1. बाजार में उपभोक्ताओं का किस प्रकार से शोषण किया जाता है ?
उत्तर- बाजार में उपभोक्ताओं को निम्न प्रकार से शोषण किया जाता है—
(i) विक्रेता प्रायः वस्तुओं का उचित ढंग से माप-तौल नहीं करता तथा माप-तौल में कमी करते हैं।
(ii) कई अवसरों पर विक्रेता ग्राहकों से वस्तुओं के निर्धारित खुदरा मूल्य से अधिक राशि वसूलते हैं।
(iii) बाजारों में प्रायः घी, खाद्य पदार्थ, मसालों आदि में मिलावट होती है।
(iv). कई बार विक्रेता या उत्पादक उपभोक्ताओं को गलत था अधूरी जानकारी देकर धोखे में डाल देते हैं। -
2. भारत में किन कारणों से उपभोक्ता जागरूकता आंदोलन का प्रारंभ हुआ ? संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर- भारत में एक सामाजिक शक्ति के रूप में उपभोक्ता आंदोलन का उदय व्यापारियों के अनुचित व्यवसाय व्यवहार के कारण हुआ। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात खाद्यान्न की अत्यधिक कमी होने के कारण जमाखोरी और कालाबाजारी बहुत बढ़ गयी थी। अत्यधिक लाभ कमाने के लालच में उत्पादक और विक्रेता खाद्य पदार्थों में मिलावट करने लगे थे। इसके विरोध में देश में उपभोक्ता आंदोलन संगठित रूप में प्रारंभ हुआ। 1970 के इराक में कई उपभोक्ता संगठन जन-प्रदर्शन तथा पत्र-पत्रिकाओं में आलेख प्रकाशित करने लगे थे। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भी विक्रेता उपभोक्ताओं को निर्धारित मात्रा में तथा उचित समय पर वस्तुओं की आपूर्ति नहीं करते थे तथा कई प्रकार से मनमानी करते थे। विगत वर्षों के अंतर्गत देश में उपभोक्ता संगठनों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई है जिन्होंने उपभोक्ताओं को जागरूक बनाने का प्रयास किया हैं उपभोक्ता आंदोलनों ने व्यापारिक संस्थानों तथा सरकार दोनों को अनुचित व्यवसाय व्यवहार में सुधार लाने के लिए बाध्य किया है। सरकार ने 1986 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम को पारित किया। यन्ति किस
3. दो उदाहरण देकर उपभोक्ता जागरूकता आंदोलन की आवश्यकता का वर्णन करें।
उत्तर- उपभोक्ता जागरण की आवश्यकता अनेक अवसरों पर महसूस की जाती है जैसे— शिक्षण संस्थाएँ अपने लुभावने प्रचारों के माध्यम से छात्रों को आकर्षित करते हैं, लेकिन वास्तव में वहाँ ऐसी कोई व्यवस्था नहीं होती।
डॉक्टरों के द्वारा मरीज देखते समय फीस के बारे में जानकारी नहीं दी जाती है जिससे मरीजों का खूब शोषण होता हैं कई बार डॉक्टर की लापरवाही से मरीज की जान भी चली जाती है। अतः इन सभी मामलों से उपभोक्ता जागरूकता आंदोलन की आवश्यकता होती है।
4. कुछ ऐसे कारकों का उल्लेख कर जिनसे उपभोक्ताओं का शोषण होता है ?
उत्तर-उपभोक्ता शोषण के कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं
(i) सूचना का अभाव उपभोक्ता-शोषण का एक प्रमुख कारण है। उपभोक्ताओं को बाजार में विभिन्न प्रकार के उत्पादों की गुणवत्ता और मूल्य आदि की सही जानकारी नहीं रहती है।
(ii) कुछ आवश्यक उपभोक्ता पदार्थों की आपूर्ति सीमित होती है। फलस्वरूप उत्पादक तथा व्यापारी इनकी जमाखोरी ओर कालाबाजारी करते हैं, जिससे भी उपभोक्ताओं का शोषण होता है।
(iii) सीमित प्रतिस्पर्धा उपभोक्ताओं के शोषण का एक अन्य कारण है।
(iv) उपभोक्ताओं की अशिक्षा और अज्ञानता भी उनके शोषण का एक प्रमुख कारण साबित होता है।
5. भारत में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पारित करने की आवश्यकता क्यों हुई ?
