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Class 10th Bharati Bhawan History Chapter 6 | Long Answer Question | शहरीकरण एवं शहरी जीवन | कक्षा 10वीं भारती भवन अध्याय 6 | दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Class 10th Bharati Bhawan History Chapter 6  Long Answer Question  शहरीकरण एवं शहरी जीवन  कक्षा 10वीं भारती भवन अध्याय 6  दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. शहरीकरण से आप क्या समझते हैं ? शहूरीकरण ने सहायक तत्वों का उल्लेख करें 
उत्तर- शहरीकरण का इतिहास काफी पुराना है। मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ शहरों का भी उदय और विकास हुआ। सुमेर (मेसोपोटामिया), हड़प्पा (भारत-पाकिस्तान) रोम और यूनानी सभ्यताओं में अनेक नगर विकसित हुए। मध्यकालीन और आधुनिक काल में भी शहरीकरण की प्रक्रिया जारी रही। प्राचनी, मध्यकालीन और आधुनिक शहरों के स्वरूप में अंतर देखा जा सकता है। इन सभी शहरों की एक साझा विशेषता थी कि नगर गैर-कृषक उत्पादन व्यवसाय व्यापार के केन्द्र थे। शहरों की जीवन-शैली ग्रामों से भिन्न थी शहरों में नगरी जीवन एवं संस्कृति का विकास हुआ।
शहरीकरण उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसके अंतर्गत गाँव, छोटे कस्बे, शहर, नगर और महानगर में तब्दील हो जाते हैं। शहरों के उदय और विकास में अनेक कारणों का योगदान रहा है। इनमें आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक कारण प्रमुख हैं।
 शहरीरकण के सहायक तत्व –आधुनिक शहरों के उदय में तीन तत्वों का महत्वपूर्ण में योगदान रहा है। ये हैं—(i) औद्योगिक पूँजीवाद का उदय (ii) उपनिवेशवाद का विकास तथा (iii) लोकतांत्रिक आदों का विकास। शहरीकरण ने आर्थिक व्यवस्था के साथ-साथ सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव डाला।  
2. 19वीं सदी में इंगलैंड में मनोरंजन के कौन-से साधन थे?
उत्तर- 19वीं सदी में इंगलैंड के शहरवासियों के लिए विभिन्न प्रकार के मनोरंजन की व्यवस्था की गयी। मशीनी जीवन व्यतीत करने के साथ-साथ रविवार एवं छुट्टियों का दिन आराम और मनोरंजन में व्यतीत करने के लिए समाज के विभिन्न वर्गों ने अलग-अलग रास्ते ढूँढे। 18वीं सदी के अंतिम दशक से तीन-चार सौ घनी एवं संभ्रात परिवार के लोगों के मनोरंजन के लिए अपेक्ष, रंगमंच और शास्त्रीय संगीत के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे। 19वीं सदी में मनोरंजन का एक प्रमुख केन्द्र शराबखाना था। रेलवे का आरंभ होने के पूर्व शराबखानों में लोग घोड़ा गाड़ियों से आते थे। शराबखाने सामान्यतः घोड़ागाड़ियों के रास्ते में स्थापित किए गए। इनमें मुसाफिर आकार ठहरते थे और रात्रि विश्राम भी करते थे। ये मुगलकालीन भारत में प्रचलित सराय के समान थे। जब रेल और बस का उपयोग बढ़ा तो घोड़ागाड़ियों का व्यवहार कम हो गया। अब साथ मनोरंजन बस पड़ावों के निकट बनाए गए। 
19वीं शताब्दी से लंदनवासियों को अपने इतिहास की जानकारी देने के लिए संग्रहालय एवं कला दीर्घाएँ सरकार द्वारा खोली गई। पुस्तकालय भी स्थापित किए गए जो एक ही एवं ज्ञान-वर्द्धन के केन्द्र बन गए। 1810 में संग्रहालयों में प्रवेश शुल्क समाप्त कर देने से दर्शकों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई। लाखों लोग इन संग्रहालयों में आने लगे। समाज के निम्न तबके के लोग अपने मनोरंजन के लिए संगीत सभा का आयोजन करते थे।
3. लंदन में भूमिगत रेलवे का निर्माण क्यों किया गया ? इसकी क्या प्रतिक्रिया हुई ?
