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Bharati Bhawan Class 9th Economics Chapter 4 | Long Questions Answer | Bihar Board Class IX Arthshastr | बेरोजगारी | भारती भवन कक्षा 9वीं अर्थशास्त्र अध्याय 4 | दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Bharati Bhawan Class 9th Economics Chapter 4  Long Questions Answer  Bihar Board Class IX Arthshastr  बेरोजगारी  भारती भवन कक्षा 9वीं अर्थशास्त्र अध्याय 4  दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. बेरोजगारी क्या है ? बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के उपाए बताएँ।
उत्तर- बेरोजगारी भारत के लिए एक गंभीर समस्या है। सामान्यतः, जब कोई व्यक्ति अपने जीवन निर्वाह के लिए किसी काम में नहीं लगा हो तो उसे बेरोजगार कहते हैं। लेकिन, यह बेरोजगारी की एक सही परिभाषा नहीं है। इस दृष्टि से एक आलसी व्यक्ति को भी जो अपनी इच्छा से कार्य नहीं करता, वेरोजगार कहा जाएगा। वास्तव में, इस प्रकार की स्वेच्छापूर्ण बेरोजगारी को आर्थिक बेरोजगारी की संज्ञा नहीं दी जा सकती। जब काम चाहनेवाले व्यक्तियों को इच्छा एवं योग्यता रहने पर भी मजदूरी की प्रचलित दरों पर काम नहीं मिलता तब हम इसे बेरोजगारी की स्थिति कहते हैं। यदि लोग इच्छा नहीं रहने अथवा शारीरिक या मानसिक दुर्बलता के कारण काम नहीं करते तो इसे बेरोजगारी नहीं कहेंगे। आर्थिक दृष्टि से केवल ऐसे व्यक्तियों को बेरोजगार की श्रेणी में रखा जा सकता है जिन्हें इच्छा और योग्यता रहने पर भी कोई काम नहीं मिलता है। इस प्रकार, बेरोजगार व्यक्ति वे हैं जो अपनी इच्छा के विरुद्ध बेरोजगार हैं। वे काम कर सकते हैं तथा हैं, किंतु अर्थव्यवस्था इन्हें रोजगार प्रदान करने में असमर्थ है।
करना भी चाहते विश्वसनीय आँकड़ों के अभाव में भारत में बेरोजगारी की स्थिति का सही अनुमान लगाना कठिन है। राष्ट्रीय प्रतिदर्श जाँच संगठन के अनुसार, 1999-2000 में हमारी कुल श्रमशक्ति का लगभग 6 प्रतिशत भाग बेरोजगार था। परंतु, वास्तविक स्थिति इससे बहुत गंभीर है। इसका कारण यह है कि बहुत से ऐसे व्यक्तियों को भी रोजगार मान लिया जाता है। जिनकी आय एवं उत्पादकता बहुत कम है। वे पूरे वर्ष काम में लगे रहते हैं, लेकिन क्षमता की दृष्टि से उनकी आय पर्याप्त नहीं होती है। रोजगार के अवसरों के अभाव में बहुत से व्यक्ति ऐसे काम करने के लिए बाध्य है जो उनकी योग्यता एवं रूचि के अनुकूल नहीं है। निर्धन व्यक्ति बेकार नहीं बैठ सकते हैं। और न्यून आय प्रदान करनेवाले काम भी स्वीकार कर लेते हैं। इस प्रकार के व्यक्तियों का जीवन स्तर अत्यंत निम्न होता है।
