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Bharati Bhawan Class 9th Economics Chapter 5 | Short Questions Answer | Bihar Board Class IX Arthshastr Krishi evn Khadan Suraksha | कृषि एवं खाद्दान सुरक्षा | भारती भवन कक्षा 9वीं अर्थशास्त्र अध्याय 5 | लघु उत्तरीय प्रश्न

Bharati Bhawan Class 9th Economics Chapter 5  Short Questions Answer  Bihar Board Class IX Arthshastr Krishi evn Khadan Suraksha  कृषि एवं खाद्दान सुरक्षा   भारती भवन कक्षा 9वीं अर्थशास्त्र अध्याय 5  लघु उत्तरीय प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. बिहार में कृषि की क्या स्थिति है ? 
उत्तर- बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है। यहाँ की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या अपनी आजीविका के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर करती है। परंतु, कृषि की प्रधानता होने पर भी बिहार की कृषि अत्यन्त पिछड़ी हुई अवस्था में है। इसके पिछड़ेपन के प्रायः वही कारण है जो भारतीय कृषि के पिछड़े होने के हैं जैसे मानसून पर निर्भरता, जोतों का छोटा आकार, सिंचाई सुविधाओं का अभाव, वित्त या साख की कमी इत्यादि। परंतु, अन्य राज्यों की अपेक्षा बिहार में कृषि की स्थिति कई दृष्टियों से भिन्न है। पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत बिहार में राष्ट्रीय कृषि नीति को लागू करने का कोई प्रयास नहीं हुआ है। इससे खेती केवल जीवन-यापन  बनकर रह गई है तथा इसने एक व्यवसाय का रूप नहीं लिया है।
2. बिहार में कृषि पर आधारित उद्योगों के विकास की क्या संभावनाएं है? 
उत्तर- बिहार की कृषि क्षेत्र केवल इस कारण महत्त्वपूर्ण नहीं है कि यहाँ की अधिकांश जनसंख्या कृषि द्वारा जीविकोपार्जन करती है, वरन इस कारण से भी है कि इस क्षेत्र में राज्य के विकास की अपार संभावनाएँ वर्तमान हैं। यहाँ की भूमि बहुत उर्वर है। विशिष्ट भौगोलिक अवस्थिति के कारण राज्य में काफी जैव विविधता है जिससे यहाँ के किसान अनाज, तेलहन तथा फल और सब्जी जैसी विविध फसलों का उत्पादन करते हैं। लेकिन, जल प्रबंधन, साख आदि आधारभूत सुविधाओं के उपलब्ध नहीं होने के कारण कृषि की उपज बहुत कम है। राज्य के किसान अत्यंत निर्धन है। परिणामतः, वे आधुनिक कृषि के लिए उन्नत बीज, खाद, सिंचाई आदि की व्यवस्था नहीं कर पाते हैं। बिहार में सहकारी समितियों तथा ग्रामीण बैंकों की स्थिति अत्यंत असंतोष है। कृषि साख की समुचित व्यवस्था करने के लिए इनकी वित्तीय स्थिति में सुधार आवश्यक है। जल प्रबंधन कृषि विकास का आधार है। पर्याप्त पूँजी उपलब्ध होने पर किसान नलकूप द्वारा भूगर्भ जल का अधिकतम प्रयोग कर सकते हैं। लेकिन, बिजली का अभाव इनके प्रयोग में एक बड़ी बाधा है। भूमि- स्वामित्व और इसके वितरण में घोर विषमता भी बिहार में कृषि के विकास में बाधक है। भूमि सुधार के लिए चकबंदी तथा भूमि हदबंदी कार्यक्रमों को प्रभावपूर्ण ढंग से लागू करना आवश्यक है।
3. खाद्यान्न फसलों एवं व्यावसायिक फसलों में क्या अंतर है। 
उत्तर- खाद्यान्न फसलों वे है जिनका उत्पादन मुख्यतः भोजन के उद्देश्य से किया जाता है। खाद्य फसलों में चावल, गेहूँ, मक्का, चना आदि प्रमुख हैं। इस खाद्यान्न का खाद्य पदार्थों के रूप में प्रत्यक्ष रूप से प्रयोग किया जाता है। व्यावसायिक फसलें वे हैं जिन्हे उपजाने का मुख्य उद्देश्य व्यवसाय होता है। यही कारण है कि इन्हें नकदी फसल भी कहते हैं। जैसे— कपास, जूट, गन्ना, चाय।
4. 'खाद्यान्न की गुणवत्ता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- खाद्य पदार्थों में विद्यमान कैलोरी की मात्रा को उसकी गुणवत्ता कहा जाता है । गुणात्मक दृष्टिकोण से खाद्य की उपलब्धि से ज्यादा उसके गुण पर जोर देना चाहिए । भोजन की पौष्टिक शक्ति की इकाईयाँ भिन्न-भिन्न कार्य करनेवाले व्यक्तियों के लिए भिन्न-भिन्न मात्रा में आवश्यक होती है। उदाहरण के लिए यह अनुमान लगाया गया है कि घर पर रहकर काम करनेवाली स्त्रियों के लिए प्रतिदिन 3100 कैलोरीयुक्त भोजन की जरूरत है। ऑफिस में काम करनेवाले अथवा अध्यापक की दैनिक आवश्यकता कम-से-कम 2600 कैलोरी है। डॉक्टर, इंजीनियर एवं दर्जी की आवश्यकता 3000 कैलोरी है। इसी प्रकार एक औद्योगिक श्रमिक की दैनिक आवश्यकता 3600 कैलोरी है ।
5. हमारे देश में खाद्य सुरक्षा किस प्रकार सुनिश्चित की जाती है ? 
