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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. भारतीय वनों की विभिन्न पेटियों का वर्णन करें। अथवा, भारत की प्राकृतिक वनस्पतियों का विस्तृत वर्णन करें।
उत्तर-वर्षा, तापमान, उच्चावच तथा भौगोलिक स्थिति के कारण भारत की प्राकृतिक वनस्पति में विविधताएँ मिलती है। भारत में 5 प्रकार के वन तथा उनमें विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक वनस्पतियाँ मिलती हैं।
(i) चिरहरित वन (उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन)-उष्ण कटिबंधीय वर्षा वनवाले ये वन 200 सेंटीमीटर से अधिक वर्षावाले क्षेत्रों में है। इस दृष्टि से पश्चिमी घाट, अंडमान द्वीप, हिमालय की तराई एवं उत्तर-पूर्वी भारत के क्षेत्र उल्लेखनीय है। यहाँ पेड़ों की 60 मीटर तक मिलती हैं जिनमें महोगनी, आबनूस, रोजवुड, बेंत, बाँस, ताड़, सिनकोना एवं रबर महत्वपूर्ण वृक्ष हैं।
(ii) पतझड़ वन (उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन)- 70 से 200 सेंटीमीटर वर्षावाले क्षेत्र में पतझड़ वन पाए जाते हैं। इस दृष्टि से हिमालय की तराई एवं प्रायद्वीपीय पठार का उत्तर-पूर्वी भाग महत्वपूर्ण क्षेत्र है इस वन के वृक्ष ग्रीष्मकाल के आरंभ में अपनी पत्तियाँ गिरा देता है। यहाँ के महत्वपूर्ण वृक्षों में सागवान, सखुआ, शीशम, चंदन, आम, महुआ, बाँस आदि शामिल हैं।
(iii) शुष्क और कटीले वन- 70 सेंटीमीटर से कम वर्षावाले क्षेत्रों की यह विशेषता है। इस पेटी में राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात के कुछ भाग शामिल है। वर्षा की कमी के कारण यहाँ छोटे पेड़ तथा झाड़ियाँ उगती हैं जिससे कीकर, बबूल, खैर, खजूर, नागफनी उल्लेखनीय है।
(iv) पर्वतीय वन- 1,500 मीटर से अधिक ऊँचाई पर इस प्रकार के वन मिलते हैं जिन्हें कोणधारी चिररहित वन एवं अल्पाइन वनस्पतियों में बाँटा जाता है। यहाँ देवदार, स्पूस, सिल्वर फर, चीड़, ओक, पोपलर, मैपल इत्यादि के पेड़ मिलते हैं।
(v) ज्वारीय वन- भारत के पूर्वी तटीय भाग में जहाँ निम्न डेल्टा भाग ज्वार के समय लमग्न हो जाता है, वहाँ ज्वारीय वन का विकास पाया जाता है। ऐसे वन में मैंग्रोव एवं सुंदरी वृक्ष अधिक पाए जाते हैं।
2. भारत के वन्य जीवों और उनके संरक्षण पर प्रकाश डालें।
उत्तर-वनस्पति की विविधता की तरह भारत में वन्य पशुओं की विविधता भी देखी जा सकती है। यहाँ 89,000 जातियों के वन्य प्राणी मिलते हैं। हाथी जैसे बड़े पशु से लेकर भालू, सिंह, सियार और चूहे तथा गिलहरी तक के जीव पाए जाते हैं। जल-स्थलचर घड़ियाल (मगरमच्छ) केवल भारत में ही मिलते हैं। यहाँ मछलियों की कोई 2500 जातियाँ और पक्षियों की 1200 से अधिक जातियाँ मिलती हैं।
भारतीय पक्षियों में मोर, हंस, बत्तख, मैना, तोता, कबूतर, सारस और बगुल मुख्य रूप से मिला करते हैं। मोर को राष्ट्रीय पक्षी होने का गौरव है। जीवों की विविध बनाये रखने के लिए वन्य प्राणियों के संरक्षण के लिए अनेक योजनाएँ चलती है।
3. भारत में वनों के संरक्षण की आवश्यकता क्यों है? इसे कैसे सफल बनाया जा सकता है?
