1. कृषि मजदूर से आप क्या समझते हैं ? बिहार में कृषि मजदूरों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि होने के क्या कारण हैं ?
उत्तर- कृषि श्रमिक या कृषि मजदूर से हमारा अभिप्राय ऐसे व्यक्तियों से होता है जो कृषि या कृषि से संबंधित अन्य धंधों में किराए के मजदूर के रूप में कार्य करते हैं। इस प्रकार के मजदूर वर्ष में आधे से अधिक दिनों तक कृषि कार्यों में संलग्न रहते हैं। इन्हें मजदूरी नकद या कृषि पदार्थ के रूप में दी जाती है जो फसल के एक भाग के रूप में हो सकती है।
बिहार में कृषि श्रमिकों की संख्या बहुत अधिक है तथा इसमें निरंतर वृद्धि हो रही है। योजना आयोग द्वारा अविभाजित बिहार में कराए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में 33 प्रतिशत से भी अधिक कृषि मजदूरों के परिवार थे। बिहार में कृषि मजदूरों की संख्या में वृद्धि के अनेक कारण हैं। देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा बिहार की जनसंख्या में अधिक तेजी से वृद्धि हो रही है। अन्य उद्योग या व्यवसाय के अभाव में कृषि को ही जनसंख्या का यह अतिरिक्त बोझ वहन करना पड़ता है। इससे कृषि श्रमिकों की संख्या में वृद्धि हो रही है।
बिहार में औद्योगिक विकास की गति बहुत मंद रही है और यह औद्योगिक दृष्टि से एक पिछड़ा हुआ राज्य है। हमारे राज्य के अधिकांश वृहत उद्योग छोटानागपुर क्षेत्र में अवस्थित थे जो अब झारखंड राज्य का अंग हो गया है। उत्तर बिहार में चीनी, जूट आदि कृषि आधारित उद्योगों की प्रधानता थी। लेकिन, इनमें अधिकांश रुग्ण अवस्था में है अथवा बंद हो गए हैं। राज्य के कुटीर एवं लघु उद्योगों की स्थिति भी अत्यंत असंतोषजनक है। इसके फलस्वरूप रोजगार सृजन की दर बहुत धीमी है तथा कृषि श्रमिकों की संख्या में वृद्धि हुई है।
बिहार में कृषि-श्रमिकों की संख्या में वृद्धि का एक अन्य कारण यहाँ की वर्तमान भूमि-व्यवस्था है। कृषि भूमि का एक बहुत बड़ा भाग कुछ थोड़े-से व्यक्तियों के पास केंद्रित है तथा राज्य में छोटे किसानों की संख्या बहुत अधिक है। कृषि-जोतों का आकार छोटा होने के कारण इनकी आय बहुत कम है और ये प्रायः ऋणग्रस्तता के शिकार होते हैं। इसके फलस्वरूप अनेक छोटे और सीमांत कि भी अब भूमिहीन श्रमिक हो गए हैं।
2. बिहार में कृषि मजदूरों की मुख्य समस्याएँ क्या हैं ?
उत्तर- बिहार में कृषि मजदूरों की संख्या बहुत अधिक है तथा इनकी मुख्य समस्या इनकी आय और रोजगार से संबंधित है। कृष- कार्य में संलग्न श्रमिकों को पूरे वर्ष काम न मिलकर कुछ विशेष मौसम में ही काम मिलता है। भारतीय कृषि की प्रकृति मौसमी होने के कारण देश के अन्य भागों के समान ही बिहार में भी सामयिक या मौसमी बेराजगारी की समस्या है। परंतु, कृषि के पिछड़े होने के कारण हमारे राज्य में यह समस्या अधिक उग्र है। बिहार सरकार के 2008-09 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, इसका लगभग 73 प्रतिशत क्षेत्र बाढ़ से असुरक्षित है। बाढ़ का प्रकोप उत्तरी बिहार में अधिक होता है।
बिहार में कृषि श्रमिकों पर कार्यभार भी अधिक होता है। गाँवों में इनके काम करने के घंटे निश्चित नहीं होते हैं। लेकिन, इतना परिश्रम करने पर भी इन्हें अपेक्षाकृत बहुत कम मजदूरी मिलती है। वर्तमान में बिहार में कृषि श्रमिकों के लिए मजदूरी की न्यूनतम निर्धारित दर प्रतिदिन 66 रुपये हैं। कृषि श्रमिक प्रायः समाज के पिछड़े और दलित वर्ग के होते हैं। जहाँ बिहार में कृषि श्रमिकों का राज्य औसत 48 प्रतिशत है वहाँ अनुसूचित जाति में यह 77 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति में 62 प्रतिशत से भी अधिक है। इस प्रकार के कृषि श्रमिकों में शिक्षा और संगठन का सर्वथा अभाव है। अतः, ये उचित मजदूरी के लिए मोल-भाव करने में असमर्थ होते हैं। बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में सहायक उद्योग-धंधों की बहुत कमी है। यह राज्य में कृषि श्रमिकों की विपन्नता का एक अन्य प्रमुख कारण है।
3. बिहार में कृषि श्रमिकों की क्या समस्याएँ हैं ? इनके निदान के क्या उपाय हैं ?