उत्तर- लंदन शहर का जब विस्तार हुआ तब यह शहर इतना विशालकाय हो गया कि लोगों को अपने कार्यस्थल पर पैदल पहुंचना मुश्किल होने लगा। लंदन में बाहर से आनेवाले को भी यहाँ पहुँचना मुश्किल हो रहा था। इसलिए परिवहन के साधनों के विकास के अंतर्गत भूमिगत रेलवे के विकास की योजना बनाई गई। इसका सबसे बड़ा लाभ यह था कि लोग उपनगरीय बस्तियों से सुविधापूर्वक लंदन आकर अपना काम कर सकते थे। इसका दूसरा लाभ यह था कि भूमिगत रेलवे की सुविधा होने से लंदन पर आबादी का बोझ कम हो जाता। इसलिए 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में लंदन में भूमिगत रहा था विकास किया गया। लंदन में ही विश्व की पहली भूमिगत रेल बनी। इसका आरंभ 10 जनवरी 1863 को हुआ। यह रेल लाइन लंदन के पैडिंग्टन और फैरिंग्टन स्ट्रीट के बीच चलाई गई।
लेकिन भूमिगत रेलवे के विकास के साथ लोगों द्वारा इसकी प्रतिक्रिया भी व्यक्त की गई। आरंभ में लोगों को भूमिगत रेल से यात्रा करना असुविधाजनक और भयभीत कर देनेवाला लगता था। अखबार में एक पाठक ने भूमिगत रेल में अपनी यात्रा का अनुभव करते हुए लिखा था कि भूमिगत रेलगाड़ियों को फौरन बंद कर देना चाहिए। ये स्वास्थ्य के लिए भयानक खतरा है। इसी तरह की निराशाजनक प्रतिक्रिया कुछ अन्य लोगों की भी थी। उनका कहना था कि "इन लौह दैत्यों ने शहर की अफरातफरी और अस्वास्थ्यकर माहौल को और बढ़ा दिया है।" विख्यात अंग्रेजी उपन्यासकार चार्ल्स डिकेंस भी अपने उपन्यास 'डॉम्बी एंडवसन' में भूमिगत रेलवे द्वारा लाएगा विनाश का उल्लेख करते हैं। गित रेल निर्माण से गरीब तबकों पर बुरा असर पड़ा। अनुमानतः दो मील लम्बी लाइन बिछाने के लिए नौ सौ घर गरीबों के गिरा दिए जाते थे। इस प्रकार भूमिगत रेलवे के निर्माण द्वारा बड़ी संख्या में गरीबों की बस्तियाँ उजाड़ी जा रही थी।
4. शहरीकरण का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ा? प्रदूषण को रोकने के लिए क्या प्रयास किए गए?
उत्तर-शहरीकरण की प्रक्रिया का प्रतिकूल प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है। शहरों में कल-कारखानों के खुलने, बेतरतीब भीड़, गाड़ियों और लोगों की लगातार आवाजाही, धूल और गंदगी से पर्यावरण प्रदूषित होता है। शहरों के विस्तार के क्रम में प्राकृतिक वातावरण को नष्ट कर दिया गया था। जंगल का काटना, पहाड़ियों को समतल करना तथा तटीय इलाकों को भूमि के रूप में परिवर्तित करना आदि से पर्यावरण प्रदूषित हुई। हवा पानी को गंदगी ने प्रदूषित कर दिया। शहरों की भीड़, शोर-शराबे ने वायु प्रदूषण को बढ़ाया। 
लेकिन धीरे-धीरे नगर' नियोजक इन समस्याओं की ओर ध्यान देने लगे। सरकार ने समय-समय पर शहरों के पर्यावरण में सुधार लाने और प्रदूषण को नियंत्रित करने के प्रयास किए। शहर में गंदगी फैलानेवाले इलाकों की सफाई करवाई गई। गंदे कारखाने को शहर से बाहर स्थानांतरित करने का प्रयास किया गया। भारत में पहली बार कलकत्ता में ही धुआं निरोधक कानून 1863 में पारित किया गया। बंगाल धुआं निरोधक आयोग के प्रयासों से कलकत्ता में औद्योगिक इकाइयों से निकलनेवाले धुएँ पर नियंत्रण लाकर वायु प्रदूषण को कम करने का प्रयास किया गया। इसके पूर्व 1840 के दशक तक इंगलैंड के प्रमुख औद्योगिक शहरों में धुआँ नियंत्रक कानून लागू किए गए।
