1. एक अर्थव्यवस्था के कार्यों का संक्षेप में उल्लेख करें।
उत्तर-एक अर्थव्यवस्था का मुख्य कार्य मानवीय आबश्यकताओं की संतुष्टि के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन करना है। कृषि एवं उद्योग इन सभी प्रकार का उत्पादन करते हैं। इन कार्यों के संचालन के लिए सहायक सामाजिक और आर्थिक सहायक या आधार संरचना होती है।
2. राष्ट्रीय आय क्या है? क्या यह दो देशों ? लिए पर्याप्त है ? संरचनाएँ के विकास के स्तर की तुलना करने के भौतिक वस्तुओं जैसे—पूँजी, ढाँचा, चोर-डा
उत्तर- राष्ट्रीय आय किसी देश के अंदर एक और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य है जिसमें विदेशों निश्चित से प्राप्त अवधि आय भी में उत्पादित समस्त सम्मिलित होती हैतुलना करना पर्याप्त नहीं है क्योंकि आयों से देशों के आर्थिक विकास के स्तर की जनसंख्या असामान्य हो सकती है। इसलिए दो देशों के विकास के स्तर की तुलना करने के लिए प्रतिव्यक्ति आय का प्रयोग लगातार बढ़ रहा है।
3. विश्व बैंक विभिन्न देशों का वर्गीकरण करने के लिए किस प्रमुख मापदंड का प्रयोग करता है ? इस सामदंड की क्या सीमाएँ हैं?
उत्तर- विश्व बैंक विभिन्न देशों का वर्गीकरण करने के लिए प्रति व्यक्ति आय का प्रयोग प्रमुख मापदंड के रूप में 2006 के अपने विश्व विकास प्रतिवेदन (World Development Report 2006) में किया है। 2004 में जिन देशों की प्रति व्यक्ति आय 4,53,000 रुपये प्रतिवर्ष या उससे अधिक थी उन्हें समृद्ध देश तथा जिन देशों की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 37,000 रुपए या उससे कम थी उन्हें निम्न आयवाले देशों की श्रेणी में रखा। परंतु प्रति व्यक्ति आप आय के वितरण की असमानताओं को छिपा देता है।
4. औसत अथवा प्रतिव्यक्ति आय क्या है ? विश्व बैंक ने इस आधार पर विभिन देशों का किस प्रकार वर्गीकरण किया है ?
उत्तर- देश की कुल जनसंख्या से राष्ट्रीय आय में भाग देने से जो भागफल आता है उसे प्रतिव्यक्ति आय अथवा औसत आय कहते हैं। विश्व बैंक इस आधार पर उच्च आय वाले देश (विकसित देश) और निम्न आय वाले देश (विकासशील देश) के रूप में देशों का वर्गीकरण करते हैं।
5. विकास को मापने का संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू. एन. डी. पी.) का मापदंड किस प्रकार विश्व बैंक के मापदंड से अलग है?
उत्तर - विश्व बैंक ने 2006 के अपने विश्व विकास प्रतिवेदन (World Development Report - 2006) में विभिन्न देशों का वर्गीकरण करने में प्रतिव्यक्ति आय को मापदंड के रूप में प्रयोग किया है। परंतु संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू. एन. डी. पी.) विभिन्न देशों की तुलना या वर्गीकरण करने में मानव विकास प्रतिवेदन (Heman Development Report) जो 1990 से प्रति वर्ष प्रकाशित कर रही है मापदंड के रूप में प्रयोग करती है। इसमें देशों के शैक्षिक स्तर, स्वास्थ्य स्थिति और प्रतिव्यक्ति आय के आधार के रूप में लिया जाता है।
6. हम औसत का प्रयोग वर्षों करते हैं ? इसके प्रयोग की क्या सीमाएँ हैं ? विकास जुड़े उदाहरण द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर- औसत या प्रतिव्यक्ति आय किसी देश के विकास की जानकारी प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण मापदंड है। इसके द्वारा दो या दो से अधिक देशों के विकास के स्तर की तुलना करते हैं। पर यह धारणा आय के वितरण की असमानताओं को छिपा देता है। उदाहरण के लिए औसत आय से किसी देश के नागरिकों का आय का वितरण तथा जीवन-स्तर, शिक्षा, स्वास्थ्य के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं मिलती है। जो आर्थिक विकास के मापदंड है।
7. धारणीयता का विषय विकास के लिए क्यों महत्वपूर्ण है ?
