Header Ads Widget

New Post

6/recent/ticker-posts
Telegram Join Whatsapp Channel Whatsapp Follow

आप डूुबलिकेट वेबसाइट से बचे दुनिया का एकमात्र वेबसाइट यही है Bharati Bhawan और ये आपको पैसे पेमेंट करने को कभी नहीं बोलते है क्योंकि यहाँ सब के सब सामग्री फ्री में उपलब्ध कराया जाता है धन्यवाद !

Bharati Bhawan Class 10th Economics Chapter 7 | Long Question Answer | उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण | भारती भवन कक्षा 10वीं अर्थशास्त्र अध्याय 7 | दीर्घ उत्तरीय प्रश्न|

Bharati Bhawan Class 10th Economics Chapter 7  Long Question Answer  उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण  भारती भवन कक्षा 10वीं अर्थशास्त्र अध्याय 7  दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. भारत में उपभोक्ताओं का किस प्रकार शोषण किया जाता है ? उपभोक्ताओं के क्या अधिकार है तथा उनके संरक्षण के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए हैं ? 
उत्तर- भारतीय अर्थव्यवस्था में उपभोक्ताओं की स्थिति सोचनीय है। वे सदैव व्यवसायियों द्वारा अनुचित लाभ कमाने के उद्देश्य से ठगे जाते हैं, साथ ही उनमें शिक्षा की कमी गरीबी का प्रभाव और जागरूकता अभाव के कारण भी उपभोक्ता शोषण के शिकार होते हैं। वर्तमान समय में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहाँ उपभोक्ताओं का शोषण नहीं हो रहा हो वह चाहे शिक्षा का क्षेत्र दो या बैकिंग, दूरसंचार, डाक, खाद्य सामग्री या फिर भवन निर्माण। सभी क्षेत्र में त्रुटि लापरवाही और कालाबाजारी उपभोक्ता के लिए घातक सिद्ध हो रही है। उपभोक्ता का कई प्रकार से शोषण किया जाता है यानि कभी माल या सेवा की घटिया किस्म के कारण तो कभी कम माप-तौल के कारण, कभी नकली वस्तु उपलब्ध होने के कारण, कभी वस्तु की कालाबाजारी या जमाखोरी के कारण तो कभी स्तरहीन विज्ञापनों के कारण।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 6 के अंतर्गत उपयोगताओं को कुछ अधिकार प्रदान किए गए हैं जो निम्नलिखित हैं-
(i) जान-माल के लिए खतरनाक वस्तुओं एवं सेवाओं की बिक्री के विरुद्ध संरक्षण का अधिकार।
(ii) वस्तुओं की सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, मानक और मूल्य संबंधी सूचना का अधिकार। (iii) विभिन्न वस्तुओं को देख परखकर चुनाव करने तथा प्रतिस्पर्धात्मक मूल्यों पर उन्हें प्राप्त करने का अधिकार।
(iv) उपभोक्ताओं को उचित स्थान पर अपनी शिकायत दर्ज कराने का अधिकार। 
(v) अनुचित व्यापार तरीकों एवं शोषण के विरुद्ध न्याय पाने का अधिकार। 
(vi) उपभोक्ता प्रशिक्षण का अधिकार ।
उपभोक्ताओं के अधिकार की रक्षा एवं हितों का संरक्षण करने के लिए सरकारी स्तर 'केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण परिषद्' एवं राज्य स्तर पर राज्य उपभोक्ता संरक्षण परिषद' की स्थापना की गयी है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986' के तहत उपभोक्ताओं को उनकी शिकायतों के निवारण के लिए व्यवस्था दी गई है जिसे तीन स्तरों पर स्थापित किया गया है
(i) राष्ट्रीय स्तर पर 'राष्ट्रीय स्तरीय आयोग।
(ii) राज्य तर पर 'राज्य स्तरीय आयोग।'
(iii) जिला स्तर पर जिला मंच' (फोरम) ।
न्यायिक व्यवस्था उपभोक्ताओं के लिए बहुत ही उपयोगी एवं व्यवहारिक है।  
2. उपभोक्ताओं के कुछ अधिकारों को बताएँ और उनके प्रत्येक अधिकार पर कुछ पंक्तियाँ लिखें।
