1. राज्य घरेल त्याद से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- एक लेखा वर्ष में राज्य में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं को जो बाजार मूल्य के बराबर होता है राज्य घरेलु उत्पाद कहे जाते हैं। इसमें राज्य के विभिन्न क्षेत्रों, कृषि, पशुपालन, उद्योग आदि के द्वारा कुल उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य सम्मिलित रहता है।
2. सकला राज्या घरेलू उत्पाद और शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद में अंतर कीजिए।
उत्तर- सकल राज्य घरेलु उत्पाद राज्य की सीमाओं के अंदर एक लेखा वर्ष में उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य है। इसमें सभी क्षेत्रों द्वारा उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य सम्मिलित रहता है ।
शुद्ध राज्य घरेलु उत्पाद सकल राज्य घरेलु उत्पाद में से व्यय के मदों को घटाने के बाद राज्य का प्रतिव्यक्ति आय तथा उनका जीवन स्तर निर्भर करता है।
3. हम स्थिर मूल्यों पर भी राज्य घरेलू उत्पाद का आकलना क्यों करते हैं ?
उत्तर- किसी राज्य के वास्तविक उत्पादन में बढ़ोतरी या कमी हुई है यह ज्ञात करने के लिए हम स्थिर मूल्यों पर राज्य घरेलु उत्पाद का आकलन करते हैं। स्थिर मूल्यों पर तुलना से राज्य के आर्थिक विकास एवं प्रगति की सही जानकारी मिलती है ।
4. कुल घरेलू उत्पाद क्या है ?
उत्तर- किसी देश की भौगोलिक सीमाओं के अंदर एक लेखा वर्ष में उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य कुल घरेलू उत्पाद है। यह धारणा बंद अर्थव्यवस्था से संबद्ध है। इसमें कुल घरेलु उत्पादन और कुल राष्ट्रीय उत्पादन दोनों एक दूसरे के बराबर होते हैं।
5. कुल राष्ट्रीय उत्पादन तथा शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन में अंतर कीजिए।
उत्तर- किसी भी देश में एक वर्ष के अंतर्गत जिन वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन तथा विनिमय होता है उनके बाजार मूल्य को कुल राष्ट्रीय उत्पादन कहते हैं। कुल राष्ट्रीय उत्पादन में चालू वर्ष में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य ही शामिल रहता है। परंतु शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन में घिसावट आदि का खर्च निकाल देने के बाद जो कुल राष्ट्रीय उत्पादन में शेष बचता है, वह शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन है। शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन को बाजार मूल्य के रूप में राष्ट्रीय आय भी कहते हैं।
6. राष्ट्रीय आय माप में क्या कठिनाईयाँ उत्पन्न होती है?
उत्तर- राष्ट्रीय आय को मापने में निम्नलिखित कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं-
(i) पर्याप्त एवं विश्वस्त आँकड़ों की कमी– राष्ट्रीय आय की गणना की अच्छी से अच्छी प्रणाली भी अपनाने पर पर्याप्त एवं विश्वसनीय आँकड़ों की कमी रहती है। पिछड़े देशों की अर्थव्यवस्था के साथ यह समस्या अधिक है।
(ii) दोहरी गणना की संभावना – राष्ट्रीय आय की गणना करते समय कई बार एक ही आय को दुबारा दूसरे के आय में गिन लिया जाता है। उदाहरण के लिए एक व्यापारी और उसके कर्मचारी की आय को अलग-अलग जोडना दोहरी गणना की संभावना है।
(iii) मौद्रिक विनिमय प्रणाली का अभाव- किसी अर्थव्यवस्था में उत्पादित बहुत-सी वस्तुओं का मुद्रा के द्वारा विनिमय नहीं होता है। उत्पादक कुछ वस्तुओं का स्वयं उपभोग कर लेते हैं। या उनका अन्य वस्तुओं से दूसरे उत्पादक से अदल-बदल कर लेते हैं। इस प्रकार ऐसी वस्तुओं का मूल्यांकन किस प्रकार किया जाए यह समस्या राष्ट्रीय आय को मापने में आती है।
7. भारत की राष्ट्रीय आय का अनुमान बताइए। क्या योजना काल में हमारी राष्ट्रीय आय में वृद्धि हुई है?
