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Bihar Board Class IX Political Science | Class 9th Bharati Bhawan Politics Book | Long Type Question Answer | Chapter 7 संघीय कार्यपालिका | बिहार बोर्ड कक्षा 9वीं राजनीति शास्त्र दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Bihar Board Class IX Political Science | Class 9th Bharati Bhawan Politics Book | Long Type Question Answer | Chapter 7  संघीय कार्यपालिका | बिहार बोर्ड कक्षा 9वीं राजनीति शास्त्र दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
Bharati Bhawan
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. भारत के राष्ट्रपति के अधिकार एवं कार्यों का वर्णन करें। 
उत्तर- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 53 में यह कहा गया है कि राष्ट्र की समस्त कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी। अपने इन अधिकारों का प्रयोग वह स्वयं अथवा अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा। उसके कार्य एवं अधिकार निम्न हैं -
(i) विधायिका संबंधी अधिकार- राष्ट्रपति के विधायिका संबंधी अधिकार भी काफी व्यापक एवं महत्त्वपूर्ण हैं। वह संसद को बैठक बुलाने उसे स्थगित करने तथा लोकसभा को भंग करने का अधिकार भी रखता है। वह राज्यसभा के 12 सदस्यों को मनोनीत करता है। उसके हस्ताक्षर के बाद ही कोई भी विधेयक कानून का रूप ले सकता है। धन विधेयक तो राष्ट्रपति की स्वीकृति के बिना लोकसभा में पेश ही नहीं किया जा सकता। वह संसद में सेदश भी भेज सकता है। संसद की बैठक नहीं चलने की स्थिति में वह अध्यादेश भी जारी कर सकता है।
(ii) कार्यपालिका संबंधी अधिकार- राष्ट्र को संपूर्ण कार्यपालिका शक्ति के प्रधान होने के नाते वह प्रधानमंत्री को नियुक्ति करता है, साथ ही उसकी सलाह से अन्य मंत्रियों की नियुक्ति भी करता है। वह राज्यपाल, सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति तथा विभिन्न आयोगों के अध्यक्षों की नियुक्ति भी करता है। राजदूतों की नियुक्ति तथा विदेशी राजदूतों के परिचय-पत्र को स्वीकार करने का उसे अधिकार दिया गया है। सेना का सर्वोच्च प्रधान होने के नाते युद्ध की घोषणा करने, उसे बंद करने तथा संधि करने का अधिकार भी उसे प्रदान किया गया है। 
(iii) वित्त संबंधी अधिकार- राष्ट्रपति की स्वीकृति से ही संसद में बजट पेश किया जाता है। धन-विधेयक को स्वीकृति प्रदान करना, वित्त आयोग की नियुक्ति करना भी राष्ट्रपति के महत्त्वपूर्ण कार्य हैं।
(iv) न्यायपालिका संबंधी अधिकार - वह उच्च न्यायालयों एवं सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की बहाली करता है। वह किसी अपराधी की सजा को कम कर सकता है या साफ कर सकता है। वह किसी अपराधी की फाँसी की सजा को भी साफ कर सकता है या चाहे तो उसे आजीवन कारावास की सजा में बदल सकता है।
(v) कूटनीतिक एवं संकटकालीन अधिकार- वह राजदूतों एवं अन्य प्रतिनिधियों की नियुक्ति करता है । वह अंतरराष्ट्रीय मामलों में भारत का प्रतिनिधित्व करने के साथ-साथ दूसरे देशों के साथ संधि या समझौते भी कर सकता है। वह तीन परिस्थितियों में संकटकाल की उद्घोषणा कर सकता है – (i) युद्ध या बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में, (ii) सांविधानिक तंत्र की विफलता की आशंका होने पर और (iii) आर्थिक संकट की स्थिति में । स्पष्ट है कि राष्ट्रपति के कार्य एवं अधिकार काफी व्यापक हैं।
2. भारतीय राष्ट्रपति के संकटकालीन अधिकारों का संक्षेप में वर्णन करें। या, भारतीय राष्ट्रपति के आपातकालीन अधिकारों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। 
उत्तर- राष्ट्रीय संकटकाल में उत्पन्न स्थितियों का सामना करने के लिए भारतीय राष्ट्रपति को जर्मन राष्ट्रपति की भाँति व्यापक अधिकार प्रदान किए गए हैं। राष्ट्रीय आपातकाल अथवा संकटकाल तीन प्रकार के हो सकते हैं—(i) युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में, (ii) राज्य में सांविधानिक तंत्र के विफल होने की स्थिति में एवं (iii) आर्थिक संकट की स्थिति में