उत्तर- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 6 के अंतर्गत उपभोक्ता को कुछ अधिकार दिए गए हैं जो निम्नलिखित हैं
i. सुरक्षा का अधिकार- इस अधिकार का सीधा संबंध बाजार से खरीदी जानेवाली वस्तुओं और सेवाओं से जुड़ा हुआ हैं उपभोक्ता को ऐसे वस्तुओं और सेवाओं से सुरक्षा प्राप्त करने का अधिकार है जिससे उसके शरीर या संपत्ति को हानि हो सकती है। उदाहरण – पटना के एक राज्य चिकित्सक ने एक महिला के पेट का ऑपरेशन किया था। लापरवाही वश एक छोटा तौलिया महिला के पेट के अंदर ही छोड़ दिया था। कुछ दिनों पश्चात् महिला के पेट में भयंकर दर्द होने लगा। महिला के परिवार वालों ने जिला उपभोक्ता अदालत तथा पुनः राज्य उपभोक्ता आयोग में इसकी अपील की, जिसने चिकित्सक को लापरवाही का दोषी पाया और उक्त महिला को हर्जाना देने का आदेश दिया।
ii. सूचना का अधिकार - उपभोक्ता को वे सभी आवश्यक सूचनाएँ भी प्राप्त करने का अधिकार है जिसके आधार पर वह वस्तुएँ या सेवाएँ खरीदने का निर्णय कर सकते हैं। जैसे— पैकेट बन्द सामान खरीदने पर उसका मूल्य, इस्तेमाल करने की अवधि गुणवत्ता इत्यादि की सूचना प्राप्त करे। उत्पादकों द्वारा अपनी वस्तुओं के संबंध में जानकारी प्रदान करने से उपभोक्ता इनके गलत होने पर शिकायत कर सकता है तथा वस्तुओं को बदलने तथा हर्जाने की माँग कर सकता है। नागरिकों के हित में अब सरकार ने सूचना के अधिकार को बहुत व्यापक बना दिया है।
iii. चयन का अधिकार- उपभोक्ताओं को एक अन्य अधिकार चुनाव अथवा चयन का अधिकार हैं प्रायः इस अधिकार का उल्लंघन उस समय होता है जब किसी वस्तु की आपूर्ति पर किसी एक उत्पादक या विक्रेता का अधिकार होता है। टेलीफोन कनेक्शन, रसोई गैस आदि जैसी वस्तुओं के कुछ थोड़े से विक्रेता होते हैं। इस प्रकार के विक्रेता प्राय: अनावश्यक शर्ते लगाकर उपभोक्ताओं को परेशान करते हैं वे कई बार उपभोक्ताओं को ऐसी वस्तुओं को खरीदने के लिए भी बाध्य करते हैं जिनकी उन्हें आवश्यकता नहीं होती है। उदाहरण के लिए रसोई गैस का विक्रेता नया कनेक्शन लेते समय उसके साथ चूल्हा खरीदने की शर्त लगा देता है। यह उपभोक्ताओं के चुनाव के अधिकार की अवहेलना है। किसी भी उपभोक्ता को अपनी आवश्यकतानुसार वस्तुओं को खरीदने अर्थात् चयन करने का अधिकार है।  
3. अभी हाल ही में भारत सरकार ने सूचना के अधिकार को बहुत व्यापक बना दिया हैं। स्सोदाहरण स्पष्ट करें।
उत्तर- नागरिकों के हित में अभी हाल ही में सरकार ने सूचना के अधिकार को बहुत व्यापक बना दिया है। अक्टूबर, 2005 में भारत सरकार ने सूचना के अधिकार (Right to Information, RTI) के नाम से एक अधिनियम पारित किया है। इस अधिनियम के अंतर्गत किसी व्यक्ति को जनहित में सरकारी विभागों एवं सार्वजनिक संस्थानों के क्रियाकलापों से संबंधित सूचनाएँ प् करने का अधिकार है। इसके पूर्व सरकारी विभाग और उनके कर्मचारी आम नागरिकों की पहुँच से बाहर थे । सामान्य नागरिकों को सूचना का अधिकार प्रदान करनेवाले इस अधिनियम के दूरगामी के परिणाम हुए है। सूचना के अधिकार का तात्पर्य है—“कोई भी व्यक्ति अभिलेख इमेल आदेश, दस्तावेज, नमूने और इलेक्ट्रॉनिक आँकड़ों आदि के रूप में ऐसी प्रत्येक सूचना प्राप्त कर सकता है जिसकी उसे आवश्यकता हो । जिसके लिए आवेदक संबंधित 'लोक सूचना अधिकारी के समक्ष आवद करेगा। जिसकी सूचना 30 दिनों में (विशेष परिस्थिति में 48 घंटे) संबंधित व्यक्ति को सूचना उपलब्ध करवाया जाएगा।
4. भारत में उपभोक्ताओं को समर्थ बनाने के लिए सरकार ने क्या कानूनी उपाए किए हैं? 