उत्तर- धारणीयता का विषय विकास के लिए महत्वपूर्ण है। क्योंकि कोई भी देश जो विकसित कर चुके हैं वे विकास के स्तर को और आगे बढ़ाने का प्रयास करेंगे या उसी स्तर को बनाये रखने का प्रयास करेंगे। परंतु पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार विकास का वर्तमान प्रकार एवं स्तर धाारणीय नहीं है। इसका कारण प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक विदोहन तथा दुरुप्रयोग है। जिससे पर्यावरण जीवनधारण और भूमंडल के लिए कई समस्याएँ उत्पन्न हुई है। जो विकास के गति में बाधक है।
8. आर्थिक विकास के प्रमुख आर्थिक कारकों का उल्लेख करें।
उत्तर- आर्थिक विकास के प्रमुख आर्थिक कारक, प्राकृतिक संसाधन, पूँजी निर्माण, तकनीकी विकास तथा मानवीय संसाधन हैं।
(i) प्राकृतिक संसाधन (Natural resources) — भूमि, जंगल, नदियाँ आदि प्राकृतिक संसाधन है जो किसी देश को प्रकृति द्वारा प्रदान किए जाते हैं। इनपर श्रम एवं पूँजी का प्रयोग कर वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है।
(ii) पूँजी निर्माण (Capital Capital Formation)- अर्थव्यवस्था के विकास में पूँजी का योगदान महत्वपूर्ण होता है। इससे श्रम की उत्पादकता, अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता तथा राष्ट्रीय आय स्तर में वृद्धि होती है।
(iii) तकनीकी विकास (Technical Progress)- इसका अभिप्राय श्रेष्ठ तकनीक एवं आधुनिक विधियों के विकास तथा प्रयोग से है। तकनीकी विकास से उपलब्ध साधनों का कुशलतम प्रयोग तथा उत्पादित वस्तुओं की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में वृद्धि होती है।
(iv) मानवीय संसाधन (Human resources ) — आर्थिक विकास की दृष्टि से मानवीय संसाधनों का सर्वाधिक महत्व है। इनकी सहायता से ही उत्पादन के अन्य साधनों का प्रयोग तथा संभव हो पाता है।
9. देश के अन्य बड़े राज्यों की तुलना में बिहार के आर्थिक विकास की वर्तमान स्थिति क्या है ?
उत्तर- वर्तमान में आर्थिक विकास के प्रायः सभी मापदंडों पर यह देश के अन्य सभी राज्यों से नीचे है। अन्य राज्यों की तुलना में बिहारवासियों की प्रतिव्यक्ति आय भी बहुत कम है। बिहार की जनसंख्या वृद्धि दर 2.5 प्रतिशत है जो अन्य राज्यों की तुलना में अधिक हो यहाँ की साक्षरता दर अन्य राज्यों की तुलना में बहुत ही कम मात्रा 47.53 प्रतिशत है। बिहार की 80 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती है। बिहार की 42 प्रतिशत जनता गरीबी रेखा कवे नीचे जीवन यापन करती है।
10. अधिसंरचना विकास की दृष्टि से बिहार की क्या स्थिति है ?
उत्तर- अधिसंरचना विकास की दृष्टि से बिहार अन्य विकसित राज्यों की तुलना में पीछे हैं। राज्य में प्रतिव्यक्ति बिजली का उपयोग कम है। कृषि, उद्योग व्यापार के लिए राज्य में सड़कों की स्थिति दयनीय है। प्रति लाख जनसंख्या पर सड़कों का घनत्व मात्र 111 किलोमीटर है। देश में सबसे अधिक निरक्षर बिहार राज्य में है। इसकी साक्षरता दर मात्र 47 प्रतिशत 2001 में थी। राज्य की स्वास्थ्य सेवा भी जर्जर अवस्था में है।
11. बिहार में विकास की भावी संभावनाएँ क्या हैं?
उत्तर - बिहार आर्थिक दृष्टि से एक पिछड़ा हुआ राज्य है तथा इसके विकास का स्तर बहुत निम्न है। पिछले दशक के अंतर्गत जहाँ पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, गुजरात तथा दक्षिण भारत के राज्यों का बहुत तेजी से विकास हुआ है, वहाँ बिहार की विकास दर बहुत धीमी रही है। उड़ीसा के बाद हमारे राज्य में निर्धनों का प्रतिशत सर्वाधिक है तथा अधिकांश बिहारवासी घोर निर्धनता में जीवनयापन करते हैं। लेकिन, इससे यह निष्कर्ष निकालना गलत होगा कि इस राज्य में विकास की संभावनाएँ नहीं हैं। विभाजन के पश्चात खनिज संपदा से वंचित हो जाने पर भी बिहार में गन्ना, जूट, चाय आदि कई प्रकार की व्यावसायिक फसलों का उत्पादन होता है तथा राज्य में कृषि आधारित उद्योगों के विकास की संभावनाएँ बहुत अधिक हैं। इसके साथ ही बिहार में उर्वर भूमि एवं जल संसाधन के रूप में प्राकृतिक संसाधनों का विशाल भंडार है। इनके उचित दोहन, प्रबंधन एवं उपयोग द्वारा राज्य को देश के विकसित राज्यों की अगली पंक्ति में लाया जा सकता है।
यह संतोष का विषय है कि पिछले कुछ वर्षों से बिहार सरकार राज्य के विकास के अवरोधों को दूर करने के लिए प्रयत्नशील है। इस अवधि के अंतर्गत उसने प्रशासन की गुणवत्ता, निवेश के वतावरण तथा कानून-व्यवस्था की स्थिति में सुधार लाने के प्रयास किए हैं। इससे राज्य में आर्थिक विकास की प्रक्रिया तेज हुई है।
12. हमारी मूलभूत आवश्यकताओं का विकास से क्या संबंध है ?
