Bihar Board Class IX Politics | Class 9th Bharati Bhawan Political Science Chapter 4 | Long Answer Questions | लोकतंत्र में निर्वाचन की राजनीति | बिहार बोर्ड कक्षा 9वीं राजनीतिशास्त्र | दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

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Bihar Board Class IX Politics  Class 9th Bharati Bhawan Political Science Chapter 4  Long Answer Questions  लोकतंत्र में निर्वाचन की राजनीति  बिहार बोर्ड कक्षा 9वीं राजनीतिशास्त्र  दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. भारत में निर्वाचन प्रक्रिया का वर्णन करें।
उत्तर- विश्व में भारत एक महान लोकतांत्रिक देश है। अतः, यहाँ प्रत्येक पाँच वर्ष पर लोकसभा एवं विधानसभाओं के चुनाव कराने की संवैधानिक व्यवस्था की गई है। स्वतंत्र एवं निष्पक्ष ढंग से निर्वाचन प्रक्रिया को संपादित करने के लिए एक निर्वाचन आयोग की व्यवस्था की गई है। इस आयोग का यह दायित्व बनता है कि वह निर्धारित कार्यकाल पर स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव कराए। चुनाव के समय कार्य करनेवाले समस्त अधिकारी पदाधिकारी केन्द्र अथवा राज्यों के कर्मचारी न होकर वे चुनाव आयोग के अधिकारी पदाधिकारी समझे जाते हैं एवं वे चुनाव आयोग के समस्त आदेशों-निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य है। चुनाव संबंधी अधिसूचना जारी होते ही निर्वाचन की प्रक्रिया विधिवत प्रारंभ हो जाती है एवं मतगणना का कार्य संपन्न होने तक प्रत्येक दल को आदर्श चुनाव आचार संहिता का पालन करना पड़ता है। 
लोकसभा की भाँति राज्य की विधानसभाओं को भी निर्धारित सीटों की संख्या के हिसाब से प्रत्येक राज्य को अनेक निर्वाचन क्षेत्रों में बाँट दिया जाता है। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक प्रतिनिधि का चयन किया जाता है। लोकसभा एवं प्रत्येक राज्य की विधानसभा के अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए भी एक निश्चित संख्या में सीटें आरक्षित कर दी गई हैं। निर्वाचन क्षेत्र के गठन के पश्चात मतदाता सूची तैयार की जाती है। देश के वैसे सभी व्यक्ति जिनकी न्यूनतम आयु 18 वर्ष हो चुकी है, उसका नाम मतदाता सूची में दर्ज होना आवश्यक है अन्यथा वह व्यक्ति चुनाव में मतदान करने से वंचित हो जाता है। प्रत्येक चुनाव से कुछ माह पूर्व मतदाता सूची को अद्यतन कर दिया जाता है। वैसे प्रत्येक व्यक्ति जिसकी न्यूनतम आयु 25 वर्ष हो, लोकसभा अथवा विधानसभा का उम्मीदवार हो सकता है। प्रत्येक राजनीतिक दल को चुनाव आयोग द्वारा चिन्ह आबंटित किया जाता है। एक निश्चित एवं निर्धारित तिथियों के अंतर्गत उम्मीदवारों का नामांकन (nomination) होता है। नामांकन की वैधता की जाँच भी एक निर्धारित तिथि के अंतर्गत की जाती है। पुनः निर्धारित तिथियों पर मतदान का कार्य संपन्न होता है। मतदान की समाप्ति के बादि एक निश्चित तिथि को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच मतगणना होती है एवं किसी चुनाव क्षेत्र में सर्वाधिक मत हासिल करनेवाले उम्मीदवार को विजयी घोषित कर दिया जाता है। अतः, स्पष्ट है कि भारत की निर्वाचन प्रक्रिया पूर्णतः स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं लोकतांत्रिक है।
2. भारत की निर्वाचन संबंधी समस्याओं का वर्णन करें। या, भारत में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव के मार्ग में कौन-कौन-सी प्रमुख चुनौतियाँ (बाधाएँ) हैं ?
