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Bihar Board Class IX Political Science | Bharati Bhawan Class 9th | Chapter 6 All Question Answer | संघीय विधायिका : संसद | बिहार बोर्ड कक्षा 9 राजनीतिकशास्त्र | भारती भवन क्लास 9वीं | अध्याय 6 सभी प्रश्नों के उत्तर

Bihar Board Class IX Political Science  Bharati Bhawan Class 9th  Chapter 6 All Question Answer  संघीय विधायिका  संसद  बिहार बोर्ड कक्षा 9 राजनीतिकशास्त्र  भारती भवन क्लास 9वीं  अध्याय 6 सभी प्रश्नों के उत्तर
Bharati Bhawan
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. लोकसभा की सदस्यता के लिए योग्यता बताएँ।
उत्तर- लोकसभा का सदस्य वही हो सकता है जो (i) भारत का नागरिक हो, (ii) कम से कम 25 वर्ष की उम्र का हो और (iii) किसी लाभ के पद पर नहीं हो।
2. राज्यसभा की सदस्यता के लिए योग्यता बताएँ ।
उत्तर- राज्यसभा की सदस्य वही हो सकता है जो (i) भारत का नागरिक हो, (ii) कम-से-कम 30 वर्ष की उम्र का हो और (iii) किसी लाभ के पद पर नहीं हो ! 
3. धन विधेयक किसे कहते हैं ?
उत्तर- धन-विधेयक वह विधेयक है जिसका संबंध कर, ऋण, सरकारी हिसाब में धन जमा करने या उनमें खर्च से होता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. लोकसभा के अध्यक्ष का कार्य बताएँ।
उत्तर- लोकसभा के कार्यों के संचालन हेतु एक अध्यक्ष का चुनाव किया जाता है। लोकसभा के सदस्य अपने सदस्यों के बीच से ही इसका निर्वाचन करते हैं। इनका कार्यकाल सामान्यतः 5 वर्षों के लिए होता है। यह अपने पद पर तब तक बना रहता है जब तक कि वह निर्वाचित लोकसभा अपने अध्यक्ष का चुनाव न कर ले। लोकसभा का अध्यक्ष ही लोकसभा की बैठकों का सभापतित्व करता है तथा सदन में अनुशासन कायम रखता है। मंत-समता की स्थिति में उसे निर्णायक मत देने का भी अधिकार है। उसकी आज्ञा से ही कोई सदस्य लोकसभा में किसी विषय पर बोल सकता है। अगर लोकसभा का कोई सदस्य असंसदीय या अमर्यादित व्यवहार करता है तो वह उसे सदन से बाहर करने का आदेश भी दे सकता है। लोकसभा का अध्यक्ष ही यह निर्णय लेता है कि कौन-सा विधेयक धन विधेयक है और कौन साधारण विधेयक है। लोकसभा का एक उपाध्यक्ष भी होता है जो अध्यक्ष की अनुपस्थिति में सदन की कार्यवाही का दायित्व संभालता है।
2. संसद मंत्रिमंडल को किन तरीकों से नियंत्रित करती है ? 