उत्तर- हमारी आवश्यकताओं का विकास से घनिष्ठ संबंध है। मनुष्य आवश्यकताओं से प्रेरित होकर ही विकास का प्रयास करता है। मानवीय आवश्यकताएँ अनंत एवं असीमित हैं तथा उनकी कोई सीमा नहीं है। परंतु उसकी कुछ मूलभूत आवश्यकताएँ होती हैं, जिनकी पूर्ति आवश्यक है। आज विश्व के विभिन्न देशों को प्रायः दो वर्गों में विभाजित किया जाता है— विकसित एवं विकासशीला अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, जापान आदि देशों को विकसित देशों की श्रेणी में रखा जाता है; क्योंकि इन देशों में प्रायः अपने सभी नागरिकों की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता है। विकसित देशों की राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय बहुत अधिक है, इनके नागरिकों का जीवन स्तर ऊँचा है तथा इनकी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति बहुत आसानी से हो जाती है। इसके विपरीत, भारत, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश आदि अर्द्धविकसित अथवा विकासशील देशों के उदाहरण हैं। विकास का स्तर निम्न होने के कारण ये देश निर्धन देशों की श्रेणी में आते हैं तथा इनके निवासी अपनी मूलभूत आवश्यकताओं से भी वंचित हैं।
इस प्रकार, विकास का हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति से प्रत्यक्ष संबंध है। देश के अल्पविकास के कारण ही हमारी जनसंख्या का एक बड़ा भाग निर्धन है और उसकी अनिवार्य आवश्यकताओं की भी पूर्ति नहीं हो पाती है।
13. हमारी मूलभूत आवश्यकताओं का विकास से क्या संबंध है?
उत्तर- आवश्यकताओं का विकास से घनिष्ठ संबंध है। विकास के लिए किया गया प्रयास मनुष्य के आवश्यकताओं से प्रेरित है। मानवीय आवश्यकताएँ अनंत एवं असीमित होती है। परंतु, कुछ मूलभूत आवश्यकताएँ भी होती हैं जैसे—भोजन आवास विकसित देश अपने नागरिकों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति आसानी से करती है। क्योंकि वहां नागरिकों की राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय अधिक है परंतु अर्द्धविकसित अथवा विकासशील के विकास का स्तर निम्न होने के कारण इनके निवासी अपनी मूलभूत आवश्यकताओं से भी वंचित है।
14. अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- एक अर्थव्यवस्था वह संगठन या व्यवस्था है जिसमें किसी देश या समाज के सदस्य सभी प्रकार की आर्थिक क्रियाओं का संचालन करते हैं। इसके द्वारा ही किसी राष्ट्र एवं उसके नागरिकों की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। प्रो ब्राउना (AJ Brown) के अनुसार, 'अर्थव्यवस्था जीविकोपार्जन की व्यवस्था है। " इसमें उन सभी संस्थाओं को सम्मिलित किया जाता है जिनके माध्यम से मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए देश के संसाधनों का प्रयोग होता है। इस प्रकार, अर्थव्यवस्था का अभिप्राय एक ऐसी प्रणाली से है जिसमें देश के उपलब्ध साधनों का उपयोग कर विभिन्न प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है।
15. पुँजीवादी अर्थव्यवस्था क्या है ?