उत्तर- भारत में काफी समय पूर्व से ही उपभोक्ताओं को कई प्रकार से शोषण किया जाता रहा है। कभी माल या सेवा की घटिया किस्म के कारण तो कभी माप-तौल के कारण, कभी नकली वस्तु उपलब्ध होने के कारण, कभी वस्तु की कालाबाजारी या जमाखोरी के कारण तो कभी स्तरहीन विज्ञापनों के कारण उपभोक्ताओं की अनदेखी की जा रही थी। सरकार ने उपभोक्ताओं की हितों की रक्षा के लिए समय-समय पर कदम उठाते हुए अनेक उपभोक्ता कानून बनाए हैं और वर्त्तमान में सरकार द्वारा विभिन्न माध्यमों से उपभोक्ता को जागरूक बनाने का सतत् प्रयास किया जा रहा है। ताकि लोग अपने अधिकारों को समझ सकें और अपनी शिकायत का निवारण कर सकें। इसी बात को ध्यान में रखते हुए सरकार के सामने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (1986) पारित करने की आवश्यकता महसूस हुई।
6. एक उपभोक्ता के रूप में बाजार में अपने कर्तव्यों का वर्णन करेंगे
उत्तर- उपभोक्ताओं के संरक्षण के लिए प्राय: सभी देशों में आवश्यक कानून बनाए गए हैं। परंतु, उपभोक्ताओं के भी कुछ कर्तव्य है तथा इनके शोषण को रोकने के लिए यह आवश्यक है कि वे अधिकारों के साथ ही अपने कर्तव्यों के प्रति भी सचेत हों। एक उपभोक्ता के रूप में हमारे लिए निम्नलिखित कर्तव्यों को ध्यान में रखना आवश्यक है-
(i) उपभोक्ताओं को न केवल वस्तुओं के क्रय-विक्रय के व्यावसायिक पक्षों की जानकारी होनी चाहिए, वरन स्वास्थ्य एवं सुरक्षा की भी जानकारी आवश्यक है। उन्हें कोई भी सामान खरीदते समय उनकी गुणवत्ता और शुद्धता के प्रति पूर्णतः आश्वस्त हो जाना चाहिए। यदि उस सामान या सेवा की गारंटी दी गई है तो गारंटी कार्ड को पूरा कराकर उसे रख लेना चाहिए।
(ii) जहाँ कहीं भी संभव हो, खरीदे गए सामान या सेवा की रसीद अवश्य लेनी चाहिए ।
(iii) अनेक स्थानों पर सरकार अथवा अन्य स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा उपभोक्ता संघों की स्थापना की गई है। उपभोक्ताओं को इनके कार्यकलाप में रूचि लेनी चाहिए।
(iv) एक उपभोक्ता द्वारा क्रय की जानेवाली वस्तु कितने ही कम मूल्य की क्यों न हो, उसे अपनी वास्तविक समस्या की शिकायत अवश्य करनी चाहिए ।
(v) उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों की जानकारी होनी चाहिए और आवश्यकता पड़ने पर उनका प्रयोग भी करना चाहिए।
उपभोक्ताओं की जागरूकता और सक्रिय भागीदारी से ही उन्हें उत्पादकों और व्यापारियों के शोषण से बचाया जा सकता है।
7. उपभोक्ता अधिकारों की सुरक्षा संबंधी अधिनियमों की व्याख्या करें ।
उत्तर- उपभोक्ता का प्रथम अधिकार सुरक्षा का अधिकार है। इस अधिकार का सीधा संबंध बाजार से खरीदी जानेवाली वस्तुओं और सेवाओं से जुड़ा है। उपभोक्ता को ऐसे वस्तुओं और सेवाओं से सुरक्षा प्राप्त करने का अधिकार है जिससे उसके शरीर या संपत्ति को हानि हो सकती है जैसे—बिजली का आयरन विद्युत आपूर्ति की खराबी के कारण करंट मार देता है या एक डॉक्टर ऑपरेशन करते समय लापरवाही बरतता है जिसके कारण मरीज को खतरा या हानि हो सकती है।
8. मान लें कि आप किसी खाद्य पदार्थ का एक पैकेट खरीदते हैं। आप इसपर कौन-सा व्यापार चिन्ह देखेंगे और क्यों ?