उत्तर- 1970 के दशक में खाद्य सुरक्षा का अर्थ सभी अवसरों पर पर्याप्त मात्रा में आवश्यक उत्तरखाद्य पदार्थों की उपलब्धता से लगाया जाता था। लेकिन, कुछ समय पूर्व अमर्त्य सेन ने 'लोगों की योग्यता के अनुसार खाद्य पदार्थों तक उनकी पहुँच' पर बल देकर खाद्य सुरक्षा की धारणा को एक नया स्वरूप प्रदान किया है। इसके फलस्वरूप अब खाद्य सुरक्षा संबंधी हमारे दृष्टिकोण में भी महत्त्वपूर्ण परिवर्त्तन आया है। देश के सभी नागरिकों को खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कराने के लिए खाद्य पदार्थों की उपलब्धता के साथ ही इस आवश्यकता पर भी बल दिया जाने लगा है कि सभी लोगों की इस खाद्यान्न तक पहुँच तथा उसे खरीदने का सामर्थ्य हो ।
6. बिहार में खाद्य असुरक्षा अधिक होने के क्या कारण हैं ? 
उत्तर- बिहार की गणना देश के कुछ ऐसे राज्यों में की जाती है जहाँ के निवासियों में खाद्य असुरक्षा बहुत अधिक है। इसका प्रमुख कारण राज्य का आर्थिक पिछड़ापन है। बिहार एक कृषि-प्रधान राज्य है। यहाँ की अधिकांश जनसंख्या अपने जीविकोपार्जन के लिए कृषि पर निर्भर है। लेकिन, बिहार की कृषि अत्यंत पिछड़ी हुई अवस्था में है। बिहार औद्योगिक दृष्टि से भी बहुत पिछड़ा है तथा विभाजन के पश्चात अब राज्य में प्रायः कोई भी वृहत एवं भारी उद्योग नहीं है। परिणामतः, बिहारवासियों की प्रतिव्यक्ति आय बहुत कम है तथा राज्य में निर्धनों की संख्या और उनमें खाद्य असुरक्षा भी अधिक है।
7. संकट अथवा प्राकृतिक विपदाओं से खाद्यान्न की आपूर्ति किस प्रकार प्रभावित होती है ?