उत्तर- पूँजीवादी अर्थव्यवस्था आर्थिक व्यवस्था का एक प्राचीन रूप है। पूँजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में उत्पादन के साधनों पर किसी व्यक्ति या निजी संस्था का अधिकार होता है। इसके अंतर्गत व्यक्तिगत लाभ के उद्देश्य से आर्थिक क्रियाओं का संचालन किया जाता है। इस प्रकार, पूँजीवाद आर्थिक संगठन की एक ऐसी प्रणाली है जो निजी संपत्ति, व्यक्तिगत लाभ एवं निजी प्रेरणा पर आधारित होती है। इसमें किसी भी व्यक्ति को आर्थिक निर्णय लेने की पूर्ण स्वतंत्रता रहती है तथा सरकार उनके आर्थिक क्रियाकलापों में न्यूनतम हस्तक्षेप करती है। यही कारण है कि एक पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को एक स्वतंत्र या बाजार अर्थव्यवस्था भी कहते है
।
16. समाजवादी अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- समाजवादी अर्थव्यवस्था एक नई आर्थिक व्यवस्था है। इसके अंतर्गत उत्पादन के सभी साधन राज्य अथवा सरकार के स्वामित्व और नियंत्रण में रहते हैं। इस व्यवस्था में अधिकतम सामाजिक कल्याण के उद्देश्य से वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन तथा वितरण किया जाता है। प्रो- डिक्सिन (HD Dickinson) के अनुसार, “समाजवाद एक ऐसी आर्थिक संगठन है जिसमें उत्पत्ति के भौतिक साधनों पर समस्त समाज का स्वामित्व होता है तथा उनका संचालन एक सामान्य योजना के अंतर्गत ऐसी संस्थाओं द्वारा किया जाता है जो संपूर्ण समाज का प्रतिनिधित्व करती. " यह प्रणाली विश्व के अनेक देशों में प्रचलित है जिनमें रूस, चीन, पोलैंड, यूगोस्लाविया, हगरी आदि प्रमुख हैं।
17. एक मिश्रित अर्थव्यवस्था किसे कहते हैं ?
उत्तर-पूँजीवाद एवं समाजवाद, आर्थिक व्यवस्था के दो पृथक रूप हैं। जहाँ पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में व्यक्ति को पूर्ण आर्थिक स्वतंत्रता रहती है, वहाँ एक समाजवाद अर्थव्यवस्था इसे समाप्त कर देती है। मिश्रित अर्थव्यवस्था इन दोनों अर्थव्यवस्थाओं के बीच का मार्ग है। इसमें पूँजीवाद एवं समाजबाद दोनों के गुण वर्तमान होते हैं। इसके अंतर्गत अर्थव्यवस्था के कुछ महत्त्वपूर्ण क्षेत्र सरकार के अधीन होते हैं तथा शेष निज उद्यम के हाथ में छोड़ दिए जाते हैं। एक मिश्रित अर्थव्यवस्था में निजी लाभ अर्जित करने की स्वतंत्रता रहने पर भी सरकार लोक-कल्याण की उपेक्षा नहीं करती है।
18. एक अर्थव्यवस्था के कौन-कौन-से क्षेत्र होते हैं ?
उत्तर- एक अर्थव्यवस्था का प्रायः दो दृष्टियों से वर्गीकरण किया जाता है— स्वामित्व के आधार पर तथा व्यवसाय अथवा आर्थिक क्रियाओं के आधार पर। स्वामित्व के आधार पर किसी अर्थव्यवस्था के दो मुख्य क्षेत्र होते हैं—निजी क्षेत्र एवं सार्वजनिक क्षेत्र । भारतीय अर्थव्यवस्था एक मिश्रित अर्थव्यवस्था है तथा इसमें एक संयुक्त क्षेत्र भी है। इस क्षेत्र के उद्योग या व्यवसाय में निजी उद्योगपति और सरकार दोनों की साझेदारी होती है।
व्यवसाय या आर्थिक क्रियाओं के आधार पर किसी अर्थव्यवस्था के तीन मुख्य क्षेत्र होते हैं— प्राथमिक क्षेत्र, द्वितीयक क्षेत्र तथा तृतीयक क्षेत्र ।
19. स्वामित्व की दृष्टि से भारतीय अर्थव्यवस्था के कौन-कौन से क्षेत्र हैं ?
