1. "भारत की कार्यशील जनसंख्या का अधिकांश प्राथमिक अथवा कृषि क्षेत्र पर निर्भर है।''? इसके क्या कारण हैं ?
उत्तर- भारत के कार्यबल अथवा कार्यशील जनसंख्या का व्यावसायिक वितरण हमारे देश की अर्थव्यवस्था का अविकसित रूप प्रकट करता है। अर्द्धविकसित एवं विकासशील देशों की कार्यशील जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग प्राथमिक अथवा कृषि क्षेत्र में लगा होता है तथा औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्र में कार्यरत व्यक्तियों की संख्या अपेक्षाकृत बहुत कम होती है। इसका कारण स्पष्ट है। अर्द्धविकसित एवं पिछड़े हुए देश के निवासियों की प्रतिव्यक्ति आय बहुत कम होती है तथा इसका एक बहुत बड़ा भाग खाद्यान्न एवं अन्य अनिवार्य वस्तुओं पर ही खर्च हो जाता है। परिणामतः, औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्र की वस्तुओं और सेवाओं के लिए इनकी माँग बहुत कम होती है। पूँजी तथा आधुनिक तकनीक के अभाव में इन देशों का औद्योगिक क्षेत्र बहुत छोटा भी होता है तथा इसमें रोजगार की संभावनाएँ कम होती हैं। विकसित देशों की स्थिति इनसे सर्वथा भिन्न होती है। इन देशों की कार्यशील जनसंख्या का अधिकांश भाग सेवा क्षेत्र में कार्यरत रहता है तथा कृषि क्षेत्र में सबसे कम व्यक्ति लगे होते हैं। इसका कारण यह है कि आय अधिक होने से विकसित देशों में औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्र की वस्तुओं की माँग बहुत अधिक होती है।
भारत की कार्यशील जनसंख्या का अधिकांश (लगभग 65-70 प्रतिशत) भाग भी कृषिकार्यों में संलग्न है तथा इसका एक बहुत छोटा भाग उद्योग और सेवाओं में कार्यरत है। हमारे देश के औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्र का पूर्ण विकास नहीं होने के कारण ही कार्यशील जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग कृषि एवं इससे संबद्ध क्रियाकलापों द्वारा जीवनयापन करने के लिए बाध्य है।
2. संरचनात्मक सुविधाओं का विकास हमारे देश में बेरोजगारी एवं निर्धनता की समस्याओं के समाधान में किस प्रकार सहायक होगा ?
उत्तर- एक अर्थव्यवस्था का मुख्य कार्य मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन करना है। कृषि एवं उद्योग इन सभी प्रकार की भौतिक वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। ये दोनों ही क्षेत्र प्रत्यक्ष उत्पादक क्रियाओं' (directly productive activities) में भाग लेते हैं। परंतु, इनके संचालन के लिए कुछ संरचनात्मक सुविधाएँ या सेवाएँ आवश्यक होती हैं।
सहायक अथवा आधार संरचना पूँजीगत ढाँचे का वह रूप है जो अर्थव्यवस्था में सेवाएँ प्रदान करता है। जिस प्रकार भौतिक वस्तुओं के उत्पादन के लिए हल, ट्रैक्टर, मशीन एवं उपकरण आदि जैसे पूँजीगत ढाँचे की आवश्यकता होती है उसी प्रकार परिवहन, सिंचाई, शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवाओं आदि की व्यवस्था के लिए भी रेलवे, बस, कुएँ, विद्यालय, अस्पताल आदि के रूप में एक पूँजी-ढाँचे की जरूरत पड़ती है। इसे सेवाएँ प्रदान करनेवाला पूँजी-ढाँचा (capital structure for services) कहते हैं। इस संरचना या ढाँचे के बिना कोई अर्थव्यवस्था कार्यशील नहीं हो सकती तथा इसके द्वारा प्रदान की जानेवाली सेवाओं को ही संरचनात्मक सुविधाओं की संज्ञा दी जाती है।
संरचनात्मक सेवाओं या सुविधाओं का विकास हमारे देश में बेरोजगारी एवं निर्धनता की समस्याओं के समाधान में बहुत सहायक होगा। हमारे देश में सड़क, बिजली, सिंचाई आदि सुविधाओं की बहुत कमी है। ग्रामीण क्षेत्रों में इन सेवाओं के विस्तार द्वारा गैर-कृषि क्षेत्र में बहुत बड़े पैमाने पर रोजगार-सृजन संभव है। इससे निर्धनता के निवारण में भी बहुत सहायता मिलेगी जो हमारे देश की सबसे गंभीर समस्या है।
3. भारत में वित्तीय सेवाओं की क्या स्थिति है ?
