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Class 10th Bharati Bhawan History Chapter 3 | Long Answer Question | इंडो-चाइना (हिन्द-चीन) में उपनिवेशवाद और राष्ट्रवाद | कक्षा 10वीं भारती भवन इतिहास अध्याय 3 | दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Class 10th Bharati Bhawan History Chapter 3  Long Answer Question  इंडो-चाइना (हिन्द-चीन) में उपनिवेशवाद और राष्ट्रवाद  कक्षा 10वीं भारती भवन इतिहास अध्याय 3  दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. फान बोई चाऊ और फान चू त्रिन्ह का परिचय दें। उनके विचारों में आप क्या समानता और अंतर देखते हैं ? 
उत्तर-फान बोर्ड चाऊ- (1867-1940) फान बोई चाऊ वियतनाम के महान राष्ट्रवादी थे।
उनपर कन्फ्यूशियसवाद का गहरा प्रभाव था। वे वियतनामी परंपराओं के नष्ट होने से दुखी थे। फ्रांसीसी सत्ता के वे विरोधी थे और इसे समाप्त करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने आंदोलन चलाया। आंदोलन चलाने के उद्देश्य से 1903 में उन्होंने एक दल का गठन किया जिसका नाम रेवोल्यूशनरी सोसाइटी अथवा दुईतान होई था। इस दल का अध्यक्ष न्यूगेन राजवंश के कुआंग दे को बनाया गया। फान बोर्ड चाऊ की गणना देश के प्रमुख राष्ट्रवादी नेता के रूप में की जाने लगी। फान बोर्ड चाऊ के ऊपर चीन के सुधारक लियोग किचाओ का भी गहरा प्रभाव था। 1905 में उन्होंने लियांग किचाओ से भेंट की और उनके सलाह पर उन्होंने 'द हिस्ट्री ऑफ द लॉस ऑफ वियतनाम" नामक पुस्तक लिखी।
फान चूत्रिन्ह (1871-1926)-फान चू त्रिन्ह वियतनाम के दूसरे विख्यात राष्ट्रवादी थे। इनके और फान बोई चाऊ के विचारों में भिन्न थी। वे राजतंत्रात्मक व्यवस्था के विरोधी थे। वियतनाम की स्वतंत्रता के लिए वे राजा की सहायता नहीं लेना चाहते थे बल्कि इसे उखाड़ फेंकना चाहते थे। उनकी आस्था गणतंत्रात्मक व्यवस्था में थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वह देश में लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना और नागरिक अधिकारों की सुरक्षा चाहते थे। वे पश्चिमी जगत की लोकतंत्रात्मक व्यवस्था विशेषतः फ्रांसीसी क्रांति के आदर्शों से प्रभावित थे।
फान बोई चाऊ और फान चू मिन्ह के विचारों में सबसे बड़ी समानता यह थी कि दानी ही वियतनाम की स्वतंत्रता चाहते थे। लेकिन दोनों में विरोधाभास या भिन्नता यह थी कि फान बोई चाऊ जहाँ वियतनाम की स्वतंत्रता के लिए राजशाही का समर्थन और सहयाम लेने के पक्षधर थे, वहीं फान च मिन्ह राजतंत्रात्मक व्यवस्था के विरोधी. थे तथा वियतनाम की स्वतंत्रता के लिए, राजा की सहायता नहीं लेना चाहते थे बल्कि इसे उखाड़ फेंकना चाहते थे।
2. वियतनाम के स्वतंत्रता संग्राम में हो ची मिन्ह के योगदान का मूल्यांकन करें? 