उत्तर- पैकेट बंद खाद्य उत्पादों को खरीदते समय निम्नलिखित व्यापार चिन्ह देखेंगे यथा अवयवों की सूची, वजन या परिमाण, निर्माता का नाम और पता, निर्माण की तिथि इस्तेमाल की समाप्ति, निरामिष/सामिष चिन्ह डाले गए रंग और खुशबू की घोषणा पोषाहार का दावा- सम्मिलित पौष्टिक तत्त्वों की मात्राएँ स्वास्थ्य के प्रति हानिकारक चेतावनी इत्यादि । उत्पादकों द्वारा अपनी वस्तुओं के संबंध में जानकारी प्रदान करने से उपभोक्ता इनके गलत होने पर शिकायत कर सकता है तथा वस्तुओं के बदलने तथा हर्जाने की माँग कर सकता है। जिन वस्तुओं पर व्यापार चिन्ह (ISI) का अंकित है उनकी गुणवत्ता के प्रति ग्राहक आश्वस्त रहता है।
9. उपभोक्ता अपनी एकजुटता का प्रदर्शन कैसे कर सकते हैं ?
उत्तर- भारत में उपभोक्ता संरक्षण की धारणा को विकसित करने तथा उपभोक्ता आंदोलन के प्रसार में गैर सरकारी संगठनों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। इन संगठनों ने उपभोक्ताओं को जागरूक उनके बीच एकजुटता का प्रदर्शन तथा उनके मार्गदर्शन का कार्य किया है। हमारे देश में उपभोक्ताओं के शोषण का एक प्रमुख कारण उनकी अशिक्षा और अज्ञानता भी है। ये स्वयंसेवी संगठन उन्हें प्रशिक्षित करने के साथ ही उपभोक्ता अदालतों में भी उनका प्रतिनिधित्व करते हैं।
10. उत्पादों के मानवकरण के लिए सरकार ने क्या उपाय किए हैं ?
उत्तर- उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा के लिए उत्पादों का मानकीकरण (Standardisation of Products) एक तकनीकी उपाय है। इसके लिए सरकार ने वह ऐसी संस्थाओं की स्थापना की हे जो उत्पादों की गुणवत्ता की जाँच कर उनका मानक निर्धारित करती हैं भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) जिसे पहले भारतीय मानक संस्थान न (ISI) के नाम से जाना जाता था, हमारे देश की प्रमुख मानकीकरण संस्था है। इसका मुख्य कार्य विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं का मानक तैयार कर उनकी प्रमाणन योजना को संचालित करना है।
11. उपभोक्ता अधिकारों के संरक्षण एवं आर्थिक शोषण के संदर्भ में मानवाधिकार आयोग का महत्त्व बताएँ।
उत्तर–भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है तथा भारतीय संविधान देश के सभी नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार प्रदान करता है। इन अधिकारों में आर्थिक शोषण से रक्षा का अधिकर भी सम्मिलित है। इसके अंतर्गत सभी प्रकार के वेगार तथा बाल श्रम को अवैध करार दिया गया हैं। हमारे समाज में वेसहारा और कमजोर वर्ग के लोगों का एक लंबे समय से आर्थिक शोषण होता रहा है। सरकार ने आर्थिक रूप से शोषित इन व्यक्तियों के हितों की रक्षा के लिए समय-समय पर कई कानून पारित किए हैं।
परंतु, समाज के अधिकांश शोषित व्यक्ति निर्धन और कमजोर वर्ग के हैं। आवश्यक कानून होने पर भी अशिक्षा, अज्ञानता एवं साधनों का अभाव होने के कारण वे समान सुविधा तथा समान अवसर से वंचित हो जाते हैं। इनके मौलिक अधिकारों की प्रभावपूर्ण सुरक्षा के लिए सरकार ने मानव अधिकार सुरक्षा अनियिम, 1993 के अंतर्गत एक राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना की है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय का एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश इस आयोग का अध्यक्ष होता है। देश के विभिन्न राज्यों में भी इस प्रकार के आयोग के गठन का प्रावधान है तथा कुछ समय पूर्व हमारे राज्य बिहार में भी मानवाधिकार आयोग की स्थापना हुई है। हमारे संविधान में सात मौलिक अधिकार दिए गए हैं जिनमें समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार तथा आर्थिक शोषण से संरक्षण के अधिकार शामिल हैं। इन अधिकारों का हनन होने पर कोई भी व्यक्ति मानवाधिकार आयोग को आवेदन दे सकता है। इस आयोग का महत्व इस कारण और बढ़ जाता है कि मानवाधिकारों का उल्लंघन होने पर यह स्वयं भी संज्ञान ले सकता है।
12. आधुनिक समय में उपभोक्ताओं के शोषण की समस्या क्यों गंभीर हो गई है ?
