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Class 9th Bharati Bhawan Disaster Management Chapter 2 | Long Answer Question | मानव जनित आपदाएँ-नाभिकीय, जैविक और रासायनिक | कक्षा 9वीं भारती भवन आपदा प्रबंधन अध्याय 2 | दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Class 9th Bharati Bhawan Disaster Management Chapter 2  Long Answer Question  मानव जनित आपदाएँ-नाभिकीय, जैविक और रासायनिक  कक्षा 9वीं भारती भवन आपदा प्रबंधन अध्याय 2  दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
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 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 
1. नाभिकीय विकिरण का मानव जीवन पर क्या प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ? इससे होनेवाली अन्य हानियों का उल्लेख करें।
उत्तर-1986 में तत्कालीन सोवियत संघ के चेर्नोबिल नगर के रिएक्टर में रिसाव के कारण रेडियोधर्मी किरणों के प्रभाव से आसपास के सैकड़ों लोग मर गए थे। शेष को विस्थापित कर बचा लिया गया। पस्तु इसका प्रभाव दूर-दूर तक वर्षों तक अनुभव किया गया। इसके अन्य हानियाँ कि बच्चे अपग पैदा होते। उनके आस-पास रहने वाले लोगों में विकिरण से संबंधित अनेक बीमारियाँ होती रहती हैं।
2. परमाणु ऊर्जा के लाभों का वर्णन करें।
उत्तर- परमाणु ऊर्जा के लाभ निम्नलिखित हैं
(i) परमाणु ऊर्जा के माध्यम से बिजली की पैदावार जीवाश्म ईंधन (कोयला और तेल) से उत्पन्न ऊर्जा की मात्रा कर करती है। जीवश्म ईंधन के कम उपयोग का अर्थ है ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (CO2 और अन्य) कम करना।
(ii) वर्तमान में, जीवश्म ईंधन का उत्पादन तेजी से किया जाता है, इसलिए अगले भविष्य में इन संसाधनों को कम किया जा सकता है या अधिक जनसंख्या के लिए कीमत अधिक हो सकती है।
(iii) एक अन्य लाभ ईंधन की आवश्यक मात्रा है; कम ईंधन अधिक ऊर्जा प्रदान करता है यह कच्चे सामग्रियों पर एक महत्वपूर्ण बचत का प्रतिनिधित्व करता है परन्तु परमाणु ईंधन के परिवहन संचालन और निष्कर्षण में भी। परमाणु ईंधन ( संपूर्ण यूरेनियम) की लागत उत्पन्न ऊर्जा की लागत का 20 प्रतिशत है।
(iv) केन्द्रीय टोलेक्ट्रिका डी कार्बन डी आयोवा (ईईयूयू) विद्युत ऊर्जा का उत्पादन निरंतर है एक परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगभग 90 प्रतिशत वार्षिक समय के लिए बिजली पैदा कर रहा है। इससे पेट्रोल जैसे अन्य ईंधन की कीमत में अस्थिरता कम हो जाती है।
(v) यह निरंतरता बिजली के नियोजन को लाभ देती है परमाणु शक्ति प्राकृतिक पहलुओं पर निर्भर नहीं करती है। यह सौर ऊर्जा या ऊलिक ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा के मुख्य नुकसान के लिए एक समाधान है, क्योंकि सूर्य या हवा के घंटे अधिक ऊर्जा की मांग के साथ घंटों के साथ हमेशा मेल नहीं खाते हैं।
(vi) यह जीवश्म ईंधन के लिए एक विकल्प है, इसलिए कोयले या तेल जैसे ईंधन की खपत कम हो जाती है। कोयले और तेल की खपत में कमी से ग्लोबल वार्मिंग और वैश्विक जलवायु परिवर्तन की स्थिति को फायदा होता है। जीवाश्म ईंधन की खपत को कम करके हम बीमारी और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावत करने वाली हवा की गुणवता में सुधार भी करते हैं।
