Bharati Bhawan Class 10th Economics Chapter 4 | Short Questions Answer | Bihar Board Class 10 Arthshastr | हमारी वित्तीय संस्थाएँ | भारती भवन कक्षा 10वीं अर्थशास्त्र अध्याय 4 | लघु उत्तरीय प्रश्न

Bharati Bhawan
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Bharati Bhawan Class 10th Economics Chapter 4  Short Questions Answer  Bihar Board Class 10 Arthshastr  हमारी वित्तीय संस्थाएँ  भारती भवन कक्षा 10वीं अर्थशास्त्र अध्याय 4  लघु उत्तरीय प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. सरकार को साख या ऋण लेने की आवश्यकता क्यों होती है ? 
उत्तर- सरकार को विकासात्मक कार्यों जैसे—परिवहन, संचार, विद्युत, गैस तथा विनिर्माण के अतिरिक्त कृषि, कुटीर एवं लघु उद्योगों को अनुदान तथा निर्धन परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए धन की आवश्यकता होती है। इस प्रकार सरकार का व्यय उसकी आय की तुलना में अधिक होता है और इस घाटे को पूरा करने के लिए केंद्रीय तथा अन्य बैंकों से साख या ऋण लेने की आवश्यकता होती है।
2. मुद्रा बाजार तथा पूँजी बाजार की वित्तीय संस्थाओं में अंतर बताएँ। 
उत्तर- मुद्रा बाजार तथा पूँजी बाजार, वित्तीय संस्थाओं के दो वर्ग है। मुद्रा बाजार की वित्तीय संस्थाएँ साख या ऋण का अल्पकालीन लेन-देन करती है। इसके विपरीत पूँजी बाजार की संस्थाएँ उद्योग तथा व्यापार की दीर्घकालीन साख की आवश्यकताओं को पूरा करती है। मुद्रा बाजार में बैंक तथा देशी बैंकर आदि है तथा पूँजी बाजार में शेयर मार्केट शामिल है। 
3. देशी बैंकर से आप क्या समझते हैं ? 
उत्तर- मुद्रा बाजार में उन सभी वित्तीय संस्थाओं को सम्मिलित किया जाता है जो अल्पकालीन साख अथवा ऋण के लेन-देन का कार्य करती हैं। भारतीय मुद्रा बाजार के दो मुख्य अंग हैं तथा इसे दो स्पष्ट वर्गों में विभाजित किया जा सकता है— आधुनिक अथवा संगठित क्षेत्र तथा देशी अथवा असंगठित क्षेत्र। पहले वर्ग में आधुनिक बैंक हैं जिनकी कार्यविधि यूरोपियन बैंकों के समान है। संगठित क्षेत्र की वित्तीय संस्थाओं पर रिजर्व बैंक का प्रभावपूर्ण नियंत्रण होता है।
भारतीय मुद्रा बाजार के असंगठित क्षेत्र में देशी बैंकर आते हैं जो प्राचीन काल से भारतीय पद्धति के अनुसार कार्य करते आ रहे हैं। इन्हें देश के विभिन्न भागों में साहूकार, महाजन, सेठ, सर्राफ आदि कई नामों से पुकारा जाता है। असंगठित क्षेत्र की वित्तीय संस्थाओं का सबसे बड़ा दोष यह है कि इनपर रिजर्व बैंक अथवा सरकार का समुचित नियंत्रण नहीं है। भारत में ग्रामीण साख का एक बड़ा भाग अभी भी देशी बैंकरों या साहूकारों से लिया जाता है। बैंक तथा सहकारी संस्थाएँ ग्रामीण परिवारों की ऋण संबंधी आवश्यकताओं का लगभग आधा भाग ही पूरा कर पाती हैं। इनकी शेष आवश्यकताएँ असंगठित क्षेत्र की संस्थाओं से पूरी होती है। लेकिन, देशी बैंकर या साहूकार ग्रामीण परिवारों से बहुत ऊँची दर पर ब्याज वसूल करते हैं तथा इनका कई अन्य प्रकार से शोषण भी करते हैं। सरकार ने देशी बैंकरों पर नियंत्रण के लिए आवश्यक कानून बनाए हैं, लेकिन उनका व्यवहार में कार्यान्वयन नहीं हो पाता है।
4. उद्योग एवं व्यापार को दीर्घकालीन ऋण प्रदान करनेवाली विशिष्ठ वित्तीय संस्थाओं का उल्लेख करें।
उत्तर- उद्योग एवं व्यापार को दीर्घकालीन साख प्रदान करनेवाली संस्थाओं में भारतीय औद्योगिक वित्त निगम, भारतीय औद्योगिक विकास बैंक, भारतीय औद्योगिक साख एवं निवेश निगम यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया निर्यात आयात बैंक आदि महत्वपूर्ण है।
5. बिहार के क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के कार्यों की समीक्षा कीजिए।
