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Class 10th Bharati Bhawan Political Science Chapter 4 | Long Answer Questions | संघात्मक शासन-व्यवस्था | कक्षा 10वीं भारती भवन राजनीतिशास्त्र | दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Class 10th Bharati Bhawan Political Science Chapter 4  Long Answer Questions  संघात्मक शासन-व्यवस्था  कक्षा 10वीं भारती भवन राजनीतिशास्त्र  दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Class 10th Bharati Bhawan Political Science Chapter 4 Long Answer Questions
1. राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 के अनुसार भारत के राज्यों का पुनर्गठन किस प्रकार किया गया ?
उत्तर- सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में देशी राज्यों के एकीकरण का कार्य संपन्न तो हो गया था, परंतु वह अस्थायी व्यवस्था थी। भारत जब स्वतंत्र हो गया तो भारत की जनता भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की मांग करने लगी। भाषा के आधार पर प्रांतों के पुनर्गठन के सिद्धांत को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1920 में ही स्वीकार कर लिया था। भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के लिए भारत सरकार समय-समय पर आयोग एवं समितियाँ को गठित करती रही। अंत में 1956 में न्यायमूर्ति फजल अली की अध्यक्षता में राज्य पुनर्गठन आयोग बना। इस आयोग की सिफारिश पर चार श्रेणियों के राज्यों की व्यवस्था समाप्त कर दो श्रेणियों के राज्यों का गठन किया गया— राज्य एवं संघीय क्षेत्र (केन्द्रशासित प्रदेश)। 1956 में 14 राज्य एवं 6 संघीय क्षेत्र गठित किए गए। इतना होने पर भी राज्य पुनर्गठन की समस्या का समाधान नहीं हो सका। भाषा के आधार पर राज्यों के विभाजन की मांग बनी रही।
2. 1956 के बाद भारत के बदलते राजनीतिक मानचित्र का वर्णन करें।
उत्तर- 1956 में राज्यपुनर्गठन आयोग की स्थापना के बाद भारत के राजनीतिक मानचित्र में काफी बदलाव आए। 1956 में जहाँ 14 राज्य एवं 6 केन्द्रशासित प्रदेश थे वहीं वर्तमान में 28 राज्य एवं 7 केन्द्रशासित प्रदेश हैं। भाषा के आधार पर राज्यों के विभाजन की माँग के कारण बंबई राज्य का विभाजन कर 1960 में गुजरात और महाराष्ट्र दो राज्यों का गठन किया गया। भारत के जिन भूखंडों पर विदेशियों का आधिपत्य था उनके चंगुल से मुक्त कराकर भारत में मिला लिया गया। 1961 में गोवा, दमन एवं द्वीव, पांडिचेरी, दादर एवं नगर हवेली को संघीय क्षेत्र के अंतर्गत रखा गया। 1963 में एक नए राज्य नागालैंड की स्थापना की गयी। 1966 में पंजाब का विभाजन कर पंजाब और हरियाणा अलग-अलग राज्य बनाए गए। चंडीगढ़ को दोनों राज्यों की राजधानी बनाया गया तथा चंडीगढ़ को संघीय क्षेत्र का दर्जा दिया गया। 1970 में असम राज्य के एक और भाग को काटकर मेघालय नामक राज्य बनाया गया। 1970 के बाद भारत में अपने क्षेत्र के प्रति अधिक लगाव का प्रदर्शन प्रारंभ हो गया जिससे लोगों को संतुष्ट करने के लिए राज्य के दर्जा में परिवर्तन, राज्य के नामों में परिवर्तन और नए राज्यों के निर्माण का सिलसिला शुरू हुआ। 1969 से मद्रास राज्य का नाम तमिलनाडु हो गया। 1973 में मैसूर का नाम परिवर्तित होकर कर्नाटकं हो गया।
राज्यों के नामों में परिवर्तन के साथ-साथ कई केन्द्रशासित प्रदेश पूर्ण राज्य का दर्जा देने की माँग कर रहे थे। हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा को तो राज्य का दर्जा प्राप्त पहले ही हो चुका था। 1975 में सिक्किम भारत का 22 वाँ राज्य बना। 1987 में मिजोरम को केन्द्रशासित प्रदेश के दर्जे से उठाकर राज्य का दर्जा दे दिया गया। 1987 में गोवा को प्रदेश से अलग कर राज्य का दर्जा दिया गया। केन्द्रशासित
