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Bihar Board Class IX Political Science | Bharati Bhawan Class 9th Politics Chapter 5 | All Question Answer in Hindi | अध्याय 5 (संघ सरकार) | बिहार बोर्ड कक्षा 9 राजनीतिक शास्त्र | भारती भवन कक्षा 9वीं राजनीति | सभी प्रश्नों के उत्तर हिंदी में

Bihar Board Class IX Political Science | Bharati Bhawan Class 9th Politics Chapter 5 | All Question Answer in Hindi | अध्याय 5 (संघ सरकार) | बिहार बोर्ड कक्षा 9 राजनीतिक शास्त्र | भारती भवन कक्षा 9वीं राजनीति | सभी प्रश्नों के उत्तर हिंदी में
Bharati Bhawan
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न 
1. संघीय सरकार के अधीन कार्य करनेवाली शासकीय संस्थाओं (विभागों) के नाम बताएँ। 
उत्तर - संघीय सरकार के अधीन कार्य करनेवाली शासकीय संस्थाएँ निम्न हैं— 
(i) विधायिका, (ii) कार्यपालिका, (iii) न्यायपालिका ।
2. 10 अक्टूबर 2006 से लागू बाल श्रम रोको कानून के अनुसार बच्चों से कौन-कौन से काम नहीं लिए जा सकते?
उत्तर - 10 अक्टूबर 2006 से लागू बाल श्रम रोको कानून के अनुसार बच्चों को घरों में नौकर रखने अथवा ढाबों, जलपान - गृहों, होटलों, कैंटीनों, चाय की दुकानों तथा मनोरंजन केन्द्रों में काम पर रखने पर पाबंदी लग गई है।
3. बाल श्रमिक संबंधी सरकारी आदेश के समर्थन में निकली रैलियों में कौन-कौन से नारे दिए गए ?
उत्तर- बाल श्रमिक संबंधी सरकारी आदेश के समर्थन में निकली रैलियों में निम्न नारे दिए गए
(i) काम नहीं किताब दो, (ii) बाल मजदूरी अपराध है', (iii) 'बाल मजदूरी बंद करो', (iv) 'कलम उठा लो हाथ में, हम रहेंगे तेरे साथ में इत्यादि । 
4. बाल श्रमिक से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर - वैसे श्रमिक जिनका उम्र 14 वर्ष के अन्दर हो उसे बाल श्रमिक कहते हैं। 
5. बाल श्रमिक की समस्याओं के हल के लिए एक कारगर सुझाव दें। 
उत्तर- परिवार को आर्थिक मदद तथा उनके बच्चों का भरण-पोषण की व्यवस्था किया जाए।
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. सरकारी निर्णय लेने की प्रक्रिया का संक्षिप्त विवरण दें। 
उत्तर- कोई भी सरकारी निर्णय लेने की प्रक्रिया में अनेक व्यक्तियों, विभागों एवं संस्थाओं का महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है, सर्वप्रथम केन्द्रीय मंत्रिमंडल यह तय करता है कि जनहित में कौन-कौन-से कानून निर्माण किए जाएँ। इसके लिए सबसे पहले एक प्रस्ताव तैयार किया जाता है। इस तैयार प्रस्ताव को विधेयक कहा जाता है। विधेयक को स्वीकृति हेतु संसद में प्रस्तुत किया जाता है। एक निश्चित प्रक्रिया के अनुसार, संसद में उस विधेयक पर काफी वाद-विवाद के बाद ही कोई निर्णय लिया जाता है। जब यह विधेयक संसद में पारित हो जाता है तब अंतिम स्वीकृति के लिए इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है और राष्ट्रपति की स्वीकृति यानी हस्ताक्षर के बाद वह कानून बन जाता है। फिर इस कानून को लागू करने के लिए कार्यपालिका एवं विभागीय स्पष्ट है कि कोई भी सरकारी निर्णय लेने " सचिवों को सक्रिय भूमिका अदा करनी पड़ती हैं, अत स्पस्ट है की कोई भी सरकारी निर्णय लेने की प्रक्रिया में अनेक व्यक्तियों एवं संस्थाओं के महत्त्वपूर्ण योगदान होते हैं।
2. शासकीय संस्थाओं से आप क्या समझते हैं ? शासकीय संस्थाओं के अंतर्गत सरकार के कौन-कौन से अंग आते हैं ?