उत्तर- सर्वप्रथम दादाभाई नौरोजी ने 1868 में भारत की राष्ट्रीय आय 340 करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सरकार ने राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाने के लिए 1949 में प्रो० पी० सी० महालनोविस की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय आय समिति नियुक्त किया। 1951-52 से केंद्रीय सांख्यिकी संगठन नियमित रूप से राष्ट्रीय आय और उससे संबंधित तथ्यों का अनुमान लगाती है।
योजनाकाल में भारत की राष्ट्रीय आय में सामान्यता वृद्धि हुई है। 1951 से 2003 के बीच राष्ट्रीय आय एवं कुल उत्पादन में 8 गुणा से भी अधिक वृद्धि हुई है।
8. बिहार के राज्य घरेलू उत्पाद में किस क्षेत्र का योगदान सबसे अधिक होता है ?
उत्तर- बिहार के राज्य घरेलू उत्पाद में कृषि, उद्योग, परिवहन, व्यापार आदि राज्य के सभी क्षेत्रों द्वारा उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य सम्मिलित रहता है। राज्य के इन विभिन्न क्षेत्रों की आय पर ही राज्य की आय निर्भर है तथा इनके बढ़ने से राज्य की आय में भी वृद्धि होती है। विगत वर्षों के अंतर्गत बिहार के प्राथमिक क्षेत्र के उत्पादन में कमी हुई है जिसका प्रमुख कारण कृषि के क्षेत्र में गिरावट है। द्वितीयक अथवा औद्योगिक क्षेत्र के उत्पादन में कोई विशेष परिवर्तन् नहीं हुआ है तथा राज्य के घरेलू उत्पाद में इस क्षेत्र का सबसे न्यून योगदान होता है। वर्तमान में बिहार के राज्य घरेलू उत्पाद में सेवा क्षेत्र का अंशदान सर्वाधिक है जिसमें संचार सेवाएँ, व्यापार, होटल एवं रेस्टोरेंट प्रक्षेत्र सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।
9. राष्ट्रीय आय क्या है तथा इसका सृजन किस प्रकार होता है ?
उत्तर- यदि किसी देश के प्राकृतिक साधनों पर श्रम और पूँजी लगाकर उनका उपयोग किया जाता है तो उससे प्रत्येक वर्क्स एक निश्चित मात्रा में वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है। सरल शब्दों में, यह देश की राष्ट्रीय आय है। इस प्रकार, राष्ट्रीय आय एक निश्चित अवधि में देश के कुल उत्पादन का मौद्रिक मूल्य है तथा वस्तुओं और सेवाओं की उत्पादन प्रक्रिया में ही इसका सृजन होता है। आय एक प्रवाह है तथा कुल उत्पादन का प्रवाह ही कुल राष्ट्रीय आय का प्रवाह उत्पन्न करता है। अतः, कुल राष्ट्रीय आय और कुल राष्ट्रीय उत्पादन दोनों एक-दूसरे के बराबर होते हैं।
10. प्रतिव्यक्ति आय क्या है ? प्रतिव्यक्ति आय और राष्ट्रीय आय में क्या संबंध है ?