उत्तर-वन भारत की अमूल्य राष्ट्रीय सम्पत्ति हैं, जहाँ 47,000 किस्मों की नस्पतियाँ मिलती हैं। फूल देनेवाले 15,000 प्रकार के पौधे तथा जड़ी-बूटियों की 2,000 किस मिलती हैं। इतने विविध एवं धनी वन संसाधन के कारण ही भारत विश्व में 10वाँ तथा एशि में चौथा स्थान रखता है। यही नहीं यहाँ उष्ण, शीतोषण एवं आर्टिक तीनों कटिबंधों में पा जानेवाले पेड़-पौधे मिलते हैं जो भारतीय वन की विशिष्टता है। इन वनों में किछ ऐसे भी पेड़ पौध और वनस्पतियाँ मिलती हैं जो विश्व में कहीं भी दूसरी जगह दुर्लभ है। इसमें सर्पगंधा उल्लेखनीय है। रक्तचाप की औषधि तैयार करने में काम आनेवाली यह वनस्पति है। भारत के 60% पौधे विशुद्ध देशी हैं। ऐसी स्थिति में भारत की यह अमूल्य संपदा देशवासियों के लिए गर्व की बात है। इन सभी वनों की अलग-अलग संसाधनात्मक क्षमता है।
वनों का वितरण वर्षा, तापमान और उच्चावचे से प्रभावित है। इस तरह, इन वनों की विभिन्नता के साथ वन्य प्राणियों में भी विभिन्नताएँ मिलती हैं। भारत में चहा और खरगोश से लेकर हाथी, ऊँट एवं गैंडा जैसे विशाल जानवर एवं कई स्थल-जलचर जीव भी मिलते हैं। इस दृष्टि से यहाँ 89,000 प्रजातियों के वन्य जीव, 2,500 प्रजातियों की मछलियाँ एवं 1,200 से अधिक प्रजातियों की चिडिया मिलती है।
विकास के नाम पर आर्थिक लाभ की प्राप्ति के लिए वनों को साफ किया गया है। इससे न केवल पर्यावरणीय असंतुलन की समस्या गंभीर हुई है, बल्कि वन्य जीवों का अस्तित्व और सुरक्षा भी खतरे में पड़ गया है। इसलिए, भारतीय वों के सरंक्षण की नितांत आवश्यकता है। इसे सफल बनाने के लिए वन्य जीव अभ्यारण्य विकसित किए गए हैं प्राणियों के सरंक्षण की योजनाएं चलाई जा रही हैं। राष्ट्रीय वन उद्यान, जैविक उद्यान, वन महोत्सव की योजनाएं देश में चलाई जा रही हैं। इसे सफल बनाने के लिए सबसे बड़ी आवश्यकता है। प्रत्येक नागरिक में इसका महत्ता के प्रति जागरूकता पैदा करना है।
4. भारत की वनस्पतियों एवं जीवों को प्रभावित करनेवाले कारकों का वर्णन करें। अथवा, भारत में वनस्पति एवं वन जीवों में पाई जानेवाली विविधताओं के भौगोलिक कारकों की समीक्षा करें।
उत्तर- बनस्पतियों एवं जीवों के बीच घनिष्ठ संबंध पापा जाता है। वास्तव में जीवों का निवास उसके भौतिक पर्यावरण से जुड़ा होता है। प्रत्येक जीव संकर जीव समूह एक ही प्रकार के वातावरण में रहते हैं। परंतु, सभी जीव एक ही प्रकार के वाताव ण में नहीं पाए जाते हैं। अर्थात्, वातावरण-विशेष अनुरूप ही वनस्पतियाँ भी पाई जाती हैं। भौगोलिक दृष्टि भारत की वनस्पतियों एवं जीवों की विविधताएँ कई कारकों से प्रभावित हैं। इनमें प्रमुख हैं
(i) उच्चावच- उच्चावच की दृष्टि से देश में पर्वत, पठार एवं मैदान जैसी विशेषताएँ पाई i) जाती है। इनकी मौलिक विशेषताओं में भिन्नता के कारण वनस्पतियों से भी भिन्नता का पाया जाना स्वाभाविक है।
(ii) तापमान- देश के विशाल आकार के कारण यहाँ के तापमान में भी पर्याप्त क्षेत्रीय विशेषताएँ मिलती हैं। तापमान के अंतर के साथ ही वनस्पति में भी भिन्नताएँ आ जाती है।