हमारे देश के प्राथमिक क्षेत्र में अर्द्ध-बेरोजगारों की संख्या सबसे अधिक है। इस क्षेत्र में कार्यरत अधिकांश व्यक्ति स्वनियोजित होते हैं। उदाहरण के लिए आवश्यकता नहीं होने पर भी छोटे किसानों का प्राय: संपूर्ण परिवार कृषि कार्यों में संलग्न होता है। परिणामत: कृषि क्षेत्र में अदृश्य अथवा अर्द्ध-बेरोजगारी बहुत अधिक है।
2. बिहार में बेरोजगारी की समस्या क्यों अधिक गंभीर है ? इसके कारणों की विवेचना करें। 
उत्तर- देश के अन्य विकसित राज्यों की अपेक्षा बिहार में बेरोजगारी की समस्या अधिक उग्र है तथा विगत वर्षों के अंतर्गत इसमें वृद्धि हुई है। इससे बिहारवासियों की निर्धनता बढ़ी है तथा राज्य में कई अन्य सामाजिक समस्याएँ भी उत्पन्न हुई हैं। इसके प्रमुख कारण निम्नांकित हैं-
(i) कृषि की प्रधानता- कृषि बिहार की अर्थव्यवस्था का आधार है। गैर-कृषि क्षेत्र, विशेषतया उद्योग-धंधों के अविकसित होने के कारण उनमें रोजगार के बहुत कम अवसर उपलब्ध हैं। राज्य की लगभग 80 प्रतिशत कार्यशील जनसंख्या कृषि एवं उससे संबद्ध क्रियाकलाप में लगी हुई है। कृषि पर जनसंख्या के इस बोझ के कारण ही गाँवों में अर्द्ध-बेरोजगारी अत्यधिक गंभीर है। की समस्या अत्यंत पिछड़ी हुई 
(ii) कृषि का पिछड़ापन – बिहार में कृषि की प्रधानता होने पर भी यह अवस्था में है। समुचित जल प्रबंधन तथा शक्ति, परिवहन और विपणन संरचना आधुनिकीकरण एवं व्यवसायीकरण संभव नहीं हुआ है। परिणामतः, राज्य अर्थव्यवस्था के इस सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में रोजगार के अवसरों का विस्तार नहीं हो सका है।
(iii) औद्योगिकीकरण का अभाव – बिहार में आधुनिक उद्योगों की प्रगति बहुत धीमी रही है। राज्य के विभाजन के पश्चात अधिकांश खनिज संपदा एवं वृहत औद्योगिक इकाइयाँ झारखण्ड में चली गई।
(iv) आर्थिक विकास की मंद गति- देश के अन्य भाग की तुलना में बिहार के आर्थिक विकास की दर अपेक्षाकृत मंद रही हैं नीति के अभाव में बिहार की कृषि, उद्योग एवं व्यापार के क्षेत्र में रोजगार के पर्याप्त अवसरों का सृजन नहीं हुआ है।
(v) जनसंख्या की वृद्धि- देश के अन्य सभी राज्यों की अपेक्षा बिहार में जनसंख्या की वृद्धि दर अधिक है। इसके फलस्वरूप बेरोजगारी और अर्द्ध- बेरोजगारी की समस्या दिन-प्रतिदिन अधिक उग्र होती जा रही है।
(vi) कृषि आधारित उद्योगों की अवहेलना – बिहार की कृषिभूमि बहुत उपजाऊ है तथा राज्य में कृषि आधारित उद्योगों के विकास की अपार संभावनाएँ हैं। लेकिन, राज्य सरकार की उदासीनता तथा साधनों के अभाव में इन उद्योगों का विकास नहीं हुआ है तथा उत्तर एवं मध्य बिहार की अधिकांश चीनी, जूट और कागज मिलें बंद हो चुकी हैं। इससे बेरोजगारों की संख्या में वृद्धि हुई है।
3. बिहार में बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए क्या उपाय आवश्यक है ? 