5. विशाल शहरी आबादी का अग्रलिखित पर क्या प्रभाव पड़ता है। लंदन के संदर्भ में उत्तर दें-(क)जमींदार और (ख) राजनेता।
उत्तर-विशाल शहरी आबादी ने समाज के विभिन्न वर्गों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला था। लंदन के संदर्भ में जिन वर्गों पर विशाल शहरी आबादी ने प्रभाव डाला था वे हैं
(क) जमींदार-जमींदार वर्ग ही पूँजीपति वर्ग कहलाए। औद्योगीकरण के कारण में इस वर्ग का उदय हुआ। कारखानेदारी व्यवस्था में इस वर्ग का विशेष प्रभाव था। अपनी पूँजी के आधार पर ये उद्योगों को नियंत्रित करते थे। आर्थिक उन्मुक्तवाद की सरकारी नीति का लाभ उठाकर इन लोगों ने अपनी धन-संपदा में वृद्धि की। ये मजदूरों का शोषण करते थे इसलिए इनके विरूद्ध प्रतिक्रियास्वरूप हो मजदूर आंदोलन हुए।
(ख) रानेता- शहरो की विशाल आबादी राजनीतिक गतिविधियों के केन्द्र बन गए। 1886 में लंदन के गरीब तबका गरीबी से तंग आकर विद्रोह पर उतारू हो गई। वे इसकी समाप्ति को लेकर करीब दस हजार गरीबों का झुंड प्रदर्शन करते हुए डेंट फोर्ड से लंदन की ओर बढ़ा। इससे अफरा-तफरी की स्थिति उत्पन्न हो गई। जिससे घबराकर दुकानदारों ने अपनी दुकाने बंद कर दी। इसी प्रकार की स्थिति नवंबर 1887 में भी उत्पन्न हुई। नवंबर के एक "खुनी रविवार" के दिन हजारों प्रदर्शनकारी सड़क पर उतर गए। 1889 में लंदन के गोदी कामगारों ने व्यापक हड़ताल कर दी। इसमें हजारों कर्मचारियों ने भाग लिया। इसमें हजारों कर्मचारियों ने जुलूस निकाले और प्रदर्शन किए। उनकी हड़ताल 12 दिनों तक चली। उनकी मुख्य माँग गोदी कामगार यूनियन को मान्यता देने की थी। इन हड़तालों और प्रदर्शनों द्वारा शहरों में राजनेता अपना प्रभाव बढ़ाने लगे। शहर में प्रदर्शन, जुलुस के लिए उन्हें उन साथ हजारों व्यक्ति मिल जाते थे। इसका लाभ उठाकर राजनेता अपनी माँग मनवाने के लिए सरकार पर दबाव डालकर अपना प्रभाव बढ़ाने लगे। इस प्रकार नगर राजनीतिक गतिविधियों के भी केन्द्र बन गए।
6. लंदन में “गार्डन सिटी" की योजना क्यों बनाई गई? इस योजना का कार्यान्वयन कैसे किया गया?
उत्तर-लंदन में "गार्डन सिटी" की योजना इसलिए बनाई गई क्योंकि स्वच्छ वातावरण में रहने और काम करने से लोग अच्छे नागरिक बन सकेगें। लंदन को धनी लोगों के लिए वास्तुकार और योजनाकार वेनेजर हावर्ड ने बागीचों के शहर या गार्डन सिटी की योजना तैयार की। इस शहर की योजना इस रूप में बनाई गई कि शहर में साफ-सुथरे बाग-बगीचे हों, लोगों के रहने और उनके काम करने के स्थान हों। हावर्ड का मानना था कि ऐसे स्वच्छ वातावरण में रहने और काम करनेवाले लोग अच्छे नागरिक बन सकेंगे। हार्वड की योजना के आधार पर रेमंड अनविन और बैरी पार्कर ने न्यू अर्जविक नामक बागीचों के शहर का खाना बनाया। इस शहर में बाग-बगीचों मनमोहक परिदृश्यों, साफ-सुथरे अन्य मकानों की व्यवस्था की गई जिससे नए सामुदायिक जीवन का विकास हुआ परंतु महँगे होने के कारण इस शहर में सिर्फ कुलीन और संपन् लोग ही रह सकते थे, गरीबों के लिए इसमें स्थान नहीं था।
7. पेरिस के 'हॉसमानीकरण' से आप क्या समझते हैं ? पेरिस का पुनर्निर्माण कैसे किया गया?