(i) युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में- यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाए कि देश अथवा देश के किसी भाग में युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण देश की आंतरिक स्थिति संकट में है तो वह अनुच्छेद 352 के तहत संकटकाल की उद्घोषणा कर संपूर्ण देश अथवा देश के किसी क्षेत्र विशेष का शासन अपने हाथ में ले सकता है। भारतीय संविधान के 44वें संशोधन अधिनियम के अनुसार, मंत्रिमंडल के निर्णय के बाद प्रधानमंत्री की लिखित सिफारिश के पश्चात ही राष्ट्रपति देश में आपातकाल की उद्घोषणा कर सकता है।
(ii) राज्य में सांविधानिक तंत्र के विफल होने की स्थिति में- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के अनुसार, अगर राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा सूचित किया जाए अथवा जब उसे यह विश्वास हो जाए कि किसी राज्य में संविधान के अनुसार शासन का संचालन नहीं हो रहा है तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है और उस राज्य के शासन की बागडोर अपने हाथ में ले सकता है।
(iii) आर्थिक संकट की स्थिति में- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 360 के तहत यह व्यवस्था की गई है कि यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाए कि देश में अथवा देश के किसी राज्य-क्षेत्र में आर्थिक स्थिरता का गंभीर संकट पैदा हो गया है तो ऐसी स्थिति में वह संकटकाल की घोषणा कर सकता है और स्थितियों का सामना करने के लिए उचित कदम उठा सकता है। अतः, स्पष्ट है कि भारतीय राष्ट्रपति के संकटकालीन अधिकार काफी व्यापक एवं महत्त्वपूर्ण हैं |
3. संघीय मंत्रिपरिषद के गठन और कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर- संघीय मंत्रिपरिषद को गठित करने का अधिकार राष्ट्रपति को है। राष्ट्रपति पहले प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है, फिर उसी की सलाह से अन्य मंत्रियों को नियुक्त करता है। मंत्रिपरिषद के निम्नलिखित कार्य हैं—
1. राष्ट्र की नीति बनना- मंत्रिपरिषद ही राष्ट्र की नीति बनाती है। आन्तरिक और वैदेशिक दोनों तरह की नीतियाँ मंत्रिपरिषद में ही बनती हैं। .
2. शासक चलाना- देश के शासन का भार मंत्रिपरिषद पर ही है। शासन ठीक ढंग से चलाने के लिए मंत्रियों के काम बाँट दिए जाते हैं।
3. विधेयक तैयार करना- कानून बनाने के लिए जो प्रस्ताव संसद में रखा जाता है, उसे विधेयक कहते हैं। विधेयक तैयार करना मंत्रिपरिषद का ही काम है। 
4. बजट बनाना- बजट बनाना भी मंत्रिपरिषद का कार्य है। 
5. नियुक्ति संबंधी अधिकार- महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह से ही करता है।
6. योजना बनाना- मंत्रिपरिषद ही देश के विकास के लिए योजना तैयार करती हैं। 
7. संकटकाल की घोषणा- राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह से देश में संकटकाल की घोषणा करता है।
4. प्रधानमंत्री की नियुक्ति कैसे होती है ? उनके अधिकार एवं कार्यों का वर्णन करें। 
उत्तर - प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है । वह लोकसभा के बहुमत दल के नेता को प्रधानमंत्री बनाता है। किसी दल को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने पर वह वैसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री नियुक्त करता है जो लोकसभा में अपना विश्वास मत प्राप्त कर सके। प्रधानमंत्री को व्यापक अधिकार प्राप्त है। उसके अधिकार और कार्य निम्नांकित हैं 
(i) मंत्रिपरिषद का गठन– राष्ट्रपति मंत्रियों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की सलाह से ही करता है। 
(ii) मंत्रियों के बीच कामों का बँटवारा– प्रधानमंत्री ही मंत्रियों के बीच कामों का बँटवारा करता है।
(iii) मंत्रिपरिषद को समाप्त करना- मंत्रिपरिषद् का जीवन प्रधानमंत्री पर ही निर्भर है। वह जब चाहे किसी मंत्री को हटा सकता है। यदि मंत्री हटना नहीं चाहे तो प्रधानमंत्री खुद त्याग-पत्र. देकर पूरी मंत्रिपरिषद को समाप्त कर सकता है। मंत्रिपरिषद समाप्त कर वह पुनः मंत्रिपरिषद बना सकता है।
(iv) एकता कायम रखना- प्रधानमंत्री मंत्रियों के बीच एकता कायम रखता है। 
(v) मंत्रिपरिषद को सभापतित्व- प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद की बैठकों का सभापति होता हैं। 
(vi) राष्ट्रपति और मंत्रिपरिषद के बीच की कड़ी– प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद के निर्णयों की सूचना देता है।
(vii) की ओर से लोकसभा का नेता– प्रधानमंत्री लोकसभा का नेता होता है । वह लोकसभा में सरकार में भाषण देता है।

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