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Class 10th Bharati Bhawan History Chapter 4 | Short Answer Question | भारत में राष्ट्रवाद | कक्षा 10वीं भारती भवन इतिहास अध्याय 4 | लघु उत्तरीय प्रश्न

Class 10th Bharati Bhawan History Chapter 4  Short Answer Question  भारत में राष्ट्रवाद  कक्षा 10वीं भारती भवन इतिहास अध्याय 4  लघु उत्तरीय प्रश्न
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लघु उत्तरीय प्रश्न
1. भारत में राष्ट्रवाद उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से कैसे विकसित हुआ? 
उत्तर-भारतीय राष्ट्रवाद का उदय और विकास हिन्द-चीन के समान औपनिवेशिक शासन की प्रतिक्रियास्वरूप हुआ। 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध से औपनिवेशिक राज की प्रशासनिक, आर्थिक और अन्य नीतियों के विरुद्ध असंतोष की भावना बलवती होने लगा। यद्यपि 1857 के विद्रोह के पूर्व भी अंगरेजी आधिपत्य के विरुद्ध क्षेत्रीयता के आधार पर औपनिवेशिक शासन का विरोध किया गया था परन्तु राष्ट्र की अवधारणा और राष्ट्रीय चेतना का विकास 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से ही हुआ।
2. प्रथम विश्वयुद्ध ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को किस प्रकार बढ़ावा दिया ? 
उत्तर-प्रथम विश्वयुद्ध 20वीं शताब्दी के यूरोपीय इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। यह युद्ध औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप उत्पन्न औपनिवेशिक व्यवस्था बनाए रखने के कारण हुआ। युद्ध आरंभ होने पर अंगरेजी सरकार ने यह घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार का उद्देश्य भारत में एक उत्तरदायी शासन की स्थापना करना है। सरकार ने यह भी कहा कि ब्रिटिश सरकार जिन आदर्शों के लिए लड़ रही थी उन्हें युद्ध की समाप्ति के बाद भारत में भी लागू किया जाएगा, परंतु ऐसा नहीं हुआ। प्रथम विश्वयुद्ध के प्रभावों के कारण भारत में राष्ट्रीयता की भावना बलवती हुई और स्वतंत्रता आंदोलन तीव्र हो उठा। प्रथम विश्वयुद्ध के आर्थिक और राजनीतिक परिणामों ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को प्रभावित किया।
3. भारतीयों ने रॉलेट कानून का विरोध क्यों किया? 
उत्तर-भारतीय क्रांतिकारियों में उभरती हुई राष्ट्रीयता की भावना को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने न्यायाधीश सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में रॉलेट आयोग का गठन किया। भारतीय नेताओं के विरोध के बावजूद भी यह विधेयक 8 मार्च, 1919 को लागू कर दिया गया। इस कानून का विरोध भारतीयों ने जबर्दस्त रूप से किया। इस कानून के अंतर्गत एक विशेष न्यायालय का गठन किया गया जिसके निर्णय के विरूद्ध कोई अपील नहीं किया जा सकता था। इस कानून के द्वारा सरकार किसी भी व्यक्ति को संदेह के आधार पर गिरफ्तार करने उसपर मुकदमा चला सकती थी। गांधीजी ने इस कानून को अनुचित स्वतंत्रता का हनन करनेवाला तथा व्यक्ति के मूल अधिकारों की हत्या करनेवाला बताया।
4. साइमन कमीशन भारत क्यों आया? भारतीयों में इसकी क्या प्रतिक्रिया हुई? 
उत्तर-1919 ई. के भारत सरकार अधिनियम द्वारा स्थापित उत्तरदायी शासन की स्थापना में किए गए प्रयासों की समीक्षा करने एवं आवश्यक सुझाव देने के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार ने 1927 में सरजॉन साइमन की अध्यक्षता में साइमन कमीशन का गठन किया। इसके सभी 7 सदस्य अंग्रेज थे। इस कमीशन का उद्देश्य सांविधानिक सुधार के प्रश्न पर विचार करना था। इस कमीशन में किसी भी भारतीय को शामिल नहीं किया गया जिसके कारण भारतीयों में इस कमीशन का तीव्र विरोध हुआ। भारतीयों में इसकी प्रतिक्रिया का एक और कारण यह था कि भारत के स्वशासन के संबंध में निर्णय विदेशियों द्वारा किया जाना था। 3 फरवरी, 1928 को कमीशन के बम्बई पहुँचने पर इसका स्वागत हड़ताल, प्रदर्शन और कालेझंडों से हुआ तथा 'साइमन वापस जाओ' के नारों से हुआ।
5. 'नमक यात्रा' पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर-सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रारंभ नमक सत्याग्रह से माना जाता है। नमक कानून भंग करने के लिए गांधीजी ने दांडी को चुना जो साबरमती आश्रम से 240 किलोमीटर दूर थी। गांधी अपने 78 विश्वस्त सहयोगियों के साथ 12 मार्च, 1930 को साबरमती से दांडी यात्रा आरंभ की। नमक यात्रा में गांधी के साथ सैंकड़ों युवक, किसान, मजदूर, महिलाएं शामिल हो गए। गांधीजी को देखने और उनका भाषण सुनने के लिए हजारों लोग एकत्र होते थे। 24 दिनों के लम्बी यात्रा के बाद 6 अप्रैल, 1930 को गांधी दांडी पहुँचे। वहाँ पहुँचकर उन्होंने समुद्र के पानी से नमक बनाकर अहिंसक ढंग से सरकार के नमक कानून को भंग किया।
6. स्वराज दल का गठन क्यों हुआ? इसकी क्या उपलब्धियाँ थी? 