उत्तर- समाज में निर्धन वर्गों में प्रायः सभी समय खाद्य असुरक्षा बनी रहती है। इस वर्ग के लिए खाद्य सुरक्षा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है लेकिन भूकंप, बाढ़, सुखाड़, अकाल जैसी प्राकृतिक विपदाओं के समय निर्धनता रेखा से ऊपर रहने वाले व्यक्तियों में भी खाद्य असुरक्षा उत्पन्न हो सकती है। प्राकृतिक आपदाएँ अथवा मौसम की प्रतिकूलता हमारे देश में खाद्य असुरक्षा का एक प्रमुख कारण है। उदाहरण के लिए, उत्तर बिहार में नियमित रूप से प्रायः प्रत्येक वर्ष बाढ़ आती है। इससे इस क्षेत्र की कृषि फसलों की अपार क्षति होती है। इस प्रकार की आपदाओं से केवल निर्धन वर्ग ही नहीं, वरन सामान्य वर्ग के व्यक्ति भी प्रभावित होते हैं।
सुखाड़ - बाढ़ आदि आपदा के समय खाद्यान्न का कुल उत्पादन बहुत हो जाता है। खाद्य पदार्थों का अभाव होने पर उनके मूल्य भी बहुत बढ़ जाते हैं। समाज के निर्धन व्यक्तियों के लिए ऊँचे मूल्यों पर अनाज खरीदना संभव नहीं होता। यदि इस प्रकार की आपदा देश या राज्य के एक बड़े भाग में होती है, या लंबी अवधि तक बनी रहती है तो इससे भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। अधिक व्यापक होने पर यह भुखमरी अकाल का रूप धारण कर लेती है। विगत वर्षों के अंतर्गत हमारे देश में खाद्य असुरक्षा बहुत कम हुई है। लेकिन, अभी भी कुछ विशेष वर्गों में यह असुरक्षा अधिक है।
8. "भारत में समाज का एक वर्ग आज भी भूख की समस्या से ग्रस्त है । " इस कथन को स्पष्ट करें।
उत्तर- भारत में विशेष वर्गों में खाद्य असुरक्षा समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग खाद्य असुरक्षा से प्रभावित है, लेकिन कुछ और भूख की समस्या अधिक गंभीर है। ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत छोटे किसान, भूमिहीन श्रमिक, अनाथ बच्चे, अपंग व्यक्ति आदि खाद्य असुरक्षा से सर्वाधिक प्रभावित वर्ग हैं। कृषि स संबद्ध व्यक्तियों को भी नियमित काम नहीं मिलता और इनकी आय बहुत कम होती है। अतः, इनमें भी खाद्य असुरक्षा बहुत अधिक है और ये प्रायः भुखमरी के शिकार हो जाते हैं। शहरी क्षेत्रों में बहुत कम आयवाले व्यवसाय या धंधे में लगे व्यक्ति तथा दैनिक मजदूरों का परिवार खाद्य असुरक्षा और भूख की समस्या से सर्वाधिक प्रभावित होता है।
9. सामयिक भूख तथा दीर्घस्थायी भूख में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर- खाद्य असुरक्षा तथा भूख की समस्या के दो मुख्य पक्ष हैं- दीर्घ स्थायी एवं सामयिक | दीर्घ स्थायी भूख का कारण पर्याप्त, संतुलित एवं पौष्टिक भोजन का अभाव है। न्यून आय तथा क्रयशक्ति में कमी होने के कारण निर्धन परिवार भूख की समस्या से ग्रस्त होते हैं। भारतीय कृषि की प्रकृति मौसमी होने के कारण हमारे देश के ग्रामीण क्षेत्रों से सामयिक भूख की समस्या भी वर्तमान है। कार्य की अनिश्चितता के कारण शहरी क्षेत्र के दैनिक मजदूरों में भी सामयिक भूख की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
10. खाद्यान्न का सुरक्षित भंडार अथवा बफर स्टॉक क्या है ? 
उत्तर- खाद्यान्न के सुरक्षित भंडार का अभिप्राय सरकार के चावल और गेहूँ जैसे मुख्य अनाज के कुल मुख्यतया अतिरिक्त भंडार से है। बाजार में खाद्यान्न की उपलब्धता और उनकी कीमत अनाजों की कुल आपूर्ति पर निर्भर है। देश में खाद्यान्न का अभाव होने पर प्राय: बड़े किसान या व्यापारी अधिक लाभ कमाने के लिए अनाज को छिपा देते हैं। इससे उनकी कीमतें और अधिक बढ़ जाती है। अतएव, निर्धन परिवारों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से सरकार भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से प्रतिवर्ष किसानों की अतिरिक्त उपज को खरीदकर उनका भंडारण करती है जिसे खाद्यान्न का सुरक्षित भंडार कहते हैं।
11. सरकार खाद्यान्न के सुरक्षित भंडार का निर्माण क्यों करती है ?
