1. भारत में नदी प्रदूषण क्यों एक गंभीर समस्या है ? इससे किस तरह निबटा जा सकता हैं?
उत्तर-नदी प्रदूषण से तात्पर्य है नदीय जल के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों में ऐसा परिवर्तन लाना कि उसके रूप, गंध और स्वाद से जीवों के स्वास्थ्य और कृषि, उद्योग एवं वाणिज्य को हानि पहुँचे। नदियों का प्रदूषण मुख्यतः इन कारणों से हो सकता है।
1. नदी-तट पर बसे गाँवों और नगरों के मल-मूत्र और कचरों को नदी में फेंका या गिराया जाना।
2. चीनी, चमड़ा और तेलशोधक अन्य कारखानों के अपशिष्ट पदार्थों का नदियों में डाला जाना।
3. तेलवाहक जहाजों से तेल का रिसाव।
4. मरे हुए जानवरों और मानव शवों को नदी में प्रवाहित करना।
5. कृषि-कार्यों में रासायनिक खादों का प्रयोग और कीटनाशकों का छिड़काव, जिनके बहकर नदी में आ जाने से नदी-जल का पारिस्थितिक तंत्र बिगड़ जाता है और जलीय जीव मरने लगते हैं।
प्रदूषण रोकने के उपाय :-
1. नदियों के किनारे कल-कारखाने वाले उद्योग न स्थापित किए जाएँ।
2. नदियों में मल-मूत्र, कचरे और अपशिष्ट पदार्थ गिराए जाने पर सख्ती से रोक लगाई जाय। -
3. बड़े नगरों में भीड़वाले घाटों पर शौचालय बनाए जाएँ तथा धोबियों के लिए अलग घाट की व्यवस्था की जाए।
4. पशुओं एवं मानवों के शवों को नदियों में प्रवाहित करने पर प्रतिबंध लगाया जाय।
2. भारत की अर्थव्यवस्था में नदियाँ किस प्रकार योगदान करती हैं ?
उत्तर-भारतीय अर्थव्यवस्था में निम्नलिखित तरीके से नदियाँ योगदान करती हैं।
1. ये सिंचाई के महत्त्वपूर्ण साधन हैं। भारत की आधी भूमि नदियों से निकली नहरों द्वारा सींची जाती है।
2. ये बाढ़ के समय नई मिट्टियाँ बिछाकर मैदानी भाग में उर्वरा-शक्ति बढ़ाती है।
3. ये यातायात के साधन रही हैं। प्राचीन और मध्ययुग में नदियों से ही अधिक व्यापार होता था। आज भी ब्रह्मपुत्र, गंगा और यमुना में दूर-दूर तक स्टीमर चलते हैं।
4. ये जल-विद्युत उत्पन्न कर रही है और जल-शक्ति के संभावित भंडार हैं।
5. नदियों के मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। मत्स्योद्यम बहुतों की आजीविका है।
6. नदियाँ उद्योग-केंद्रों और नगरों की स्थापना और विकास में मदद पहुँचाती हैं, जैसे स्वर्णरेखा का जमशेदपुर के विकास में, हुगली का कोलकाता के विकास में, गंगा का वाराणसी और कानपुर के विकास में।
3. हिमालय की नदियों और प्रायद्वीपीय भारत की नदियों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करें।
उत्तर-हिमालय एवं पठारी प्रदेश से निकलनेवाली अथवा बहनेवाली नदियों की प्रमुख विशेषताएँ हैं
(i) हिमालय क्षेत्र की नदियों में सालोंभर पानी रहता है, क्योंकि इनके स्रोत हिमानी क्षेत्र हैं। दूसरी ओर पठारी नदियों का स्रोत बर्फीला क्षेत्र नहीं है। फिर भी, सभी बड़ी नदियों में सालोंभर जल प्रवाह होता है। इस प्रवाह का प्रमुख कारण उनके झील स्रोत या रास्ते में झरने का मिलना है।
(ii) हिमालय स्रोत की नदियाँ लंबी हैं जबकि पठारी प्रदेश की नदियाँ तुलनात्मक रूप से कम लंबी है। इसका मुख्य कारण स्रोत से मुहाने की दूरी है। हिमालय स्रोत की नदियों का उद्गम स्थान समुद्र से नजदीक है।
(iii) हिमालय की नदियाँ वृहत बेसिन का निर्माण करती हैं। पठारी नदियाँ छोटी बेसिन बनाती हैं। वृहत बेसिन बनाने के तीन मुख्य कारण हैं—नदियों के मार्ग का लंबा होना, वृहत समतल मैदानी भाग से गुजरना तथा स्रोत क्षेत्र तुलनात्मक रूप से बड़ा होना।
(iv) हिमालय क्षेत्र की प्रायः सभी नदियाँ युवावस्था में हैं, जिससे उनकी अपरदनात्मक क्षमता अधिक है। अधिक आयुवाली होने के कारण पठारी नदियों की अपरदनात्मक क्षमता कम है।
(v) हिमालय क्षेत्र में 'V' घाटी अभी भी संकरी है जबकि पठारी क्षेत्र की 'V' घाटी खुली है।
(vi) हिमालय स्रोत की कोई भी नदी किसी भी पठारी नदी की सहायक नदी नहीं है जबकि पठारी क्षेत्र में कई नदियाँ हिमालय स्रोत की नदियों की सहायक नदियाँ है।
(vii) हिमालय स्रोत से हजारो नदियाँ निकलती हैं, परंतु उनमें से केवल सिंधु और गंगा ही समुद्र में गिरती हैं। दूसरी ओर, पठारी क्षेत्र की कई नदियाँ सीधे समुद्र में गिरती हैं।
(viii) हिमालय की नदियों द्वारा गंगा और सिंधु नदी तंत्र का विकास होता है जबकि पठारी भारत में कई नदी तंत्रों का विकास हुआ है, उनमें 6 प्रमुख है।
4. भारत की नदी अपवहन-तंत्र का वर्णन करें। मानव समाज के विकास में उनका क्या योगदान है ?