उत्तर-वियतनामी स्वतंत्रता के मसीहा हो ची मिन्ह थे। उनका मूल नाम न्यूगेन आई क्लोक था। वे पेरिस और मास्को में शिक्षा ग्रहण की थी। शिक्षा पूरी करने के पश्चात उन्होंने अपना कुछ समय शिक्षक के रूप में व्यतीत किया। वे मार्क्सवादी विचारधारा से गहरे रूप से प्रभावित थे। उनका मानना था कि बिना संघर्ष के वियतनाम को आजादी नहीं प्राप्त हो सकती है। फ्रांस में रहते हुए 1917 में उन्होंने वियतनामी साम्यवादियों का एक गुट बनाया। लेनिन द्वारा कॉमिन्टर्न की स्थापना के बाद वे इसके सदस्य बन गए। इन्होंने लेनिन और अन्य कम्युनिस्ट नेताओं से मुलाकात की। युरोप थाइलैंड और चीन में उन्होंने लंबा समय व्यतीत किया। साम्यवाद से प्रेरित होकर 1975 में उन्होंने बोरादिन (रूस) में वियतनामी क्रांतिकारी दल का गठन किया। फरवरी 1930 में हो ची मिन्ह ने वियतनाम के विभिन्न समूहों के राष्ट्रवादियों को एकजुट किया। स्वतंत्रता संघर्ष प्रभावशाली ढंग से चलाने के लिए उन्होंने 1930 में वियतनामी कम्युनिस्ट पार्टी (वियतनाम कांग सान देंग) की स्थापना की। इस दल का नाम बाद में बदलकर इंडो चायनीज कम्यूनिष्ट पार्टी कर दिया गया। इसी दल के अधीन और हो ची मिन्ह के नेतृत्व में वियतनाम ने स्वतंत्रता प्राप्त की। 1943 में न्यूगेन आई क्लोक ने अपना नाम हो ची मिन्ह रख लिया।
हो चीन मिन्ह के नेतृत्व में एक नए संगठन लीग फार दी इंडिपेंडेंस आफ वियतनाम अथवा वियेतमिन्ह की स्थापना की गई। वियेतमिन्ह ने गुरिल्ला युद्ध का सहारा लेकर फ्रांसीसियों और जापानियों दोनों को परेशान कर दिया। 1945 तक वियेत चिन्ह ने लेनिन पर अधिकार कर लिया। 1944 में विश्वयुद्ध की परिस्थितियाँ बदलने लगी थी। फ्रांस पर से जर्मनी का प्रभुत्व समाप्त हो गया। जापान द्वारा पर्ल हार्बर पर आक्रमण के बाद अमेरिका विश्वयुद्ध में सम्मिलित हो गया। उसने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए। इससे जापान की शक्ति कमजोर हो गई। अत: पोट्सड्म की घोषणा के बाद जापान ने आत्म समर्पण कर दिया और हिंद-चीन - से अपनी सेना हटाने लगा। वापस लौटते हुए जापानियों ने अन्नाम का शासक प्राचीन राजवंश के सम्राट बा भोद ई को सौंप दिया। बाओदाई साम्यवादियों का सामना करने में पूरी तरह असमर्थ था इसलिए उसने अन्नाम के समट का पदत्याग दिया। इससे वियतनामी गणराज्य की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हो गया। सित्मबर 1945 में वियतनाम लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना हुई तथा हो ची मिन्ह इस गणतंत्र के अध्यक्ष निर्वाचित हुए।
3. वियतनाम में साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष में महिलाओं की भूमिका की विवेचना करें।
उत्तर-वियतनाम के राष्ट्रवादी आंदोलन में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका थी। युद्ध और शांति काल दोनों में उन लोगों ने पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर सहयोग किया। स्वतंत्रता संग्राम में वे विभिन्न रूपों में भाग लेने लगी छापामार योद्धा के रूप में कुली के रूप में अथवा नर्स के रूप में समाज ने उनकी नई भूमिका को सराहा और इसका स्वागत किया। वियतनामी राष्ट्रवाद के विकास के साथ स्त्रियाँ बड़ी संख्या में आंदोलनों में भाग लेने लगी। स्त्रियों को राष्ट्रवादी धारा में आकृष्ट करने के लिए बीते वक्त की वैसी महिलाओं का मान किया जाने लगा जिन. लोगों ने साम्राज्यवाद का विरोध करते हुए राष्ट्रवादी आंदागानों में भाग लिया था। राष्ट्रवादी नेता फान बाई चाऊ ने 1913 में ट्रंग बहनो के जीवन पर एक नाटक लिखा। इस नाटक ने वियतनामी समाज पर गहरा प्रभाव डाला। ट्रंग बहनें वीरता और देशभक्ति का प्रतीक बन गई। उन्हें देश के लिए अपना प्राण उत्सर्ग करनेवाला बताया गया। चित्रों, उपन्यासों और नाटकों के द्वारा उनका गौरवगान किया गया। ट्रंग बहनों के समान त्रिय् अम् का भी महिमागान किया गया।