उत्तर - भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से सरकार द्वारा अधिशेष उत्पादन वाले राज्यों में किसानों से गेहूँ एवं चावल खरीदा जाता है और उस खरीदे हुए खाद्यान्न के भंडारण को बफर स्टॉक कहते हैं। सरकार कमी वाले क्षेत्रों में और समाज के गरीब वर्गों में बाजार कीमत से कम कीमत पर अनाज के वितरण के लिए बफर स्टॉक बनाती है। इससे खराब मौसम में अथवा आपदा काल में अनाज की कमी की समस्या हल करने में मदद मिलती है।  
12. उचित मूल्य की दुकानों से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- हमारे देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली भारत सरकार का सबसे प्रभावपूर्ण कदम है। इस प्रणाली के अंतर्गत सरकार ने देश के प्राय: सभी भागों में उचित मूल्य की दुकानें खोली है जिन्हें राशन की दुकान भी कहते हैं। वर्तमान में इन दुकानों द्वारा लोगों को गेहूँ, चावल, चीनी और किरोसिन जैसी अत्यावश्यक वस्तुओं की आपूर्ति की जाती है। उचित मूल्य की दुकानों में इन वस्तुओं का मूल्य इनके बाजार मूल्य से कम होता है। कोई भी परिवार राशन कार्ड में निर्धारित मात्रा के अनुसार उचित मूल्य की दुकान से इन वस्तुओं को खरीद सकता है। अभी हमारे देश में लगभग 4.6 लाख उचित मूल्य अथवा राशन की दुकानें हैं।
13. राशन दुकानों की कार्यप्रणाली में मुख्य दोष क्या है ?
उत्तर- हमारे देश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली एक लंबे समय से प्रचलित है। इस प्रणाली के अंतर्गत सरकार ने निर्धन परिवारों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिए देश के प्रायः सभी भागों में राशन की दुकानें खोली है। इनके द्वारा गरीबी रेखा से नीचे रहनेवाले परिवारों को खाद्यान्न की न्यूनतम मात्रा की उपलब्धता सुनिश्चित की जाती है। लेकिन, राशन दुकानों की कार्यप्रणाली में कई दोष है। यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि हमारे देश में राष्ट्रीय स्तर पर इन दुकानों द्वारा वितरित की जानेवाली खाद्यान्न की प्रतिव्यक्ति प्रतिमाह औसत खपत मात्र एक किलोग्राम है। बिहार, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश में यह और भी कम प्रतिव्यक्ति प्रतिमाह केवल 300 ग्राम हैं मध्य प्रदेश में राशन दुकानों द्वारा निर्धन व्यक्तियों को गेहूँ और चावल के उपभोग की मात्र 5 प्रतिशत आवश्यकता की पूर्ति की जाती है। बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में यह प्रतिशत और भी कम है।
राशन दुकानों में कई अन्य दोष भी है। इनके विक्रेता प्राय: कालाबाजारी करते हैं और अपनी वस्तुएँ खुले बाजारों में ऊँचे मूल्य पर बेच देते हैं। राशन अथवा उचित मूल्य की दुकानें नियमित रूप से और समय पर नहीं खोली जाती है। इन दुकानों से बिकनेवाला अनाज भी खुले बाजार की तुलना में निम्न स्तर का होता है।
14. खाद्य सुरक्षा में सहकारी संगठनों का क्या योगदान होता है ?
उत्तर- सामान्य नागरिकों को खाद्य गरक्षा प्रदान करने की दृष्टि से सहकारिता की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। देश के शहरी और उप-नगरीय क्षेत्रों में 37 हजार से भी अधिक खुदरा बिक्री केन्द्रों का संचालन उपभोक्ता सहकारी समितियों द्वारा किया जाता है। उपभोक्ता सहकारी समितियों को हमारे देश के दक्षिणी और पश्चिमी भागों में विशेष सफलता मिली है। उदाहरण के लिए, तमिलनाडु की लगभग 4 प्रतिशत राशन दुकानों का संचालन सहकारी समितियों द्वारा किया जाता है।
खाद्य सुरक्षा एवं खाद्य वस्तुओं की आपूर्ति में सहकारिता की सफलता के कई अन्य उदाहरण भी हैं। दिल्ली में पिछले कई वर्षों से उपभोक्ताओं को सरकार द्वारा निर्धारित दरों पर दूध और सब्जी की आपूर्ति 'मदर डेयरी' द्वारा की जाती है। गुजरात में सहकारिता के क्षेत्र में दूध और दुग्ध उत्पादों के उत्पादन की दृष्टि से 'अमूल' की सफलता अभूतपूर्व कही जा सकती है। हमारे देश में 'श्वेत क्रांति' का आगमन इस सहकारी संस्था के प्रयासों का ही परिणाम है। विगत वर्षों के अंतर्गत बिहार राज्य सहकारी दुग्ध उत्पाद संघ ने भी दूध एवं दुग्ध उत्पादों के उत्पादन, संग्रहण और वितरण में उल्लेखनीय कार्य किया है जिसके उत्पाद 'सुधा' के नाम से जाने जाते हैं। इस प्रकार, देश के विभिन्न भागों में उपभोक्ताओं को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिए कई सहकारी संस्थाएँ कार्यरत हैं।
15. निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर- (क) मध्याहन भोजन योजना- मध्याहन भोजन योजना मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा 15 अगस्त 1995 से आरंभ की गई थी। इस योजना का उद्देश्य बच्चों के पोषण की स्थिति पर बल देते हुए प्राथमिक शिक्षा का सर्वव्यापीकरण है। देश के सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त तथा स्थानीय निकायों के प्रथमिक विद्यालयों की कक्षा 1 से 5 तक के सभी छात्र इस योजना में शामिल हैं। इसके अंतर्गत भारतीय खाद्य निगम छात्रों के मध्याहन भोजन के लिए राज्य सरकार को निःशुल्क खाद्यान्न की आपूर्ति करता है। योजना के अधीन प्रति स्कूल दिवस कम से कम 200 दिन न्यूनतम 300 कैलोरी और 8-12 ग्राम प्रोटीनवाला तैयार गर्म भोजन देने की व्यवस्था की जाती है।
(ख) अंत्योदय अन्न योजना- सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अधिक प्रभावी बनाने के उद्देश्य से सरकार द्वारा निर्धनों में भी निर्धनतम व्यक्तियों के लिए दिसंबर 2000 से अंत्योदय अन्न योजना आरंभ की गई। इस योजना के अन्तर्गत प्रत्येक निर्धन परिवार को 2 रुपये प्रति किलोग्राम गेहूँ तथा 3 रुपये प्रति किलोग्राम चावल की अत्यधिक रियायती दर 25 किलोग्राम खाद्यान्न उपलब्ध कराया गया, जिसे 1 अप्रैल 2002 से बढ़ाकर 35 किलोग्राम कर दिया गया है। अंत्योदय योजना के परिवारों की पहचान सरकार द्वारा गरीबी रेखा से नीचे रहनेवाले परिवारों में से की जाती है। 
(ग) अन्नपूर्णा योजना- अन्नपूर्णा योजना ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2000-01 में आरंभ की गई थी। इसके अंतर्गत 65 वर्ष या उससे अधिक आयु वर्ग वाले ऐसे असहाय वृद्ध आते हैं जिन्हें राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना के योग्य होने पर भी इस योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है। इस योजना में प्रतिव्यक्ति प्रतिमाह 10 किलोग्राम खाद्यान्न निःशुल्क दिया जाता है।  
16. बिहार में जल संसाधनों का प्रबंधन अत्यंत आवश्यक है। क्यों ?
उत्तर- जल प्रबंधन का संबंध जल संसाधनों के अधिकतम विकास एवं समुचित उपयोग से है। हमारे राज्य में उचित जल प्रबंधन निम्नलिखित दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है
(i) पेयजल की व्यवस्था- बिहार के अधिकांश गाँवों में शुद्ध पेयजल का स्रोत उपलब्ध नहीं है।राज्य के विभिन्न शहरों में भी जल आपूर्ति और स्वच्छता का स्तर अत्यंत असंतोषजनक है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, पटना सहित प्रायः सभी शहरों का 90 प्रतिशत जल प्रदूषित है। 
(ii) सिंचाई व्यवस्था—बिहार में सिंचाई की सुविधाओं का बहुत अभाव है। यहाँ सिंचाई की सुविधा संपूर्ण भारत का लगभग 6 प्रतिशत है। सिंचाई की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध होने पर इसे पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों के समकक्ष लाया जा सकता है जहाँ की कृषि अत्यंत उन्नत अवस्था में है।
(iii) बाढ़ की समस्या का समाधान- बिहार में बाढ़ की समस्या अत्यधिक गंभीर है। उचित जल प्रबंधन द्वारा ही इस समस्या का समाधान संभव है।  
17. भारत में समाज का एक वर्ग आप भी भूख की समस्या से ग्रस्त करें।स्पस्ट करें 
उत्तर- भारत में समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग खाद्य असुरक्षा से प्रभावित ही, लेकिन कुछ उत्तर भारत में समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग खाद्य असुरक्षा से प्रभावित है, विशेष वर्गों में खाद्य असुरक्षा और भूख की समस्या अधिक गंभीर है। ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत छोटे किसान, भूमिहीन श्रमिक, स्वनियोजित व्यक्ति, अनाथ बच्चे, अपंग व्यक्ति आदि खाद्य असुरक्षा से सर्वाधिक प्रभावित वर्ग हैं, कृषिसे संबद्ध व्यक्तियों को भी नियमित काम नहीं मिलता और इनकी आय बहुत कम होती है। अतः इनमें भी खाद्य असुरक्षा बहुत अधिक है और ये प्रायः भूखमरी के शिकार हो जाते हैं। शहरी क्षेत्रों में बहुत कम आयवाले व्यवसाय या धंधे में लगे व्यक्ति तथा दैनिक मजदूरों का परिवार खाद्य असुरक्षा और भूख की समस्या से सर्वाधिक प्रभावित होता है।  