उत्तर- बिहार में कृषि मजदूरों की संख्या बहुत अधिक है तथा इनकी मुख्य समस्या इनकी आय और रोजगार से संबंधित है। कृष- कार्य में संलग्न श्रमिकों को पूरे वर्ष काम न मिलकर कुछ विशेष मौसम में ही काम मिलता है। भारतीय कृषि की प्रकृति मौसमी होने के कारण देश के अन्य भागों के समान ही बिहार में भी सामयिक या मौसमी बेराजगारी की समस्या है। परंतु, कृषि के पिछड़े होने के कारण हमारे राज्य में यह समस्या अधिक उग्र है। बिहार सरकार के 2008-09 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, इसका लगभग 73 प्रतिशत क्षेत्र बाढ़ से असुरक्षित है। बाढ़ का प्रकोप उत्तरी बिहार में अधिक होता है।
हमारे देश के विभिन्न भागों में कृषि मजदूर बहुत विपरीत परिस्थितियों में रहते और कार्य करते हैं। कृषि के पिछड़ेपन के कारण बिहार में कृषि श्रमिकों की स्थिति और भी दयनीय है। राज्य के अधिकांश कृषि श्रमिक भूमिहीन हैं, इनकी आय बहुत कम है और इनके लिए गाँवों में रोजगार के बहुत सीमित अवसर उपलब्ध हैं। बिहार से बहुत बड़ी संख्या में कृषि श्रमिकों का पलायन हो रहा है। ग्रामीण श्रम पर गठित आयोग ने कृषि श्रमिकों की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए कई महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए हैं। इसके लिए आयोग ने सिंचाई, जल निकाकसी, बाढ़ नियंत्रण तथा सुखड़ से कृषि की मुक्ति पर बल दिया है। कृषि श्रमिकों की समस्याओं के समाधान के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में इनके लिए आवासीय भूमि उपलब्ध कराने तथा रोजगारजनक कार्यक्रम चलाने को आवश्यक बताया गया है ।
4. बिहार में कृषि श्रमिकों की मुख्य समस्याएँ क्या हैं ? इनके समाधान के लिए सरकार ने क्या उपाए किए हैं ?