उत्तर - वित्तीय सेवाओं के अन्तर्गत कई प्रकार की सेवाएँ शामिल हैं जिनमें बैंकिंग एवं बीमा सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। पिछले लगभग तीन दशकों के अंतर्गत देश में बैकिंग सेवाओं का बहुत विस्तार हुआ है। तथा व्यावसायिक बैंक की शाखाओं में 7 गुना से भी अधिक वृद्धि हुई है। बैंकिंग क्षेत्र में अधिक स्पर्द्धा पैदा करने के लिए अब सरकार ने निजी क्षेत्र में नए बैंक खोलने की भी अनुमति दे दी है। शहरीकरण विनिर्माण व्यापार आदि की प्रगति के साथ ही बीमा क्षेत्र की सेवाओं की माँग निरंतर बढ़ रही है ।
4. संचार सेवाओं के विकास में कंप्यूटर का क्या योगदान है ?
उत्तर- संचार सेवाओं के प्रसार में कंप्यूटर का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। कंप्यूटर एक स्वचालित मशीन है जिसके अनेक उपयोग है। उपयोग है। आज कंप्यूटर का दूरसंचार परिवहन, विज्ञान, शिक्षा, चिकित्सा, सुरक्षा तथा शोध एवं अनुसंधान में प्रयोग लगातार बढ़ रहा है। कंप्यूटर के प्रयोग से इन सेवाओं के स्तर में सुधार हुआ है। कंप्यूटर सॉफ्टवेयर उद्योग श्रम प्रधान है तथा इस क्षेत्र में रोजगार की असीम संभावनाएँ है।
5. हमारे देश में किस प्रकार की स्वास्थ्य सेवाएँ आवश्यक हैं ?
उत्तर- मानवीय संसाधनों के विकास के लिए स्वास्थ्य सेवाएँ अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं। परंतु, इन सेवाओं को देश के सभी नागरिकों को उपलब्ध कराने के लिए बहुत अधिक धन या साधनों की आवश्यकता होती है। भारत एक विकासशील राष्ट्र है। हमारे साधन सीमित हैं। इसलिए यह प्रश्न बहुत महत्त्वपूर्ण है कि हम देश में किस प्रकार की स्वास्थ्य सेवाओं की व्यवस्था करें। इस दृष्टि से हमारे सामने दो विकल्प हैं। हम एक ओर रोग का नियंत्रण तथा दूसरी ओर उनके उपचार की व्यवस्था कर सकते हैं। अब तक हमारे देश की स्वास्थ्य सेवाएँ रोगों के नियंत्रण एवं रोकथाम की अपेक्षा उनके उपचार पर बल देती रही हैं। परंतु, भारत जैसे एक निर्धन देश के लिए इस प्रकार की स्वास्थ्य सेवाएँ उपयुक्त नहीं हैं। रोगग्रस्त हो जाने पर एक श्रमिक काम पर नहीं जा सकता और उसे आर्थिक दृष्टि से घाटा होता है। दूसरी ओर, उसे अपने रोग के उपचार पर भी धन खर्च करना पड़ता है। कार्यशील नागरिकों के बीमार होने से राष्ट्रीय उत्पादकता भी कम हो जाती है। अतः, यह आवश्यक है कि हमारे देश की स्वास्थ्य सेवाओं में रोगों के उपचार की अपेक्षा उनके नियंत्रण पर अधिक बल दिया जाए।
कुछ समय पूर्व तक हमारी स्वास्थ्य सेवाएँ शहरी क्षेत्रों के अस्पताल एवं चिकित्सालयों तक सीमित थी। परंतु, नगरों में निवास करनेवाले कुछ संपन्न व्यक्तियों को ही इनकी सेवाएँ उपलब्ध होती हैं। हमारे देश की अधिकांश जनसंख्या गाँवों में रहती है जिसे इस प्रकार की चिकित्सा सुविधाएँ नहीं प्राप्त होती हैं। इनके रोगों के निदान के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार अधिक आवश्यक है। यही कारण है कि हमारी पंचवर्षीय योजनाओं में प्राथमिक एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना पर अधिक बल दिया गया है।
6. भारत में आवास की क्या स्थिति है।
उत्तर- भारत में आवास की कमी है। जनसंख्या वृद्धि के साथ ही देश में आवास और उससे संबद्ध आधारभूत आवश्यकताओं (पानी, बिजली, मलव्यपन इत्यादि) की माँग निरंतर बढ़ रही है। गाँव से नगरों की ओर रोजगार और उच्च शिक्षा के पलायन ने भी आवास समस्या को और अधिक गंभीर बना दिया है। योजना आयोग के अनुसार अभी देश में लगभग 247 लाख आवास इकाइयों की कमी होने का अनुमान है।
7. माध्यमिक शिक्षा की आवश्यकता क्यों होती है ?