उत्तर- शासकीय संस्थाओं को लोकतंत्र का प्राण कहा जाता है, शासकीय संस्थाओं के माध्यम से ही हम किसी भी देश की शासन-व्यवस्था को सुचारू ढंग से संचालित कर सकते हैं। केवल कोई सरकारी निर्णय ले लेने से ही अथवा सरकारी आदेश जारी कर देने से ही काम नहीं चल है, बल्कि विभिन्न शासकीय संस्थाओं के परस्पर सहयोग से ही उन नियमों को ता कार्यान्वित किया जा सकता है। फैसलों को लागू करते समय भी अनेक प्रकार के वाद-विवाद उठ खड़े होते हैं या संवैधानिक अड़चनें भी आ जाती हैं, जिन्हें दूर करने के लिए भी एक ऐसी संस्था की आवश्यकता पड़ती है, जिसे न्यायपालिका कहते हैं। न्यायपालिका ही यह तय करती है कि किस कार्य के लिए कौन-सा व्यक्ति अथवा संस्था उत्तरदायी है। नीतिगत फैसले प्रधानमंत्री एवं कैबिनेट मिलकर करते हैं, उन फैसलों को कार्यान्वित करने के लिए कार्यपालिका के साथ-साथ नौकरशाहों का एक समूह भी जवाबदेह होता है। फिर विभिन्न मसलों पर विवाद की स्थिति में न्यायालय अंतिम निर्णय देता है। इन संस्थाओं के कामकाज एक-दूसरे से अभिन्न रूप से जुड़े हुए होते हैं। सभी संस्थाओं की एक निश्चित जिम्मेदारी एवं निश्चित सीमारेखा होती हैं। इन्हीं दायरों में रहकर ही इन संस्थाओं को अनेक लोक कल्याणकारी कार्य करने पड़ते हैं। विभिन्न संस्थाओं के कारण एक अच्छा फैसला जल्दी ले पाना भी मुश्किल है। परंतु ये संस्थाएँ जल्दीबाजी में पूरे फैसले या गलत फैसले भी तो नहीं ले सकतीं। 1
शासकीय संस्थाओं के अंतर्गत सरकार के विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका ये तीन अंग हैं।
3. बाल श्रमिक की मुख्य समस्याएँ क्या हैं?
उत्तर- बाल श्रमिकों की समस्या भारत में गंभीर समस्या बन चुकी है। मजदूरी करने वाले बच्चे प्रायः गरीब परिवारों के हैं जहाँ दो वक्त की रोटी का करना कठिन होता है। वे न तो बच्चों का भरण-पोषण कर पाते हैं और न उन्हें स्कूल भेजने में समर्थ है। यही कारण है कि बच्चों को काम करना पड़ता है।
बच्चों से मजदूर का काम लेना कम खर्चीला है। बच्चे अपने मालिक के विरुद्ध आवाज नहीं उठा सकते हैं और उन्हें पारिश्रमिक भी कम देना होता है। अतः, मालिक बच्चों से ही काम लेना अधिक पसंद करते हैं। उन बच्चों की संख्या अधिक है, जो घरेलू नौकरों के रूप में तथा ढाबो, कैंटीनों, रेस्तराओं, होटलों, मनोरंजन केंद्रों आदि में काम करते हैं। अधिक बदकिस्मत वे बच्चे हैं, जो जोखिमवाले कामों में लगे हैं। बच्चों का शोषण निरंतर जारी है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. सरकारी निर्णय लेने की शक्ति किनके किनके पास हैं ? 