उत्तर- बिहार में बेरोजगारी की समस्या अत्यंत गंभीर है तथा इस समस्या के समाधान के लिए निम्नलिखित उपाय आवश्यक हैं
(i) कृषि का विकास – कृषि बिहार की अर्थव्यवस्था का सबसे वृहत क्षेत्र हैं। परंतु, कृषि के पिछड़ेपन के कारण इस क्षेत्र में मौसमी तथा अदृश्य बेरोजगारी बहुत अधिक है। बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए कृषि का आधुनिकीकरण एवं व्यवसायीकरण अत्यंत आवश्यक है।
(ii) औद्योगिक विकास – देश के प्रमुख राज्यों में बिहार का औद्योगिक क्षेत्र सबसे छोटा और अल्पविकसित है। राज्य के कुल घरेलू उत्पाद में इस क्षेत्र का योगदान मात्र 12 प्रतिशत होता है। नए उद्योगों की स्थापना तथा पुरानी एवं रुग्ण औद्योगिक इकाइयों के पुनर्वास से रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी और कृषि पर जनभार कम होगा। उत्तर बिहार में चीनी, चाय एवं जूट उद्योगों के विकास द्वारा रोजगार के पर्याप्त अवसरों का सृजन हो सकता है।
(iii) ग्राम उद्योगों का विकास- बिहार में ग्राम उद्योगों के विकास की संभावनाएँ बहुत अधिक है। खादी एवं ग्रामोद्योग क्षेत्र राज्य के लगभग 3.45 लाख व्यक्तियों को रोजगार प्रदान करता है। इस क्षेत्र के विकास द्वारा इनमें और अधिक रोजगार की व्यवस्था की जा सकती है। सब्जी तथा फल के उत्पादन में भी बिहार देश का एक अग्रणी राज्य है। अतः, उद्योगों में भी रोजगार की संभावनाएँ बहुत अधिक हैं और बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए इनका विकास आवश्यक है। खाद्य प्रसंस्करण
(iv) भूमि सुधार– बिहार में भूमि सुधार अधिनियमों का कार्यान्वयन बहुत दोषपूर्ण रहा है। भूमि सुधार अधिनियमों के प्रभावी कार्यान्वयन से कृषि अथवा ग्रामीण बेरोजगारी को दूर करने में सहायता मिलेगी।
(v) पर्याप्त निवेश – अन्य राज्यों की अपेक्षा बिहार में निवेश का स्तर बहुत निम्न है। बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए कृषि, उद्योग, विद्युत, जल प्रबंधन आदि जैसे अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में पर्याप्त पूँजी का निवेश आवश्यक है।
(vi) जनसंख्या का नियंत्रण - बिहार में जनसंख्या की वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। रोजगार के साधनों की अपेक्षा राज्य की जनसंख्या अधिक तेजी से बढ़ रही है। बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए जनसंख्या का प्रभावपूर्ण नियंत्रण भी आवश्यक है।  
4. बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए सरकार द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों की समीक्षा करें।
उत्तर - बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए सरकार द्वारा समय-समय पर अनेक कार्यक्रम चलाए गए हैं। इनमें न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम, सूखाग्रस्त क्षेत्र कार्यक्रम, काम के लिए अनाज कार्यक्रम, जवाहर ग्राम समृद्धि योजना आदि महत्त्वपूर्ण हैं। वर्तमान में देश तथा राज्य में निर्धनता निवारण के लिए जो परियोजनाएँ चल रहे हैं उनमें स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना और संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं। स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना अप्रैल 1999 में आरंभ की गई। यह ग्रामीणों के स्वरोजगार के लिए एक स्वीकृत योजना है। इसका उद्देश्य निर्धन ग्रामीण परिवारों को बैंक ऋण एवं सरकारी अनुदान द्वारा स्व-सहायता समूहों के रूप में संगठित करना है। 'काम के बदले अनाज की राष्ट्रीय योजना' रोजगार सृजन की एक अन्य महत्त्वपूर्ण योजना है। यह 2004 में योजना आयोग के द्वारा देश के 150 सर्वाधिक पिछड़े जिलों में लागू किया गया था। कार्यक्रम के अंतर्गत मजदूरी का भुगतान तः नकद और अनाज दोनों के रूप में किया जाता है।