उत्तर- प्रारंभिक शिक्षा के साथ ही हमारे देश में एक बहुत बड़े समुदाय को माध्यमिक शिक्षा देने की भी व्यवस्था है। आर्थिक विकास एवं संरचनात्मक सुविधाओं को बनाए रखने के लिए हमें बहुत बड़ी मात्रा में प्रशिक्षित श्रम की आवश्यकता पड़ती है। माध्यमिक शिक्षा के द्वारा ही इस प्रकार की श्रमशक्ति का निर्माण होता है। हमारी वर्तमान आवश्यकताओं के अनुरूप सरकार इस प्रकार की शिक्षा को रोजगारोन्मुखी बनाने का प्रयास कर रही है। हमारे देश में लगभग 4000 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (Industrial Training Institutes, ITIs) हैं, जिनमें लगभग 7 लाख विद्यार्थियों के लिए विभिन्न व्यवसायों में प्रशिक्षण की क्षमता है। माध्यमिक शिक्षा के स्तर में सुधार लाने के लिए देश के प्रत्येक जिले में नवोदय विद्यालयों की स्थापना का कार्यक्रम अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।
8. उच्च शिक्षा का क्या अभिप्राय है?
उत्तर- प्रारंभिक एवं माध्यमिक शिक्षा की तुलना में उच्च शिक्षा की अपेक्षाकृत कम आवश्यकता होती है। परंतु, देश के आर्थिक विकास के लिए कुछ चुने हुए प्रतिभावान छात्रों को उच्च एवं तकनीकी शिक्षा प्रदान करना भी अनिवार्य है। इस प्रकार की उच्च एवं विशिष्टीकृत शिक्षा हमारे देश के विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों एवं तकनीकी संस्थानों में प्रदान की जाती है। इन संस्थानों द्वारा ही देश में डॉक्टर, इंजीनियर, प्राध्यापक, वैज्ञानिक एवं अन्य उच्च स्तर के कर्मचारियों की पूर्ति होती है। विश्व के विकसित देशों में जहाँ संख्या की दृष्टि से उच्च शिक्षा की प्राथमिकता निम्न है वहाँ तर की दृष्टि से इसे बहुत ऊँची प्राथमिकता दी जाती है।
1950-51 से भारत में उच्च शिक्षा प्रणाली का बहुत तेजी से विस्तार हुआ है। अभी देश में 45 केन्द्रीय विश्वविद्यालय, 322 राज्य विश्वविद्यालय, 192 निजी विश्वविद्यालय, 130 मानद विश्वविद्यालय, 52 संसद के अधिनियम के अंतर्गत स्थापित राष्ट्रीय महत्व की संस्थाएँ तथा 5 राज्य विधानों के तहत स्थापित राष्ट्रीय महत्व की संस्थाएँ हैं। इन विश्वविद्यालयों के अधीन देश में लगभग 35,000 महाविद्यालय हैं।
9. श्रमबल तथा कार्यबल में अंतर कीजिए।
उत्तर- जनसंख्या के सभी सदस्य आर्थिक दृष्टि से उत्पादक क्रियाओं में नहीं लगे होते हैं। से परिवार के बच्चे एवं बूढ़े तथा मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्ति इन क्रियाओं में शामिल नहीं होते हैं। अतः, समाज के जो व्यक्ति वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन कर सकते हैं वे ही श्रमबल का निर्माण करते हैं। इसके अतिरिक्त हम श्रमबल में से ऐसे व्यक्तियों को भी निकाल देते हैं जो पारिवारिक आदि कार्यों में व्यस्त हैं या कार्य करने के लिए इच्छुक नहीं हैं। इसका अभिप्राय यह है कि जो व्यक्ति वास्तविक रूप से आर्थिक क्रियाकलापों में लगे हैं अथवा इन्हें करने के योग्य हैं, वे सभी श्रमबल के सदस्य हैं। इसके विपरीत, जो इन क्रियाकलापों में वस्तुतः हुए हैं उन्हें कार्यबल के रूप में जाना जाता है।
10. एक अर्थव्यवस्था में रोजगार के प्रमुख क्षेत्र क्या हैं ?