उत्तर- भारत में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव के मार्ग में अनेक समस्याएँ एवं चुनौतियाँ विद्यमान हैं। इस चुनाव संबंधी प्रमुख समस्याओं एवं चुनौतियों का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है-
1. मतदान के अधिकार का दुरुपयोग- भारत की अधिकांश जनता अनपढ़, गरीब एवं निरक्षर है। अतः, उसके सामने निर्वाचन एवं मताधिकार के प्रयोग का मूल्य नगण्य हैं वह अपना पेट भरने की चिंता में ही दिन-रात लगी रहती है। अनपढ़ एवं निरक्षर रहने के कारण अधिकांश भोली-भाली एवं गरीब जनता अपने मताधिकार के बारे में जनता ही नहीं। वह किसी तरह अपने पेट भर लेने को ही सबसे बड़ा अधिकार मानती हैं चन्द पैसे वाले लोग कुछ ही सिक्कों में उसके मत को सहज ही खरीद लेते हैं।
2. राजनीतिक दलों की बहुलता- भारत में राजनीतिक दलों की संख्या काफी है। ऐसी परिस्थिति में अधिकांश जनता को यह पता ही नहीं चलता कि वह किस पार्टी को वोद दें। अनेक आपराधिक चरित्र के लोग एवं धनी उम्मीदवार मतदान अधिकारियों  
3. बूथ कब्जाको डरा- धमकाकर एवं चंद प्रलोभन देकर मतदान केंद्र पर कब्जा कर लेते हैं और अपने पक्ष में गलत ढंग से मतदान करवाने में सफल हो जाते हैं।
4. खर्चीली चुनाव व्यवस्था- खर्चीली चुनाव व्यवस्था भी निष्पक्ष एवं स्वतंत्र चुनाव के मार्ग में एक बहुत बड़ी समस्या है। हालाँकि चुनाव आयोग ने चुनाव खर्च की सीमा तय कर दी है। परंतु, वास्तव में सही ढंग से उसपर बहुत कम ही अमल होता है। इसका नतीजा यह होता है कि पैसेवाले लोग पैसे को पानी की तरह बहाकर येन केन प्रकारेण चुनाव जीतने में सफल हो जाते हैं।
5. दल-बदल की समस्या- दल-बदल की समस्या भी निर्वाचन के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है। आए दिन दल-बदल के कारण किसी न किसी राज्य में सरकारें गिरती रही हैं। इसके कारण राजनीतिक अस्थिता का भय राज्यों एवं केंद्र को बराबर बना रहता है। हालाँकि 1985 में एक संविधान संशोधन द्वारा इस पर कुछ रोक लगी है।
6. अन्य समस्याएँ एवं चुनौतियाँ- उपर्युक्त समस्याओं एवं चुनौतियों के अतिरिक्त स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव के मार्ग में और भी कई बाधाएँ हैं, यथा— राजनीतिक दलों में ठोस सिद्धांतों का अभाव, राजनीति का अपराधीकरण, निर्वाचन में बेहिसाब खर्च एवं भ्रष्टाचार का बोलवाला, सरकारी तंत्र का दुरुपयोग, कमजोर तबके को मतदान करने से रोकना इत्यादि ।
अतः, स्पष्ट है कि स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव के मार्ग में अनेक समस्याएँ हैं, जिन्हें दूर करके ही भारतीय लोकतंत्र को मजबूत किया जा सकता है।
 
3. बूथ कब्जाको डरा- धमकाकर एवं चंद प्रलोभन देकर मतदान केंद्र पर कब्जा कर लेते हैं और अपने पक्ष में गलत ढंग से मतदान करवाने में सफल हो जाते हैं।
4. खर्चीली चुनाव व्यवस्था- खर्चीली चुनाव व्यवस्था भी निष्पक्ष एवं स्वतंत्र चुनाव के मार्ग में एक बहुत बड़ी समस्या है। हालाँकि चुनाव आयोग ने चुनाव खर्च की सीमा तय कर दी है। परंतु, वास्तव में सही ढंग से उसपर बहुत कम ही अमल होता है। इसका नतीजा यह होता है कि पैसेवाले लोग पैसे को पानी की तरह बहाकर येन केन प्रकारेण चुनाव जीतने में सफल हो जाते हैं।
5. दल-बदल की समस्या- दल-बदल की समस्या भी निर्वाचन के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है। आए दिन दल-बदल के कारण किसी न किसी राज्य में सरकारें गिरती रही हैं। इसके कारण राजनीतिक अस्थिता का भय राज्यों एवं केंद्र को बराबर बना रहता है। हालाँकि 1985 में एक संविधान संशोधन द्वारा इस पर कुछ रोक लगी है।