उत्तर-महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन की अचानक समाप्ति से उत्पन्न निराशा और क्षोभ का प्रदर्शन 1922 में कांग्रेस के गया अधिवेशन में कांग्रेस से असहमत होकर 1922 ई. में चितरंजन दासभा जिसके अध्यक्ष चितरंजन दास थे। मोतीलाल नेहरू ने स्वराज पार्टी की स्थापना की।
स्वराज पार्टी के नेताओं का मुख्य उद्देश्य या देश के विभिन्न निर्वाचनों में भाग लेकर व्यावसायिक सभाओं एवं सार्वजनिक संस्थाओं में प्रवेश कर सरकार के कामकाज में अवरोध पैदा करना। उनकी नीति थी जोकरशाही की शक्ति को कमजोर कर दमनकारी कानूनों का विरोध करना और राष्ट्रीय शक्ति का विकास करना एवं आवश्यकता पड़ने पर पदत्याग कर सत्याग्रह में भाग लेना। 
7. दिल्ली पैक्ट विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर- सविनय अवज्ञा आंदोलन को दबाने के लिए सरकार ने दमनचक्र के अतिरिक्त कूटनीतिक चाल भी चली। उसने सांवैधानिक सुधारों पर विचार विमर्श करने के लिए लंदन में गोलमेज सम्मेलन बुलाने की घोषणा की। लेकिन प्रथम सम्मेलन ने कांग्रेस ने भाग नहीं लिया अतः यह विफल हो गया। सरकार जानती थी कि कांग्रेस के बिना सम्मेलन सफल नहीं हो सकता है। अतः सरकार ने गांधीजी को जेल से रिहा करते हुए वायसराय इरविन तथा गांधी के बीच 5 मार्च 1931 को समझौता हुआ जिसे दिल्ली पैक्ट के नाम से भी जाना जाता है। इसके अनुसार सरकार राजनीतिक बंदियों की रिहाई करने, दमनचक्र बंद करने, जब्त संपत्ति लौटाने मुकदमे वापस लेने और नौकरी से त्यागपत्र देनेवालों को पुनः नौकरी में वापस लेने को तैयार हो गई। गांधी ने सबिनय अवज्ञा आंदोलन वापस लेने, बहिष्कार की नीति त्यागने एवं द्वितीय गोलमेल सम्मेलन में भाग ले पर सहमति व्यक्त की।
8. समाजवादी दल का गठन क्यों हुआ?
उत्तर-भारत में समाजवादी विचारधारा का उदय और विकास 20वीं शताब्दी के तीसरे दशक से हुआ। समाजवादी किसान और मजदूरों की स्थिति में सुधार लाना चाहते थे। विश्वव्यापी आर्थिक मंदी (1929-30) का सबसे बुरा प्रभाव श्रमिकों और किसानों पर ही पड़ा था। अत: इन लोगों के ऊपर समाजवादियों ने अपना ध्यान केन्द्रित किया। कांग्रेस के अंदर वामपंथी विचारधारा के साथ-साथ समाजवादी विचारधारा भी पनपने लगी। नेहरू, सुभाषचन्द्र बोस के अतिरिक्त जयप्रकाश नारायण, नरेंद्र देव, राम मनोहर लोहिया सरीखे नेता समाजवादी कार्यक्रम अपानाने की मांग करने लगे। इनके प्रयासों से 1934 में कांग्रेस समाजवादी दल की स्थापना का गयी।
9. राष्ट्रवादी आंदोलन को इतिहास की पुनर्व्यवस्था से क्या लाभ हुआ?