ट्रंग बहनों के समान त्रिय् अयू का गुणगान भी देश के लिए शहीद होनेवाली देवी के रूप में प्रस्तुत किया गया। उसके चित्र बनाए गए जिसमें उसे हथियारों से लैस एक जानवर की पीठ पर बैठे हुए दिखाया गया। इन स्त्रियों के महिमामंडल का वियतनामी औरतों पर गहरा प्रभाव पड़ा। इनसे प्रेरणा लेकर बड़ी संस्था में स्त्रियाँ स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने लगी। युद्ध में बड़ी संख्या में सैनिकों के हताहत होने के बाद महिलाओं को श्री सेना में शामिल होने को उत्प्रेरित किया गया।
वियतनामी संघर्ष में स्त्रियों ने न सिर्फ युद्ध में ही अपने देश की सेवा नहीं की बल्कि अन्य रूपों में भी अपने राष्ट्र के लिए काम किया। वे सेना में भरती हुई। सुरक्षात्मक व्यवस्था के निर्माण जैसे भूमिगत बंकर और सुरंगों के निर्माण में उन लोगों ने भाग लिया। हवाई पट्टियों का निर्माण किया। हो ची मिन्ह मार्ग द्वारा रसद की आपूर्ति एवं उस मार्ग की मरम्मत का काम किया। अस्पतालों में नसे के रूप में घायलों की सेवा सुश्रुसा की। युद्ध में भी अपनी वीरता का प्रदर्शन किया। हजारों बमों को निष्क्रिय किया एवं अनेक हवाई जहाजों को मार गिराया। हो ची मिन्ह मार्ग की सुरक्षा एवं इसकी मरम्मत में अधिकांशतः युवतियों का ही योगदान था। उनके सहयोग से ही अवत: वियतनाम का एकीकरण संभव हो सका।
4. अमेरिकी-वियतनामी युद्ध में हो ची मिन्ह मार्ग की क्या भूमिका थी? 
उत्तर-वियतनाम अमेरिकी युद्ध में हो ची मिन्ह मार्ग का महत्वपूर्ण स्थान था। उत्तर से दक्षिण वियतनाम तक सैनिक साजो-सामान और रसद पहुँचाने के लिए वियेत मिन्ह द्वारा 'हो ची मिन्ह' भूलभुलैया मार्ग का सहारा लिया गया। यह मार्ग वियतनाम के बाहरी इलाकों में लाओस और कंबोडिया होता हुआ उत्तरी वियतनाम से दक्षिणी वियतनाम तक पहुँचता था। इस मार्ग की अनेक शाखाओं द्वारा उत्तरी वियतनाम से दक्षिणी वियतनाम पहुँचा जा सकता था। अनुमानतः प्रतिमाह बीस हजार उत्तरी वियतनाम के योद्धा इस मार्ग द्वारा दक्षिणी वियतनाम पहुँचते थे। इस मार्ग में स्थान-स्थान पर विद्रोही वियतनामियों ने सैनिक छावनियाँ और युद्ध में घायलों की चिकित्सा के लिए चिकित्सालय बनवा रखे थे। इसी मार्ग द्वारा रसद और अन्य आवश्यक सामग्रियाँ भेजी जाती थी। ज्यादातर सामानों की ढुलाई कुली स्त्रियाँ करती थी। वे अपनी पीठों पर या साइकिलों पर भारी वजन लेकर लंबी दूरी तय कर सामान पहुँचाती थी। अमेरिकी फौज ने इस मार्ग को बाधित करने के लिए इसे नष्ट करने का प्रयास किया। इस मार्ग पर बम भी बरसाए गए परंतु वियतनामियों ने इस मार्ग को बनाए रखा। इसके क्षतिग्रस्त होते ही इसकी तत्काल मरम्मत कर ली जाती थी। अतः अमेरिकी वियतनामी युद्ध में हो ची चिन्ह मार्ग का काफी महत्वपूर्ण योगदान था। 