उत्तर- एक अर्थव्यवस्था के व्यावसायिक ढाँचे में रोजगार के तीन प्रमुख क्षेत्र होते हैं— प्राथमिक क्षेत्र, द्वितीयक क्षेत्र तथा तृतीयक क्षेत्र प्राथमिक क्षेत्र में कृषि, पशुपालन, वानिकी, खनन आदि को सम्मिलित किया जाता है। इनमें कृषि सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। द्वितीयक क्षेत्र को उद्योग क्षेत्र भी कहते हैं तथा इनमें विनिर्माण, निर्माण, विद्युत, गैस, जलापूर्ति आदि शामिल हैं। तृतीयक क्षेत्र में परिवहन, संचार, व्यापार, बैकिंग, बीमा तथा अन्य सभी प्रकार की सेवाएँ आती हैं। यह क्षेत्र वस्तुओं का नहीं वरन सेवाओं का उत्पादन करता है। यही कारण है कि तृतीय क्षेत्र को सेवा क्षेत्र कहा जाता है। विकसित देशों के कार्यबल का अधिकांश भाग सेवा क्षेत्र में ही लगा होता है। रोजगार अथवा आय की दृष्टि से किसी देश की जनसंख्या इन तीनों क्षेत्रों में विभाजित होती है। 11. रोजगार और सेवा में क्या संबंध है ? सेवा क्षेत्र का महत्त्व बताएँ।
उत्तर- रोजगार और सेवाओं में घनिष्ठ संबंध है। आर्थिक संवृद्धि के साथ ही सेवा क्षेत्र अब किसी देश का सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र हो गया है तथा इसमें रोजगार की संभावनाएँ निरंतर बढ़ रही हैं। इस क्षेत्र के अंतर्गत ऐसे अनेक व्यवसाय हैं जिनमें अपेक्षाकृत बहुत कम पूँजी निवेश के द्वारा बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन संभव है। विगत वर्षों के अंतर्गत संचार सेवाओं के प्रसार से सेवा क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में बहुत वृद्धि हुई है। भारत के सकल राष्ट्रीय उत्पाद में कृषि का मात्र 22 प्रतिशत योगदान होता है। जबकि देश की लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या अपने जीवनयापन के लिए इसी पर निर्भर है। कृषि पर से इस अत्यधिक जनभार को कम करने के लिए सेवा क्षेत्र का विस्तार आवश्यक है।
12. आर्थिक विकास और रोजगार की दृष्टि से आर्थिक संरचना का महत्त्व बताएँ।
उत्तर- किसी देश के आर्थिक विकास में उसकी आर्थिक संरचना का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। यातायात एवं संचार, शक्ति, सिंचाई तथा मौद्रिक एवं वित्तीय संस्थाएँ आर्थिक संरचना के प्रमुख अंग हैं। इस प्रकार की संरचनात्मक सेवाएँ या सुविधाएँ ही एक अर्थव्यवस्था को क्रियाशील बनाती हैं। इनके अभाव में कृषि एवं उद्योग किसी भी क्षेत्र का विकास संभव नहीं है। संरचनात्मक सुविधाओं का विकास बेरोजगारी की समस्या के समाधान में भी बहुत सहायक होगा। हमारे देश में सड़क, बिजली, जलापूर्ति, सिंचाई आदि सुविधाओं की बहुत कमी है। ग्रामीण क्षेत्रों में इन · सुविधाओं के विस्तार द्वारा गैर-कृषि क्षेत्र में बहुत बड़े पैमाने पर रोजगार सृ संभव है। संरचनात्मक सुविधाओं की उपलब्धता निवेश को भी प्रोत्साहित करती है, जिससे आर्थिक विकास के साथ ही रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि होती है।
13. एक अर्थव्यवस्था की सामाजिक एवं आर्थिक संरचनाओं में क्या अंतर है ?