कुछ क्षेत्रों में लोगों का अपने क्षेत्र के लिए अगाध प्रेम उमड़ पड़ा और इन क्षेत्रों के लिए नए राज्यों की माँग तीव्र होती गयी। एक लंबे संघर्ष और आंदोलन के बाद अंतत: भारत के मानचित्र पर तीन नए राज्यों छत्तीसगढ़, उत्तरांचल (वर्तमान में उत्तराखंड) और झारखंड का अभ्युदय हुआ। 
3. भारतीय संघात्मक व्यवस्था की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें। 
उत्तर - भारतीय संघात्मक व्यवस्था की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) दोहरी सरकार- संघीय शासन-व्यवस्था में दो प्रकार की सरकारें कार्यशील रहती हैऔर दूसरी इकाइयों की जिसे राज्य सरकार के नाम से जाना जाता है।
(ii) अधिकार क्षेत्र- दोनों प्रकार की सरकारों का कानून बनाने के क्षेत्र में, राजस्व वसूली के क्षेत्र में तथा प्रशासन के क्षेत्र में उनका अधिकार क्षेत्र अलग-अलग होता है।
(iii)  संविधान द्वारा सत्ता का विभाजन- संविधान द्वारा दोनों स्तरों की सरकारों के बीच सत्ता का विभाजन कर दिया गया है। संविधान के प्रावधानों द्वारा दोनों स्तरों की सरकारों को प्राधिकार की गारंटी प्राप्त हो जाती हैं तथा उनके अधिकार क्षेत्र एवं अस्तित्व को सुरक्षा प्राप्त हो जाती है।
(iv) स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका- संविधान की व्याख्या तथा दोनों स्तरों की सरकार के बीच अधिकारों को लेकर टकराव की स्थिति से निबटने के लिए स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका का भी गठन किया गया है।
(v) संविधान की सर्वोच्चता- संविधान की सर्वोच्चता संघीय शासन व्यवस्था की सर्वोच्च विशेषता है। केन्द्र या इकाइयों की सरकारें संविधान से ऊपर नहीं हैं। सर्वोच्च न्यायालय को संविधान का रक्षक बनाया गया है।
(vi) संविधान के मौलिक प्रावधानों में सांविधानिक संशोधन द्वारा ही परिवर्तन- संविधान के मौलिक प्रावधानों को सांविधानिक संशोधन लाकर परिवर्तित करने में केन्द्र सरकार के साथ-साथ इकाई की सरकारों की भी सहमति आवश्यक है। 
(vii) क्षेत्रीय विविधताओं का सम्मान- संघीय शासन व्यवस्था की एक विशेषता यह भी है कि इसमें क्षेत्रीय विविधताओं का पूरा सम्मान किया जाता है। ऐसा करने पर ही देश की एकता सुरक्षित रहती है।
4. संघ और राज्य के बीच विधायी संबंध की विवेचना करें।
उत्तर- संघीय शासन व्यवस्था में केन्द्र और राज्यों के बीच विधायी संबंध के अंतर्गत संविधान द्वारा संघ और राज्यों के बीच सत्ता का विभाजन कर दिया गया है। कानून बनाने के विषय बँटे हुए हैं, फिर भी विधि-निर्माण के क्षेत्र में संघ को विशेष अधिकार दिए गए हैं। अधिक महत्त्वपूर्ण विषय संघ सूची में रखे गए हैं। रेलवे, रक्षा, विदेश नीति, आयकर, डाक एवं तार इत्यादि संघ सूची के विषय हैं। निम्नलिखित उदाहरणों से संघ की प्रधानता स्पष्ट हो जाती है
1. भारतीय संविधान में स्पष्ट कर दिया गया है कि संघीय संसद और राज्यों के विधान मंडलों द्वारा बनाए गए कानूनों में विरोध होता है तो संघीय कानून को ही मान्यता दी जाएगी।
2. भारतीय संविधान के अंतर्गत तीन सूचियों के माध्यम से संघ और इकाइयों के बीच अधिकारों का विभाजन कर दिया गया है, परंतु अवशिष्ट अधिकार संघ को दिए गए हैं। 
3. राज्यसभा को यह अधिकार दिया गया है कि यदि वह दो-तिहाई बहुमत से राज्य सूची के किसी विषय को राष्ट्रीय महत्व का घोषित कर दे तो उसपर कानून बनाने का अधिकार संसद को मिल जाता है।
4. संघीय क्षेत्रों के लिए जहाँ विधानसभा नहीं है, उन विषयों पर संसद कानून बना सकती है जो राज्य सूची में हैं।
5. राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होनेपर भी संसद उस राज्य के लिए राज्य सूची के विषय पर कानून बना सकती है।
6. किसी अन्य देश के साथ संधि, समझौता या अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन या संस्था द्वारा किए गए किसी निर्णय को कार्यान्वित करने से संबद्ध विषयों पर सांसद को कानून बनाने का अधिकार है।
7. युद्ध और आंतरिक अशांति के कारण संकटकाल की घोषणा होने पर भी संसद राज्य सूची के विषयों पर कानून बना सकती है।
5. संघ और राज्य के बीच प्रशासकीय संबंध का वर्णन करें।
उत्तर- प्रशासकीय क्षेत्र में संघ की स्थिति राज्य की तुलना में काफी अच्छी है। यह बात सही है कि संघ और राज्यों के बीच प्रशासकीय अधिकारों का सीमांकन कर दिया गया है, परंतु इस क्षेत्र में भी केन्द्रीय सरकार को राज्यों को निर्देश देने, अधीक्षण करने और उनपर नियंत्रण रखने का अधिकार है। केन्द्र और राज्यों के बीच प्रशासकीय संबंधों का वर्णन इस प्रकार है
1. हर राज्य की कार्यपालिका शक्ति का उपयोग इस प्रकार किया जाएगा कि संसद के बा गए कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित किया जाए।
2. हर राज्य की कार्यपालिका शक्ति का उपयोग इस प्रकार होता है कि संघ की कार्यपालिका शक्ति के उपयोग के मार्ग में कोई बाधा नहीं आए।
3. संसद को किसी राज्यपथ को राष्ट्रीय जनपथ घोषित करने का अधिकार है। संघीय कार्यपालिका किसी राज्य के अंतर्गत रेलों की रक्षा के लिए किए जानेवाला उपायों के बारे में निर्देश दे सकता है।
4. संविधान में यह भी व्यवस्था की गई है कि हस्तांतरित कर सकता है तथा राज्य संघ को अपने कुछ प्रशासनिक कार्य सौंप सकता है। 
5. संविधान में केन्द्रीय सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि वह राज्यों पर इस बात की निगरानी रखे कि उनका प्रशासन ठीक से चलता रहे तथा राज्य किसी प्रकार केंद्र की विधायी तथा कार्यकारो शक्तियों में हस्तक्षेप नहीं करे। इसके लिए केंद्रीय सरकार राज्य सरकारों को निर्देश दे सकती है, राज्य सरकार के सहमत होने पर केन्द्रीय सरकार कोई भी कार्य सौंप सकती है तथा कुछ अखिल भारतीय सेवाओं का निर्माण कर सकती
6. संघ और राज्य के बीच किस प्रकार का वित्तीय संबंध निर्धारित किया गया है ? 
उत्तर- संघ सरकार और राज्य सरकारों के बीच वित्तीय संबंध भी काफी महत्वपूर्ण हैं। दोनों सरकारों की वित्तीय अधिकार तथा आय के साधनों को संविधान द्वारा निश्चित कर दिए गए हैं। दोनों सरकारों के बीच वित्तीय संबंध को इस प्रकार समझा जा सकता है
1. कुछ कर ऐसे हैं जो संघ सरकार के अधिकार में हैं, किंतु उन्हें राज्यों की सरकारों को वसूल करने और खर्च करने का अधिकार प्राप्त है। 
2. कुछ कर ऐसे हैं जिन्हे संघ सरकार ही लागू तथा वसूल करती हैं, किंतु धन की राशि उन राज्यों को दे दी जाती है जिनसे वे वसूल किए जाते हैं।
3. कुछ ऐसे भी कर हैं जिन्हें संघीय सरकार लगाती है और वहीं वसूल करता है, पर संविधान ने भारतीय संसद को इस संबंध में यह अधिकार दिया है कि वह कानून बनाकर उन करों से प्राप्त आय को पूर्णतया या आशिक रूप से उन राज्यों को वापस कर दे जिनसे वे वसूल किए जाते हैं।
4. यदि भारतीय संसद कोई ऐसा अधिनियम पारित कर देती है कि अमुक राज्यों को आर्थिक सहायता प्रदान की जाए तो केन्द्रीय सरकार को उस राज्य की सहायता करनी होती है | 
5. संघ सरकार राज्य सरकारों को अनुदानों के रूप में भी आर्थिक सहायता देती है। पीड़ितों की सहायता, निर्वासितों को पुनर्वास, अनुसूचित आदिम जातियों की उन्नति तथा राज्यों को आर्थिक संकट का सामना करने के लिए संघीय सरकार राज्य सरकारों को अनुदान देती है।
7. केन्द्र और राज्य के संबंधों के आधार पर बताएँ कि संघ राज्य को कैसे नियंत्रित करता है ?