सितंबर 2005 में सरकार ने 'राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम' पास किया है जो रोजगार सृजन की नजर से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं । इस अधिनियम के अंतर्गत प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिन का अकुशल मजदूरी - रोजगार प्रदान करने का प्रावधान है।  
5. बेरोजगारी क्या है? बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के उपाय बताएं।
उत्तर- पहले भाग के लिए दीर्घ उत्तरीय का प्रश्न सं० 1 का उत्तर देखें । भारत में रोजगार के साधनों का विस्तार तथा बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय आवश्यक हैं
(i) आर्थिक विकास-हम देश के संतुलित आर्थिक विकास के द्वारा रोजगार की मात्रा बढ़ा सकते हैं। यह बात निर्विवाद है कि रोजगार की मात्रा अंततः उत्पादक एवं पूँजीगत वस्तुओं में होनेवाले विनियोग पर निर्भर करती है। अतः, देश में नए उद्योगों की स्थापना, वर्तमान उद्योगों की उत्पादन क्षमता का विस्तार तथा भारी एवं आधारभूत उद्योगों का विकास होना चाहिए ।
(ii) पूँजी निर्माण- उद्योगीकरण तथा आर्थिक विकास की गति को तेज करने के लिए पूँजी-निर्माण आवश्यक है। अतएव, बचत को प्रोत्साहन देना बहुत जरूरी है। इसके साथ ही हमें उपर्युक्त सुविधाएँ देकर देश में विदेशी पूँजी को भी आकृष्ट करना चाहिए। विकास कार्यों के लिए पर्याप्त पूँजी उपलब्ध रहने पर ही देश में रोजगार के अतिरिक्त अवसरों का सृजन किया जा सकता है। -
(iii) जनसंख्या की वृद्धि पर नियंत्रण- हमारे देश में बेरोजगारी की समस्या की समस्या से जुड़ी हुई है। भारत की जनसंख्या में निरंतर तीव्र गति से वृद्धि हो रही है। लेकिन, रोजगार के साधनों में उस अनुपात में वृद्धि नहीं होती। परिणामस्वरूप, देश में बेरोजगारों की संख्या बढ़ रही है, अतएव, बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए जनसंख्या पर नियंत्रण आवश्यक है । 
(iv) कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास- बेरोजगारी को दूर करने के लिए भारी उद्योग के साथ-साथ देश में कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास अत्यंत आवश्यक है। भारत में बेरोजगारी, विशेषकर अर्द्ध- बरोजगारी का प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक है। घरेलू उद्योगों के विकास द्वारा हम इस प्रकार की बेरोजगारी को दूर कर सकते हैं।
(v) कृषि का आधुनिकीकरण- कृषि के क्षेत्र में वर्तमान बेरोजगारी एवं अर्द्ध-बेरोजगारी को दूर करने के लिए कृषि का आधुनिकीकरण करना अत्यंत आवश्यक है।
6. भारत में बेरोजगारी के विभिन्न स्वरूपों की विवेचना कीजिए
उत्तर- भारत में बेरोजगारी का स्वरूप विकसित देशों से सर्वथा भिन्न है। भारत में बेरोजगारी के विभिन्न रूपों को हम निम्नांकित श्रेणियों में विभक्त कर सकते हैं। 