18. बिहार की दो प्रमुख व्यावसायिक फसलों की व्याख्या करें । "
उत्तर- बिहार की दो प्रमुख व्यावसायिक फसलें निम्नांकित हैं—
(i) गन्ना- गन्ना बिहार की एक मुख्य व्यावसायिक फसल है। इसके उत्पादन के लिए यहाँ की भौगोलिक परिस्थितियाँ बहुत अनुकूल है। इसकी खेती मुख्यतः पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, गोपालगंज, सीतामढ़ी तथा सीवान में होती है। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय क्षेत्रफल की दृष्टि से गन्ना के उत्पादन में बिहार का देश में दूसरा स्थान था। लेकिन, राज्य की अधिकांश चीनी मिलों के बंद हो जाने के कारण विगत वर्षों के अंतर्गत इसके उत्पादन में कमी, है।
(ii) तंबाकू - बिहार भारत में तंबाकू का एक प्रमुख उत्पादक राज्य है। इसका प्रयोग मुख्यतया सिगरेट और बीड़ी उद्योग में होता है। दरभंगा, मुजफ्फरपुर, पटना, वैशाली आदि इसके मुख्य उत्पादक क्षेत्र हैं।
19. “हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना दिया है। " कैसे ? 
उत्तर- स्वतंत्रता प्राप्ति के समय हमारे देश में खाद्यान्नों का उत्पादन हमारी आवश्यकताओं से बहुत कम था। इसके फलस्वरूप भारत को कई वर्षों तक विदेशों से बड़े पैमाने पर अनाज का आयात करना पड़ा। खाद्य समस्या के समाधान के लिए वर्ष 1966-67 की अवधि में भारत में कृषि विकास की एक नई रणनीति अपनाई गई जिसे हरित क्रांति की संज्ञा दी गई। उन्नत बीज, - रासायनिक खाद, सिंचाई इस नीति को अपनाने वधाएँ, पौधा-संरक्षण आदि इस नवीन कृषि नीति के मुख्य अंग हैं। फलस्वरूप विगत वर्षों के अंतर्गत देश में खाद्यान्न, विशेषतया गेहूँ और चावल के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। परिणामतः, अब हमारा देश खाद्यान्न के क्षेत्र में प्रायः आत्मनिर्भर हो गया है।
20. क्या भारत की तुलना में बिहार राज्य में कृषि पर जनसंख्या का बोझ अधिक है। यदि है तो इसके दो कारण बताएँ।
उत्तर- भारत की तुलना में बिहार राज्य में कृषि पर जनसंख्या का बोझ अधिक है इसके दो कारण मुख्य हैं—
(i) बिहार की जनसंख्या में बहुत तेजी से वृद्धि हो रही है और यह राष्ट्रीय औसत से अधिक है। 1991-20001 की अवधि के अंतर्गत बिहार की जनसंख्या में 28.43 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि संपूर्ण भारत के लिए यह वृद्धि दर 21.34 प्रतिशत थी।
(ii) राज्य में उद्योग-धंधो तथा जीविकोपार्जन के अन्य साधनों का अभाव होने से जनसंख्या का अधिकांश भाग कृषि पर ही निर्भर है।
21. भूमि सुधार से आप क्या समझते हैं? बिहार में भूमि सुधार संबंधी प्रमुख कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर- भूमि सुधार से हमारा अभिप्राय उन संस्थागत परिवर्तनों से है जिनसे भूमि के अधिकतम उपयोग में सहायता मिलती है। भूमि की उपज को बढ़ाने के लिए भूमि की व्यवस्था में सुधार आवश्यक है। इस प्रकार के सुधार भूस्वामित्व की प्रथा के दोषों को दूर करने के लिए अपनाए जाते हैं।
1950 के भूमि सुधार कानून के द्वारा बिहार में जमींदारी प्रथा खत्म कर दी गई। इसके फलस्वरूप राज्य के करीब 20 लाख जमींदारों का अन्त हो गया और उनके अधीन की लगभग 400 लाख एकड़ जमीन पर सरकार का अधिकार हो गया है। बिहार में भूमि सुधार संबंधी दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य जोतों की अधिकतम सीमा का निर्धारण है। इस दिशा में तीसरा कार्य बटाईदारी कानून में संशोधन लाकर किया गया है। इसका उद्देश्य रैयतों की हालत में सुधार लाना है।
22. दीर्घ स्थायी भूख तथा सामयिक भूख में अंतर कीजिए।
उत्तर- खाद्य असुरक्षा तथा भूख की समस्या के दो मुख्य पक्ष हैं— दीर्घ स्थायी एवं सामयिक दीर्घ स्थायी भूख का कारण पर्याप्त, संतुलित एवं पौष्टिक भोजन का अभाव है। न्यून आय तथा क्रयशक्ति में कमी होने के कारण निर्धन परिवार भूख की समस्या से ग्रस्त होते हैं। भारतीय की प्रकृति मौसमी होने के कारण हमारे देश के ग्रामीण क्षेत्रों में सामयिक भूख की वर्तमान है। कार्य की अनिश्चितता के कारण शहरी क्षेत्र के दैनिक मजदूरों में भी की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
23. लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली कब और क्यों अपनाई गई?