उत्तर- सहायक संरचना पूँजीगत ढाँचा का वह रूप है जो अर्थव्यवस्था में सेवाएँ प्रदान करता है। सहायक संरचनाएँ सामाजिक एवं आर्थिक दो प्रकार की होती हैं। सामाजिक संरचनाएँ उत्पादक, अर्थात आर्थिक क्रयाओं को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए, स्वास्थ्य अथवा शिक्षा सेवाएँ उत्पादन-प्रक्रिया में प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं लेती हैं। परंतु, ये अर्थव्यवस्था में एक महत्त्वपूर्ण सहायक ढाँचा का निर्माण करती हैं जिसे सामाजिक संरचना कहते हैं। इसके विपरीत, आर्थिक संरचना के अंतर्गत उन सेवाओं को शामिल किया जाता है जो उत्पादन प्रक्रिया में प्रत्यक्ष रूप से भाग लेती हैं। देश की परिवहन प्रणाली, शक्ति के साधन तथा मौद्रिक एवं वित्तीय संस्थाएँ उत्पादन और वितरण का हिस्सा बनकर सेवाएँ प्रदान करती हैं। इस प्रकार की संस्थाओं को आर्थिक संरचना की संज्ञा दी जाती है।
14. भारत की कमजोर सामाजिक संरचना के क्या आर्थिक हैं? इससे हमारी जनसंख्या का कौन-सा भाग सर्वाधिक प्रभावित होता है ?
उत्तर- भारतीय अर्थव्यवस्था को सामाजिक संरचना बहुत कमजोर है। यहाँ व्याप्त व्यापक निर्धनता के कारण लोगों को सामान्य नागरिक सुविधाएँ नहीं उपलब्ध हो पाती हैं। देश के अधिकांश बच्चों और स्त्रियों को न्यूनतम पौष्टिक आहार नहीं मिलता है। जलापूर्ति एवं स्वच्छता भी हमारे देश की एक महत्त्वपूर्ण समस्या है। अनेक गाँव ऐसे हैं जिनमें स्वच्छ पेयजल सुविधा उपलब्ध नहीं है या कुछ लोगों को ही उपलब्ध है। इन सेवाओं का अभाव ग्रामीण क्षेत्र के निर्धन वर्ग को सबसे अधिक प्रभावित करता है। इससे उनकी कार्यक्षमता एवं उत्पादकता बहुत घट जाती है। समाज का धनी वर्ग अपने निजी साधनों द्वारा इन सेवाओं की व्यवस्था कर लेता है। परंतु, निर्धन वर्ग के लिए इस प्रकार की सेवाओं को प्राप्त करना कठिन होता है। इस वर्ग पर इसका सर्वाधिक कुंप्रभाव पड़ता है।
15. भारत में सामाजिक सुविधाओं की कमी के क्या कारण हैं ? इसका निदान क्या है?