(i) कृषि अथवा ग्रामीण बेरोजगारी - भारत में कृषि अथवा ग्रामीण बेरोजगारी की समस्या अत्यंत गंभीर है। कृषि के पिछड़े होने तथा कुटीर उद्योगों के पतन के कारण गाँवों में रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध नहीं है। इसके फलस्वरूप कृषि में संलग्न जनसंख्या का एक बड़ा भाग वर्ष में लगभग चार से पाँच महीने तक पूर्णत: बेकार रहता है। जब तक कृषि कार्य होते हैं। तब तक इन लोगों को काम रहता है। लेकिन कृषि का मौसम समाप्त होते ही ये लोग बेरोजगार हो जाते हैं। इस प्रकार की बेरोजगारी को सामयिक या मौसमी बेरोजगारी कहते हैं। कृषि के क्षेत्र में आवश्यकता से अधिक व्यक्ति लगे होने के कारण छिपी हुई या अदृश्य बेरोजगारों भी पाई जाती है। इस प्रकार की बेरोजगारी को प्रच्छन्न बेरोजगारी भी कहते हैं जो दृष्टिगत नहीं होती इसके अंतर्गत श्रमिक अपने को कृषि कार्य में लगा हुआ समझता है, लेकिन उसकी उत्पादकता लगभग शून्य के बराबर होती है। 
(ii) औद्योगिक बेरोजगारी- भारत के औद्योगिक क्षेत्रों में भी बेरोजगारों की संख्या क्रमशः बढ़ रही है। इसके कई कारण हैं। शहरों का विस्तार होने के फलस्वरूप ग्रामीण जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में प्रवेश कर रही है। इन्हें काम उपलब्ध कराने के लिए रोजगार के अवसरों का अभाव है। हमारे देश के औद्योगिक विकास की गति अपेक्षाकृत मंद है। भारत में उद्योगों का स्थानीयकरण भी दोषपूर्ण है। देश के सभी क्षेत्रों का समान रूप से उद्योगीकरण नहीं हुआ है। इसके फलस्वरूप औद्योगिक बेरोजगारी में निरंतर वृद्धि हो रही है।
(iii) शिक्षित बेरोजगारी-देश में शिक्षित बेरोजगारी की समस्या आज सबसे अधिक गंभीर है। शिक्षित बेरोजगारी से हमारा अभिप्राय ऐसे व्यक्तियों की बेरोजगारी से है जो मैट्रिक या उससे अधिक शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं। इस प्रकार की बेरोजगारी के कारण देश की कुशल श्रम-शक्ति का सदुपयोग नहीं हो पाता तथा इनकी शिक्षा, प्रशिक्षण आदि पर व्यय किए जानेवाले साधनों का अपव्यय होता है।
इस प्रकार, भारत में बेरोजगारी के विभिन्न रूप हैं। इनमें ग्रामीण क्षेत्रों में पाई जानेवाली अर्द्ध- बेरोजगारी की समस्या अत्यंत गंभीर एवं संकटपूर्ण है।
7. बेरोजगारी की परिभाषा दें। भारत में बेरोजगारी के प्रमुख कारण क्या हैं ? 
उत्तर- जब काम चाहनेवाले व्यक्तियों को इच्छा एवं योग्यता रहने पर भी प्रचलित मजदूरी पर काम नहीं मिलता तब इसे बेरोजगारी कहते हैं।
भारत में बेरोजगारी की समस्या अत्यंत गंभीर है तथा इसके समाधान के लिए इसके कारणों की खोज आवश्यक है। हमारे देश में बेरोजगारी के प्रमुख कारण निम्नलिखित है-
(i) आर्थिक विकास की मंद गति- हमारे देश में बेरोजगारी के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैंदेश में प्राकृतिक एवं मानवीय साधनों की प्रचुरता रहने पर भी भारतीय अर्थव्यवस्था अत्यंत पिछड़ी हुई अवस्था में है। अनेक कारणों से भारत में आर्थिक विकास की गति बहुत मंद रही है। देश के अधिकांश व्यक्तियों के लिए कृषि जीविकोपार्जन का मुख्य साधन है। लेकिन, कृषि के पिछड़े और अविकसित होने के कारण कृषि क्षेत्र में रोजगार के पर्याप्त अवसर मुख्य साधन उपलब्ध नहीं हैं। भारत के औद्योगिक विकास की गति भी धीमी रही है। पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत देश के उद्योगीकरण के लिए प्रयास किए गए हैं, फिर भी औद्योगिक क्षेत्र में रोजगार के बहुत कम साधन उपलब्ध हैं।
(ii) पूंजी का अभाव- रोजगार की मात्रा में वृद्धि के लिए अधिकाधिक विनियोग आवश्यक है। लेकिन, पूँजी की कमी के कारण हम विनियोग में पर्याप्त वृद्धि करने में असमर्थ हैं। इससे कृषि एवं उद्योग दोनों ही क्षेत्रों का विकास अवरुद्ध हो जाता है तथा रोजगार के अवसरों में बहुत कम वृद्धि होती है।