उत्तर– प्रत्येक लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था में जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों की सभा ही सर्वोच्च राजनीतिक अधिकारों का प्रयोग करती है। भारत में केन्द्रीय स्तर पर निर्वाचित सदस्यों की प्रतिनिधि सभा को संसद कहा जाता है। यही संसद जनता की ओर से विभिन्न प्रकार के राजनीतिक अधिकारों का प्रयोग करती है। प्रायः प्रत्येक लोकतांत्रिक देश में संसद ही कानूनों का निर्माण करती है उसमें समयानुसार आवश्यक संशोधन करती है अथवा पुराने कानूनों को समाप्त कर नए कानून का निर्माण भी करती है। संसद ही सरकार चलानेवालों को नियंत्रित करने के लिए कुछ अधिकारों का प्रयोग करती है। संसद के पूर्ण समर्थन की स्थिति में ही सरकार चलानेवाले कोई फैसले कर सकते हैं। सरकार के एक-एक पैसे पर संसद का नियंत्रण होता है। यही कारण है कि संसद की मंजूरी के बिना सरकारी धन को खर्च नहीं किया जा सकता। प्रत्येक लोकतांत्रिक देश में सार्वजनिक मुद्दों एवं देश की राष्ट्रीय नीति पर खुलकर संसद में बहस एवं विचार-विमर्श होता है। संसद को यह अधिकार है कि वह किसी भी मामले से संबंधित विषय पर सूचना माँग सकती है।
3. साधारण विधेयक और धन विधेयक में क्या अन्तर है ? स्पष्ट करें।
उत्तर- जब किसी प्रस्ताव को कानून बनाने हेतु संसद में प्रस्तुत किया जाता है तो वैसे अवस्था में उसे विधेयक कहा जाता है। विधेयक दो प्रकार के होते हैं—(i) साधारण विधेयक और (ii) धन विधेयक, धन विधेयक को छोड़कर शेष सभी प्रकार के विधेयक साधारण विधेयक के अंतर्गत आते हैं। दोनों के अंतरों को स्पष्ट करने से पहले धन विधेयक को जानना आवश्यक है। धन विधेयक उस विधेयक को कहा जाता है जिसका संबंधी आमदनी, खर्च, निधियों तथा उसकी जाँच, हिसाब-किताब, लेखा-जोखा का ब्यौरा से होता है। धन विधेयक के अंतर्गत निम्नलिखित बातें आती हैं-
(i) राजस्व कर लगाने, कर घटाने-बढ़ाने अथवा उसमें संशोधन करने से संबंधित विषय 
(ii) भारत की संचित निधि अथवा आकस्मिक निधि को सुरक्षित रखने अथवा उनमें से धन निकालने से संबंधित विधेयक 
(iii) भारत की संचित निधि पर कोई खर्च का भार लादने अथवा उनमें से किसी खर्च के लिए धन की स्वीकृति से संबंधित विधेयक
(iv) कर्ज अथवा भारत सरकार पर आर्थिक बोझ डालने से संबंधित विधेयक 
(v) सरकारी धन जमा करने अथवा उनमें से खर्च करने या उसकी जाँच करने से संबंधित विधेयक 
दोनों प्रकार के विधेयकों को पारित करने की प्रक्रिया अलग-अलग है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. लोकसभा के गठन और कार्यों का वर्णन करें। 
उत्तर- लोकसभा भारतीय जनता की प्रतिनिधि सभा है। इसके सदस्यों का निर्वाचन प्रत्येक 5 वर्ष पर वयस्क मताधिकार के आधार पर प्रत्यक्ष ढंग से होता है। भारतीय संविधान के अनुसार लोकसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 552 तक हो सकती है, जिनमें 530 विभिन्न राज्यों से एवं 20 सदस्य केन्द्रशासित प्रदेशों से चुनकर आते हैं। शेष 2 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं, बशर्ते कि लोकसभा में आंग्ल- भारतीय का प्रतिनिधित्व नहीं हुआ हो । प्रत्येक संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से 1 सदस्य जीतकर लोकसभा में आता है। समाज के पिछड़े एवं कमजोर वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व देने हेतु अनुसूचित जातियों के लिए 84 तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए 47 स्थान सुरक्षित कर दिए हैं।