उत्तर- स्वामित्व की दृष्टि से भारतीय अर्थव्यवस्था के दो मुख्य क्षेत्र हैं—निजी क्षेत्र और सार्वजनिक क्षेत्र । निजी क्षेत्र के अंतर्गत वे उद्योग या व्यवसाय आते हैं जो व्यक्तिगत स्वामित्व और नियंत्रण में रहते हैं। इस क्षेत्र में निजी उद्योगपति अपनी औद्योगिक एवं व्यावसायिक संस्थानों की स्थापना करते हैं, उनमें पूँजी लगाते हैं, उनका प्रबंध और संचालन करते हैं तथा उनका लाभ और हानि उठाते हैं। इसके विपरीत, सार्वजनिक क्षेत्र पर राज्य अथवा सरकार का स्वामित्व और नियंत्रण रहता है तथा इस क्षेत्र के उद्योग या व्यवसाय सामाजिक हितों को प्राथमिकता प्रदान करते हैं।
20. निजी क्षेत्र से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- जब किसी उद्योग या व्यवसाय का संगठन एवं संचालन किसी व्यक्ति या निजी संस्था के द्वारा किया जाता है तो उसे निजी उद्यम कहते हैं। इस प्रकार के निजी उद्यमों का निजी क्षेत्र का निर्माण करते हैं। इस क्षेत्र की औद्योगिक इकाइयों पर निजी उद्योगपतियों का स्वामित्व होता है। यह क्षेत्र लाभ के उद्देश्य से उत्पादन और वितरण का कार्य करता निजी क्षेत्र के उद्योगपति कठिन परिश्रम करते हैं तथा उनकी उत्पादन कुशलता अधिक होती है। परंतु, अधिकतम लाभ अर्जित करने के लिए वे प्रायः श्रमिकों और उपभोक्ताओं का शोषण करते हैं। यही कारण है कि सरकार इस क्षेत्र के आर्थिक क्रियाकलाप को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित करती है।
21. सार्वजनिक क्षेत्र क्या है ?
उत्तर- सार्वजनिक क्षेत्र के अंतर्गत वे उद्योग वा व्यवसाय आते हैं जिन पर राज्य अथवा सरकार का नियंत्रण रहता है। इस क्षेत्र के उपक्रम सरकार द्वारा संचालित एवं नियंत्रित होते हैं तथा सरकार ही उनका एकमात्र स्वामी या प्रमुख अंशधारी होती है। इस प्रकार, राजकीय अथवा सरकारी उपक्रमों के समूह को सार्वजनिक क्षेत्र की संज्ञा दी जाती है। निजी उपक्रमों के समान ही सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम भी वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करते हैं। परंतु, यह क्षेत्र उत्पादन की प्रक्रिया में लोक-कल्याण को अधिक महत्त्व देता है । सार्वजनिक क्षेत्र एक निश्चित योजना के अनुसार उत्पादन एवं वितरण का कार्य करता है।
22. पसाय के आधार पर अर्थव्यवस्था के कौन-कौन-से क्षेत्र होते हैं ?
उत्तर- व्यवसाय के आधार पर किसी अर्थव्यवस्था के तीन मुख्य क्षेत्र होते हैं— प्राथमिक क्षेत्र, द्वितीयक क्षेत्र तथा तृतीयक क्षेत्र प्राथमिक क्षेत्र को कृषि क्षेत्र भी कहते हैं। इसके अंतर्गत कृषि एवं इससे संबद्ध व्यवसायों को सम्मिलित किया जाता है, जैसे— खनन, पशुपालन, मत्स्यपालन इत्यादि । द्वितीयक अथवा उद्योग क्षेत्र में सभी प्रकार के निर्माण उद्योग, विद्युत, गैस तथा जलापूर्ति आदि शामिल हैं। तृतीयक क्षेत्र को सेवा क्षेत्र भी कहते हैं। इस क्षेत्र में उन सभी सेवाओं को सम्मिलित किया जाता है जो प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्र के क्रियाकलापों को पूरा करने में सहायक होती है। यह क्षेत्र वस्तुओं का नहीं वरन सेवाओं का उत्पादन करता है।
23. आर्थिक विकास से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- आर्थिक विकास का अर्थ देश के प्राकृतिक एवं मानवीय साधनों के कुशल प्रयोग द्वारा राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति वास्तविक आय में वृद्धि करना है। राष्ट्रीय आय किसी देश के अंदर एक निश्चित अवधि में उत्पादित समस्त वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य है जिसमें विदेशों प्राप्त होनेवाली आय भी सम्मिलित रहती है। प्रतिव्यक्ति आय देश के नागरिकों की औसत : होता है। राष्ट्रीय और प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि होने से नागरिकों का जीवन स्तर ऊँचा होता है और उनकी अनिवार्य आवश्यकताओं की बहुत आसानी से पूर्ति हो जाती है। इस प्रकार, आर्थिक विकास वह प्रक्रिया है जिससे राष्ट्रीय और प्रतिव्यक्ति आय में एक लंबी अवधि तक वृद्धि होती है।
24. विकास को मापने का संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएन०डी०पी०) का मापदंड किस प्रकार विश्व बैंक के मापदंड से अलग है?
अथवा, मानव विकास रिपोर्ट अथवा मानव-विकास सूचकांक क्या है ?