उत्तर- सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अधिक उपयोगी और कुशल बनाने वर्षों के अंतर्गत सरकार ने अपनी नीति में कई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन एवं संशोधन 'नता रेखा से नीचे रहनेवाले परिवारों को खाद्यान्न की न्यूनतम मात्रा की उपलब्धता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से सरकार ने 1997 से लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली लागू की थी। इसके अंतर्गत देश के 6 करोड़ से भी अधिक निर्धन परिवारों को विशेष रियायती दर पर खाद्यान्न की एक निश्चित मात्रा की आपूर्ति की जाती है। वर्तमान में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा गरीबी रेखा से नीचे रहनेवाले परिवारों को प्रतिमाह अत्यधिक रियायती दर पर 35 किलोग्राम चावल और गेहूँ उपलब्ध कराया जाता है।
24. राशन कार्ड कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर- सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत सरकार गेहूँ, चावल, चीनी, किरोसिन जैसी अति आवश्यक वस्तुओं का समाज के निर्धन परिवारों के बीच वितरण की व्यवस्था करती है। इसके लिए सरकार ने देश के प्रायः सभी भागों में विनियमित राशन दुकानों की स्थापना की है। कोई भी परिवार सरकार द्वारा जारी राशन की दुकान से इन वस्तुओं को खरीद सकता है। ये राशन कार्ड तीन प्रकार के होते हैं— (क) अतिनिर्धन व्यक्तियों के लिए अंत्योदय कार्ड, (ख) निर्धनता रेखा से नीचे के व्यक्तियों के लिए बी० पी० एल० कार्ड तथा (ग) अन्य के लिए ए०पी० एल कार्ड। 
25. मध्याह्न भोजन योजना क्या है ?
उत्तर- मध्याह्न भोजन योजना मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा 15 अगस्त 1995 से आरंभ की गई थी। इस योजना का उद्देश्य बच्चों के पोषण की स्थिति पर बल देते हुए प्राथमिक शिक्षा का सर्वव्यापीकरण है। देश के सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त तथा स्थानीय निकायों के प्राथमिक विद्यालयों की कक्षा 1 से 5 तक के सभी छात्र इस योजना में शामिल हैं। इसके अंतर्गत भारतीय खाद्य नियम छात्रों के मध्याह्न भोजन के लिए राज्य सरकार को निःशुल्क खाद्यान्न (चावल तथा गेहूँ) की आपूर्ति करता है। योजना के अधीन प्रति स्कूल दिवस कम-से-कम 200, दिन न्यूनतम 300 कैलोरी और 8-12 ग्राम प्रोटीनवाला तैयार गर्म भोजन देने की व्यवस्था की जाती है।
26. अंत्योदय अन्न योजना क्या है ? 
उत्तर- लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अधिक प्रभावी बनाने के उद्देश्य से सरकार द्वारा निर्धनों में भी निर्धनतम व्यक्तियों के लिए अंत्योदय अन्न योजना आरंभ की गई। इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक निर्धन परिवार को 2 रुपये प्रति किलोग्राम गेहूँ तथा 3 रुपये प्रति किलोग्राम चावल की अत्यधिक रियायती दर पर 25 किलोग्राम खाद्यान्न उपलब्ध कराया गया, जिसे अप्रैल 2002 से बढ़ाकर 35 किलोग्राम कर दिया गया है। अंत्योदय योजना के परिवारों की पहचान राज्य सरकार द्वारा गरीबी रेखा से नीचे रहनेवाले परिवारों में से की जाती है। वर्तमान में इस योजना से लाभान्वित होनेवाले परिवारों की संख्या लगभग 2.5 करोड़ है। 1
27. अन्नपूर्णा योजना क्या है ?