3. भारत कब से परमाणु ऊर्जा के विकास में रूचि ले रहा है ? इस क्षेत्र में हुए कुछ कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर- भारत 10 अगस्त 1948 को ही परमाणु ऊर्जा आयोग गठित हुआ और बाद में अगस्त 1954 में परमाणु ऊर्जा विभाग का संगठन किया गया। 4 अगस्त 1956 में पहली परमाणु भट्टी 'अप्सरा' ट्रॉम्बे में स्थापित की गई। 18 मई 1974 को राजस्थान के पोखरन क्षेत्र में पहला परमाणु बम विस्फोट कराया गया। पुनः, 24 वर्ष बाद 1998 में 11 मई को थर्मोन्यूक्लीय बम विस्फोट का अद्भुत प्रयोग किया गया।
4. गैस रिसाव से बचाववाली सावधानियों का वर्णन करें। 
उत्तर-(i) गैस रिसाव से बचाववाली सावधानियाँ निम्न हैं-(i) सभी रासायनिक उत्पाद के मात्रा में अग्निशामक एवं जल का भंडार रहना चाहिए। 
(ii) वायु दिशामापी कारखाने के प्रांगण में रहनी चाहिए जिससे गैस के रिसाव की स्थिति में वायु की दिशा का ज्ञान हो सके।
(iii) कारखानों में गैस जाँच का यंत्र लगा होना चाहिए। किसी रिसाव की हालत में तेज साइरन बजाकर लोगों को ने चेतावनी देनी चाहिए।
(iv) गैसरोधी मास्क, दस्ताना, ट्राउजर और जूते हर कर्मचारी के पास रहना चाहिए। 
(v) सभी कर्मचारियों का एक निश्चित अंतराल के बाद चिकित्सकों द्वारा जाँच होनी चाहिए। 
(vi) गैस रिसाव रोकने की तकनीक का उपयोग होना चाहिए।
(vii) गैस के संग्रह के उपकरणों को मानक स्तर का रखना चाहिए।
(viii) रासायनिक आयुधों एवं अन्य अनावश्यक पदार्थों के उत्पादन पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। 
5. रासायनिक आपदा से उत्पन्न समस्याओं का वर्णन करें। .
उत्तर- रासायनिक आपदा से उत्पन्न समस्या जैसे भोपाल गैस त्रासदी' आस-पास के क्षेत्रों में सोये लोगों की साँस में ज्योहीं गैस चलती गई, देखते-देखते 2,000 के करीब लोग अपनी जान खो बैठे और 10 हजार से भी अधिक लोगों को इसका शिकार होना पड़ा। कई लोगों की आँखों की रोशनी चली गई और बहुतों के फेफड़े क्षतिग्रस्त हो गये।
तूतीकोरिन की ताँबे की फैक्टरी में 5 जुलाई 1997 को गैस रिसाव से कारखाने में कार्यरत 90 लड़कियाँ प्रभावित हुई। छाती में जलन निमोनिया और पेट की बीमारियों से ये लड़कियाँ ग्रसित हो गई।
6. जैविक आपदा कितने प्रकार की होती है ? विवरण दें।
उत्तर-(i) कम विनाशकारी बीमारियाँ- सामान्य चिकेन पॉक्स, केनिन हेपेटाइटिस जैसी बीमारियाँ सूक्ष्म जीवाणुओं और वाइरस से उत्पन्न होती हैं और फैलती हैं। इनका इलाज कठिन नहीं ।
(ii) घातक बीमारियाँ— इस वर्ग में हेपेटाइटिस A, B और C, इंफ्लूएंजा, लाइम डिजिज A मिजिल्स, चिकेन पॉक्स और एड्स जैसी घातक बीमारियाँ आती है।
(iii) बड़े क्षेत्र को प्रभावित करनेवाली अति घातक बीमारियाँ- इस वर्ग के अंतर्गत धैक्स, पश्चिमी नील वाइरस, वेनेजुएलियन इन्सेफ्लाइटिस, स्मॉल पॉक्स, ट्यूबरकुलोसिस वाइरस, रिफ्टवैली फीवर, येलो फीवर, मलेरिया, हैजा, और डायरिया इत्यादि बीमारियों को रखा गया है। जो बड़ी जल्दी एक बड़े क्षेत्र में फैल जाती हैं। इनके विषाणु और वाइरस अत्यंत घातक होते हैं। और इलाज महँगा पड़ता है। है।
(iv) दीर्घकाल तक प्रभावित करनेवाली बीमारियाँ- इस वर्ग में अत्यंत घातक बीमारियाँ आती हैं जो या तो जल्दी मृत्यु का कारण बनती हैं या बहुत देर बाद इनका पता चलता है तब तक स्थिति नाजुक हो जाती है। एड्स, वाइरस वोलिवियन, अर्जेंटियन फीबर, बर्ड फ्लू, डेंगू बुखार, मारवर्ग बुखार, एबोला बुखार इत्यादि इनमें प्रमुख