उत्तर- दो देशों के विकास के स्तर की तुलना करने के लिए प्रायः प्रतिव्यक्ति आय की धारणा का प्रयोग किया जाता है। विश्व बैंक ने विभिन्न देशों का वर्गीकरण करने के लिए इसी मापदंड का प्रयोग किया है। लेकिन, यह उनके विकास के स्तर को मापने का एक अपर्याप्त मापदंड है। यही कारण है कि कुछ अर्थशास्त्रियों ने विकास की माप के लिए आय के साथ ही कई अन्य मापदंडों पर भी विचार किया हैं उदाहरण के लिए, संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme) 1990 से प्रतिवर्ष एक मानव विकास रिपोर्ट प्रकाशित कर रही है। इसमें विभिन्न देशों के विकास के स्तर की तुलना नागरिकों के शैक्षिक स्तर, उनकी स्वास्थ्य स्थिति और प्रतिव्यक्ति आय के आधार पर की जाती है।
25. सतत विकास से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- सतत अथवा टिकाऊ विकास वह है जिसमें हम भावी पीढ़ियों की आवश्यकता पूर्ति की क्षमता से कोई समझौता किए बिना अपनी वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। वर्तमान और भविष्य की आवश्यकताओं के बीच समन्वय स्थापित करने के साथ ही सतत विकास का संबंध सभी वर्गों, क्षेत्रों तथा देश के निवासियों की आवश्यकताओं की पूर्ति से है।
इस प्रकार, सतत विकास वह प्रक्रिया है जिसमें प्राकृतिक संसाधनों के विदोहन, पूँजी निवेश, तकनीकी विकास तथा संस्थागत परिवर्तनों में उचित समन्वय द्वारा वर्तमान और भावी आवश्यकता पूर्ति की क्षमता में वृद्धि संभव है।
26. आर्थिक नियोजन क्या है ? भारत में नियोजन का प्रारंभ कब हुआ ?
उत्तर- स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार ने देश के तीव्र आर्थिक विकास के लिए नियोजन का मार्ग अपनाया है। आर्थिक नियोजन का अर्थ राज्य या निर्धारित सत्ता द्वारा संपूर्ण, आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था के एक विस्तृत सर्वेक्षण के आधार पर जान-बूझकर आर्थिक निर्णय लेना है। दूसरे शब्दों में आर्थिक प्राथमिकताओं के आधार पर लक्ष्यों का निर्धारण कर उन्हें एक निश्चित अवधि में पूरा करने का प्रयास ही आर्थिक नियोजन है।
भारत में नियोजन का प्रारंभ 1950 में भारतीय योजना आयोग की स्थापना के साथ हुआ। इस आयोग ने 1951 में प्रथम पंचवर्षीय योजना का प्रारूप प्रस्तुत किया जो अप्रैल 1951 से 1956 पाँच वर्षों की अवधि के लिए था।
27. हमारे देश के लिए नियोजन क्यों आवश्यक है ?
उत्तर- भारत एक अर्द्धविकसित राष्ट्र हैं यहाँ की कृषि पिछड़ी हुई अवस्था में है, देश में पूँजी का अभाव है, उत्पादन-व्यवस्था असंतुलित है तथा नागरिकों का जीवन स्तर निम्न है । प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों की प्रचुरता रहने पर भी पूँजी, तकनीकी ज्ञान आदि के अभाव में हम इनका उचित विदोहन तथा प्रयोग नहीं कर पाए हैं। भारत आर्थिक दृष्टि से एक निर्धन देश है और इसकी निर्धनता सभी प्रकार के विकास कार्यों में बाधक सिद्ध होती है। निर्धनता के कारण लोगों की आय बहुत कम है और देश में पर्याप्त पूँजी का निर्माण नहीं हो पाता है। पूँजी के अभाव में विनियोग तथा विकास की दर भी बहुत कम हो जाती है। अतएव, अर्थव्यवस्था के तीव्र विकास तथा बेरोजगारी, निर्धनता और देश में व्याप्त आय एवं धन के वितरण की विषमताओं को समाप्त करने के लिए नियोजन आवश्यक है।
28. बिहार के विकास की वर्तमान स्थिति क्या है ?
उत्तर-पूर्वी भारत का एक प्रमुख राज्य होने पर भी बिहार आर्थिक दृष्टि से एक पिछड़ा हुआ राज्य है। देश के अन्य राज्यों की तुलना में बिहार का शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद तथा बिहारवासियों की प्रतिव्यक्ति आय बहुत कम है। 2005-06 में वर्तमान मूल्यों पर जहाँ भारत की प्रतिव्यक्ति आय 25,716 रुपये थी वहाँ बिहार की प्रतिव्यक्ति आय मात्र 7,930 रुपये थी। लेकिन, विगत कुछ वर्षों से बिहार सरकार राज्य में विकास के अवरोधों को दूर करने के लिए प्रयत्नशील है। इसके फलस्वरूप विकास की गति तीव्र हुई हैं। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार अभी बिहार की वार्षिक विकास दर 11.03 प्रतिशत है जो राष्ट्रीय औसत (8.49 प्रतिशत) से अधिक है।
29. धारणीयता का विषय विकास के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है ?
