कारण है।
9. बिहार में ग्रामीण बेरोज़गारी की समस्या क्यों अधिक गंभीर है ?
उत्तर- कृषि एवं प्राथमिक व्यवसायों में विद्यमान बेरोजगारी को ग्रामीण बेरोजगारी की संज्ञा दी जाती है। बिहार आर्थिक दृष्टि से एक पिछड़ा हुआ राज्य है। अतः, बिहार में शहरीकरण की गति अपेक्षाकृत मंद रही है। तथा राज्य की लगभग 90 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। इस जनसंख्या का एक बड़ा भाग (लगभग 75 प्रतिशत) रोजगार एवं जीवन निर्वाह के लिए कृषि पर निर्भर है। परंतु, यहाँ की कृषि आज भी प्राचीन, परंपरागत एवं पिछड़ी हुई है तथा कृषि क्षेत्र में रोजगार कुछ विशेष मौसम में ही उपलब्ध होते हैं। अतएव, कृषि में संलग्न जनसंख्या वर्ष में लगभग चार-पाँच महीने पूर्णत: बेकार रहती है। कृषि पर जनभार अधिक होने के कारण बिहार में छिपी हुई या अदृश्य बेरोजगारी भी अधिक है।
10. बिहार में शहरी एवं ग्रामीण बेरोजगारी पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर - बिहार में ग्रामीण एवं शहरी दोनों प्रकार की बेरोजगारी की भीषण समस्या वर्तमान है। इसके फलस्वरूप हमारी श्रम शक्ति का समुचित उपयोग नही होता, प्रतिव्यक्ति आय में गिरावट आती है और निर्धनता में वृद्धि होती है बेरोजगारी ने राज्य में लूट डकैती एवं कानून-व्यवस्था जैसी कई अन्य समस्याओं को भी जन्म दिया है। ग्रामीण बेरोजगारी का प्रमुख कारण कृषि का पिछड़ापन, इसकी सामयिक प्रकृति और कृषि पर अत्यधिक जनभार है। बिहार के शहरी क्षेत्रों में भी बेरोजगारी की समस्या वर्तमान है। तथा इसमें निरंतर वृद्धि हो रही है। इसका प्रमुख कारण राज्य के आर्थिक विकास की मंद गति है जिससे उद्योग एवं व्यापार के क्षेत्र में रोजगार के पर्याप्त अवसरों का सृजन नहीं हुआ है।
11. संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना क्या है?
उत्तर- संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना 25 सितंबर 2001 को प्रारंभ की गई। यह कार्यक्रम पूर्व से जारी रोजगार आश्वासन योजना और जवाहर ग्राम समृद्धि योजना को मिलाकर बनाया गया है। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा के साथ ही मजदूरी एवं रोजगार के अवसरों को बढ़ाने के लिए स्थायी सामुदायिक परिसंपत्तियों का निर्माण करना है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत समाज के कमजोर वर्गों, विशेषकर महिलाओं, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा जोखिमपूर्ण व्यवसायों से हटाए गए बच्चों के अभिभावकों को प्राथमिकता प्रदान की जाती है। इस योजना में रोजगार देने में गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे परिवारों को वरीयता दी जाती है।
12. स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर- अप्रैल 1999 से भारत सरकार ने स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना आरंभ की है। यह ग्रामीण के स्वरोजगार के लिए एक एकीकृत योजना है। इस योजना में समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम, राष्ट्रीय ग्रामीण युवक स्वरोजगार योजना तथा पूर्व के स्वरोजगार एवं उससे संबद्ध अन्य सभी कार्यक्रमों का स्थान ले लिया है। इसका उद्देश्य निर्धन परिवारों को निर्धनता रेखा से ऊपर लाने के लिए उन्हें स्वसहायता समूहों में संगठित करना है। इसके लिए इस कार्यक्रम के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनों की क्षमता एवं कौशल तथा स्थानीय संभावनाओं के आधार पर बहुत बड़ी संख्या में ऐसे सूक्ष्म अथवा अतिलघु उद्योगों की स्थापना पर बल दिया गया है। जो दीर्घकाल तक आय-सृजन में सहायक हों।
13. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम क्या है?