उत्तर- अन्नपूर्णा योजना ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2000-01 में आरंभ की गई थी। इसके अंतर्गत 65 वर्ष या उससे अधिक आयु वर्गवाले ऐसे असहाय वृद्ध आते हैं जिन्हें राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना के योग्य होने पर भी इस योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है। इस योजना में प्रतिव्यक्ति प्रतिमाह 10 किलोग्राम खाद्यान्न निःशुल्क दिया जाता है। वर्ष 2002-03 से यह योजना राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना एवं राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना को मिलाकर बनाए गए राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम के साथ राज्य सरकारों को स्थानांतरित कर दिया गया है।
28. बिहार की अर्थव्यवस्था में कृषि की भूमिका की विवेचना करें। 
उत्तर- देश के अन्य राज्यों के समान ही बिहार भी एक कृषि प्रधान राज्य है। परंतु, अन्य राज्यों की अपेक्षा यहाँ कृषि पर निर्भरता अधिक है। राज्य की लगभग 77 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर आजीविका का मुख्य आधार है। बिहार में कृषि की भूमिका कई अन्य दृष्टियों से भी महत्त्वपूर्ण है। जो निम्नलिखित हैं
(i) घरेलू उत्पाद- बिहार राज्य के कुल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान सबसे अधिक होता है। राज्य के कुल घरेलू उत्पाद का लगभग 39 प्रतिशत कृषि क्षेत्र प्रदान करता है 
(ii) खाद्यान्न की आपूर्ति- बिहार में कृषि खदान की आपूर्ति कराती है तथा राज्य में धान, गेहूँ, मक्का, जौ, दलहन तथा गन्ना जैसी विविध फसलों का उत्पादन होता है 
(iii) कच्चे माल की आपूर्ति- बिहार के उद्योगों में चीनी, जूट, तंबाकू आदि कृषि आधारित उद्योग प्रमुख है। कृषि ही इन उद्योगों के लिए कच्चे माल की व्यवस्था कराती है
(iv) सरकार की आय- राज्य सरकार को भू-राजस्व से कुछ आय भी होती है,  हालांकि कई कारणों से यह पर्याप्त नहीं है।
29. बिहार को बाढ़ से होनेवाली क्षति की विवेचना करें।
उत्तर- बाढ़ बिहार की एक स्थायी समस्या है। यद्यपि मध्य बिहार के मैदानी भागों में भी गंगा तथा सोन के पानी से कई बार बाढ़ आती है, लेकिन उत्तर बिहार में यह समस्या अत्यधिक गंभीर है। उत्तर बिहार के मैदानी भागों में कई प्रमुख नदियाँ नेपाल क्षेत्र के हिमालय की तराई से आती हैं जिनमें कोसी, गंडक, बागमती, कमला बलान, महानंदा और अधवारा समूह की नदियाँ हैं। इनका लगभग 60-62 प्रतिशत जलग्रहण क्षेत्र नेपाल में पड़ता है। इन नदियों में प्रतिवर्ष भयानक बाढ़े आती हैं जिनसे जान-माल की बहुत अधिक बर्बादी होती है। बाढ़ के कारण उत्तरी बिहार की लाखों हेक्टेयर भूमि की फसल नष्ट हो जाती है। रेल, सड़क तथा यातायात के अन्य साधन भी बर्बाद हो जाती है। एक अनुमान के अनुसार, देश के कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का लगभग 52 प्रतिशत बिहार में पड़ता है। इस प्रकार, बिहार देश का सर्वाधिक बाढ़ - उन्मुख राज्य है। राज्य सरकार के अनुसार, इसका लगभग 73 प्रतिशत क्षेत्रफल (68,000 वर्ग किलोमीटर) बाढ़ - उन्मुख है। अभी 2002, 2004, 2007 और 2008 में बिहार को उच्च क्षमता की बाढ़ का सामना करना पड़ा है। वस्तुतः, बाढ़ की विभीषिका हमारे राज्य के पिछड़ेपन एवं निर्धनता का एक प्रमुख कारण है।

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