उत्तर-यूरोप के प्रत्येक देशों में शहरों को आकर्षक सुंदर और आरामदायक बनाने के लिए प्रयास किए गए। लंदन के अतिरिक्त फ्रांस की राजधानी पेरिस को भी आकर्षक बनाने का प्रयास किया गया। 1852 में फ्रांस के सम्राट लुई तृतीय ने पेरिस के पुनर्निर्माण का कार्य सियाँ नामक स्थान का प्रीफ्क्ट बेरॉन हासमान जो एक विख्यात और कुशल वस्तुकार था, को सौंपा। हासमान द्वारा पेरिस का पुनर्निर्माण 'पेरिस का हॉसमानीकरण कहलाता है।
हॉसमान ने पेरिस के पुनर्निर्माण में सत्रह वर्षों का लम्बा समय लगाया। इस अवधि में नगर में सीधी, चौड़ी और छायादार सड़कें बनाई गई। बड़े और खुले मैदान बनाए गए तना बाग-बगीचें लगवाए गए। स्थान-स्थान पर बस पड़ावों का निर्माण करवाया गया तथा पानी पीने के लिए नल लगवाए गए। नगर में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस को नियुक्त किया गया। अपराधों पर नियंत्रण रखने के लिए रात्रि में पुलिस गश्त की व्यवस्था की गई। हॉसमान ने पेरिस का कायाकल्प कर दिया। पेरिस नगर सौंदर्य में यूरोप के अन्य सभी नगरों से बढ़ गया।
8. बम्बई की चॉल और उनमें रहनेवालों के जीवन पर एक संक्षिप्त निबंध लिखें? 
उत्तर-1860 के दशक में बंबई में गरीब जनता के आवास के लिए बड़ी संख्या में चॉल बनवाए जाने लगे। बम्बई की बहुसंख्य साधारण और गरीब जनता को 'चाल' में ही अपनी पूरी जिन्दगी गुजारनी पड़ती थी। चॉल लंदन में बनाए जानेवाले 'टेनेमेंटस' के समान थे। चॉल मुख्यतः गरीब लोगों और बाहर से बम्बई में आकर बसनेवाले लोगों के लिए बनवाए गए। 1901 की जनगणना के अनुसार बंबई की लगभग 80 प्रतिशत आबादी इन चॉलो में रहती थी। 
बंबई की चॉल बहुमंजिली इमारते थी। इनमें एक कमरे के मकान (खोली) कतार में बने होते थे। इनमें शौचालय और नल की व्यवस्था सार्वजनिक रूप से की गई थी। एक कमरे में औसतन चार-पाँच व्यक्ति रहते थे। कमरों का किराया अधिक होने के कारण कई मजदूर मिलकर एक कमरा लेते थे। बहुत सी चॉलो में मुसलमानों और निचली जाति के लोगों को कमरे नहीं दिए जाते थे। एक चॉल में सामान्यतः एक ही जाति बिरादरी वाले रहते थे।
चालो का वातावरण अत्यंत दूषित और अस्वास्थ्यकर था। इनके पास ही खुले गटर और गंदी नालियाँ बहती थी। भैंसों के तबेले इनके पास रहने के कारण काफी दुर्गंध आती थी। शौचालयों में जाने एवं पानी लेने के लिए नल पर कतारें लगानी पड़ती थी। इससे आपस में झगड़े भी होते रहते थे। कमरो में स्थान की कमी होने के कारण सड़कों पर और सार्वजनिक स्थान पर खाना बनाया जाता था, कपड़ा धोया तथा सोया भी जाता था। खाली जगहों पर शराब की दुकानें एवं अखाड़े भी खोल लिए जाते थे। सार्वजनिक स्थलों पर विविध प्रकार के मनोरंजन भी किए जाते थे। चालों में रखनेवालों का जीवन चालों में ही सिमटा हुआ था। इस प्रकार बंबई के चालों में रहनेवालों का जीवन कठिनाइयाँ और संघर्ष का पर्याय था।

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