उत्तर- उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए सरकार द्वारा कानूनी उपाय भी अपनाए गए हैं जो उपभोक्ताओं को समर्थ बनाता है। उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए सरकार ने जो कानूनी उपाय किए हैं उनमें 1986 का उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (Consumer Protection Act, COPRA) सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इसके अंतर्गत दंड देने के स्थान पर उपभोक्ताओं की क्षतिपूर्ति की व्यवस्था की गई है। उपभोक्ताओं की शिकायतों के समाधान अथवा उपभोक्ता-विवादों के निपटारे हेतु सरकार द्वारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 में त्रिस्तरीय अर्द्धन्यायिक व्यवस्था है जिसमें राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आयोग, राज्यस्तर पर राज्य आयोग तथा जिला स्तर पर जिला मंच (फोरम) की स्थापना की गयी है। यह न्यायिक व्यवस्था उपभोक्ताओं के लिए बहुत ही उपयोगी एवं व्यवहारिक है। इस व्यवस्था से उपभोक्ताओं को त्वरित एवं सस्ता न्याय प्राप्त होता है और समय एवं धन की बचत होती है। पहले शिकायत 'जिला फोरम' में की जाती हैं शिकायतकर्त्ता अगर संतुष्ट नहीं है तो मामलों को 'राज्य फोरम' किए 'राष्ट्रीय आयोग' में ले जा सकता है। पुनः अगर उपभोक्ता राष्ट्रीय फोरम से संतुष्ट नहीं होता तो वह आदेश के  के अंदर 'उच्चतम न्यायालय' में अपील कर सकता है।
5. उपभोक्ताओं को कौन-कौन से अधिकार प्राप्त है ? एक उपभोक्ता अप कहाँ कर सकता है और इसकी क्या विधि है ?
उत्तर- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा (6) के अंतर्गत उपभोक्ता को युद्ध अधिकार दिए गए हैं जो निम्नलिखित हैं
(i) जान-माल के लिए खतरनाक वस्तुओं एवं सेवाओं की बिक्री के विरुद्ध संरक्षण का अधिकार।
(ii) वस्तुओं एवं सेवाओं की गुणवत्ता मात्रा, मानक और मूल्य संबंधी सूचना का अधिकार । (iii) विभिन्न वस्तुओं को देख-परखकर चुनाव करने तथा प्रतिस्पर्धात्मक मूल्यों पर उन्हें प्राप्त करने का अधिकार।
(iv) उपभोक्ताओं को उचित स्थान पर अपनी शिकायत दर्ज कराने का अधिकारी 
(v) अनुचित व्यापार तरीकों एवं शोषण के विरुद्ध न्याय पाने का अधिकार। 
(vi) उपभोक्ता प्रशिक्षण का अधिकार।
यदि किसी वस्तु या सेवा का मूल्य तथा क्षतिपूर्ति की राशि बीस लाख रुपये से अधिक होने पर उपभोक्ता राष्ट्रीय आयोग में इसकी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। यदि किसी वस्तु या सेवा का मूल्य तथा उपभोक्ताओं को दी जानेवाली पाँच लाख रुपये तक है तब उपभोक्ता इसकी शिकायत जिला अदालत में दर्ज किसी वस्तु या सेवा का मूल्य तथा क्षतिपूर्ति की राशि पाँच लाख रुपये से बीस लाख रुपये तक है। तब राज्य आयोग के पास यह शिकायत की जा सकती है यदि किसी वस्तु या सेवा मूल्य तथा क्षतिपूर्ति की राशि बीस लाख रुपये से अधिक होने पर उपभोक्ता राष्ट्रीय आयोग में शिकायत दर्ज करा सकते है  