उत्तर- प्राचीनकाल में भी उत्पादक या विक्रेता उपभोक्ताओं का शोषण करते थे। परंतु, व्यापार का विस्तार होने के साथ ही आधुनिक समय में यह समस्या अधिक गंभीर हो गई है। आज अखबार, रेडियो, टेलीविजन आदि प्रचार एवं विज्ञापन के कई साधन उपलब्ध हैं। उत्पादक इनपर बहुत अधिक धन खर्च करते हैं जिनका भार उपभोक्ताओं को वहन करना पड़ता है। ग्राहकों को आकृष्ट करने के लिए उत्पादक प्रायः अपनी वस्तुओं का भ्रामक प्रचार करते हैं तथा अपनी वस्तु की गलत या अधूरी जानकारी देते हैं। बाजार में एकाधिकार एवं अपूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति रहने के कारण भी उपभोक्ताओं का शोषण होता है। ऐसी स्थिति में वस्तुओं की आपूर्ति पर कुछ थोड़े-से उत्पादकों या विक्रेताओं का नियंत्रण रहता है और वे बाजार को अपनी इच्छानुसार प्रभावित कर सकते हैं।
13. "भारत में उपभोक्ताओं के शोषण की समस्या बहुत गंभीर है।" क्यों ?
उत्तर- भारत में उपभोक्ताओं के शोषण की समस्या बहुत गंभीर है। हमारे देश के अधिकांश उपभोक्ता अशिक्षित है तथा उनकी आय का स्तर बहुत निम्न है। इसके फलस्वरूप, वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं होते। देश में आवश्यक उपभोक्ता पदार्थों का अभाव होने के कारण उन्हें अनेक वस्तुओं और सेवाओं को अधिक मूल्य पर खरीदना पड़ता है अथवा उनके उपभोग से वंचित रह जाना पड़ता है। भारत में उपभोक्ता संघों का पूर्ण अभाव है। उत्पादक एवं व्यापारी इसका अनुचित लाभ उठाकर उपभोक्ताओं का कई प्रकार से शोषण करते हैं। भारत जैसे विकासशील देशों में कानूनी प्रक्रिया बहुत जटिल और खर्चीली है। इसके फलस्वरूप भी इन देशों में उपभोक्ताओं का शोषण होता है।
14. उपभोक्ता अधिकारों की सुरक्षा संबंधी अधिनियमों की व्याख्या करें ।
उत्तर- भारत सरकार ने उपभोक्ताओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए समय-समय पर कई अधिनियम या कानून लागू किए हैं। इनमें माप-तौल मानक अधिनियम, खाद्य मिलावट - निवारण अधिनियम, आवश्यक वस्तु अधिनियम आदि महत्त्वपूर्ण हैं |
उपभोक्ताओं के हितों को रक्षा के लिए सरकार ने 1986 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पारित किया जो उपभोक्ता संरक्षण की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। यह एक अत्यंत प्रगतिशील और व्यापक कानून है। इस अधिनियम के सभी प्रावधान जुलाई 1987 से प्रभावी हुए हैं। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम सभी प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं के विक्रय पर लागू होता है। अक्टूबर 2005 में भारत सरकार ने सूचना के अधिकार के नाम से एक अन्य अधिनियम पारित किया है जो जनहित तथा उपभोक्ता अधिकारों के संरक्षण के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
15. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के मुख्य प्रावधान क्या हैं ?