उत्तर- प्रथम भाग के लिए योजना आयोग के अनुसार, कृषि श्रमिकों की समस्याएँ ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त एवं अर्द्ध- बेरोजगारी से जुड़ी हुई हैं। अतएव, इनकी समस्याओं के समाधान प्राप्त बेरोजगारी के बेरोजगारी लिए सरकार ने समय-समय पर ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन के कई विशिष्ट कार्यक्रमों का कार्यान्वयन किया है। इनमें समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम, ग्रामीण युवा स्वरोजगार प्रशिक्षण योजना, ग्रामीण कारीगरों के लिए उन्नत औजार आपूर्त्ति आदि कार्यक्रम स्वरोजगार की योजनाएँ थी। अप्रैल 1999 से सरकार ने स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना आरंभ की है। यह ग्रामीणों के स्वरोजगार के लिए एक एकीकृत योजना है तथा इसमें पूर्व के सभी स्वरोजगार कार्यक्रमों को समाहित कर दिया गया है। इस योजना के अंतर्गत बिहार में 2007-08 में 14.036 स्वयं सहायता समूह बनाए गए थे। 25 सितंबर 2001 से सरकार ने पूर्व में चल रहे दो रोजगार कार्यक्रमों को मिलाकर संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना लागू की है। यह देश के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए एक मजदूरी रोजगार योजना है। 2006 से भारत सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के अंतर्गत देश के ग्रामीण क्षेत्रों में एक गारंटीशुदा रोजगार योजना आरंभ की है। यह विश्व की सबसे वृहत् सामाजिक सुरक्षा योजना है। इस योजना के अंतर्गत बिहार में 2007-08 में 39,25,748 परिवारों को रोजगार उपलब्ध कराया गया था।
5. बिहार से कृषि मजदूरों के पलायन की समस्या की व्याख्या करें ।
उत्तर - बिहार में कृषक मज़दूरों की दशा अत्यन्त दयनीय है। इसका सम्पूर्ण जीवन गरीबी, बेकारी, शोषण, उत्पीड़न और अनिश्चितता से भरा हुआ है। कई स्थानों पर कृषक मजदूरों की दशा गुलामी जैसी पायी जाती है।
बिहार में कृषक मजदूरों की प्रमुख समस्याएँ
(i) कम मजदूरी- बिहार में कृषक मजदूरों की सबसे बड़ी समस्या कम मजदूरी दर है। मजदूरों से अधिक काम लिया जाता है। उनके पास वैकल्पिक साधन का अभाव है। अतः, मजदूरी पर काम करने के लिए विवश है।
(ii) मौसमी रोजगार- बिहार कृषक मजदूरों को वर्ष के सभी मशीनों में काम नहीं मिलता है। उन्हें साल में कम-से-कम चार महीने बेकार बैठे रहना पड़ता है।
(iii) काम से अधिक घंटे- उनके कार्य निश्चित नहीं है। उन्हें 10 से 14 घंटे तक कार्य करना पड़ता है।
(iv) ऋणग्रस्तता- बिहार में कृषक मजदूरों की मजदूरी कम होने के कारण वे सदा ही ऋणग्रस्तता रहते हैं। अतः, उन्हें महाजन या बड़े किसान की बेगारी करनी पड़ती है।
(v) निम्न जीवन स्तर- कृषक मजदूरों का जीवन स्तर काफी निम्न हैं। वे कम मजदूरी के कारण रोटी, कपड़ा और मकान की न्यूनतम आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पाते हैं।
(vi) आवास की समस्या- कृषक मजदूर मालिक या ग्राम समाज की जमीन पर उनकी अनुमति से एक झोपड़ी बनाकर रहते हैं। झोपड़ी में वे केवल पैर फैलाकर सो सकते हैं। उन्हें शुद्ध वायु एवं प्रकाश नहीं मिलता है।
(vii) सहायक धंधों का अभाव- गाँव में सहायक धंधों का अभाव है। प्राकृतिक आपदाओं संगठन के अभाव में उनमें मेल-जोल नहीं रहता है । इसके चलते वे अपनी मजदूरी बढ़वाने, कार्यक घंटे नियमित कराने, बेगारी बंद कराने की आवाज तक उठा नहीं पाते।