उत्तर- सरकार ने 1975 से कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्र के निवासियों को साख प्रदान करने के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना की है। इन बैंकों की कार्य पद्धति व्यापारिक बैंकों के समान ही है, लेकिन इनका कार्यक्षेत्र अपेक्षाकृत सीमित है। बिहार में 5 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक हैं तथा इनमें प्रत्येक बैंक राज्य के एक विशेष क्षेत्र में सेवा प्रदान करता है। ये बैंक हैं मध्य बिहार क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (पंजाब नेशनल बैंक द्वारा प्रायोजित), समस्तीपुर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (भारतीय स्टेट बैंक द्वारा प्रायोजित), उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक और कोशी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया द्वारा प्रायोजित), तथा बिहार क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (यूनाइटेड कॉमर्शियल बैंक द्वारा प्रायोजित)। वर्ष 2006-07 में इनकी 1,465 शाखाएँ थीं जिनमें लगभग 86 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में अवस्थित हैं। राज्य के सभी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में निवेश तथा ऋण जमा अनुपात की दृष्टि से मध्य बिहार क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक सबसे आगे है जिसका कृषि एवं गैर-कृषि दोनों प्रकार के ऋणों में सर्वाधिक हिस्सा है। वर्ष 2007-08 में बिहार के क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा वितरित कृषि और गैर-कृषि ऋण की मात्रा 1,370 करोड़ रुपये थी जिसमें 953 करोड़ रुपये कृषि ऋण था। लेकिन, बिहार के लगभग सभी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक रुग्ण अवस्था में हैं जिन्हें रिजर्व बैंक ने पुनर्स्थापित करने का सुझाव दिया है।
6. बिहार की राजकीय वित्तीय संस्थाओं पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। 
उत्तर- राजकीय वित्तीय संस्थाएँ वे हैं जो सरकार की सहायता से वृहत एवं लघु उद्योगों की वित्त या साख की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए स्थापित की जाती हैं। केंद्र सरकार के समान ही बिहार सरकार ने भी राज्य में विभिन्न क्षेत्र के उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए 12 वित्तीय संस्थाओं की स्थापना की थी। इनमें बिहार राज्य वित्त निगम (Bihar State Financial Corporation, BSFC) और बिहार राज्य ऋण एवं निवेश निगम (Bihar State Credit and Investment Corporation, BSCICO) सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। इन दोनों संस्थाओं का उद्देश्य राज्य के उद्योगों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना है। लेकिन, बहुत कम ऋण वसूली के कारण अभी व्यवहार में इन संस्थाओं ने ऋण प्रदान करने का काम बंद कर दिया था। कुछ समय पूर्व अब राज्य सरकार ने इन दोनों संस्थाओं के पुनरुद्धार का काम अपने हाथ में ले लिया है और 4 - इनकी अधिकांश देनदारियों को समाप्त करने की प्रक्रिया चल रही हैं शेष 10 संस्थानों में बिहार सरकार ने बिहार राज्य इलेक्ट्रॉनिक विकास निगम (Bihar State Electronics Development. Corporation) तथा बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम (Bihar State Filem Development and Finance Corporation) को छोड़कर अन्य सभी को बंद करने का निर्णय लिया है।
7. बैंक जमा कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर- व्यवसायिक बैंक चार प्रकार की जमा राशि को स्वीकार करते हैं— 
(i) स्थायी जमा–इसे सावधि जमा भी कहते हैं। इसमें बैंक एक निश्चित अवधि के लिए राशि जमा कर लेती है और उसकी निकासी समय से पूर्व नहीं होती। 
(ii) चालू जमा-इसे माँग जमा भी कहते हैं। इसमें व्यक्ति अपनी इच्छानुसार रुपया जमा या निकाल सकता है।
(iii) संचयी जमा-इस जमा में बैंक ग्राहकों को निकासी के अधिकार को सीमित कर देता है। इसमें एक निश्चित रकम से अधिक निकासी नहीं हो सकती है।
(iv) आवर्ती जमा-आवर्ती जमा खाते में ग्राहकों को प्रतिमाह एक निश्चित राशि जमा करना होता है। आवर्ती जमा एक निश्चित अवधि (60 माह या 72 माह ) तक होता है।
8. बैंकों द्वारा ऋण प्रदान करने के मुख्य तरीके क्या है? 