उत्तर- उपभोक्ताओं के अधिकारों की सुरक्षा एवं उनके शोषण को रोकने के लिए भारत सरकार ने 1986 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम' पारित किया है। इस अधिनियम में उपभोक्ताओं के संरक्षण के लिए व्यापक प्रावधान किए गए हैं। इसके अंतर्गत अनुचित व्यापार तरीकों का प्रयोग करनेवाले उत्पादकों तथा विक्रेताओं को दंड देने के स्थान पर उपभोक्ताओं की क्षतिपूर्ति की व्यवस्था की गई है। इसके लिए राष्ट्रीय, राज्य एवं जिला स्तर पर एक अर्द्धन्यायिक तंत्र गठित किया गया है। इसे राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आयोग, राज्य स्तर पर राज्य आयोग तथा जिला स्तर पर जिला अदालत कहा जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं की शिकायतों को शीघ्रता से कम खर्च में दूर करना है। यह अधिनियम वस्तुओं और सेवाओं दोनों के क्रय-विक्रय पर लागू होता है।
16. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 में उपभोक्ताओं को दिए गए अधिकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए सरकार ने 1986 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पारित किया जो उनकी सुरक्षा की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इसके अंतर्गत उपभोक्ताओं के संरक्षण के लिए उन्हें निम्नलिखित अधिकार दिए गए
(i) जान-माल के लिए खतरनाक वस्तुओं व सेवाओं की बिक्री के विरुद्ध सुरक्षा का अधिकार (ii) वस्तुओं एवं सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, मानक और मूल्य संबंधी सूचना का अधिकार
(iii) प्रतिस्पर्द्धात्मक मूल्यों पर वस्तुओं को प्राप्त करने का अधिकार उपभोक्ताओं को उचित स्थान पर अपनी शिकायत दर्ज कराने का अधिकार अनुचित व्यापार तरीकों एवं शोषण के विरुद्ध न्याय पाने का अधिकार
(vi) उपभोक्ता प्रशिक्षण का अधिकार।
17. यदि उपभोक्ता जिल्ला अदालत के निर्णय से संतुष्ट नहीं है तो वह कब और कहाँ अपील कर सकता है ?
उत्तर- यदि कोई उपभोक्ता जिला अदालत के निर्णय से संतुष्ट नहीं है तो वह इसके विरुद्ध राज्य आयोग में अपील कर सकता है। यह अपील जिला अदालत के निर्णय के 30 दिनों के भीतर होनी चाहिए। इसमें अपील करनेवाले उपभोक्ता के आवेदनपत्र के साथ जिला अदालत का आदेश संलग्न करना आवश्यक है। इसके साथ ही, इसमें उन कारणों का उल्लेख होगा चाहिए जिनके लिए यह अपील की जा रही है। अपील करने के लिए उपभोक्ताओं को कोई शुल्क नहीं देना पड़ता है। इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, अपील का निर्णय उसे दर्ज कराने के लिदन से 90 दिनों के पूर्व हो जाना चाहिए।
18.. जब आप कोई उपभोक्ता या खाद्य पदार्थों अथवा दवा का एक पैकेट खरीदते हैं तो इनपर किस प्रकार की जानकारियों का होना आवश्यक होता है ?
उत्तर- जब हम कोई उपभोक्ता या खाद्य पदार्थ अथवा दवा खरीदते हैं तो उसके पैकेट पर उस वस्तु के अवयवों, मूल्य, निर्माण तिथि, खराब होने की अंतिम तिथि, रख-रखाव एवं प्रयोग आदि के बारे में कई प्रकार की जानकारियाँ रहती हैं। सरकारी नियमों के अनुसार, बड़े पैमाने पर उत्पादित वस्तुओं के उत्पादकों के लिए इस प्रकार की जानकारी देना आवश्यक होता है। सरकार द्वारा इस प्रकार के नियम इसलिए बनाए गए हैं, क्योंकि उपभोक्ताओं को वस्तुओं एवं सेवाओं के संबंध में सूचना अथवा जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है। वस्तुओं और सेवाओं के संबंध में इन जानकारियों के उपलब्ध होने से उपभोक्ता इनके गलत होने पर शिकायत कर सकता है या हर्जाने की माँग कर सकता है।
19. उपभोक्ताओं के शोषण के क्या कारणा हैं ??