7. नाभिकीय ऊर्जा एवं इससे संबंधित आपदा का विस्तृत विवरण दें।
उत्तर- 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध में कुछ ऐसी धातुओं की खोज की गई, जिनके नाभिकीय विखंडन से अपार ऊर्जा मिलती है। सामान्य स्थिति में भी इनसे निरंतर अल्फा, बीटा एवं गामा किरणें निकलती रहती है। विशेष प्रकार के नाभिकीय रिएक्टरों द्वारा इस क्रिया को तीव्र एवं नियंत्रित गति से कराया जाता है, जिससे निकलनेवाली ऊर्जा से बिजली बनाना भी संभव है। इस प्रकार, यह ऊर्जा परंपरागत ऊर्जा का एक उत्तम वैकिल्पक स्रोत है। परंतु, विश्व के कई देशों ने इसके जरिए परमाणु बमों का निर्माण किया है जिनके विस्फोट से भारी तबाही होती है। इसे ही नाभिकीय आपदा कहा जाता है। इसके विस्फोट के बाद वर्षों वर्षों तक इसका दुष्प्रभाव जारी रहता है। जापान के हिरोशिमा और नागासाकी की शहरों पर 1945 में गिराए गए परमाणु बमों का असर आज भी है।
यही नहीं, कभी-कभी परमाणु बिजलीघर तथा नाभिकीय रिएक्टर में रिसाव से भी भयंकर दुर्घटनाएँ होती है। अमेरिका के श्रीमाइल द्वीप तथा रूस के चेर्नोबिल शहर के रिएक्टर में रिसाव से उत्पन्न रेडियोधर्मी किरणों के प्रभाव से आसपास के सैकड़ों लोग मारे गए थे। 
इसलिए, आवश्यकता इस बात की है कि इस आपदा से बचाव के लिए सबसे पहले सतर्कता एवं रिएक्टरों की निरंतर जाँच-पड़ताल होनी चाहिए। चूँकि ऊर्जा प्राप्त करने के बाद बची राख या कचरे में भी रेडियोसक्रियता बन रहती है इसलिए इस कचरे को सीसे के सिलिंडरों में बद कर बहुत अधिक गहराई पर गाड़ देना चाहिए। साथ ही, यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि यह कचरा भूकंप एवं ज्वालामुखी से सबसे कम संवेदनशील स्थानों में गाड़ा जाए, क्योंकि भूकंप या ज्वालामुखी विस्फोट के समय इस कचरे के पुनः ऊपर आने का खतरा बना रहता है।  
8. जैविक आपदा से बचने के उपायों का उल्लेख करें।
उत्तर-(i) स्वच्छ, ताजा और गर्म भोजन करना।
(ii) जल को उबाल कर पीना।
(iii) कीटनाशकों का छिडकाव।
(iv) अनजान व्यक्ति द्वारा दिए गए बंद पदार्थों को न छूना, न खोलना, क्योंकि इसमें ऐंथैक्स के होने की संभावना हो सकती है। 
(v) अनजानी वस्तु को छूते समय दस्ताना पहने रहना। 
(vi) संदेह की स्थिति में विशेष प्रकार के प्रशिक्षित कुत्तों की मदद लेना। 
(vii) जैविक अस्त्रों के विरुद्ध अत्यंत कठोर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाना। 
9. रासायनिक आपदा पर एक विस्तृत निबंध लिखें।
उत्तर-रसायनों का उपयोग प्राचीनकाल से ही होता रहा है। आज इनके विविध उपयोग है। जीवन के प्रायः सभी कार्यों में रसायन का उपयोग हो रहा है। परंतु, इन रसायनों के उत्पाद से संबंधित समस्याएं कई क्षेत्रों में आपदा का रूप धारण कर लेती है रासायनिक आपदाएँ तीन प्रकार की होती हैं-
(क) विषैले रासायनिक उत्पाद से उत्पन्न होनेवाली गुप्त आपदाएँ-इसमें आपदा का अनुभव बहुत देर बाद होता है जैसे भारत में 1960 के दशक में कृषि उपज बढ़ाने के लिए रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का उपयोग किया गया। इनकी जो मात्रा पौधों के उपयोग से बच गई उससे मृदा प्रदूषण हुआ। साथ ही, भूमिगत जल भी दूषित हुआ। 
(ख) रासायनिक युद्ध सामग्री के उपयोग से उत्पन्न आपदाएँ- इसमें युद्ध के लिए रसायन का उपयोग शामिल है। जर्मनी में लाखों यहूदियों की हत्या विषैली गैस चेंबर में की गई थी। 