उत्तर- शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास तथा जलापूर्ति एवं स्वच्छता आदि जैसी सेवाएँ श्रम को कार्यक्षमता एवं उत्पादकता को बढ़ाती हैं। परंतु, भारत में सामाजिक अथवा नागरिक सुविधाओं की कमी है और इनका स्तर बहुत ही निम्न है। इसके कई कारण हैं। भारत एक निर्धन देश है तथा विकसित देशों की तुलना में हमारी राष्ट्रीय एवं प्रति व्यक्ति आय बहुत कम है। साधनों का अभाव होने के कारण हम देश में इन सेवाओं या सुविधाओं का तेजी से विकास नहीं कर पाए हैं। जनसंख्या में बहुत तेजी से वृद्धि होने के कारण इन सेवाओं पर भार भी निरंतर बढ़ रहा है। इस समस्या के समाधान के लिए आर्थिक विकास की गति को तीव्र करना नितांत आवश्यक है। इसके साथ ही हमें देश की बढ़ती हुई जनसंख्या को नियंत्रित करने का भी प्रयास करना चाहिए।
16. संचार सेवाओं से आप क्या समझते हैं ? सूचना और संचार प्रणाली से जुड़ी पाँच सेवाओं का उल्लेख करें।
उत्तर- संचार सेवाओं से हमारा अभिप्राय उन साधनों से है जिनके माध्यम से विभिन्न स्थान के निवासियों के बीच विचारों और सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है। समाचारपत्र, डाक सेवा, टेलीग्राफ, टेलीफोन और रेडियो संचार के परंपरागत साधन हैं जिनका हम कई दशकों से प्रयोग करते रहे हैं। लेकिन, विगत कुछ वर्षों से संदेश भेजने के लिए संचार उपग्रहों का प्रयोग होने लगा इसके फलस्वरूप सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं। आज टेलीविजन, मोबाइल टेलीफोन, फैक्स, इंटरनेट आदि संचार के सबसे प्रभावशाली माध्यम हैं जो संचार उपग्रहों की सहायता से कार्य करते हैं। टेलीफोन के साथ कंप्यूटर के जुड़ जाने (इंटरनेट) से संचार सेवाओं में और अधिक प्रगति हुई है।
17. 'आउटसोर्सिंग' (outsourcing) किसे कहते हैं ?
उत्तर- विगत वर्षों के अंतर्गत सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का बहुत तेजी से विकास हुआ है। आज दूरसंचार सुविधाओं द्वारा पूर्व की अपेक्षा विभिन्न देशों से संपर्क स्थापित करना तथा सूचनाओं का आदान-प्रदान अधिक सुगम हो गया है। अतः, अब हम अपने देश में रहकर भी विश्व के अन्य देशों को अपनी सेवाएँ प्रदान कर सकते हैं। इससे सेवा क्षेत्र का बहुत विस्तार हुआ है तथा अन्य वस्तुओं के समान ही इस क्षेत्र के उत्पादन का भी निर्यात होने लगा है। जब पनी अपने उत्पादन से संबंधित सेवाएँ अन्य स्रोतों अथवा देशों से प्राप्त करती है तो इसे 'आउटसोर्सिंग' कहते हैं। हमारे के कारण विकसित देशों की अनेक कंपनियाँ अब अपनी सेवाओं का भारत में आउटसोर्सिंग करने लगी हैं। एक विदेशी फर्म द्वारा अपनी पुस्तक के डिजाइन, छपाई आदि का कार्य हमारे देश में करवाना आउटसोर्सिंग का उदाहरण है।
18. सेवा क्षेत्र के विकास में शिक्षा की क्या भूमिका है ?
उत्तर- सेवा क्षेत्र का विकास मुख्य रूप से मानवीय तत्त्वों पर निर्भर है तथा इसमें शिक्षा की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। 21वीं सदी को ज्ञान की सदी के रूप में देखा जा रहा है। विगत वर्षों के अंतर्गत हमारे देश ने भी संचार एवं सूचना सेवाओं के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है। यह शिक्षा के स्तर में होनेवाले सुधार तथा ज्ञान एवं कौशल के विकास का ही परिणाम है। हमारे देश के लिए शिक्षा का महत्त्व इस कारण और बढ़ जाता है क्योंकि भारत में युवा शक्ति का विशाल भंडार है। इनकी उचित शिक्षा और प्रशिक्षण द्वारा हम सेवा क्षेत्र में विश्व में श्रेष्ठता प्राप्त कर सकते हैं।
19. आवास सुविधाओं से आप क्या समझते हैं ? भारत में आवास की वर्तमान स्थिति क्या है ?