उत्तर- वर्तमान समय में व्यापार का विस्तार होने के साथ ही उपभोक्ता शोषण की समस्या बहुत गंभीर हो गई है। उपभोक्ताओं के शोषण के मुख्य कारण निम्नांकित हैं—
(i) वस्तुओं का अभाव- बाजार में कई बार कुछ वस्तुओं की पूर्ति कम होती है और उनका अभाव रहता है। इस स्थिति का अनुचित लाभ उठाकर उत्पादक या विक्रेता अपनी वस्तुओं की अधिक मूल्य वसूल करते हैं।
(ii) अपूर्ण प्रतियोगिता- कई बार किसी उत्पादक या उत्पादक समूह का कुछ वस्तुओं के उत्पादन और वितरण पर एकाधिकार रहता है। ऐसी स्थिति में वे प्रायः उपभोक्ताओं का शोषण करते हैं।
(iii) उपभोक्ताओं की अज्ञानता- अनेक अवसरों पर उपभोक्ताओं को बाजार में उपलब्ध में वस्तुओं के मूल्य, गुण, संरचना तथा प्रयोग आदि की पूरी जानकारी नहीं रहती है। इसका अनुचित लाभ उठाकर उत्पादक एवं विक्रेता उनका शोषण करते हैं।
(iv) अशिक्षा – अशिक्षा के कारण विकासशल देशों के अधिकांश उपभोक्ता अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं है। यह उनके शोषण का एक प्रमुख कारण है।
(v) विज्ञापन एवं प्रचार- आज अखबार, रेडियो, टेलीविजन आदि विज्ञापन के अनेक साधन उपलब्ध हैं। इनमें वस्तुओं की गुणवत्ता को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बताया जाता है अथवा उनका भ्रामक प्रचार किया जाता है।
(vi) जटिल कानूनी प्रक्रिया- भारत जैसे विकासशील देशों में कानूनी प्रक्रिया बहुत जटिल और खर्चीली है। इसके फलस्वरूप, कम आयवाले सामान्य उपभोक्ता बड़े उत्पादकों या के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं करना चाहते हैं। व्यापारियों
20. उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए किए गए उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- भारत में उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए तीन प्रकार के उपाय अपनाए गए हैं— कानूनी, प्रशासनिक एवं तकनीकी कानूनी उपायों में 1986 का उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम सबसे महत्वपूर्ण है। इस संबंध में सरकार द्वारा कई अन्य कानून भी बनाए गए हैं और समय-समय पर उनमें आवश्यक संशोधन किया गया है। अनिवार्य उपभोक्ता वस्तुओं का 'सार्वजनिक वितरण प्रणाली' द्वारा वितरण एक प्रशासनिक उपाय है। वस्तुओं का मानकीकरण तकनीकी उपाय है।
(i) उपभोक्ता अधिकारों से संबंधित कानून- भारत सरकार ने उपभोक्ताओं के अधिकारों सुरक्षा के लिए समय-समय पर कई कानून लागू किए हैं। इनमें माप-तौल मानक अधिनियम, खाद्य मिलावट-निवारण अधिनियम, आवश्यक वस्तु अधिनियम आदि महत्वपूर्ण हैं। परंतु, उपभोक्ता अधिकारों की सुरक्षा के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। यह अधिनियम सभी प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं के विक्रय पर लागू होता है।
(ii) सार्वजनिक वितरण प्रणाली - वितरण प्रणाली उपभोक्ता संरक्षण के लिए सरकार ने प्रशासनिक उपाय भी किए हैं। इनके शोषण को रोकने के लिए सरकार ने देश में एक व्यापक सार्वजनिक वितरण प्रणाली की स्थापना की है। इससे वस्तुओं की कालाबाजारी, जमाखोरी और मुनाफाखोरी को रोकने में सहायता मिली है।
(iii) वास्तुओं बना मानकीकरणा— उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए सरकार ने ऐसी संस्थाओं की स्थापना की है जो विभिन्न उत्पादों का मानक निर्धारित करती है। इसके साथ वे इनकी गुणवत्ता की जाँच भी करती है।
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