उत्तर- सितंबर 2005 में भारत सरकार ने 'राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम किश्तों में लागू होगा। इसके अंतर्गत प्रत्येक ग्रामीण परिवार को वर्ष में 100 दिन निश्चित रोजगार प्रदान करने का प्रावधान है। पहले चरण में इसे देश के 200 सबसे पिछड़े जिलों में लागू किया गया। 2007-08 में दूसरे चरण में देश के अन्य 130 जिलों को इसमें जोड़ा गया है। सरकार का लक्ष्य 5 वर्ष में इस अधिनियम दो का पूरे देश में विस्तार करना है। इस योजना को कार्यान्वित करने के लिए केन्द्र सरकार गारंटी कोष' की स्थापना की रोजगार गारंटी कोष' तथा राज्य सरकार द्वारा 'राज्य रोजगार जाएगी। इस अधिनियम में प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिन का अकुशल मजदूरी रोजगार प्रदान करने का प्रावधान है, अन्यथा वह दैनिक बेरोजगारी भत्ते का अधिकारी होगा।
14. भारत में ग्रामीण बेरोजगारी की प्रकृति की विवेचना कीजिए ।
उत्तर- भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में दो प्रकार की बेरोजगारी पाई जाती है— मौसमी बेरोजगारी तथा स्थायी बेरोजगारी । इसे ग्रामीण अथवा कृषि संबंधी बेरोजगारी कहते हैं।
भारतीय कृषि की प्रकृति मौसमी है तथा यहाँ खास-खास मौसम में ही कृषि कार्य किए जाते हैं। इसके फलस्वरूप, वर्ष में लगभग चार-पाँच महीने तक कृषि कार्य में संलग्न ग्रामीण जनसंख्या का एक बड़ा भाग बेकार रहता है। जब तक कृषि कार्य होते हैं तब तक इन लोगों को काम रहता है, लेकिन कृषि का मौसम समाप्त होते ही ये लोग बेरोजगार हो जाते हैं। इसे मौसमी बेरोजगारी कहते हैं। ग्रामीण बेरोजगारी का दूसरा स्वरूप निरंतर वर्तमान रहनेवाली स्थायी, बेरोजगारी है। इस प्रकार की बेरोजगारी को छिपी हुई या अदृश्य बेरोजगारी भी कहते हैं। इस प्रकार की बेरोजगारी कृषि पर जनसंख्या के अत्यधिक बोझ के कारण उत्पन्न होती है। भारतीय कृषि में आवश्यकता से अधिक व्यक्ति लगे हुए हैं। इसके अंतर्गत श्रमिक अपने-आपको कृषि कार्य में लगा हुआ समझता है। लेकिन, उसकी उत्पादकता लगभग शून्य के बराबर होती है। इस प्रकार, प्रकट रूप में श्रमिक रोजगाररत मालूम होता है, लेकिन उत्पादन में उसका कोई योगदान नहीं रहता है।
15. भारत में शिक्षित बेरोजगारी की समस्या पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर- जब समाज के शिक्षित वर्ग के लोगों को उनकी शिक्षा एवं योग्यता के अनुसार काम नहीं मिलता तो इसे शिक्षित बेरोजगारी की संज्ञा दी जाती है। इस प्रकार की बेरोजगारी मुख्यतः शहरों में पाई जाती है और प्रायः युवावर्ग के व्यक्ति इसके शिकार होते हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में शिक्षित व्यक्तियों की संख्या में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है। परंतु, इनके लिए रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध नहीं है और शिक्षित बेरोजगारों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। वैसे भारत में बेरोजगारी की कुल मात्रा को देखते हुए शिक्षित बेरोजगारों की संख्या बहुत अधिक नहीं है। लेकिन, इस समस्या की गंभीरता इसलिए बढ़ जाती है कि इस प्रकार की बेरोजगारी के कारण एक निर्धन देश में इनकी शिक्षा, प्रशिक्षण आदि पर व्यय किए जानेवाले साधनों का समुचित उपयोग नहीं हो पाता। जहाँ एक ओर देश में शिक्षा का विस्तार हो रहा है। वहीं दूसरी ओर शिक्षा, प्राप्त नवयुवकों के लिए लाभप्रद रोजगार की व्यवस्था दिन प्रतिदिन एक समस्या का रूप धारण करती जा रही है।
राष्ट्रीय श्रम आयोग के एक अध्ययन के अनुसार, 1951 में कुल 2.44 लाख शिक्षित व्यक्ति बेरोजगार थे, किन्तु 1993 के अंत तक इनकी संख्या बढ़कर लगभग 70 लाख हो गई थी। इनमें -शिक्षित महिलाओं की संख्या अपेक्षाकृत अधिक थी। शहरी क्षेत्रों में कुल बेरोजगार व्यक्तियों का लगभग आधा भाग शिक्षित बेरोजगारी का होता है। इससे देश में शिक्षित बेरोजगारी की समस्या का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।