5. राष्ट्रपति निक्सन के हिन्द-चीन में शांति के संबंध में पांच सूत्री योजना क्यों थी? इसका क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर- अमेरिकी-वियतनाम युद्ध में अमेरिकी अत्याचार सर्वव्यापी हो गया। हॉलीवुड में तो वियतनाम में अमेरिकी अत्याचार पर फिल्में बननी शुरू हो गई। दूसरी तरफ अमेरिका के राष्ट्रपति पर निक्सन नियुक्त हुआ। वियतनाम समस्या के जल्द समाधान की जिम्मेवारी निक्सन पर सौंपी गयी। अमेरिका पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ता जा रहा था। इसी समय "माई ली गाँव" की एक-एक महत्व घटना घटी, जिससे अमेरिकी सेना की आलोचना पूरे विश्व में होने लगी। तब राष्ट्रपति निक्सन ने शांति के लिए पाँच सूत्री योजना की घोषणा की जो निम्नलिखित थी
(i) हिन्द-चीन की सभी सेनाएँ युद्ध बंद कर यथा स्थान पर रहे। 
(ii) युद्ध विराम की देखरेख अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षक करेंगे।
(iii) इस दौरान कोई देश अपनी शक्ति बढ़ाने का प्रयास नहीं करेगा।
(iv) युद्ध विराम के दौरान सभी तरह की लड़ाइयाँ बंद रहेगी तथा 
(v) युद्ध का अंतिम लक्ष्य समूचे हिन्द-चीन में संघर्ष का अंत होगा। 
परंतु इस शांति प्रस्ताव को वियतनामियों ने अस्वीकार कर दिया। निक्सन ने पुनः आठ सूत्री ने योजना रखी जिसे भी खारिज कर दिया गया। हिन्द-चीन में अब चीन और सोवियत संघ ने भी अपना प्रभाव बढ़ाना आरंभ कर दिया। अब अमेरिका चीन को अपने पक्ष में करने में लग गया। 24 अक्टूबर, 1972 को वियतनांग, उत्तरी वियतनाम, अमेरिका तथा दक्षिण वियतनाम में एक समझौता तय हुआ, परंतु दक्षिण वियतनाम ने आपत्ति । जताई और पुनः वार्ता के लिए आग्रह किया। वियतनाम ने इसे अस्वीकार कर दिया। अमेरिका ने हवाई हमला जारी रखा, वियतनामी भी डटे रहे। अंतत: 27 फरवरी, 1973 को पेरिस में वियतनाम युद्ध की समाप्ति के समझौते पर हस्ताक्षर हो गया। समझौते की मुख्य बातों में युद्ध की समाप्ति के 60 दिनों के अंदर अमेरिकी सेना वापस हो जाएगी, उत्तर और दक्षिण वियतनाम परस्पर सलाह करके एकीकरण का मार्ग खोजेंगे अमेरिका वियतनाम को आर्थिक सहायता देगा। इस तरह से अमेरिका के साथ चला आ रहा युद्ध समाप्त हो गया एवं अप्रैल, 1975 थे उत्तरी एवं दक्षिणी वियतनाम का एकीकरण हो गया।  
6. जेनेवा समझौता क्यों हुआ?
उत्तर-1950 में हिंद-चीन की स्थिति बहुत कठिन हो गई थी क्योंकि उत्तरी वियतनाम में हो ची मिन्ह की सरकार थी और दक्षिण वियतनाम में फ्रांस समर्थित बाओदाई की सरकार थी। लाओस और कंबोडिया में पुराने राजतंत्र थे जो फ्रांसीसी नियंत्रण में थे। लाओस और कंबोडिया में लोग जोर-शोर से स्वतंत्रता की माँग कर रहे थे। गुरिल्ला सैनिक लाओस कंबोडिया के रास्ते दक्षिणी वियतनाम पर धावा बोलते थे और पुनः जंगलों में छिप जाते थे। इसी क्रम में दिएन बिएन फू पर गुरिल्ला सैनिकों ने भयंकर आक्रमण किया। इस युद्ध में फ्रांस बुरी तरह हार गया। लगभग सोलह हजार फ्रांसीसी सैनिकों को आत्मसमर्पण करना पड़ा।
फ्रांस की पराजय के बाद स्थिति विस्फोटक हो गई। अमेरिका ने हिंद-चीन में हस्तक्षेप किया जिससे तृतीय विश्वयुद्ध का खतरा उत्पन्न हो गया। ब्रिटेन और फ्रांस युद्ध नहीं चाहते थे इसलिए समझौते की नीति अपनाई गई। इसके लिए जेनेवा में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन हुआ। मई 1954 में जेनेवा में हिंद-चीन समस्या पर वार्ता हेतु सम्मेलन बुलाया गया। जेनेवा समझौता के तहत इंडो-चीन के लाओस और कंबोडिया को स्वतंत्र कर दिया गया। जेनेवा समझौता द्वारा पूरे वियतनाम को दो हिस्सों में बाँट दिया गया। उत्तर का क्षेत्र उत्तरी वियतनाम के साम्यवादियों और दक्षिण के क्षेत्र दक्षिणी वियतनाम अमेरिका समर्थित सरकार को दे दिया गया यानी उत्तरी वियतनाम में हो ची मिन्ह की कम्युनिस्ट सरकार तथा दक्षिणी वियतनाम में बाओदाई की सरकार बनी रही। जेनेवा समझौता के बाद भी हिंद-चीन की स्थिति सामान्य नहीं हुई। लाओस, कंबोडिया और वियतनाम में गृहयुद्ध आरंभ हो गया।