उत्तर- प्रतिव्यक्ति आय किसी देश के नागरिकों की औसत आय है। कुल राष्ट्रीय आय में कुल जनसंख्या से भाग देने पर जो भागफल आता है उसे प्रतिव्यक्ति आय कहते हैं। इस प्रकार, प्रतिव्यक्ति आय की धारणा राष्ट्रीय आय से जुड़ी हुई है। राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने पर प्रतिव्यक्ति आय में भी वृद्धि होती है। लेकिन, राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने पर प्रतिव्यक्ति आय में प्रत्येक अवस्था • में वृद्धि नहीं होगी। यदि आय में होनेवाली वृद्धि के साथ ही किसी देश की जनसंख्या भी उसी अनुपात में बढ़ जाती है तो प्रतिव्यक्ति आय नहीं बढ़ेगी और लोगों के जीवन स्तर में कोई सुधार नहीं होगा। इसी प्रकार, यदि राष्ट्रीय आय की तुलना में जनसंख्या की वृद्धि दर अधिक है तो प्रतिव्यक्ति आय घट जाएगी।
11. भारत में सर्वप्रथम राष्ट्रीय आय की गणना कब और किसके द्वारा की गई थी ? योजनाकाल में भारत की राष्ट्रीय आय में वृद्धि का अनुमान बताएँ।
उत्तर- स्वतंत्रता- पूर्व भारत में राष्ट्रीय आय की गणना करने का कोई सर्वमान्य तरीका नहीं था। संभवतः, सर्वप्रथम दादाभाई नौरोजी ने 1868 में भारत की राष्ट्रीय आय 340 करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत 1951-52 से भारत में नियमित रूप से राष्ट्रीय आय एवं इससे संबंधित तथ्यों का अनुमान लगाया जाता है। योजनाकाल में भारत की राष्ट्रीय आय में सामान्यतया वृद्धि हुई है। 1950-51 से 2002-03 के बीच राष्ट्रीय आय एवं कुल राष्ट्रीय उत्पाद 8 गुना से भी अधिक बढ़ गया है। इस अवधि में भारतीय अर्थव्यवस्था की वार्षिक विकास दर औसतन 4.2 प्रतिशत रही है। वर्तमान मूल्यों पर 2006-07 में भारत की कुल राष्ट्रीय आय 3325,817 करोड़ रुपये होने का अनुमान था।
12. भारत में राष्ट्रीय आय की गणना किस संस्था द्वारा की जाती है ? इसकी गणना उत्पन्न कठिनाइयों का वर्णन करें।
उत्तर- 1951-52 से भारत में प्रतिवर्ष नियमित रूप से राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है। राष्ट्रीय आय संबंधी आँकड़ों को एकत्र करने के लिए भारत सरकार ने एक विशेष संस्था राष्ट्रीय 'प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन की स्थापना की है जो केंद्रीय सांख्यिकी संगठन के अधीन है।
राष्ट्रीय आय की गणना करने में प्राय: कई प्रकार की कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं। राष्ट्रीय आय की माप या गणना करने के लिए कोई भी तरीका क्यों न अपनाया जाए, पर्याप्त एवं विश्वसनीय आँकड़ों की हमेशा कमी रहती है। भारत जैसे विकासशील और पिछड़े हुए देशों में यह कठिनाई अधिक होती है। राष्ट्रीय आय की गणना करते समय कई बार एक ही आय को दुबारा गिन लिया जाता है। राष्ट्रीय आय को मापने में इस कारण भी कठिनाई होती है कि देश में उत्पादित बहुत सी वस्तुओं का मुद्रा के द्वारा विनिमय नहीं होता है।
13. बिहार की प्रतिव्यक्ति आय कम होने के क्या कारण के किस जिले की प्रतिव्यक्ति आप सबसे अधिक और किस जिले की सबसे कम है ?
उत्तर- बिहार की गणना देश के सर्वाधिक पिछड़े हुए राज्यों में की जाती है तथा इसकी प्रतिव्यक्ति आय बहुत कम है। इसका प्रधान कारण यहाँ की कृषि की पिछड़ी हुई अवस्था तथा राज्य में उद्योग-धंधों का अभाव है। इसके फलस्वरूप बिहार का राज्य घरेलू उत्पाद बहुत कम है। देश के अन्य राज्यों की तुलना में बिहार = जनसंख्या की वृद्धि दर भी अपेक्षाकृत अधिक है। राज्य की जनसंख्या में 1991-2001 की अवधि में 28.62 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि संपूर्ण भारत के लिए यह वृद्धि दर 21.54 प्रतिशत थी।
बिहार सरकार के 2008-09 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, पटना जिले की प्रतिव्यक्ति आय सबसे अधिक (29,482 रुपये) तथा शिवहर की सबसे कम (3.967 रुपये) है।
14. कुल राष्ट्रीय आय क्या है ?