लोकसभा का सदस्य वही व्यक्ति हो सकता है जिसकी नागरिकता भारतीय हो, जिसकी न्यूनतम आयु 25 वर्ष हो तथा जो किसी लाभ के पद पर न हो। लोकसभा के कार्यों को सुचारू ढंग से चलाने एवं वहाँ शान्ति व्यवस्था बनाए रखने के लिए लोकसभा के सदस्यों में से ही एक अध्यक्ष तथा एक उपाध्यक्ष का चुनाव किया जाता है। सामान्य अवस्था में वह किसी प्रश्न पर अपना मत नहीं देता है, परन्तु मत-समता की स्थिति में वह निर्णायक मत दे सकता हैं। लोकसभा में शोरगुल, हंगामा तथा शान्ति भंग होने की स्थिति में वह अनुशासन भंग करनेवाले सदस्यों को सदन से बाहर भी कर सकता है।
कार्य एवं अधिकार- लोकसभा के निम्नलिखित कार्य एवं अधिकार हैं
(i) कानूनों का निर्माण करना— लोकसभा का प्रधान कार्य कानूनों का निर्माण करना हैं वह संघ सूची, समवर्ती सूची तथा आवश्यकता पड़ने पर राज्य सूची के विषयों पर भी कानून बना सकती है।
(ii) कार्यपालिका पर नियंत्रण- लोकसभा कार्यपालिका पर विभिन्न तरीकों से नियंत्रण रखती है, जैसे—प्रश्न पूछकर, काम रोको प्रस्ताव लाकर, कटौती का प्रस्ताव पास कर, मंत्रिपरिषद् के सदस्य लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होते हैं।
(iii) बजट पास करना एवं संविधान में संशोधन करना- देश का बजट लोकसभा में पेश करना अनिवार्य है। इसकी स्वीकृति मिलने पर ही सरकारी धन का व्यय हो सकता है। संविधान में संशोधन के लिए भी लोकसभा की स्वीकृति अनिवार्य है।
2. राज्यसभा के गठन और कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर- राज्यसभा को संसद का उच्च सदन भी कहा जाता है। यह सदन विभिन्न राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है।
गठन – राज्यसभा एक स्थायी सदन है। इसके सदस्यों का चुनाव 6 वर्ष के लिए होता है। प्रत्येक दो वर्ष पर इसके एक तिहाई सदस्य अवकाश ग्रहण करते हैं। स्थायी सदन होने के कारण इसे राष्ट्रपति कभी विघटित नहीं कर सकते। राज्यसभा का सदस्य होने के लिए इन शर्तों का पूरा होना आवश्यक है—वह भारत का नागरिक हो, उसकी न्यूनतम उम्र 30 वर्ष हो तथा जो किसी लाभ के पद पर न हो। भारत के उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं। संविधान द्वारा राज्यसभा के लिए एक उपसभापति की भी व्यवस्था की गई। सभापति राज्यसभा की बैठकों का संचालन करते हैं। सदन में अनुशासन बनाए रखना भी इनका प्रधान दायित्व बनता है। इन्हें निर्णायक मत देने का भी अधिकार प्राप्त है।
कार्य एवं अधिकार- लोकसभा की अपेक्षा इसके कार्यक एवं अधिकार काफी हद तक सीमित हैं। फिर भी, इसके निम्नांकित कार्य एवं अधिकार हैं-
(i) कानूनों का निर्माण करना- सभी विधेयक कानून का रूप धारण करने के क्रम में राज्यसभा में भी आते हैं। दोनों सदनों की स्वीकृति के बाद ही विधेयक पास समझा जाता है। किसी विषय पर दोनों सदनों में मतभेद की स्थिति में एक संयुक्त बैठक भी बुलाई जाती है। परन्तु लोकसभा में अधिक सदस्य होने के कारण जीत प्राय: लोकसभा की ही होती है।
(ii) कार्यपालिका पर नियंत्रण - राज्यसभा के सदस्य मंत्रियों से विभिन्न मामलों में प्रश्न पूछ सकते हैं, कटौती का प्रस्ताव ला सकते हैं या काम रोको प्रस्ताव भी पेश कर सकते हैं। परन्तु, यह सदन मंत्रिमंडल के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव नहीं ला सकती।
(iii) संविधान में संशोधन करना- राज्यसभा और लोकसभा के सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित होने पर ही संविधान में संशोधन हो सकता है, अन्यथा नहीं। यह सदन लोकसभा द्वारा पारित संशोधन विधेयकों को अस्वीकृत भी कर सकती है।