उत्तर- लोगों की बचत को जमा के रूप में स्वीकार करना तथा ऋण या कर्ज देना व्यावसायिक बैंकों का एक महत्वपूर्ण कार्य है। बैंकों द्वारा ऋण प्रदान करने के मुख्य तरीके निम्नांकित है।
(i) अधविकर्ष (Overdraft) – इसके अंतर्गत बैंक अपने ग्राहकों को उनकी जमा राशि से अधिक रकम निकालने की सुविधा देता है।
(ii) नकद साख (Cash Credit) — नकद साख में बैंक अपने ग्राहकों को माल आदि की जमानत पर ऋण देते हैं ।
(iii) ऋण एवं अग्रिम (Cash and advances) — इसमें बैंक अपने ग्राहकों को उचित जमानत के आधार पर पूर्व - निश्चित अवधि के लिए ऋण देते हैं।
(iv) विनिमय विलों का भुगतान (Discounting of Bills of exchange) – व्यावसायिक बैंक विनिमय बिलों को भुनाकर भी व्यापारियों को ऋण देते हैं।
9. प्रारंभिक गैर-साख कृषि समितियों के कार्यों का उल्लेख करें। 
उत्तर- कृषि के क्षेत्र में मुख्यतया दो प्रकार की सहकारी समितियाँ पाई कृषि साख समितियाँ तथा प्रारंभिक गैर-साख कृषि समितियाँ। प्रारंभिक कृषि - कृषिकार्यों के लिए अल्पकालीन एवं मध्यकालीन ऋण प्रदान करती हैं। इसके प्रारंभिक समितियाँ प्रारंभिक आवश्यकताओं गैर-साख कृषि समितियाँ किसानों की ऋण संबंधी नहीं, वस्तु अन्य प्रकार की की पूर्ति के लिए बनाई जाती हैं। इन समितियों का मुख्य की व्यवस्था, भूमि की चकबंदी, गृहनिर्माण आदि होता है। 
गैर-साख कृषि समितियों में सहकारी विक्रय समितियाँ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं। इसका कारण यह है कि अधिकांश भारतीय किसान अत्यंत निर्धन एवं अशिक्षित होते हैं। साधनों के अभाव में ये अपनी उपज को अधिक समय तक सुरक्षित नहीं रख सकते। उन्हें बाजार की स्थिति एवं मूल्यों की भी जानकारी नहीं रहती है। अतः वे अपनी उपज को अलाभकर समय, अलाभकर स्थान तथा अलाभकर मूल्य पर ही बेचने के लिए बाभ्य हो जाते हैं। विक्रय समितियाँ किसानों को मध्यस्थों एवं व्यापारियों के अनुचित व्यवहार से सुरक्षा प्रदान करती हैं। ये समितियाँ अपने सदस्यों द्वारा उत्पादित फसल को बेचने के लिए उनके प्रतिनिधि का कार्य करती हैं। इसके साथ ही ये उनकी उपज के बदले ऋण प्रदान करती हैं ।
10. कुटीर एवं लघु उद्योगों के क्षेत्र में किस प्रकार की सहकारी समितियाँ स्थापित की जाती है ?