उत्तर-राष्ट्रवादी आंदोलन में इतिहास की पुनर्व्यवस्था एक मुख्य कारक है। उस कारक को पढ़ने से सारे भारतीय राष्ट्र के प्रति गर्व महसूस करने लगे। इस भाव को जगाने के लिए भारतीय इतिहास को अलग ढंग से पढ़ाया जाना चाहिए। अंगरेजों की नजर में भारतीय पिछड़े हुए और आदिम लोग थे जो अपना शासन खुद नहीं सँभाल सकते। इसके जवाब में भारत के लोग अपनी महान उपलब्धियों यानी इतिहास की पुनर्व्यवस्था की खोज करने लगे। उन्होंने प्राचीन काल को कला, विज्ञान, साहित्य, दर्शन, धर्म, संस्कृति, कानून, व्यापार इत्यादि को बड़ी गहनता से देखा और उसके विवरण से ज्ञात हुआ कि भारतीयों को अपनी संस्कृति पर गर्व करना चाहिए। अतः राष्ट्रवादी इतिहास में भारत की महानता और उसकी उपलब्धियों पर गर्व का आह्वान किया गया था। ब्रिटिश शासन के अंतर्गत देश की दुर्दशा से मुक्ति के लिए संघर्ष का मार्ग अपनाने के लिए लोगों को प्रेरित किया गया।
10. साम्राज्यवाद विरोधी लीग की स्थापना कब और किसने की? इस लीग की स्थापना का उद्देश्य क्या था?
उत्तर-1927 में साम्राज्यवाद के विरुद्ध एक 'साम्राज्यवादी लोग' की स्थापना की गई। इस लीग का गठन ब्रुसेल्स में किया गया था। इस संस्था की स्थापना में प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टाइन और समाजवादी विचारधारा से प्रभावित लेखक राने राला आदि ने भाग लिया था। इस संस्था का उद्देश्य उपनिवेशवाद और साम्राज्य को समाप्त करना था। इसमें जवाहरलाल नेहरू ने भाग लिया था। अतः, साम्राज्यवाद विरोधी लीग का उद्देश्य साम्राज्यवाद को पूरी तरह से समाप्त करना था।
11. 1909 के अधिनियम में पुथक निर्वाचन का प्रावधान लाकर देश के विभाजन का मार्ग क्यों प्रशस्त कर दिया?
उत्तर- पृथक निर्वाचन ने भारत के विभाजन की आधारभूमि निर्मित कर दी। उसने इस अवधारणा को बल प्रदान किया कि धार्मिक विभाजन ही सामाजिक विभाजन का मौलिक आधार है तथा यह भी कि औपनिवेशिक सरकार, अल्पसंख्यक धार्मिक संप्रदाय को विशिष्ट अधिकार देने के लिए संकल्पित है। जाहिर है कि सरकार के इस कदम ने मुस्लिम लीग की सांप्रदायिक राजनीति को हवा दी।
मुस्लिम संप्रदायवाद को एक संस्थागत आधार मिल गया तथा इसे वैधता प्राप्त हो गई। आगे जब इसका समझौता भी हुआ तो एक समकक्ष राजनीति संस्था के रूप में नहीं वरन एक समकक्ष सांप्रदायिक संस्था के रूप में हुई। इस प्रकार धीरे-धीरे दोनों समुदायों के बीच गहराई बढ़ती गई और एक दिन ऐसा हुआ कि हिंदू-मुस्लिम दोनों पृथक-पृथक राष्ट्र की माँग करने लगे और विभाजन की माँगें तय हुई।
12. गांधीजी ने सत्याग्रह का प्रथम प्रयोग कहाँ और किस प्रकार किया था? 
उत्तर-बिहार के चंपारण जिले में गाँधीजी ने सत्याग्रह का प्रयोग सर्वप्रथम 1917 में किया था। चंपारण में अंगरेज नील की खेती करनेवाले किसानों पर बहुत अत्याचार करते थे। वे किसानों को नील की खेती करने और उसकी पैदावार को सस्ती दरों पर बेचने को मजबूर करते थे। 
गाँधीजी के दक्षिण अफ्रीका में किए गए। संघर्षों से प्रभावित होकर यहाँ के किसानों ने उन्हें चंपारण आने का निमंत्रण दिया। गाँधीजी चंपारण गए और वहाँ के किसानों की दयनीय स्थिति देखी। गाँधीजी के चंपारण आगमन से जिला के अधिकारियों में खलबली मच गई। उन्होंने गाँधीजी को चंपारण छोड़ने का आदेश दिया, परंतु गाँधीजी ने आदेश मानने से इंकार कर दिया और इस अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने लगे। परिस्थिति की गंभीरता को देखते हुए जिला अधिकारी ने अपन आदेश वापस ले लिया और एक जाँच समिति का गठन किया जिसमें गाँधीजी को सदस्य बनाय गया। जाँच समिति ने किसानों की दशा को सुधारने के लिए कार्रवाई की। इस प्रकार गाँधीजी के सत्याग्रह का पहला प्रयोग सफल रहा।

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