16. भारत में बेरोजगारी के आर्थिक एवं सामाजिक प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- बेरोजगारी भारत के लिए एक गंभीर समस्या है। हमारे आर्थिक एवं सामाजिक जीवन पर इसका निम्नलिखित रूप में अत्यंत प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
(i) मानवीय संसाधनों की क्षति- बेरोजगारी के कारण देश के मानवीय संसाधनों का लाभप्रद उपयोग नहीं होता और इस प्रकार इनकी क्षति होती है। इनके कुशल प्रयोग द्वारा आर्थिक विकास की गति को अधिक तीव्र बनाया जा सकता है।
(ii) निर्धनता में वृद्धि - बेरोजगार व्यक्तियों को आय का कोई साधन नहीं होता और उनकी निर्धनता बढ़ती है। वास्तव में बेरोजगारी भारत में निर्धनता का प्रमुख कारण है।
(iii) श्रमिकों का शोषण - बेरोजगारी के कारण श्रमिकों का शोषण भी होता है। बेरोजगार होने की स्थिति में वे कम मजदूरी तथा अलाभप्रद परिस्थितियों में काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं। इसका श्रमिकों की कार्यक्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
(iv) पलायन की प्रवृत्ति— रोजगार के अवसरों के अभाव में श्रम का एक राज्य दूसरे राज्य अथवा एक देश से दूसरे देश में पलायन भी हो रहा है। अति प्रशिक्षित श्रम के पलायन से देश को बहुत अधिक क्षति होती है।
(v) राजनैतिक अस्थायित्व — बेरोजगारी के कारण देश में राजनैतिक अस्थायित्व भी उत्पन्न हुआ है। है। बेरोजगार व्यक्तियों का प्रजातांत्रिक मूल्यों पर से विश्वास समाप्त हो जाता है और वे सरकार का विरोध करते हैं। इस प्रकार का राजनैतिक वातावरण आर्थिक विकास में बाधक सिद्ध होता है।
(vi) सामाजिक समस्याएँ- भ्रष्टाचार, अनैतिकता, बेईमानी आदि जैसी बुराइयाँ बेरोजगारी के ही परिणाम हैं। इससे समाज में अशांति एवं अव्यवस्था की स्थिति पैदा हो गई है।
17. भारत में शिक्षित बेरोजगारी के क्या कारण हैं ? इसके निराकरण के उपाय बताइए।
उत्तर- भारत में शिक्षित बेरोजगारी के दो प्रधान कारण हैं। हमारा आर्थिक नियोजन दोषपूर्ण रहा है जिससे प्रारंभ से ही मानवीय साधनों की उपेक्षा हुई है। हमारी पंचवर्षीय योजनाओं में अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में श्रमिकों की माँग एवं पूर्ति का कोई लेखा-जोखा तैयार नहीं किया गया। परिणामतः, प्रतिवर्ष विद्यालयों एवं महाविद्यालयों से लाखों की संख्या में युवक डिग्रियाँ प्राप्त कर निकलते रहे हैं जिनके लिए रोजगार के उपयुक्त अवसर उपलब्ध नहीं हैं। भारत में शिक्षित बेरोजगारी का एक अन्य कारण हमारी दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली है। हमारी शिक्षा प्रणाली रोजगार-प्रेरित नहीं है जिससे शिक्षित बेरोजगारी निरंतर बढ़ती जा रही है।
शिक्षित बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए अग्रलिखित उपाय आवश्यक हैं-
(i) शिक्षा प्रणाली में सुधार- शिक्षित बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए शिक्षा प्रणाली में सुधार अत्यंत आवश्यक है। हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली का रोजगार से कोई विशेष संबंध नहीं है ।
(ii) श्रमशक्ति का नियोजन- देश के सभी शिक्षित व्यक्तियों को रोजगार प्रदान करने के लिए श्रमशक्ति का नियोजन आवश्यक है। हमें शिक्षा की व्यवस्था करते समय श्रम बाजार की माँग को भी ध्यान में रखना होगा।
(iii) दृष्टिकोण में परिवर्तन — इस समस्या के समाधान के लिए शिक्षित वर्ग के दृष्टिकोण में भी परिवर्तन आवश्यक है। विकसित देशों में शरीरिक श्रम को हेय दृष्टि से नहीं देखा जाता। लेकिन, हमारे देश में शिक्षित युवावर्ग की शारीरिक कार्य में अभिरूचि नहीं होती। उनके इस दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना आवश्यक है।
Hello My Dear, ये पोस्ट आपको कैसा लगा कृपया अवश्य बताइए और साथ में आपको क्या चाहिए वो बताइए ताकि मैं आपके लिए कुछ कर सकूँ धन्यवाद |