(ii) वर्षा- भारत में वर्षा की मात्रा में अंतर का एक प्रारूप मिलता है। उसी प्रारूप के अनुसार वनस्पतियों के प्रारूप में भी परिवर्तन पाया जाता है।
इन विशेषताओं के कारण देश में 5 प्रकार के वनस्पति प्रदेश में कई प्रकार के पशु-पक्षी मिलते हैं।
(i) चिररहित वनस्पति प्रदेश- इन वनस्पति प्रदेश में सदाबहार दक्ष पाए जाने, उच्च तापमान, वर्षा एवं दलदली प्रदेश होने के कारण बंदर, लंगूर, हाथी, एक सींगवाला गैंडा तथा तरह-तरह के पक्षी मिलते हैं।
(ii) पतझड़ वनस्पति प्रदेश- इन वनों में जंगली सूअर, बाघ, हाथी, हिरण, लकड़बगधा, शेर एवं मोर जैसे पक्षी भी मिलते हैं।
(iii) शुष्क वनस्पति प्रदेश- यहाँ जंगली गधा एवं ऊँट पाया जाता है।
(iv) पर्वतीय वनस्पति प्रदेश- तेंदुआ यहाँ का मुख्य जानवर है।
(v) ज्वारीय वनस्पति प्रदेश- रायल बंगाल टाइगर, घड़ियाल, साँप, कछुआ इत्यादि यहाँ पाए जाते हैं।
इससे स्पष्ट होता है कि उच्चावच, तापमान एवं वर्षा में अंतर के कारण वनस्पति तथा जीव का विकास प्रभावित होता है।
5. वनस्पति एवं प्राणी जगत की उपयोगिता पर प्रकाश डालें।
उत्तर-भारत में लगभग 47,000 किस्मों की वन्सपतियाँ उगती हैं। इस दृष्टि से इसका विश्व में 10वाँ एवं एशिया में चौथा स्थान है। फूलवाले पौधों की लगभग 15,000 किस्में एवं जड़ी बूटियों का 2,000 किस्में पाई जाती है। इसके साथ-ही-साथ यहाँ जीवों की 89,000 प्रजातियाँ मिलती हैं। मछलियों की 2,500 प्रजातियाँ तथा पक्षियों की 1,200 से अधिक प्रजातियाँ मिलती है।
इन विविधताओं के साथ ये भारत के सुंदर एवं स्वच्छ वातावरण का निर्माण करते हैं। चिरहरित क्न के वृक्षों की कटाई से पारिस्थितिक असंतुलन की समस्याएँ उत्पन्न होती जा रही हैं। पत्तझड़ वन की वनस्पति आर्थिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। यहाँ के वृक्षों में सागवान, साल, शीशम और चंदन के वृक्ष विशेष आर्थिक महत्व के हैं सागवान और साल की लकड़ी भवन निर्माण, नाव तथा जहाज निर्माण के लिए उपयोग होती है। चंदन सर्वाधिक कीमती लकड़ी है। बाँस और साबै घास का उपयोग कागज उद्योग में होता है। रेशम के कीड़े शहतूत तथा लाह के कीड़े पलास, बबूल और पीपल के वृक्ष पर पाले जाते हैं। शुष्क वन की वनस्पतियों में खजूर से चीनी एवं गुड़ बनाने का उद्योग चलता है। बबूल पर लाह के कीड़े पालने का काम किया जाता है। नागफनी का उपयोग औधषि के रूप में भी होता है। ज्वारीय वनस्पति सुंदरी वृक्ष का उपयोग जलावन के कार्य में होता है। नारियल और ताड़ के वृक्षों का व्यापक आर्थिक महत्त्व है।
इस प्रत्यक्ष लाभों के अतिरिक्त इन वनस्पतियों एवं वनों के अप्रत्यक्ष लाभ भी है। ये जलवायु को सम रखते हैं। बादलों को आकृष्ट कर वर्षा लाते है। मिट्टी कटाव को रोकते हैं। आंधी-तूफान एवं बाढ़ को रोकते हैं। पत्तियों के गिरने तथा सड़ने-गलने से खाद तैयार होती है जिससे भूमि उपजाऊ होती है। अंततः, ये वृक्ष और जानवर पर्यावरण का एक मुख्य अंग बनकर पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
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