उत्तर-उत्पादन के दृष्टिकोण से किसी देश की कुल उत्पत्ति एक वर्ष में उत्पादित सभी प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं के मौद्रिक मूल्य के बराबर होती है जिसे हम कुल राष्ट्रीय उत्पाद (Gross National Product, GNP) कहते हैं। इस कुल उत्पादन में से कच्चे माल की कीमत, अचल पूँजी की घिसावट, प्रतिस्थापन व्यय आदि घटा देने के बाद जो शेष बचता है, वह शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (Net National Product, NNP) होता है, जिसका उत्पादन के विभिन्न साधनों के बीच वितरण किया जाता है। लेकिन, हम वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य अथवा कुल राष्ट्रीय उत्पादन की गणना मौद्रिक आय के रूप में भी कर सकते हैं। यदि एक निश्चित अवधि में उत्पादन के साधनों द्वारा प्राप्त आय को जोड़ दिया जाए तो वह देश की कुल राष्ट्रीय आय कही जाएगी। जैसा कि सार्शल (Marshall) ने कहा है, "राष्ट्रीय आय या लाभांश एकसाथ ही शुद्ध उत्पादन तथा उत्पत्ति के सभी साधनों के भुगतान का एक स्रोत है। "
इस प्रकार, कुल राष्ट्रीय आय के अंतर्गत (1) श्रमिकों तथा अन्य सभी कर्मचारियों को दी जानेवाली मजदूरी एवं वेतन, (ii) भूमि का दिया गया लगान तथा मकान का किराया, पूँजी पर दिया जानेवाला ब्याज तथा उद्यमी को प्राप्त होनेवाला लाभ सम्मिलित रहता है। उपर्युक्त मदों के अतिरिक्त कुल राष्ट्रीय आय में विदेशी व्यापार से होनेवाली शुद्ध आय भी शामिल होती है। इस प्रकार,
कुल राष्ट्रीय आय = मजदूरी एवं वेतन + लगान तथा किराया + ब्याज + लाभ + निर्यात से प्राप्त शुद्ध आय।
15. शुद्ध राष्ट्रीय आय से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-कुल राष्ट्रीय आय तथा शुद्ध राष्ट्रीय आय में अंतर है। कुल राष्ट्रीय आय एक वर्ष के अंतर्गत उत्पादन के विभिन्न साधनों को दिया जानेवाला कुल भुगतान है। लेकिन शुद्ध राष्ट्रीय आय वह आय है जो लोग वास्तव में प्राप्त करते हैं। इसके द्वारा ही देशवासियों के रहन-सहन के स्तर का सही अनुमान लगाया जा सकता है। शुद्ध राष्ट्रीय आय को जानने के लिए कुल राष्ट्रीय आय में से निम्नलिखित मदों को घटा देना होता है-
(i) प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर (Direct and indirect taxes ) – प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर दोनों लोगों की आय में कमी लाते हैं। इसलिए इन्हें कुल राष्ट्रीय आय में से घटा देना चाहिए।
(ii) सरकारी उपक्रमों की आय (Earnings of government enterprises) — सरकारी उपक्रमों को प्राप्त होनेवाला लाभ वास्तव में सरकार की आय होती है। अतः, इन्हें भी कुल राष्ट्रीय आय में से घटा दिया जाता है।
(iii) दान एवं उपहार (Donation and gifts) — राष्ट्रीय आय उत्पादन की माप है तथा इसके अंतर्गत केवल उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य सम्मिलित रहता है। दान या उपहार किसी वस्तु या सेवा के उत्पादन के बदले में नहीं दिए जाते हैं। यह केवल आय का हस्तांतरण (transfer of earning) होता है। इसलिए, इनको कुल राष्ट्रीय आय में से घटा दिया जाता है।
दूसरी ओर, शुद्ध राष्ट्रीय आय में सरकार द्वारा दी जानेवाली आर्थिक सहायता तथा विदेशी निवेश से प्राप्त शुद्ध ब्याज या लाभ की रकम जोड़ दी जाती है। अतः,