उत्तर- भोजन और वस्त्र के साथ ही आवास भी मनुष्य की एक आधारभूत आवश्यकता आवास जलवायु की विभिन्नताओं से सुरक्षा प्रदान करने के साथ ही समाज के भावी नागरिकों के जन्म और पालन-पोषण की व्यवस्था करता है। आवास का संबंध केवल रहने के मकानों से ही नहीं, वरन स्वच्छ वायु, शुद्ध पेयजल, शिक्षा एवं चिकित्सा सुविधा तथा एक अच्छे पड़ोस और वातावरण से भी है।
भारत में आवास अथवा रहने के मकानों की बहुत कमी है। जनसंख्या वृद्धि के साथ ही देश में आवास और उससे संबद्ध आधारभूत आवश्यकताओं (पानी, बिजली, मलव्ययन इत्यादि) की माँग निरंतर बढ़ रही है। रोजगार एवं उच्च शिक्षा के लिए गाँवों और कस्बों से नगरों की ओर होनेवाले प्रवसन ने आवास समस्या को और अधिक गंभीर बना दिया है। योजना आयोग अनुसार अभी देश में लगभग 247 लाख आवास इकाइयों की कमी होने का अनुमान है। आवास समस्या का एक अन्य पक्ष मकानों की गुणवत्ता से संबंधित है। ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकांश परिवार मिट्टी के बने कच्चे मकानों में रहते हैं। इनमें प्राय: हवा, पानी, रोशनी, शौचालय आदि की व्यवस्था नहीं होती है। बड़े शहरों और महानगरों में भी झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों में रहनेवाले परिवारों की संख्या बहुत अधिक है।
आवास समस्या के समाधान के लिए भारत सरकार ने शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों के लिए पृथक कार्यक्रम बनाए गए हैं। सरकार ने प्रत्येक राज्य में एक आवास परिषद की स्थापना की है। यह शहरी क्षेत्रों में निम्न एवं मध्यम आयवर्ग के लोगों के लिए सस्ते मकानों का निर्माण करती है। ‘इंदिरा आवास योजना' के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में आदिवासी, हरिजन एवं भूमिहीन श्रमिकों के लिए आवास की व्यवस्था की जा रही है।
20. वर्तमान आर्थिक मंदी का भारत के सेवा क्षेत्र पर क्या प्रभाव पड़ा है ?
उत्तर- किसी भी अर्थव्यवस्था की आर्थिक गतिविधियाँ सदैव स्थिर नहीं रहती हैं तथा इसमें समय-समय उतार-चढ़ाव होते रहते हैं। मंदी एक ऐसी अवस्था है जिसमें व्यावसायिक क्रियाएँ सामान्य स्तर से नीचे रहती हैं। इसके परिणामस्वरूप उत्पादन एवं आय की मात्रा में गिरावट आनेलगती है, श्रमिक और उत्पादन के अन्य साधन बेरोजगार हो जाते हैं तथा मज़दूरी की दरों में कमी हो जाती है। विश्व स्तर पर इस प्रकार की मंदी सर्वप्रथम 1930 में हुई। यह मंदी संयुक्त राज्य अमेरिका से आरंभ हुई जिसने विश्व के प्रायः सभी देशों को प्रभावित किया। व्यापार के विस्तार से अब विश्व के विभिन्न देश एक-दूसरे से जुढ़ गए थे जिनमें अमेरिका सबसे समृद्ध देश था। अतः, इसको आर्थिक मंदी से प्रायः सभी देश प्रभावित हुए थे।
वर्तमान मंदी का प्रारंभ भी 2008 में अमेरिका से हुआ जिससे सेवा क्षेत्र सर्वाधिक प्रभावित हुआ है। उपभोक्ताओं की माँग कम हो जाने के कारण बहुराष्ट्रीय निगमों का लाभ भी कम हो गया है और वे श्रमिकों की छँटनी कर रहे हैं। इस मंदी से भारत भी प्रभावित हुआ है तथा हमारे सेवा क्षेत्र पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इससे निजी क्षेत्र के उद्योग एवं व्यवसाय में अस्थिरता आई है, श्रमिकों की छँटनी हुई है और यहाँ के तकनीकी कर्मचारियों की माँग विदेशों में कम हो गई है। परंतु, अमेरिका और यूरोप के देशों की अपेक्षा भारत इससे कम प्रभावित हुआ है। इसका प्रमुख कारण वित्तीय संस्थाओं तथा पूँजी बाजार पर सरकार का प्रभावपूर्ण नियंत्रण है।
Hello My Dear, ये पोस्ट आपको कैसा लगा कृपया अवश्य बताइए और साथ में आपको क्या चाहिए वो बताइए ताकि मैं आपके लिए कुछ कर सकूँ धन्यवाद |