6. अन्य समस्याएँ एवं चुनौतियाँ- उपर्युक्त समस्याओं एवं चुनौतियों के अतिरिक्त स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव के मार्ग में और भी कई बाधाएँ हैं, यथा— राजनीतिक दलों में ठोस सिद्धांतों का अभाव, राजनीति का अपराधीकरण, निर्वाचन में बेहिसाब खर्च एवं भ्रष्टाचार का बोलवाला, सरकारी तंत्र का दुरुपयोग, कमजोर तबके को मतदान करने से रोकना इत्यादि ।
अतः, स्पष्ट है कि स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव के मार्ग में अनेक समस्याएँ हैं, जिन्हें दूर करके ही भारतीय लोकतंत्र को मजबूत किया जा सकता है। 
3. चुनाव घोषणा पत्र का महत्व बताएँ। या, चुनाव घोषणा पत्र से आप क्या समझते हैं ? टिप्पणी लिखें।
उत्तर- चुनाव से पूर्व प्रत्येक राजनीति दल अपना-अपना घोषणा पत्र जारी करता है। इस घोषणा-पत्र में उसके भावी कार्यक्रमों, सिद्धांतों एवं नीतियों का संक्षेप में उल्लेख होता है। साथ-ही-साथ अपने घोषणा पत्र के माध्यम से उम्मीदवार यह बताना चाहता है कि उनकी गृह नीति, वैदेशिक नीति, वित्त नीति इत्यादि क्या एवं कैसी होगी। अपने घोषणा पत्र के माध्यम से वे जनता को इस बात का भरपूर आश्वासन देते हैं कि वे चुनाव में जीतने पर अवश्य ही इन वादों को पूरा करने में कोई कोताही नहीं करेंगे। सत्ता पक्ष का उम्मीदवार भी जनता को यह बताने का प्रयास करता है कि सरकार ने उसके लिए कौन-कौन-से महत्त्वपूर्ण कार्य किए हैं एवं शेष बचे हुए कार्यों को वे इस बार पूरा करेंगे, बशर्ते कि लोग उन्हें जीत दिलाकर पुनः सदन में भेजें। अतः, स्पष्ट है कि चुनाव घोषणा-पत्र एक ऐसा दस्तावेज होता है कि जिसके माध्यम से
राजनीतिक दलों के भावी कार्यक्रमों की एक झलक मिलती है। यह एक प्रकार से राजनीतिक दलों के विचारों की संक्षिपत अभिव्यक्ति एवं प्रतिज्ञापत्र भी है।
4. किसी चुनाव को किस आधार पर यह कहा जा सकता है कि वे लोकतांत्रिक हैं ? या, किसी चुनाव को लोकतांत्रिक कहने के क्या-क्या पैमाने अथवा शर्तें आवश्यक हैं? या, किस आधार पर किसी चुनाव को लोकतांत्रिक कहा जा सकता है ?
उत्तर- चुनाव लोकतंत्र की आधारशिला है। यों तो चुनाव प्रत्येक लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था वाले देशों में तो होते ही हैं परंतु, इसके साथ-साथ यह बात भी सच है कि गैरलोकतांत्रिक शासन व्यवस्था वाले देशों में भी चुनाव होते हैं। परंतु सभी चुनाव को लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता। किसी चुनाव को लोकतांत्रिक कहने के लिए निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना चाहिए
(1) प्रत्येक मतदाता के मत का मान समान हो तथा प्रत्येक वयस्क नागरिक को स्वतंत्र रूप से मतदान का अधिकार हो ।
(ii) चुनाव एक निश्चित अंतराल पर सुव्यवस्थित ढंग से होता रहे।
(iii) विभिन्न दलों एवं उम्मीदवारों को स्वतंत्र ढंग से चुनाव में भाग लेने की छूट हो । 
(iv) चुनाव स्वतंत्र एवं निष्पक्ष ढंग से संपादित हो ताकि किसी को उसपर उँगली उठाने का मौका न मिले।
(v) लोग जिसे चुनना चाहें, वास्तव में उसी व्यक्ति अथवा नेता को चुनें।
(vi) लोग अपने मनपसंद उम्मीदवार का चयन बिना किसी दबाव अथवा भय के करें। अतः, स्पष्ट है कि किसी चुनाव को तभी लोकतांत्रिक कहा जा सकता है जब वे उपर्युक्त न्यूनतम शर्तों का पालन करते हों। इस कसौटी पर भारतवर्ष में होनेवाले चुनाव कुछ अपवादों को छोड़कर खरे उतरे हैं। इस आधार पर भारतवर्ष में होनेवाले चुनाव को नि:संदेह लोकतांत्रिक कहा जा सकता है।
5. भारतीय निर्वाचन आयोग पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। या भारतीय चुनाव आयोग के कार्यों का वर्णन करें। 