उत्तर- कोई भी सरकारी निर्णय लेने की प्रक्रिया में अनेक व्यक्तियों, विभागों एवं संस्थाओं का महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है, सर्वप्रथम केन्द्रीय मंत्रिमंडल यह तय करता है कि जनहित में कौन-कौन-से कानून निर्माण किए जाएँ। इसके लिए सबसे पहले एक प्रस्ताव तैयार किया जाता है। इस तैयार प्रस्ताव को विधेयक कहा जाता है। विधेयक को स्वीकृति हेतु संसद में प्रस्तुत किया जाता है। एक निश्चित प्रक्रिया के अनुसार, संसद में उस विधेयक पर काफी वाद-विवाद के बाद ही कोई निर्णय लिया जाता है। जब यह विधेयक संसद में पारित हो जाता है तब अंतिम स्वीकृति के लिए इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है और राष्ट्रपति की स्वीकृति यानी हस्ताक्षर के बाद वह कानून बन जाता है। फिर इस कानून को लागू करने के लिए कार्यपालिका एवं विभागीय स्पष्ट है कि कोई भी सरकारी निर्णय लेने " सचिवों को सक्रिय भूमिका अदा करनी पड़ती हैं, अत स्पस्ट है की कोई भी सरकारी निर्णय लेने की प्रक्रिया में अनेक व्यक्तियों एवं संस्थाओं के महत्त्वपूर्ण योगदान होते हैं।
2. बाल श्रम पर रोक संबंधी सरकारी आदेश के पक्ष एवं विपक्ष में अपना तर्क दें।  
उत्तर- लोकतांत्रिक सरकारों के काम शासकीय संस्थाओं द्वारा ही संपन्न होते हैं। यह बात बहुत हद तक स्पष्ट हो चुकी है कि कोई भी सरकारी आदेश जारी करने मात्र से ही काम समाप्त नहीं हो जाता है। विभिन्न शासकीय संस्थाओं को उन्हें कार्यरूप में परिणत करने के लिए भी सक्रिय होना पड़ता है। एक ओर बाल मजदूरी के संबंध में जारी सरकारी आदेश को जनसमर्थन मिल रहा है तो दूसरी ओर बाल मजदूरों और अभिभावकों की सरकार से शिकायत भी है। सरकार के आदेश के पक्ष में रैलियाँ निकाली जा रही है और 'काम नहीं किताब दो', 'बाल मजदूरी अपराध है', 'बाल मजदूरी बंद करो', 'कलम उठा लो हाथ में, हम रहेंगे तेरे साथ में' जैसे सुहावने नारे लगाए जा रहे हैं। परंतु, साथ ही बाल मजदूरी वाले परिवारों पर संकट के बादल घिर रहे हैं। मजदूरी करने वाले बच्चे प्रायः गरीब परिवारों के हैं, जहाँ दो समय की रोटी का जुगाड़ करना कठिन होता है। वे न तो बच्चों का भरण-पोषण कर पाते हैं और न उन्हें स्कूल भेजने में समर्थ हैं ऐसी परिस्थिति में शासकीय संस्थाएँ ही समस्याओं को सुलझा सकती है। शासकीय संस्थाएँ ही श्रमिक बच्चों के पुनर्वास की व्यवस्था कर, उनके भरण-पोषण की व्यवस्था कर तथा उनके परिवार को मदद करके इस समस्या का निदान ढूँढ़ सकती हैं।
भारत की एक महत्वपूर्ण शासकीय संस्था संसद, जो नई दिल्ली में अवस्थित हैं, के निकट ही बिहार के सुपौल का गरीब राय बिगत 17- 18 वर्षों से चाय बेचने का रोजगार कर रहा है। इस चाय की दुकान में मध्य प्रदेश के छतरपुर का छोटू उर्फ विश्वनाथ नामक 13 वर्षीय बालक मजदूरी का काम कर रहा था। 10 अक्टूबर 2006 को बाल मजदूरी पर कानूनन रोक लगने के बाद भी वह बालक ग्राहकों की सेवा में जुटा हुआ है। दुकान का मालिक यूनीवार्ता से बातचीत में कहता है कि बाल मजदूरी पर रोक-संबंधी कानून की जानकारी उसे हो चुकी है, परंतु वह विश्वनाथ को काम से निकाल देगा तो विश्वनाथ और उसके परिवार के सामने भुखमरी की समस्या आ जाएगी। गरीब राय का यह भी कहना है कि जिन बच्चों के माता-पिता नहीं हैं और जिन्हें कोई देखनेवाला नहीं है उनको रोजी-रोटी कोन देगा? पहले सरकार रोजी-रोटी की व्यवस्था करें फिर देश में कानून लागू करें। बहुत से बाल मजदूरों की कहानी विश्वनाथ जैसी ही है। इस कहानी में एक सवाल है पेट की आग बुझाने के लिए बच्चे क्या करें? यह सवाल शासकीय संस्था संसद के सामने हैं, देश के शासकों के सामने है तथा न्यायपालिका के सामने है। बाल मजदूरों को इंतजार है कि उनके सवालों का जवाब कौन देगा?

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