उत्तर- कुटीर एवं लघु उद्योगों के क्षेत्र में सहकारिता का महत्वपूर्ण स्थान है। इस क्षेत्र में भी सहकारी समितियाँ भी दो प्रकार की होती है— साख समितियाँ तथा गैर-साख समितियाँ।
(i) प्रारंभिक गैर-कृषि साख समितियाँ–व्यवसाय में लगे हुए व्यक्तियों को साख-सुविधा प्रदान करने के लिए प्रारंभिक गैर-कृषि साख समितियों की स्थापना की जाती है। इस प्रकार की समितियाँ प्रायः नगरों में स्थित होती हैं तथा इन्हें 'नगर साख समिति' भी कहते हैं ।
(ii) प्रारंभिक गैर कृषि गैर साख समितियाँ—प्रारंभिक गैर कृषि गैर-साख समितियाँ साख देने के लिए नहीं वरन् कारीगरों तथा शिल्पकारों को अन्य आर्थिक कार्यों में सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से स्थापित की जाती है। समितियाँ, मत्स्यपालन समितियाँ तथा बुनकर समितियाँ अत्यंत महत्वपूर्ण है।
11. वित्तीय संस्थाओं से आप क्या समझते हैं? इनका मुख्य कार्य क्या हैं ? 
उत्तर- आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं के संचालन में साख की भूमिका अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होती है। आज प्राय: सभी प्रकार की उत्पादक क्रियाओं के लिए वित्त या साख की आवश्यकता होती है। वित्तीय संस्थाओं के अंतर्गत बैंक, बीमा कंपनियों, सहकारी समितियों तथा महाजन, साहूकार आदि देशी बैंकरों को सम्मिलित किया जाता है जो साख अथवा ऋण के लेन-देन का कार्य करती है। लोग प्राय: अपनी बचत को बैंक आदि संस्थाओं में जमा अथवा निवेश करते हैं। वित्तीय संस्थाएँ इस बचत को स्वीकार करती हैं और इसे ऐसे व्यक्तियों को उधार देती हैं जिन्हें धन की आवश्यकता है। इस प्रकार, वित्तीय संस्थाएँ ऋण लेने और देनेवाले व्यक्तियों के बीच मध्यस्थ का कार्य करती हैं।
12. किसानों को वित्त या साख की आवश्यकता क्यों होती है ?
उत्तर- भारत में किसानों को अल्पकालीन, मध्यकालीन एवं दीर्घकालीन तीन प्रकार के साख की आवश्यकता होती है। अल्पकालीन साख की आवश्यकता प्राय: 6 से 12 महीने तक की होती है, इसलिए इसे मौसमी साख भी कहते हैं। इनकी माँग खाद एवं बीज खरीदने, मजदूरी चुकाने तथा ब्याज आदि का भुगतान करने के लिए की जाती है। प्रायः फसल कटने बाद किसान इन्हें वापस लौटा देता है। मध्यकालीन साख कृषि यंत्र, हल, बैल आदि खरीदने के लिए ली जाती है। इनकी अवधि प्रायः एक वर्ष से 5 वर्ष तक की होती है। दीर्घकालीन साख की अवधि प्रायः 5 वर्षों से अधिक की होती है। किसानों को सिंचाई की व्यवस्था करने, भूमि को समतल बनाने तथा महँगे कृषि यंत्र आदि खरीदने के लिए इस प्रकार के ऋण की आवश्यकता होती है। ये ऋण कृषि क्षेत्र में स्थायी सुधार लाने के लिए होते हैं।
13. भारतीय किसानों को किन साधनों या वित्तीय संस्थाओं से साख प्राप्त होता है ? 