उत्तर- हमारे देश में एक निर्वाचन आयोग का गठन किया गया है। स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव की व्यवस्था करने का दायित्व इसी आयोग को सौंपा गया है। इस स्वतंत्र चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त एवं उनकी सहायता के लिए दो और चुनाव आयुक्त होते हैं। भारतीय चुनाव आयोग के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है। मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा होती है। भारतीय चुनाव आयोग को न्यायपालिका की भाँति ही स्वतंत्र रखा गया है। कुछ मामलों में तो यह न्यायपालिका की अपेक्षा कहीं ज्यादा स्वतंत्र ढंग से अपने कार्यों एवं उत्तरदायित्वों का निर्वहन करती है। राष्ट्रपति द्वारा मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति किए जाने के बावजूद भी वह अपने कार्यों के लिए संघीय कार्यपालिका के प्रति उत्तरदायी नहीं है। श्री नवीन चावला वर्तमान समय में भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त हैं। यह आयोग चुनाव संबंधी के के किसी सुझाव को मानने के लिए बाध्य नहीं है । सरकार संक्षेप में, भारतीय निर्वाचन आयोग के निम्नलिखित कार्य एवं अधिकार हैं-
(i) राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, संसद, विधानसभाओं इत्यादि के निर्वाचन हेतु तैयार करवाना। मतदाता सूची
(ii) संसद एवं राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचन हेतु चुनाव क्षेत्रों का निश्चय करना तथा विभिन्न उपचुनावों का पर्यवेक्षण करना।
(iii) मतदान संबंधी विभिन्न कार्यक्रमों को निश्चित करना । 
(iv) मतदान हेतु नियमों का निर्धारण एवं कार्यान्वयन करना।
(v) विभिन्न राजनीतिक दलों एवं उम्मीदवारों के लिए आदर्श चुनाव आचार संहिता तैयार करना एवं उसे लागू करना ।
(vi) चुनाव खर्च की सीमा तय करना एवं चुनाव खर्च का निरीक्षण करना। 
(vii) विभिन्न राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय अथवा राज्य स्तरीय मान्यता प्रदान करना । 
(Vill) चुनाव चिन्ह निर्धारित करना एवं विभिन्न दलों के बीच उसका आबंटन करना । 
(Ix) रेडियो, दूरदर्शन जैसे संचार माध्यमों द्वारा राजनीतिक दलों के प्रचार के लिए समय निर्धारित करना ।
(x) राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल द्वारा भेज गए निर्वाचन संबंधी विवादों को सुलझाना। अतः, स्पष्ट है भारतीय निर्वाचन आयोग के कार्य काफी व्यापक एवं महत्त्वपूर्ण हैं।
 
3. चुनाव घोषणा पत्र का महत्व बताएँ। या, चुनाव घोषणा पत्र से आप क्या समझते हैं ? टिप्पणी लिखें।
उत्तर- चुनाव से पूर्व प्रत्येक राजनीति दल अपना-अपना घोषणा पत्र जारी करता है। इस घोषणा-पत्र में उसके भावी कार्यक्रमों, सिद्धांतों एवं नीतियों का संक्षेप में उल्लेख होता है। साथ-ही-साथ अपने घोषणा पत्र के माध्यम से उम्मीदवार यह बताना चाहता है कि उनकी गृह नीति, वैदेशिक नीति, वित्त नीति इत्यादि क्या एवं कैसी होगी। अपने घोषणा पत्र के माध्यम से वे जनता को इस बात का भरपूर आश्वासन देते हैं कि वे चुनाव में जीतने पर अवश्य ही इन वादों को पूरा करने में कोई कोताही नहीं करेंगे। सत्ता पक्ष का उम्मीदवार भी जनता को यह बताने का प्रयास करता है कि सरकार ने उसके लिए कौन-कौन-से महत्त्वपूर्ण कार्य किए हैं एवं शेष बचे हुए कार्यों को वे इस बार पूरा करेंगे, बशर्ते कि लोग उन्हें जीत दिलाकर पुनः सदन में भेजें। अतः, स्पष्ट है कि चुनाव घोषणा-पत्र एक ऐसा दस्तावेज होता है कि जिसके माध्यम से
राजनीतिक दलों के भावी कार्यक्रमों की एक झलक मिलती है। यह एक प्रकार से राजनीतिक दलों के विचारों की संक्षिपत अभिव्यक्ति एवं प्रतिज्ञापत्र भी है।
4. किसी चुनाव को किस आधार पर यह कहा जा सकता है कि वे लोकतांत्रिक हैं ? या, किसी चुनाव को लोकतांत्रिक कहने के क्या-क्या पैमाने अथवा शर्तें आवश्यक हैं? या, किस आधार पर किसी चुनाव को लोकतांत्रिक कहा जा सकता है ?