(ग) रासायनिक औद्योगिक इकाइयों में रिसाव और कचरे से उत्पन्न आपदा- इसके तहत भोपाल गैस दुर्घटना उल्लेखनीय है जिससे लगभग 16,000 लोगों की मौत हुई और 50,000 से अधिक लोग अपंग हो गए।
रासायनिक आपदा से बचने के लिए तात्कालिक एवं दीर्घकालिक प्रबंधन आवश्यक है। तात्कालिक प्रबंधन के अंतर्गत आपदा से निपटने की पूर्व तैयारी शामिल है। कारखानों में गैस रिसाव की जाँच निरंतर होती रहनी चाहिए। गैसरोधी मास्क, दस्ताना, ट्राउजर और जूते हर कर्मचारी के पास होने चाहिए। इन कारखानों में हवा की दिशा बतानेवाला उपकरण एवं साइरन की व्यवस्था होनी चाहिए तथा कारखानों के निकट रासायनिक आपदा से निपटने की पूरी व्यवस्था होनी चाहिए। दीर्घकालिक प्रबंधन के अंतर्गत रासायनिक उर्वरकों की जगह जैविक खाद के प्रयोग को मान्यता मिलनी चाहिए। विनाशकारी गैसों के उत्सर्जन पर नियंत्रण आवश्यक है। वाहनों के इंजनों की जाँच नियमित अंतराल पर होनी चाहिए। उद्योगों के निकट अस्पताल होना चाहिए तथा स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा इस संदर्भ में जागरूकता, परामर्श एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाना चाहिए।  
10. जैविक आपदा कितने प्रकार की होती है? इससे बचने के उपायों का विस्तृत विवरण दें।
उत्तर- हवा एवं पानी में ऐसे सूक्ष्म बैक्टीरिया एवं वाइरस होते हैं जो लाभदायक एवं हानिकारक दोनों होते हैं। मानव शरीर में जाने ये बड़ी तेजी से फैलते हैं तथा सके लिए घातक सिद्ध होते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के रुग्णता नियंत्रण एवं रोकथाम केन्द्र ने जैविक आपदा को चार वर्गों में बाँटा है-
(क) कम विनाशकारी बीमारियाँ, 
(ख) घातक बीमारियाँ, 
(ग) बड़े क्षेत्र को प्रभावित करनेवाली अतिघातक बीमारियाँ एवं 
(घ) दीर्घकाल तक प्रभावित करनेवाली बीमारियाँ। इनमें कम विनाशकारी बीमारियों से सामान्य सफाई और परहेज द्वारा बचा जा सकता है। परंतु, अतिघातक एवं दीर्घकाल तक चलनेवाली बीमारियाँ आपदा का वास्तविक रूप धारण कर लेती है।
बैक्टीरिया या वाइरस से जब कोई व्यक्ति संक्रमित हो जाए तब उससे बचने का प्रबंधन शीघ्र और प्रभावशाली होना चाहिए। भोजन स्वच्छ, ताजा एवं गर्म खाना चाहिए। पीने का पानी भी स्वच्छ होना चाहिए। जलजमाव नहीं होने देना चाहिए। मुहल्लो को साफ-सुथराकर कीटनाशकों की छिड़काव करना चाहिए। डी. डी. टी० का छिड़काव निरंतर करना चाहिए। विद्यालयों में विद्यार्थियों को इस संदर्भ में उपयुक्त जानकारी दी जानी चाहिए। अनजान व्यक्ति द्वारा दिए गए बंद पदार्थों को छूना चाहिए, क्योंकि इसमें ऐंथैक्स हो सकता है। जैविक अस्त्रों के विरुद्ध कठोर अंतराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाना चाहिए। अनजान वस्तुओं को छूते समय दस्ताना जरूरी है। किसी संक्रति व्यक्ति या रोगी से प्रत्यक्ष संबंध से परहेज करना चाहिए।
11. नाभिकीय आपदा से बचने के लिए की जानेवाली सावधानियों एवं प्रबंधन का वर्णन करें।
उत्तर- परमाणु ऊर्जा परंपरागत ऊर्जा का एक उत्तम विकल्प है जिसका उपयोग दीर्घकाल तक संभव है। भारत सरकार ने अभी हाल में अमेरिका के साथ परमाणु ऊर्जा संधि पर हस्ताक्षर किया है। भारत ने यह आवश्वासन दिया कि वह परमाणु ऊर्जा का उपयोग परमाणु अस्त्र बनाने के बजाय इसका उपयोग आर्थिक विकास के लिए करेगा। जापान पर किए गए परमाणु विस्फोट के बाद से ही पूरा विश्व इस नाभिकीय आपदा से बचने के लिए एकमत हो रहा  आपदा से बचने के लिए की जानेवाली सावधानियाँ एवं प्रबंधन इस प्रकार है