(viii) कृषि में मशीनीकरण से बेकारी- बिहार में भी अब कृषि कार्यों में मशीनों का प्रयोग होने लगा है। इससे कृषि मजदूरों में बेकारी बढ़ती जा रही है।
(ix) निम्न सामाजिक स्तर - बिहार में अधिकांश कृषक मजदूर अनुसूचित जात एवं पिछड़ी जातियों के हैं जिनका प्राचीन काल से ही शोषण होता आ रहा है। इससे इनका सामाजिक स्तर निम्न श्रेणी का बना रहता है ।
6. बिहार से कृषि मजदूरों के पलायन के क्या कारण हैं ? इसके परिणामों की विवेचना करें।
उत्तर - विगत कई वर्षों से बिहार के कृषि मजदूरों का बड़े पैमाने पर देश के अन्य भागों में पलायन हो राह है। एक अनुमान के अनुसार, 1991-2000 के दशक में लगभग 12 लाख बिहारवासियों का पलायन हुआ है जिनमें अधिकांश कृषि मजदूर थे। कृषि मजदूरों के इस पलायन का मुख्य कारण राज्य में रोजगार के अवसरों की अत्यधिक कमी है। कृषि बिहार की अर्थव्यवस्था का आधार है। राज्य की लगभग 80 प्रतिशत श्रम शक्ति कृषि कार्यों में संलग्न है। परंतु, यहाँ की कृषि आज भी पूर्व की अविकसित अवस्था में है। 1995 से इस क्षेत्र का वार्षिक विकास मात्र एक प्रतिशत रहा है। बिहार के औद्योगिक क्षेत्र में भी रोजगार के अवसरों का सर्वथा अभाव है। कुछ समय पूर्व बिहार उद्योग संघ द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, राज्य में स्थित 54 प्रतिशत औद्योगिक इकाइयाँ बंद थी, 26 प्रतिशत रुग्ण तथा मात्र 20 प्रतिशत कार्यशील थी।
इस प्रकार, रोजगार के अवसरों का अभाव होने के कारण प्रायः बिहार के सभी गाँवों से कृषि-श्रमिको पलायन हो रहा है। लेकिन, राज्य के अन्य भागों की अपेक्षा उत्तर बिहार से श्रमिकों का पलायन अधिक है। इसका प्रमुख कारण उत्तरी बिहार के एक बहुत बड़े भू-भाग में प्रतिवर्ष बाढ़ से होनेवाली विभीषिका और जलजमाव की समस्या है। दिल्ली की एक संस्था मानव विकास संस्थान ने अभी हाल में उत्तर बिहार के 18 गाँवों का सर्वेक्षण किया है। इसके अनुसार, विगत दो दशकों के अंतर्गत यहाँ से दूसरे राज्यों में पलायन करनेवाले ग्रामीण श्रमिकों की संख्या में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है। 1987 में 28 प्रतिशत ग्रामीण परिवार ऐसे थे जिनका एक सदस्य प्रवासी श्रमिक था। वर्ष 2000 में इस प्रकार के परिवारों की संख्या बढ़कर 49 प्रतिशत हो गई थी। एक सरकारी अनुमान के अनुसार, देश की राजधानी नई दिल्ली की कुल जनसंख्या में लगभग 11 प्रतिशत बिहार के है।
मानव विकास संस्थान के सर्वेक्षण के अनुसार, कृषि मजदूरों के राज्य से पलायन के कुछ सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिले हैं। प्रवासी श्रमिकों को नए स्थानों में रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध हैं और उन्हें वेतन या मजदूरी भी अधिक मिलती है। इससे उनमें बचत करने की क्षमता बढ़ी है। वे अपनी बढ़ी हुई मजदूरी या पारिश्रमिक का एक भाग बचाकर गाँव में अपने परिवारों को भेजते हैं। इससे इनके परिवार के सदस्यों के रहन-सहन के स्तर में सुधार हुआ है। इनकी बचत के एक भाग का बिहार के गाँवों में भी निवेश हो रहा है। इससे राज्य के कई गाँवों में गैर-कृषि क्रियाकलापों का विस्तार हुआ
7. बिहार में कृषक मजदूरों की वर्तमान दशा एवं समस्याओं का उल्लेख करें ।