शुद्ध राष्ट्रीय आय = कुलं राष्ट्रीय आय (प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर + सरकारी उपक्रमों की आय + दान एवं उपहार) + (सरकार द्वारा प्रदान की गई आर्थिक सहायता + विदेशी निवेश से प्राप्त शुद्ध ब्याज या लाभ)
16. साक्षस त्लागत एवं बाजार मूल्य के रूप में राष्ट्रीय आय का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर- कुल राष्ट्रीय उत्पादन को प्राप्त करने में उत्पादन के साधनों के पारिश्रमिक के अतिरिक्त कुछ और भी व्यय होता है। मशीन, यंत्र, कारखाने का भवन अनंत काल तक नहीं बने रहेंगे। उनकी समय-समय पर मरम्मत करानी पड़ती है या उन्हें बदलना पड़ता है। अतः, कुल राष्ट्रीय उत्पादन में से घिसावट आदि खर्च निकाल देने के बाद जो शेष बचता है, शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन है। के विभिन्न साधनों के बीच इसी का वितरण किया जाता है। उत्पादन
किसी देश के शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन को वर्तमान उत्पादन के साधन लागत वर्तमान उत्पादन के बाजार मूल्य के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। जब शुद्ध को वर्तमान उत्पादन के साधन लागत के रूप में व्यक्त किया जाता है तब उसे साधन लागत के रूप में राष्ट्रीय आय (national income at factor cost) कहते हैं। यह उत्पादन के साधनों लागत के बराबर होता राष्ट्रीय उत्पादन को दिए जानेवाले पारिश्रमिक या लेकिन, वस्तुएँ और सेवाएँ बाजार में साधनों के लागत मूल्य पर नहीं बिकती हैं। इनके बाजार मूल्य में कुछ अन्य तत्त्व भी शामिल रहते हैं। तत्त्व हैं अप्रत्यक्ष कर (indirect taxes) तथा सरकारी सहायता (subsidy)। उदाहरण के लिए, यदि हम बाजार में 10 रुपये में सिगरट का एक पैकेट खरीदते हैं तो उसमें दो-तिहाई उत्पादन के साधनों की लागत रहती है और शेष एक-तिहाई सरकार द्वारा लगाया गया अप्रत्यक्ष कर होता है। इस प्रकार, स्पष्ट है कि बाजार मूल्य में साधनों की लागत के अलावा अप्रत्यक्ष कर की रकम भी शामिल रहती है। इसी प्रकार, एक व्यापारी किसान से बाजार मूल्य पर 500 रुपये प्रति क्विंटल गेहूँ खरीदता है, परंतु उसकी साधन लागत 525 रुपये प्रति क्विटल हो सकती है। लागत से कम मूल्य पर बेचने में भी किसान को कोई घाटा इसलिए नहीं होगा, क्योंकि 25 रुपये की अतिरिक्त लागत उसे सरकार से सहायता के रूप में मिल जाती है। इस प्रकार,
(i) कुल राष्ट्रीय उत्पादन - घिसावट एवं प्रतिस्थापन व्यय = शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन = साधन लागत के रूप में राष्ट्रीय आय (National Income at Factor Costs)
(ii) बाजार मूल्य के रूप में राष्ट्रीय आय (National Income at Market Prices) — अप्रत्यक्ष कर + सरकारी सहायता = साधन लागत के रूप में राष्ट्रीय आय ।
17. कुल राष्ट्रीय उत्पादन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- किसी भी देश में एक वर्ष के अंतर्गत जिन वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है उनके मौद्रिक मूल्य को कुल राष्ट्रीय उत्पादन (Gross National Product, GNP) कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, एक वर्ष के अंदर जिन वस्तुओं और सेवाओं का अंतिम रूप में उत्पादन तथा विनिमय होता है उनके बाजार मूल्य को हम कुल राष्ट्रीय उत्पादन कहते हैं। यहाँ यह ध्यान में रखना चाहिए कि कुल राष्ट्रीय उत्पादन में केवल वे ही वस्तुएँ सम्मिलित हैं जो उपभोक्ताओं द्वारा प्रत्यक्ष अथवा अंतिम रूप में उपभोग की जाती हैं। उदाहरण के लिए, कपड़ा अंतिम वस्तु है जिसका उपभोग के लिए प्रत्यक्ष रूप से प्रयोग किया जाता है, किंतु कपास या सूत अंतिम वस्तु नहीं है। इस प्रकार, कुल राष्ट्रीय उत्पादन को मापने में वस्तुओं और सेवाओं की गणना एक ही बार होनी चाहिए।