(iii) दोषपूर्ण नियोजन- दोषपूर्ण नियोजन भी भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख कारण है। प्रारंभ से ही हमारी पंचवर्षीय योजनाओं में रोजगारों एवं मानवीय संसाधनों की उपेक्षा की गई है। भारत की योजना प्रणाली रोजगार प्रधान नहीं रही है ।
(iv) जनसंख्या में तीव्र वृद्धि- भारत की जनसंख्या में निरंतर बहुत तीव्र गति से वृद्धि हो रही हैं। परिणामस्वरूप, इस बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए हम रोजगार की व्यवस्था करने में असमर्थ हैं तथा देश में बेरोजगारों की संख्या बढ़ रही है।
(v) दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली- हमारे देश में प्रतिवर्ष शिक्षित व्यक्तियों की संख्या बढ़ती जा रही है, लेकिन उनके लिए रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध नहीं है। इसका प्रधान कारण हमारी दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली है।
(vi) प्राकृतिक साधनों का अपूर्ण उपयोग— भारत में प्राकृतिक संसाधनों का बाहुल्य होने पर भी इनका पूर्ण उपयोग नहीं हो सका है। परिणामतः, देश में रोजगार की पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं।
8. भारत में बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के उपाय बताएँ । 
उत्तर भारत में रोजगार के साधनों का विस्तार तथा बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय आवश्यक हैं
(i) आर्थिक विकास- हम देश के संतुलित आर्थिक विकास के द्वारा रोजगार की मात्रा बढ़ा सकते हैं। यह बात निर्विवाद है कि रोजगार की मात्रा अंततः उत्पादक एवं पूँजीगत वस्तुओं में होनेवाले विनियोग पर निर्भर करती है। अतः, देश में नए उद्योगों की स्थापना, वर्तमान उद्योगों की उत्पादन क्षमता का विस्तार तथा भारी एवं आधारभूत उद्योगों का विकास होना चाहिए। 
(ii) पूँजी-निर्माण उद्योगीकरण तथा आर्थिक विकास की गति को तेज करने के लिए पूँजी निर्माण आवश्यक है। अतएव, बचत को प्रोत्साहन देना बहुत जरूरी है। इसके साथ ही हमें उपयुक्त सुविधाएँ देकर देश में विदेशी पूँजी को भी आकृष्ट करना चाहिए। यह संतोष का विषय है कि सरकार की अनुकूल नीति के कारण विगत वर्षों में विदेशी पूँजी निवेश बढ़ा है। विकास कार्यों के लिए पर्याप्त पूँजी उपलब्ध रहने पर ही देश में रोजगार के अतिरिक्त अवसरों का सृजन किया जा सकता है।
(iii) जनसंख्या की वृद्धि पर नियंत्रण- हमारे देश में बेरोजगारी की समस्या जनसंख्या की समस्या से जुड़ी हुई है। भारत की जनसंख्या में निरंतर तीव्र गति से वृद्धि हो रही है। लेकिन, रोजगार के साधनों में उस अनुपात में वृद्धि नहीं होती। परिणामस्वरूप, देश में बेरोजगारी की संख्या बढ़ रही है। अतएव, बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए जनसंख्या पर नियंत्रण आवश्यक है। 
(iv) कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास–बेरोजगारी को दूर करने के लिए भारी उद्योगों के साथ-साथ देश में कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास अत्यंत आवश्यक है। भारत में बेरोजगारी विशेषकर अर्द्ध-बेरोजगारी का प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक है। घरेलू उद्योगों के विकास द्वारा हम इस प्रकार की बेरोजगारी को दूर कर सकते हैं।
कृषि का आधुनिकीकरण कृषि के क्षेत्र में वर्त्तमान बेरोजगारी एवं अर्द्ध-बेरोजगारी को दूर करने के लिए कृषि का आधुनिकीकरण करना अत्यंत आवश्यक है।

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