शिकायत दर्ज करने की विधि - उपभोक्ता द्वारा सादे कागज पर शिकायत की जा सकती है। इस प्रकार की कोई भी शिकायत व्यक्तिगत रूप से या डाक द्वारा भेजी जा सकती है। इन शिकायतों में निम्नलिखित सूचनाएँ होनी चाहिए।
(i) शिकायत दर्ज करानेवाले उपभोक्ता का नाम, विवरण और पता 
(ii) विरोधी पक्ष, अर्थात विक्रेता या उत्पादक का नाम और पता 
(iii) शिकायत संबंधी तथ्य और इसके समर्थन में दस्तावेज या प्रमाण-पत्र।
6. भारत में उपभोक्ता आंदोलन की प्रांति की समीक्षा करें। 
उत्तर- स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात खाद्यान्न की अत्यधिक कमी होने के कारण जमाखोरी और कालाबाजारी बहुत बढ़ गई थी। अत्यधिक लाभ कमाने के लालच में उत्पादक एवं विक्रेता खाद्य पदार्थों एवं खाद्य तेल जैसी वस्तुओं में मिलावट भी करने लगे थे। इसके विरोध में हमारे देश में उपभोक्ता आंदोलन का एक संगठित रूप में प्रारंभ हुआ। सार्वजनिक वितरण प्रणाली का संचालन बहुत दोषपूर्ण था। राशन दुकानों के विक्रेता प्रायः उपभोक्ताओं को निर्धारित मात्रा में तथा उचित समय पर वस्तुओं की आपूर्ति नहीं करते थे और कई प्रकार की मनमानी करते थे। उपभोक्ता संगठनों ने इन पर निगरानी रखना और अधिकारियों के पास शिकायत दर्ज कराना आरंभ किया। ये संगठन अन्य सार्वजनिक सेवाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार का भी विरोध करने लगे।
विगत वर्षों के अंतर्गत देश में उपभोक्ता संगठनों की संख्या में बहुत वृद्धि हुई है और इन्होंने उपभोक्ताओं को जागरूक बनाने का प्रयास किया है। इनके प्रयासों के फलस्वरूप, इस आंदोलन ने व्यापारिक संस्थानों तथा सरकार दोनों को अनुचित व्यवसाय व्यवहार में सुधार लाने के लिए है। देश में एक व्यापक उपभोक्ता आंदोलन को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार ने भी कई उपाए किए हैं। इस दृष्टि से सरकार द्वारा 1986 में पारित उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं यह एक अत्यंत प्रगतिशील एवं व्यापक कानून है। हमारा देश विश्व के उन चुने हुए देशों में है जहाँ उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए विशेष उपभोक्ता न्यायालय स्थापित किए गए हैं। विगत कुछ वर्षों में उपभोक्ता आंदोलन की प्रगति अवश्य हुई है, लेकिन इसकी गति बहुत धीमी है। अभी देश में 700 से भी अधिक गैर-सरकारी उपभोक्तासंगठन हैं, लेकिन इनमें बहुत थोड़े-से ही मान्यता प्राप्त हैं। सरकार इन्हें संगठित करने के लिए प्रयासरत है तथा मान्यताप्राप्त उपभोक्ता संरक्षण संगठनों को आर्थिक सहायता भी प्रदान करती है।
लेकिन, भारत में उपभोक्ता आंदोलन को अपेक्षित सफलता नहीं मिली है। हमारे देश में उपभोक्ताओं की शिकायत के निवारण की प्रक्रिया जटिल है। अनेक अवसरों पर उन्हें वकीलों की सहायता लेनी पड़ती है जिससे यह खर्चीली हो जाती है। हमारे देश में छोटे और खुदरा विक्रेताओं की बहुलता है। वे प्रायः ग्राहकों को कोई रसीद नहीं देते और उपभोक्ताओं के लिए प्रमाण एकत्र करना कठिन हो जाता है। उपभोक्ता न्यायालय द्वारा उपभोक्ता विवादों के निबटारे में समय भी बहुत अधिक लगता है।