उत्तर- आर्थिक एवं मानव विकास को प्रोत्साहित करने के लिए अर्थशयों तथा समाजशास्त्रियों ने समय-समय पर अनेक कारकों पर विचार किया है। आज सभी देश के निवासी यह चाहते हैं कि उनके विकास का स्तर और ऊँचा हो तथा भावी पीढ़ी के लिए भी यह स्तर बना रहे। लेकिन, बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में अनेक पर्यावरण विशेषज्ञों ने यह चेतावनी दी है कि विकास का वर्तमान प्रकार एवं स्तर धारणीय नहीं हैं। इसका कारण यह है कि विगत वर्षों के अंतर्गत आर्थिक विकास और औद्योगिकीकरण के क्रम में प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक विदोहन तथा दुरुपयोग हुआ है। इससे पर्यावरण संबंधी कई समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं जो हमारे जीवनधारण और भूमंडल के लिए संकट का कारण हो सकती है। विकास की दृष्टि से प्राकृतिक साधनों पर अत्यधिक भार होने के कारण प्रत्येक वर्ष विश्व के एक करोड़ हेक्टेयर से भी अधिक जंगल नष्ट कर दिए जाते हैं तथा जल के अभाव में लगभग 60 हेक्टेयर उत्पादन योग्य सूखी भूमि रेगिस्तान में बदल जाती है।
बीसवीं सदी में विकसित देशों ने पिछड़े और अर्द्धविकसित देशों के प्राकृतिक संसाधनों का अधिकतम शोषण किया। परंतु, अब भारत तथा अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाएँ भी अपने उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक विदोहन कर रही है। इससे पर्यावरण तथा जैवमंडल को भावी विकास के लिए सुरक्षित रखने की समस्या गंभीर हो गई है। उदाहरण के लिए हमारे देश के कई भागों में भी भूमिगत जल का अति-उपयोग हो रहा है जिससे इसके स्तर में तेजी से गिरावट आई है। इससे पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों में कृषि की उत्पादकता प्रभावित हुई है। अतएव, हमारी वर्तमान तथा भावी आवश्यकता पूर्ति की क्षमता में वृद्धि के लिए विकास की सत्तता या धारणीयता का विषय अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।
30. प्राकृतिक संसाधनों के मुख्य प्रकार क्या हैं? इनका संरक्षण क्यों आवश्यक है ?
उत्तर- किसी भी देश के आर्थिक विकास के लिए प्राकृतिक संसाधन अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं। हमारे प्राकृतिक संसाधन दो प्रकार के हैं— नवीकरणीय तथा गैर-नवीकरणीय साधन । नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन वे हैं जिनका पुनरुत्पादन संभव होने पर भी कठिन है। अतएव, इनका एक सीमा तक ही प्रयोग किया जासकता है। भूमिगत जल नवीकरणीय साधन का उदाहरण है। फसल और पेड़-पौधों के समान ही प्रकृति इन साधनों की पुनः पूर्ति करती है। लेकिन, यदि हम इन साधनों का अति उपयोग करते हैं, तो हमारे लिए भविष्य में कठिनाई उत्पन्न हो सकती है।
गैर-नवीकरणीय साधन वे हैं जो अनेक वर्षों तक प्रयोग के पश्चात समाप्त हो जाते हैं। पृथ्वी पर इन साधनों का एक निश्चित भंडार है तथा इनकी पूर्ति नहीं हो सकती है। जीवाश्म इंधन, कोयला, गैस, पेट्रोलियम इत्यादि गैर-नवीकरणीय साधनों के उदाहरण हैं। कई बार हमें इन संसाधनों के नए स्रोत या भंडार मिल जाते हैं। लेकिन, समय के साथ ही इनके भंडार भी समाप्त जाएँगे। उदाहरण के लिए, पेट्रोलियम या कच्चा तेल एक गैर-नवीकरणीय संसाधन है हम जमीन से निकालते हैं। यह एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण संसाधन है तथा इनके भंडार सीमित हैं। कच्चे तेल के भंडार की दृष्टि से विभिन्न देशों की अलग-अलग स्थितियाँ हैं। यदि हम संपूर्ण विश्व की दृष्टि से विचार करते हैं तो इसके भंडार लगभग 40-45 वर्षों में समाप्त हो जाएँगे। इस प्रकार, भावी विकास के लिए प्राकृतिक सत्ताधनों के दुरुपयोग को रोकना और उनका संरक्षण आवश्यक है।
31. आर्थिक विकास के गैर-आर्थिक कारकों का उल्लेख करें।