उत्तर- बिहार में कृषक मजदूरों की दशा अत्यन्त दयनीय है । इनका सम्पूर्ण जीवन गरीबी, बेकारी, शोषण, उत्पीड़न और अनिश्चितता से भरा हुआ है। कई स्थानों पर कृषक मजदूरों की दशा गुलामों जैसी पायी जाती है ।
बिहार में कृषक मजदूरों की प्रमुख समस्याएँ
(i) कम मजदूरी - बिहार में कृषक मजदूरों की सबसे बड़ी समस्या कम मजदूरी दर मजदूरों से अधिक काम लिया जाता है। उनके पास वैकल्पिक साधन का अभाव है। अतः वे कम मजदूरी पर काम करने के लिए विवश हैं ।
(ii) मौसमी रोजगार- बिहार कृषक मजदूरों को वर्ष के सभी मशीनों में काम नहीं मिलता है। उन्हें साल में कम-से-कम चार महोने बेकार बैठे रहना पड़ता है ।
(iii) काम के अधिक घंटे- उनके कार्य के घंटे निश्चित नहीं हैं। उन्हें 10 से 14 घंटे तक कार्य करना पड़ता है।
(iv) ऋणग्रस्तता - बिहार में कृषक मजदूरों की मजदूरी कम होने के कारण वे सदा ही ऋणग्रस्त रहते हैं । अतः, उन्हें महाजन या बड़े किसान की बेगारी करनी पड़ती है।
(v) निम्न जीवन स्तर - कृषक मजदूरों का जीवन स्तर काफी निम्न हैं। वे कम मजदूरी के कारण रोटी, कपड़ा और मकान की न्यूनतम आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पाते हैं ।
(vi) आवास की समस्या - कृषक मज़दूर मालिक या ग्राम समाज की जमीन पर उनकी अनुमति से एक झोपड़ी बनाकर रहते हैं। झोपड़ी में वे केवल पैर फैलाकर सो सकते हैं उन्हें शुद्ध वायु एवं प्रकाश नहीं मिलता है।
(vii) सहायक धंघों का अभाव- गाँव में सहायक धंधों का अभाव है। प्राकृतिक आपदाओं संगठन के अभाव में उनमें मेल-जोल नहीं रहता है । इसके चलते वे अपनी मजदूरी बढ़वाने, कार्य के घंटे नियमित कराने बेगारी बंद कराने की आवाज तक उठा नहीं पाते ।
(ix) कृषि में मशीनीकरण से बेकारी- बिहार में भी अब कृषि कार्यों में मशीनों का प्रयोग होने लगा है । इससे कृषि मजदूरों में बेकारी बढ़ती जा रही है ।
(x) निम्न सामाजिक स्तर- बिहार में अधिकांश कृषक मजदूर अनुसूचित जाति एवं पिछड़ी जातियों के हैं जिनका प्राचीन काल से ही शोषण होता आ रहा है। इससे इनका सामाजिक स्तर निम्न श्रेणी का बना रहता है ।
8. बिहार में कृषक मजदूरों की संख्या क्यों तेजी से बढ़ती जा रही है ? इनकी दशा में सुधार लाने के लिए उपाय बतावें ।
उत्तर - 1991 ई० की जनगणना के अनुसार बिहार में ग्रामीण जनसंख्या का 37.1 प्रतिशत कृषक मजदूर थे। जब 2001 ई० में जनगणना हुई तो इनकी संख्या 48.0 प्रतिशत हो गई। इसका अर्थ यह हुआ की बिहार में कृषक मजदूरों की संख्या तीव्र गति से बढ़ रही है । इस संख्या की वृद्धि का मुख्यतः कारण गरीब लोगों में जन्म-दर अत्यधिक है। अशिक्षा के कारण वे परिवार नियोजन कार्यक्रमों से लाभ नहीं उठा पाते हैं। उन लोगों में व्याप्त अंधविश्वास भी उनकी जनसंख्या को तेजी से बढ़ा रहा है। बिहार के गाँव में गरीब कृषक महाजनों से ऊँची ब्याज की दर पर कर्ज लेते हैं। उसके कर्ज की राशि इतनी अधिक बढ़ जाती है कि वे उसे चुकाने में असमर्थ हो जाते हैं। कर्ज चुकाने के लिए उन्हें अपनी खेती का थोड़ा-सा भूखण्ड भी बेचना पड़ता अतः, छोटे एवं गरीब कृषक भी अपनी भूमि को खोकर भूमिहीन मजदूर की श्रेणी में आ जाते • जिससे भूमिहीन मजदूरों की संख्या बढ़ रही है ।
Hello My Dear, ये पोस्ट आपको कैसा लगा कृपया अवश्य बताइए और साथ में आपको क्या चाहिए वो बताइए ताकि मैं आपके लिए कुछ कर सकूँ धन्यवाद |