(i) विश्व के सभी देश परमाणु अग्रसर नीति से सहमत हों।
(ii) परमाणु ऊर्जा उत्पन्न करनेवाले सभी संयंत्रों में विकिरण के प्रभाव को कम करने का कारगर उपाय हो।
(iii) खदान से लेकर सभी उपक्रमों में श्रमिकों और कर्मचारियों को विकिरणरोधी जैकेट उपलब्ध होने चाहिए।
(iv) सभी संबद्ध व्यक्तियों की नियमित जाँच डाक्टरों द्वारा होनी चाहिए।
(v) खदानों के पास की आबादी को अन्यत्र बसाया जाना चाहिए। स्थापित किया जाना चाहिए।
(vi) नाभिकीय संयंत्रों को आबादी से दूर स्थानों पर 
(vii) किसी भी रिसाव एवं गड़बड़ी की सूचना जल्द से जल्द सभी लोगों तक पहुँचाई जानी चाहिए।
(viii) किसी भी रिसाव एवं गड़बड़ी की सूचना जल्द-से-जल्द सभी लोगों तक पहुँचाई जानी चाहिए।
(ix) संयंत्रों के निकट विकिरणरोधी गैसों का पर्याप्त भंडार होना चाहिए। 
(x) दुर्घटना की स्थिति में तत्काल राहत कार्य प्रारंभ करना चाहिए। 
(xi) भूमिगत चेंबर या तहखाने का निर्माण सुरक्षा हेतु किया जाना चाहिए। 
(xii) अंतराष्ट्रीय स्तर पर निःशस्त्रीकरण पर जोर दिया जाना चाहिए।
12. रासायनिक आपदा से बचाव हेतु दीर्घकालिक प्रबंधन की चर्चा करें। 
उत्तर- रासायनिक पदार्थों का उपयोग मानवजीवन का एक अंग बन चुका है। आज इन रसायनों के विविध उपयोग हैं। औद्योगिक विकास में भी इन रसायनों का उल्लेखनीय योगदान है। परंतु, इन रसायनों के उत्पाद से संबंधित समस्याएँ कई क्षेत्रों में आपदा का रूप ले लेती है। भोपाल गैस त्रासदी इस संदर्भ में उल्लेखनीय है। इसलिए, रासायनिक आपदा से बचने के लिए प्रबंधन की आवश्यकता है। यह प्रबंधन दो प्रकार का होता है- (क) तात्कालिक प्रबंधन और (ख) दीर्घकालिक प्रबंधन। इनमें दीर्घकालिक प्रबंधन से संबंधित सावधानियाँ हैं
(i) रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों की जगह जैविक खाद एवं कीटनाशकों का उपयोग बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
(ii) उद्योगों से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड, मेथैन, नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड जैसी गैसें वायुमण्डल की निचली परत में जमा होकर प्रदूषण का कारण बनती हैं जिससे वायुमंडल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इन विनाशकारी गैसों के उत्सर्जन पर नियंत्रण आवश्यक है।
(iii) ऐसी तकनीक का विकास होना चाहिए जिससे इन गैसों के उत्सर्जन में कमी आए। 
(iv) वाहनों के इंजनों की उचित समय पर मरम्मत होनी चाहिए। 
(v) रासायनिक संयत्रों की आबादी से दूर लगाया जाना चाहिए।
(vi) ऐसे उद्योगों के निकट अस्पताल की व्यवस्था होनी चाहिए।
(vii) कर्मचारी एवं उद्योगों के निकट रहनेवालों को निश्चित अंतराल पर स्वास्थ्य-जाँच होती रहनी चाहिए।
(viii) उद्योगों में आवश्यक गैस मास्क एवं रसायनरोधी वस्त्रों की व्यवस्था होनी चाहिए 
(ix) स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा लोगों को रासायनिक आपदा के संबंध में बचाव की जानकारी दी जानी चाहिए।
(x) विद्यालयों में पाठों के द्वारा छात्र-छात्राओं को रासायनिक आपदा के प्रति जागरूकता पैदा की जानी चाहिए।

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