7. कन्फ्यूशियस की जीवनी एवं उनके उपदेशों का उल्लेख करें।
उत्तर- कन्फ्यूशियस चीन के महान दार्शनिक थे। उनका जन्म 551 ई. पू. में हुआ। चीनी उन्हें 'राजा फत्से" कहते थे। इसने अपना जीवन एक शिक्षक के रूप में आरंभ किया। बाद में वे सरकारी नौकरी में चले गए। इन्हें चुंग-तु शहर का दंडाधिकारी नियुक्त किया गया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने अनेक प्रशासनिक सुधार किए। इससे इनका विरोध होने लगा। अतः, बाध्य होकर इन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी और शेष जीवन अध्ययन एवं सुधारवादी कार्यों में व्यतीत किया। इन्होंने अनेक पुस्तकों की रचना की जिससे इनके विचार स्पष्ट होते हैं। ये राजतंत्र के समर्थक थे। 
कन्फ्यूशियस एक धार्मिक सुधारक से अधिक समाज सुधारक थे। इन्होंने किसी धर्म की स्थापना नहीं की बल्कि गौतम बुद्ध के ही समान नैतिक आचरण पर बल दिया जिससे उचित सामाजिक व्यवस्था की स्थापना हो सके। इनके मुख्य उपदेश इस प्रकार थे...
(i) पूर्वजों की पूजा करो।
(ii) गुरुजनों का आदर एवं सम्मान करो।
(iii) मित्रों के प्रति ईमानदार रहो।
(iv) अनुशासन, ईमानदारी और शुद्ध आचरण का पालन करो। कन्फ्यूशियस ने मनुष्य में तीन गुणों प्रतिभा, साहस एवं जनकल्याण की भावना का होना आवश्यक बताया। इन्होंने राजकर्मियों को चरित्रवान, दयावान एवं प्रजा के हित में कार्य करने की सीख दी।
8. वियतनाम के स्वतंत्रता संग्राम में हो ची मिन्ह के योगदान का मूल्यांकन करें। 
उत्तर- वियतनामी स्वतंत्रता संग्राम के प्रधान नेता हो ची मिन्ह थे। वे फ्रांसीसी स्कूल में शिक्षा ग्रहण किए थे एवं फ्रांसीसी जहाज में नौकरी भी की थी। इससे वे मार्क्सवादी विचारधारा से परिचित एवं प्रभावित हुए। इनका मानना था कि संघर्ष बिना वियतनाम को आजादी नहीं मिल सकती। लेनिन द्वारा कॉमिन्टर्न" की स्थापना के बाद वे इसके सदस्य बन गए। इन्होंने अनेक कॉमिस्टर्न के नेताओं से मुलाकात की एवं यूरोप, थाइलैंड एवं चीन में लंबा समय व्यतीत किया। 1930 में इन्होंने वियतनाम के विभिन्न समूहों में बँटे राष्ट्रवादियों को एकजुट किया। 1930 में "विचतनामी कम्युनिस्ट पार्टी" (वियतनाम काँग सान देंग) की स्थापना की। बाद में इस दल का नाम बदलकर "इंडो-चाइनिज कम्युनिस्ट पार्टी" कर दिया। इसी दल के अधीन और हो ची मिन्ह के नेतृत्व में वियतनाम ने स्वतंत्रता प्राप्त की।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 1940 में जापान ने वियतनाम पर अधिकार कर लिया। अतः, वियतनामियों को अब एक ही साथ जापानी एवं फ्रांसीसी दोनों से स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करना पड़ा। इसके लिए इन्होंने “वियेतमिन्ह' या “लीग फॉर दी इंडिपेंडेंस ऑफ वियतनाम" की स्थापना की। इस संगठन ने जापानी आधिपत्य का जोरदार विरोध किया। कड़े संघर्ष के बाद 1945 में वियतनाम को जापानी कब्जे से मुक्त करा लिया। 1945 में ही स्वतंत्रता के बाद वियतनाम लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना की गई। हो ची मिन्ह इस गणतंत्र के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। गणतंत्र की उद्घोषणा में उन्होंने कहा कि आगे से साम्राज्यवादी फ्रांस के साथ हमारा कोई संबंध नहीं रहेगा। अब वियतनाम एक स्वतंत्र एवं स्वाधीन देश बन चुका है।

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