उत्तर- किसी देश के आर्थिक विकास का स्तर गैर- आर्थिक कारकों से भी प्रभावित होता है। प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधन, पूँजी की उपलब्धता, उत्पादन तकनीक आदि विकास के आर्थिक कारक हैं। इनका आर्थिक विकास पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। इसके विपरीत, गैर-आर्थिक कारक आर्थिक विकास को अप्रत्यक्ष रूप में प्रभावित करते हैं। गैर-आर्थिक कारकों में राजनैतिक, सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाएँ महत्त्वपूर्ण हैं | इस संस्थाओं के प्रतिकूल रहने पर आर्थिक विकास की गति मंद हो जाती है। राजनैतिक स्थायित्व तथा राज्य अथवा सरकार के सहयोग एक अर्थव्यवस्था का कुशल संचालन संभव नहीं है। उदाहरण के लिए, भारतीय अर्थव्यवस्था के अर्द्धविकसित होने का एक प्रधान कारण राजनैतिक रहा है। अँगरेजों के आगमन के पूर्व भारत की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ एवं स्वावलंबी थी । विदेशी शासकों की विभेदात्मक नीति के कारण ही भारत में आधारभूत और पूँजीगत उद्योगों का विकास नहीं हो सका जो उद्योगीकरण के आधार होते हैं। शिक्षा-प्रणाली उत्पादक क्रियाओं में प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं लेती, परंतु ऐसी सेवाएँ प्रदान करती है जो हमारी उत्पादन क्षमता को बढ़ाती हैं। इसी प्रकार, चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं सामाजिक सेवाओं से भी लोगों की उत्पादन-कुशलता में वृद्धि होती है। यदि देश की सामाजिक एवं धार्मिक संस्थाएँ सामाजिक चेतना तथा जीवन के नए मूल्यों को विकसित करती हैं तब इसका आर्थिक विकास पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। -
32. अधिसंरचना विकास की दृष्टि से बिहार की क्या स्थिति है ?
अथवा, "बिहार के आर्थिक पिछड़ेपन का एक प्रमुख कारण इसकी कमजोर आधार-संरचना है।" 'विवेचना करें।
उत्तर- अधिसंरचना अथवा आधार-संरचना का अभिप्राय उन सेवाओं से हैं जो एक अर्थव्यवस्था को कार्यशील बनाती हैं। इस संरचना या ढाँचे पर ही किसी अर्थव्यवस्था का विकास निर्भर है।
अधिसंरचना विकास की दृष्टि से बिहार हमारे देश के अन्य विकसित राज्यों की बहुत पीछे है। यहाँ की आर्थिक और सामाजिक दोनों ही संरचनाएँ बहुत कमजोर और निम्न स्तर की है। राज्य में प्रतिव्यक्ति बिजली का उपयोग अन्य राज्यों की अपेक्षा बहुत कम है। कृषि, उद्योग एवं व्यापार सभी क्षेत्रों के विकास के लिए सड़क परिवहन की उन्नत अवस्था आवश्यक है। परंतु, बिहार में सड़कों की स्थिति अत्यंत दयनीय है। सघन आबादीवाला राज्य होने पर भी यहाँ प्रति लाख जनसंख्या पर सड़कों का घनत्व मात्र 111 किलोमीटर है जबकि संपूर्ण देश में यह घनत्व तीन गुना अधिक (360 किलोमीटर) है। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ विकास के महत्त्वपूर्ण मापदंड हैं। बिहार में इन सेवाओं का स्तर भी बहुत निम्न है। 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में साक्षरता दर लगभग 65 प्रतिशत थी जबकि बिहार में यह 47 प्रतिशत थी। देश में सबसे अधिक निरक्षर बिहार राज्य में हैं। राज्य की स्वास्थ्य सेवा जर्जर अवस्था में है तथा लगभग दो-तिहाई बच्चे जन्म के समय दिए जानेवाले जीवन-प्रतिरक्षक टीकों से भी वंचित रहते हैं। बिहार में कुपोषण से ग्रस्त बच्चों का अनुपात देश में सबसे अधिक है।
विगत वर्षों के अंतर्गत बिहार में शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में सुधार हुआ है और लोग उससे लाभान्वित हुए हैं। लेकिन, राज्य की आधार-संरचना में सुधार अभी भी हमारे लिए एक गंभीर और चुनौतीपूर्ण विषय है।
33. अर्थव्यवस्था किसे कहते हैं ?
उत्तर- अर्थव्यवस्था एक देश या क्षेत्र विशेष की व्यवस्था है, जिसके अन्तर्गत मनुष्य अपने आवश्यकताओं की संतुष्टि से संबंधित अपने सभी आर्थिक कार्यकलापों का संपादन करता है। जैसे— कृषि, उद्योग, व्यापार इत्यादि ।
0 Comments