उत्तर- किसी क्षेत्र की प्रमुख नदी अपनी सहायक और अपहृत नदियों समेत जो अपवाह के प्रतिरूप उपस्थित करती है, उसे नदी प्रणाली कहा गया है। सामान्यतः नदी जिधर ढाल पाती है, उधर बहने लगती है। ढाल के अनुरूप गमन करनेवाली नदी को अनुगामी नदी कहते हैं। यहाँ ऐसी भी नदियाँ हैं जो ढाल के अनुरूप नहीं हैं। घाटी निर्माण करती हुई वे पुरानी चट्टानों पर आरोपित हो चुकी हैं। और पुरानी चट्टानों को काटने में लगी हुई हैं। चंबल और सोन ऐसी ही अध्यारोपित नदियों के उदाहरण हैं। भारत में ऐसी भी नदियाँ हैं, जो पहाड़ के आर-पार बहती हैं, वे उन पहाड़ों के निर्माण के पूर्व से बहती आ रही हैं ।
सिंधु, सतलुज और कोसी ऐसी ही पूर्वगामी नदियों के उदाहरण हैं। नदियों की ये दो प्रणालियों के उदाहरण हैं। नदियों की ये दो प्रणालियाँ ढाल से असंबद्ध हैं, अननुगामी हैं। अनुगामी नदियों के विभिन्न प्रारूप देखने को मिलते हैं । (i) वृक्षाकार प्रारूप, (ii) जालीनुमा प्रारूप (iii) अरीय या केंद्रत्यागी प्रारूप |
विश्व के सर्वप्राचीन सभ्यता सिंधु और गंगा की घाटियों में ही विकसित हुई जहाँ जीवन-यापन के सभी साधन सुलभ थे। हड़प्पा-मोहन जोदड़ो आदि विकसित नगर सिंधु घाटी में ही स्थापित हुए थे। गंगा घाटी मानव सभ्यता और संस्कृति का आदिकाल से ही केंद्र रही है। प्रयाग और काशी भारतीय संस्कृति के अति प्राचीन केन्द्र माने जाते हैं। भारत में नदियों के किनारे बसे अनेक स्थान है जो सांस्कृतिक केंद्र माने जाते हैं और वहाँ मंदिरों का निर्माण किया गया है। प्रयाग और काशी अति प्राचीनकाल से प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र रहे हैं।
5. नदियाँ किस प्रकार मानव सभ्यता की जीवन-रेखाएँ हैं ?
उत्तर- यदि नदियाँ नहीं हों तो कृषि कार्य शून्य हो जाएँगे और जीवन-रेखाएँ समाप्त हो जाएगी। मानव सभ्यता की कल्पना नहीं कर सकते हैं।
नदियाँ सिंचाई के महत्त्वपूर्ण साधन हैं। ये बाढ़ के समय नई मिट्टियाँ बिछाकर मैदानी भाग में उर्वरा शक्ति बढ़ाती हैं। ये यातायात के साधन उपलब्ध कराती हैं। आज भी ब्रह्मपुत्र, गंगा और यमुना में दूर-दूर तक स्टीमर चलते हैं। ये जल विद्युत उत्पन्न कर रही हैं और जल-शक्ति के संभावित भंडार हैं। नदियों में मछलियाँ पकड़ी जाती है। बहुतों को यह आजीविका के साधन हैं।
नदियाँ उद्योगकेन्द्रों और नगरों की स्थापना और विकास में मदद पहुँचाती हैं।
Hello My Dear, ये पोस्ट आपको कैसा लगा कृपया अवश्य बताइए और साथ में आपको क्या चाहिए वो बताइए ताकि मैं आपके लिए कुछ कर सकूँ धन्यवाद |