3. संसद में विधि-निर्माण प्रक्रिया का वर्णन करें।
उत्तर- संसद का प्रधान कार्य एवं दायित्व कानूनों का निर्माण करना है। किसी विषय पर कोई कानून बनाने के लिए एक प्रस्ताव तैयार किया जाता है, जिसे विधेयक कहा जाता है। विधेयक दो प्रकार के होते हैं- (i) साधारण विधेयक और (ii) वित्त विधेयक वित्त विधेयक को धन विधेयक भी कहा जाता है, विधि-निर्माण की प्रक्रिया में साधारण विधेयक को कानून बनने के क्रम में उसे पाँच स्तरों से गुजरना पड़ता है, जो इस प्रकार हैं
(i) प्रथम वाचन- प्रथम वाचन में सामान्य विधेयक को संसद के किसी भी सदन में उपस्थित किया जा सकता है। सर्वप्रथम, विधेयक को प्रस्तुत करनेवाला सदस्य उस विधेयक का नाम या शीर्षक की जानकारी सदन को देता है। विधेयक को सदन में प्रस्तुत करनेवाला व्यक्ति उस विधेयक के प्रमुख तथ्यों के संबंध में सदन में वक्तव्य अथवा भाषण देता है, उसे विधेयक का प्रथम वाचन कहते हैं।
(ii) द्वितीय वाचन-द्वितीय वाचन में एक निश्चित तिथि पर प्रस्तुत किए गए विधेयक पर यह विचार किया जाता है कि उसे प्रवर समिति के पास विचार हेतु भेजा जाए अथवा उसे जनमत के लिए प्रचारित-प्रसारित किया जाए। यदि सदन चाहे तो उस विधेयक पर तुरंत विचार हो सकता है। 
(iii) समिति स्तर—किसी विधेयक पर विचार के लिए उसे प्रवर समिति के पास भेजा जाता है। इसे ही समिति स्तर कहा जाता है। यह समिति उस विधेयक के सभी पहलुओं पर गहन विचार-विमर्श करती है। प्रवर समिति आवश्यक संशोधन हेतु सुझाव भी दे सकती है। 
(iv) प्रतिवेदन स्तर – प्रतिवेदन स्तर पर प्रवर समिति अपना प्रतिवेदन लोकसभा अथवा राज्यसभा के पास भेज देती है। इसी प्रक्रिया को प्रतिवेदन स्तर कहा जाता है। विधेयक के सभी पक्ष अथवा पहलुओं पर सदन में वाद-विवाद एवं विचार-विमर्श किया जाता है। पक्ष एवं विपक्ष द्वारा उस विधेयक के संबंध में अनेक संशोधन पेश किए जाते हैं।
(v) तृतीय वाचन- तृतीय वाचन में विधेयक पर मतदान होता है। मतदान के पश्चात बहुमत मिलने पर अमुक विधेयक पास समझा जाता है। तृतीय वाचन के समय विधेयक में कोई परिवर्तन या फेर-बदल नहीं किया जा सकता, परंतु भाषा-संबंधी अशुद्धियों को ठीक किया जा सकता है। (vi) विधेयक का दूसरे सदन में पेश किया जाना— कोई भी सामान्य विधेयक जब एक सदन से पास हो जाता है तो इसके पश्चात उसे दूसरे सदन में पारित होने के लिए भेज दिया जाता है। वहाँ भी उस विधेयक को पहले सदन की भाँति उन्हीं पाँचों स्तरों से गुजरना आवश्यक होता है। किसी विधेयक के संबंध में मतभेद की स्थिति में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाई जाती है और बहुमत के आधार पर उस विधेयक को पास किया जाता है।
(vii) राष्ट्रपति की स्वीकृति- दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक को अंतिम स्वीकृति के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है और राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने पर या राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद विधेयक कानून का रूप धारण कर लेता है। धन विधेयक लोकसभा से पारित होने के बाद ही राज्यसभा में भेजा जाता है। अगर राज्यसभा उस धन विधेयक को 14 दिनों के अंदर नहीं लौटाती है तो वह धन विधेयक स्वतः उसी रूप में पास समझा जाता है।
स्पष्ट है कि विधि निर्माण की प्रक्रिया में किसी भी विधेयक को अनेक चरणों से गुजरना पड़ता है।

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