उत्तर- भारत में संघात्मक शासन-व्यवस्था है जिसमें केन्द्र राज्य का काफी महत्वपूर्ण संबंध होता है। केन्द्र-राज्य के बीच तीन तरह के संबंध होते हैं— विधायी, प्रशासकीय और वित्तीय। तीनों प्रकार के संबंधों द्वारा संघ राज्यों को नियंत्रित रखने का प्रयास करता है।
विधायी आधार पर नियंत्रण - संविधान द्वारा संघ और राज्यों के बीच सत्ता का विभाजन कर दिया गया है। कानून बनाने के विषय बँटे हुए हैं, फिर भी विधि निर्माण के क्षेत्र में संघ को विशेष अधिकार दिए गए हैं। अति महत्वपूर्ण विषयों जैसे— रेलवे, रक्षा, विदेश नीति, आयकर, डाक एवं तार इत्यादि संघ सूची में रखे गए हैं।
प्रशासकीय आधार पर नियंत्रण - प्रशासकीय क्षेत्र में भी संघ की स्थिति राज्य की तुलना में काफी अच्छी है। यह बात सही है कि संघ और राज्यों के बीच प्रशासकीय अधिकारों का सीमांकन कर दिया गया है, परंतु इस क्षेत्र में भी केन्द्रीय सरकार को राज्यों को निर्देश देने, अधीक्षण करने और उनपर नियंत्रण रखने का अधिकार प्राप्त है। .
वित्तीय आधार पर नियंत्रण - संघ और राज्य सरकारों में वित्तीय संबंध भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। दोनों सरकारों की आय का साधन संविधान द्वारा निश्चित कर दिया गया है। फिर भी केन्द्रीय सरकार के पास वित्ता आधार पर काफी अधिकार प्राप्त है और वह राज्य को समय-समय पर सहायता ही करती है।
8. केन्द्र-राज्य संबंध पर एक निबंध लिखें ?
उत्तर- भारत में संघात्मक शासन व्यवस्था है जिसके अंतर्गत केन्द्र और राज्यों के बीच एक संबंध होता है। भारत में भी संघ राज्य के संबंधों को तीन श्रेणियों में बाँटा गया है- विधायी प्रशासकीय और वित्तीय जिसका वर्णन निम्नलिखित रूप से किया जा सकता है— 
विधायी संबंध - संविधान द्वारा संघ और राज्यों के बीच सत्ता का विभाजन कर दिया गया है। कानून बनाने के विषय बँटे हुए है, फिर भी विधि-निर्माण के क्षेत्र में संघ की विशेष अधिकार दिए गए हैं। अधिक महत्वपूर्ण विषय संघ सूची रक्षा, विदेश नीति, आयकर, डाक एवं तार इत्यादि संघ बिक्रीकर जैसे विषय राज्य सूची में रखे गए हैं। 
प्रशासकीय संबंध- प्रशासकीय क्षेत्र में भी संघ की स्थिति की तुलना में काफी अच्छी है। संघ और राज्यों के बीच प्रशासकीय अधिकारों का सीमांकन कर दिया गया है, परंतु इस क्षेत्र में भी केंद्रीय सरकार को राज्यों को निर्देश देने, अधीक्षण करने और उ नियंत्रण रखने का अधिकार प्राप्त है। 
वित्तीय संबंध- संघ सरकार और राज्य सरकारों के बीच वित्तीय संघ भी महत्वपूर्ण माना जाता है। दोनों सरकारों की आय के साधनों को संविधान द्वारा निश्चित कर दिया गया है।
वर्तमान संबंध - केन्द्र-राज्य संबंधों में अनेक विवाद को देखते हुए केंद्रीय सरकार ने सहकारिया आयोग की नियुक्ति की, जिसने केंद्र-राज्य संबंध को मधुर बनाने के लिए अनेक सुझाव दिए हैं जिन पर अमल किया जा रहा है। केंद्र और विभिन्न राज्यों में गठबंधन सरकार की शुरूआत का प्रभाव केंद्र-राज्य संबंध पर पड़े बिना नहीं रहा। परंतु इससे हमारी संघीय व्यवस्था पर कोई आँच नहीं आई है। दोनों सरकारों की सत्ता में भागीदारी भी पहले की अपेक्षा अधिक बढ़ गई है। सत्ता में भागीदारी के साथ-साथ राज्यों की स्वायत्तता के आदर में भी वृद्धि हो गई है। भारत में संघीय शासन व्यवस्था पहले की अपेक्षा अधिक ठोस नजर आने लगी है। यह केंद्र तथा राज्यों के बीच मधुर संबंधों का ही परिणाम है।

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