उत्तर- चुनाव लोकतंत्र की आधारशिला है। यों तो चुनाव प्रत्येक लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था वाले देशों में तो होते ही हैं परंतु, इसके साथ-साथ यह बात भी सच है कि गैरलोकतांत्रिक शासन व्यवस्था वाले देशों में भी चुनाव होते हैं। परंतु सभी चुनाव को लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता। किसी चुनाव को लोकतांत्रिक कहने के लिए निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना चाहिए
(1) प्रत्येक मतदाता के मत का मान समान हो तथा प्रत्येक वयस्क नागरिक को स्वतंत्र रूप से मतदान का अधिकार हो ।
(ii) चुनाव एक निश्चित अंतराल पर सुव्यवस्थित ढंग से होता रहे।
(iii) विभिन्न दलों एवं उम्मीदवारों को स्वतंत्र ढंग से चुनाव में भाग लेने की छूट हो । 
(iv) चुनाव स्वतंत्र एवं निष्पक्ष ढंग से संपादित हो ताकि किसी को उसपर उँगली उठाने का मौका न मिले।
(v) लोग जिसे चुनना चाहें, वास्तव में उसी व्यक्ति अथवा नेता को चुनें।
(vi) लोग अपने मनपसंद उम्मीदवार का चयन बिना किसी दबाव अथवा भय के करें। अतः, स्पष्ट है कि किसी चुनाव को तभी लोकतांत्रिक कहा जा सकता है जब वे उपर्युक्त न्यूनतम शर्तों का पालन करते हों। इस कसौटी पर भारतवर्ष में होनेवाले चुनाव कुछ अपवादों को छोड़कर खरे उतरे हैं। इस आधार पर भारतवर्ष में होनेवाले चुनाव को नि:संदेह लोकतांत्रिक कहा जा सकता है।
5. भारतीय निर्वाचन आयोग पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। या भारतीय चुनाव आयोग के कार्यों का वर्णन करें। 
उत्तर- हमारे देश में एक निर्वाचन आयोग का गठन किया गया है। स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव की व्यवस्था करने का दायित्व इसी आयोग को सौंपा गया है। इस स्वतंत्र चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त एवं उनकी सहायता के लिए दो और चुनाव आयुक्त होते हैं। भारतीय चुनाव आयोग के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है। मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा होती है। भारतीय चुनाव आयोग को न्यायपालिका की भाँति ही स्वतंत्र रखा गया है। कुछ मामलों में तो यह न्यायपालिका की अपेक्षा कहीं ज्यादा स्वतंत्र ढंग से अपने कार्यों एवं उत्तरदायित्वों का निर्वहन करती है। राष्ट्रपति द्वारा मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति किए जाने के बावजूद भी वह अपने कार्यों के लिए संघीय कार्यपालिका के प्रति उत्तरदायी नहीं है। श्री नवीन चावला वर्तमान समय में भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त हैं। यह आयोग चुनाव संबंधी के के किसी सुझाव को मानने के लिए बाध्य नहीं है । सरकार संक्षेप में, भारतीय निर्वाचन आयोग के निम्नलिखित कार्य एवं अधिकार हैं-
(i) राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, संसद, विधानसभाओं इत्यादि के निर्वाचन हेतु तैयार करवाना। मतदाता सूची
(ii) संसद एवं राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचन हेतु चुनाव क्षेत्रों का निश्चय करना तथा विभिन्न उपचुनावों का पर्यवेक्षण करना।
(iii) मतदान संबंधी विभिन्न कार्यक्रमों को निश्चित करना । 
(iv) मतदान हेतु नियमों का निर्धारण एवं कार्यान्वयन करना।
(v) विभिन्न राजनीतिक दलों एवं उम्मीदवारों के लिए आदर्श चुनाव आचार संहिता तैयार करना एवं उसे लागू करना ।
(vi) चुनाव खर्च की सीमा तय करना एवं चुनाव खर्च का निरीक्षण करना। 
(vii) विभिन्न राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय अथवा राज्य स्तरीय मान्यता प्रदान करना । 
(Vill) चुनाव चिन्ह निर्धारित करना एवं विभिन्न दलों के बीच उसका आबंटन करना । 
(Ix) रेडियो, दूरदर्शन जैसे संचार माध्यमों द्वारा राजनीतिक दलों के प्रचार के लिए समय निर्धारित करना ।
(x) राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल द्वारा भेज गए निर्वाचन संबंधी विवादों को सुलझाना। अतः, स्पष्ट है भारतीय निर्वाचन आयोग के कार्य काफी व्यापक एवं महत्त्वपूर्ण हैं।

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