7. दो उदाहरण देकर उपभोक्ता जागरूकता आंदोलन की आवश्यकता का वर्णन करे 
उत्तर- भारत जैसे विकासशील देशों में उपभोक्ताओं के शोषण की समस्या अधिक गंभीर है। अपने अधिकारों एवं दायित्वों की जानकारी नहीं रहने के कारण वे प्रायः शोषण के शिकार हो जाते हैं। अतः, उनके शोषण को रोकने और उनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए उन्हें जागरूक बनाना आवश्यक है। यही कारण है कि भारत सरकार ने उपभोक्ता जागरूकता के लिए कई प्रकार की योजनाएँ आरंभ की हैं।
आर्थिक क्रियाकलापों का विस्तार होने तथा उपभोक्ताओं की अनभिज्ञता के कारण आज प्रायः सभी क्षेत्र में उनका शोषण होता है। उदाहरण के लिए, मनुष्य के स्वस्थ और दीर्घ जीवन के लिए चिकित्सा सेवाएँ अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं तथा सभी व्यक्तियों एवं परिवारों को समय-समय पर इनकी आवश्यकता होती है। लेकिन, चिकित्सकों की लापरवाही से कई बार मरीजों को शारीरिक क्षति हो जाती है। न्याय प्रक्रिया में अत्यधिक विलंब और खर्च के कारण चिकित्सकों द्वारा गलती या लापरवाही हो जाने पर प्रायः मरीज न्यायालय नहीं जाना चाहते हैं। अतएव, उन्हें इस बात के प्रति जागरूक बनाना आवश्यक है कि अब भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने चिकित्सा व्यवसाय को भी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत एक सेवा घोषित कर दिया है। उपभोक्ता के रूप में एक मरीज को भी उचित इलाज और सुरक्षित रहने का अधिकार हैं यदि चिकित्सक मरीजों के इलाज में लापरवाही करते हैं अथवा अपने चिकित्सकीय ज्ञान एवं कौशल का प्रयोग नहीं करते तो मरीज को क्षतिपूर्ति का अधिकार है। नीचे के उदाहरण से यह स्पष्ट है कि अपने इस अधिकार के संरक्षण के लिए मरीज तथा उसके परिवारवालों का जागरूक रहना किस प्रकार आवश्यक है।
पटना के एक शल्यचिकित्सक ने एक महिला के पेट का ऑपरेशन किया। ऑपरेशन पूरा होने के कुछ दिनों बाद ही महिला के पेट में भयंकर दर्द होने लगा। पुनः जाँच करने पर पता चला कि ऑपरेशन के दौरान शल्यचिकित्सक और उसके कर्मचारियों ने लापरवाही से एक छोटा तौलिया उस महिला के पेट के अंदर ही छोड़ दिया था, इससे उसके पेट में हमेशा के लिए खराबी आ गई थी। सौभाग्यवश, महिला के पविारवाले जागरूक थे और उनके द्वारा जिला उपभोक्ता अदालत में शिकायत दर्ज की गई। लेकिन प्रमाण की कमी के कारण इसे खारिज कर दिया गया। उन्होंने पुनः राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील की, जिसने चिकित्सक को लापरवाही का दोषी पाया और उक्त महिला के हर्जाना देने का आदेश दिया।