दूसरी ध्यान देने की बात यह है कि कुल राष्ट्रीय उत्पादन में केवल चालू वर्ष में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य ही शामिल रहता है। इसका कारण यह है कि कुल राष्ट्रीय उत्पादन एक निश्चित अवधि में ही देश के संपूर्ण उत्पादन की माप है। उदाहरण के लिए, यदि किसी वस्तु का उत्पादन 2008 में हुआ है, लेकिन वह 2009 तब बिक नहीं पाई तब उस वस्तु की गणना 2009 के राष्ट्रीय उत्पादन में नहीं होगी। अतः, कुल राष्ट्रीय उत्पादन किसी भी एक वर्ष के अंतर्गत व्यक्तियों, संस्थाओं तथा सरकारी उपक्रमों द्वारा उत्पादित समस्त वस्तुओं का योगफल होता है। ·
18. शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन क्या है ?
उत्तर- जब हम कुल राष्ट्रीय उत्पादन का उल्लेख करते हैं तब हमारा अभिप्राय किसी भी वर्ष के अंतर्गत उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं से होता है। लेकिन, इस कुल राष्ट्रीय उत्पादन को प्राप्त करने में कुछ खर्च करना पड़ता है। इस प्रकार, कुल राष्ट्रीय उत्पादन में से ख इन मदों को घटाने के बाद जो शेष बचता है, वह शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन है तथा उत्पादन के विभिन्न साधनों के बीच इसी का वितरण होता है।
शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन को जानने के लिए कुल उत्पादन में से निम्नलिखित मदों पर किए गए व्यय घटा दिए जाते हैं
(i) चला पूँजी का प्रतिस्थापना व्याया (Replacement cost of circulating capital)— उत्पादन की क्रिया को जारी रखने के लिए बार-बार चल पूँजी खरीदनी पड़ती है, क्योंकि इस प्रकार की पूँजी एक ही बार के प्रयोग से समाप्त हो जाती है। अतः शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन की गणना के लिए उत्पादित संपत्ति में से कच्चे माल की कीमत को घटाना आवश्यक है।
(ii) अचल पूँजी की घिसावट (Depreciation of fixed capital)—अचल पूती, अर्थात् मशीनों, यंत्रों आदि का उत्पादन में प्रयोग होने पर उनमें घिसावट होती है, उनकी मरम्मत वगैरह पर खर्च करना पड़ता है तथा एक निश्चित अवधि के बाद उन्हें बदलना पड़ता है। उदाहरण के लिए, यदि एक मशीन का मूल्य 10,000 रुपये है और उसकी आयु 10 वर्ष है, तब एक वर्ष के उत्पादन को प्राप्त करने में उस मशीन की 1,000 रुपये मूल्य के बराबर घिसावट होती है। इस प्रकार व्यय कुल उत्पादन में से घटा दिए जाते हैं।
(iii) कर एवं बीमा व्याया ( Tax and insuracne charges) — उत्पादकों को केंद्रीय, प्रांतीय तथा स्थानीय अधिकारियों को विभिन्न प्रकार के कर देने पड़ते हैं। उत्पादक एवं व्यावसायिक संस्थान प्रायः दुर्घटना आदि से सुरक्षा के लिए बीमा भी कराते हैं। शुद्ध राष्ट्रीय. उत्पादन की गणना करने में कुल उत्पादन में से कर तथा बीमा के रूप में दी गई रकम को भी घटा दिया जाता है। अतः,
शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन (NNP) = कुल राष्ट्रीय उत्पादन (GNP) - चल पूँजी का प्रतिस्थापन व्यय + अचल पूँजी की घिसावट आदि का व्यय तथा कर एवं बीमा व्यय ।
19. सकल घरेलू उत्पाद तथा सकल राष्ट्रीय उत्पाद में अंतर कीजिए।
उत्तर- सकल अथवा कुल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product, GDP) एक देश की भौगोलिक सीमाओं के अंदर एक लेखा वर्ष में उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य है। कुल राष्ट्रीय उत्पाद का आकलन भी किसी एक वर्ष में उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के बाजार मूल्य के आधार पर किया जाता है। परंतु, इसमें विदेशों से प्राप्त आय भी सम्मिलित होती है। कुल घरेलू उत्पादन तथा कुल राष्ट्रीय उत्पादन के अंतर को समझने के लिए एक बंद अर्थव्यवस्था (closed economy) एवं खुली अर्थव्यवस्था (open economy) के अंतर को जानना आवश्यक है। एक बंद अथवा आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था वह है जिसका विदेशियों से कोई आर्थिक संबंध नहीं होता है। एक बंद अर्थव्यवस्था उस कमरे के समान होती है जिसमें सभी दरवाजे और खिड़कियाँ बंद होती हैं। इसकी आर्थिक क्रियाओं का शेष विश्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में घरेलू उत्पादन तथा राष्ट्रीय उत्पादन की धारणा को समझना अत्यंत सरल है। यदि देश के प्राकृतिक साधनों पर श्रम और पूँजी लगाकर उनका उपयोग किया जाए, तब प्रतिवर्ष एक निश्चित मात्रा में वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है। यह सकल या कुल घरेलू उत्पादन है। एक बंद अर्थव्यवस्था में कुल घरेलू उत्पादन तथा कुल राष्ट्रीय उत्पादन के बीच कोई अंतर नहीं होता है। ·
परंतु, वर्तमान समय में प्रायः सभी अर्थव्यवस्थाएँ खुली हुई हैं। इस प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं के कुल घरेलू उत्पादन और कुल राष्ट्रीय उत्पादन में निम्नलिखित अंतर होता है—
(i) यह देश अपने यहाँ उत्पादित वस्तुओं को विदेशों में भी बेचता है, जिसे निर्यात कहते हैं। इसी प्रकार, वह वस्तुएँ और सेवाएँ विदेशों से खरीदता है अथवा आयात करता है। इसके कुल राष्ट्रीय उत्पादन में इन दोनों का अंतर शामिल रहता है
(ii) यदि देश में विदेशी पूँजी लगी हुई है, तब कुल सूद और लाभ का एक अंश विदेशों को चला जाता है। इसी प्रकार, विदेशों में निवेश की गई पूँजी पर इस देश को सूद तथा लाभ प्राप्त होता है।
(iii) यह देश विदेशों को ऋण दे सकता है या उनसे ऋण ले सकता है। इन दोनों के अंतर को शुद्ध विदेशी ऋण कहते हैं।
(iv) यह देश अन्य देशों से उपहार प्राप्त कर सकता है तथा उन्हें उपहार सकता है। इस प्रकार, कुल राष्ट्रीय उत्पाद = कुल घरेलू उत्पाद + (निर्यात- आयात) + विदेशी निवेश से प्राप्त शुद्ध आय + शुद्ध विदेशी ऋण + विशुद्ध उपहार |
20. आय से आप क्या समझते है ?
उत्तर- जब कोई व्यक्ति शारीरिक अथवा मानसिक कार्य करता है, और उस कार्य के बदले उसे पारिश्रमिक प्राप्त होती है, तो उसे आय कहते हैं। उदाहरण— मजदूर के कार्य के बदले दिया गया पारिश्रमिक
Hello My Dear, ये पोस्ट आपको कैसा लगा कृपया अवश्य बताइए और साथ में आपको क्या चाहिए वो बताइए ताकि मैं आपके लिए कुछ कर सकूँ धन्यवाद |