इसी प्रकार, हमारे देश में अनेक निजी शिक्षण संस्थान हैं जो गलत एवं भ्रामक प्रचार तथा झूठे वादे कर छात्रों का शोषण करते हैं। उदाहरण के लिए, संगीता नामक एक छात्रा ने एक निजी कोचिंग संस्थान के दो वर्षीय पाठ्यक्रम में नामांकन कराया और पूरे दो वर्ष के शुल्क के रूप में 60 हजार रुपये जमा किए। लेकिन, कुछ समय बाद उसने अनुभव किया कि वहाँ पढ़ाई मानक स्तर का नहीं है और उसने वर्ष के अंत में पाठ्यक्रम छोड़ देने का निर्णय लिया। जब उसने संस्थान से एक वर्ष की बाकी शुल्क लौटाने का अनुरोध किया तो उसने इनकार कर दिया। अत:, उसने जिला उपभोक्ता अदालत में मुकदमा दायर किया जिसने इस कोचिंग संस्थान को 30 हजार रुपये लौटाने का आदेश दिया।
8. अभी हाल में भारत सरकार ने सूचना के अधिकार को बहुत व्यापक बना दिया है। सोदाहरण स्पष्ट करें।
उत्तर - एक पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का बहुत बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है। एक उपभोक्ता को प्रायः इनके मूल्य, गुणवत्ता आदि की जानकारी नहीं रहती है। इसके फलस्वरूप, वे कई बार वस्तुओं का गलत चुनाव कर लेते हैं और उन्हें आर्थिक क्षति होती है। जब आप बाजार में को सौंदर्य प्रसाधन खरीदते हैं तो उसके पैकेट पर कई प्रकार की जानकारी रहती है। इस प्रकार की जानकारियाँ उस वस्तु के मूल्य, मुण, निर्माण तिथि, खराब होने की अंतिम तिथि आदि के संबंध में होती हैं। इसी प्रकार, जब आप कोई दवा खरीदते हैं तो उसके प्रयोग संबंधी निर्देश तथा प्रभावों एवं सावधानियों आदि की जानकारी भी रहती है। सरकारी नियमों के अनुसार, उत्पादकों के लिए इस प्रकार की जानकारी देना अनिवार्य होता है। सरकार द्वारा इस प्रकार के नियम इसलिए बनाए गए हैं, क्योंकि उपभोक्ताओं को वस्तुओं और सेवाओं के संबंध में सूचना अथवा जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है। 
सूचना के अधिकार के महत्व को देखते हुए नागरिकों के हित में कुछ समय पूर्व सरकार ने इस अधिकार को बहुत व्यापक बना दिया है। अक्टूबर 2005 में भारत सरकार ने सूचना के अधिकार (Right to Information, RTI) के नाम से एक अधिनियम पारित किया है। इस अधिनियम के अंतर्गत किसी व्यक्ति को जनहित में सरकारी विभागों एवं सार्वजनिक संस्थाओं के क्रियाकलापों से संबंधित सूचनाएँ प्राप्त करने का अधिकार है। इसके पूर्व सरकारी विभाग और उनके कमचारी आप नागरिकों की पहुँच से बाहर थे। निम्नांकित उदाहरण से यह स्पष्ट है कि इस अधिनियम के दूरगामी परिणाम हैं।
राँची के एक कार्यकर्ता सुनील महतो को इस क्षेत्र में बनी कुछ सड़कों के निर्माण में गड़बड़ी का अंदेशा हुआ। अतः, उसने आर.टी.आई. अधिनियम के अंतर्गत राज्य के जिला योजना कार्यालय में 2003-07 की अवधि में निर्मित सड़कों के निर्माण के संबंध में जानकारी प्राप्त करने के लिए आवेदन दिया। इसके पश्चात जाँच करने पर पता चला कि इस क्षेत्र की सड़कों के निर्माण में भारी घपला हुआ था तथा कुछ सड़कें केवल कागज पर बनी थीं। अंततः, सड़क निर्माण विभाग को उन सड़कों को दोबारा बनाना पड़ा जिनके जीर्णोद्धार के लिए मंजूरी दी गई थी। इसके साथ ही, विभाग को दोषी अभियंताओं के विरुद्ध कार्रवाई भी करनी पड़ी।

Post a Comment

0 Comments