उत्तर- भारतीय किसानों को संस्थागत एवं गैर-संस्थागत दोनों ही साधनों से साख की प्राप्ति होती है। वित्त या साख के संस्थागत साधनों में बैंक और सहकारी संस्थाओं से प्राप्त होनेवाले ऋण प्रमुख हैं। हमारे देश में ग्रामीण साख के क्षेत्र में बैंक एवं सहकारी संस्थाओं का योगदान निरंतर बढ़ रहा है। वर्तमान में ये संस्थाएँ कृषि साख की आवश्यकताओं का 50 प्रतिशत से भी कुछ अधिक भाग पूरा करती हैं। लेकिन, संस्थागत साधनों से प्राप्त होनेवाले ऋण की मात्रा अपर्याप्त होने के कारण आज भी ग्रामीण साख का एक बड़ा भाग गैर-संस्थागत अथवा महाजन, साहूकार आदि अनौपचारिक स्रोतों से लिया जाता है। लेकिन, अनौपचारिक क्षेत्र के ऋणदाता बहुत ऊँची दर से ब्याज वसूल करते हैं, किसानों से बहुत कम मूल्य पर उनका अनाज खरीद लेते हैं तथा निर्धन ग्रामीण परिवारों का कई अन्य प्रकार से भी शोषण करते हैं।
14. व्यावसायिक बैंक से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- बैंक वह संस्था है जो मुद्रा तथा साख का व्यापार करती है। साधारणतः बैंक से हमारा अभिप्राय व्यावसायिक बैंकों से ही होता है। किसी भी देश के उद्योग तथा व्यापार के विकास में इन बैंकों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। व्यावसायिक अथवा व्यापारिक बैंक लाभ कमानेवाली संस्था है। इनका मुख्य कार्य जनता की बचत को जमा के रूप में स्वीकार करना, व्यापारियों को अल्पकालीन ऋण देना तथा साख का निर्माण करना है। भारतीय बैंकिंग कंपनी अधिनियम के अनुसार, “बैंक या बैंकिंग कंपनी वह कंपनी है, जो उधार देने के लिए या विनियोग करने के लिए जनता से जमा के रूप में मुद्रा स्वीकार करती है और जो माँगने पर चेक, ड्राफ्ट, ऑर्डर तथा अन्य किसी प्रकार से इसका भुगतान करती है। "
15. व्यावसायिक बैंक कितने प्रकार की जमा स्वीकार करते हैं ? संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर- लोगों की बचत को जमा के रूप में स्वीकार करना व्यावसायिक बैंकों का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है। बैंक प्रायः तीन प्रकार के खातों में रकम जमा करते हैं— स्थायी जमा, चालू जमा तथा संचयी बैंक जमा । स्थायी जमा एक निश्चित अवधि के लिए होती है तथा सामान्यतः इसके पूर्व इस खाते से रकम वापस नहीं ली जा सकती। ऐसे जमा पर ब्याज की दर अपेक्षाकृत ऊँची रहती है। चालू जमा खाते में धन जमा करने या निकालने पर किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं रहता और जमाकर्ता इसमें किसी भी समय रुपया जमा कर सकता है या निकाल सकता है। इस जमा पर बैंक प्राय: कुछ भी ब्याज नहीं देते या नाममात्र का ब्याज देते हैं। संचयी अथवा बचत जमा मुख्यतः मध्य वर्ग की सुविधा के लिए होता है। इस खाते में धन जमा करने पर कोई प्रतिबंध नहीं रहता, लेकिन रुपया निकालने पर प्राय: कुछ प्रतिबंध रहता है। इस जमा पर ब्याज दर स्थायी जमा से कम रहती है।
16. बिहार की वित्तीय संस्थाओं को कितने वर्गों में बाँटा जाता है ? इनका संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर- बिहार को वित्तीय संस्थाओं को दो मुख्य वर्गों में बाँटा जा सकता है— संगठित क्षेत्र की संस्थागत वित्तीय संस्थाएँ तथा असंगठित क्षेत्र की गैर संस्थागत संस्थाएँ । संस्थागत वित्तीय संस्थाएँ वे हैं जिनपर रिजर्व बैंक अथवा सरकार का नियंत्रण रहता है। इसके विपरीत गैर-संस्थागत वित्तीय संस्थाओं में महाजन, हैं। इन संस्थाओं पर सरकार का साधनों के भी तीन मुख्य संस्थाएँ। इनमें बैंकिंग क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक तथा कोई प्रकार हैं- संस्थाएँ सर्वाधिक सहकारी भू-स्वामी, व्यापारी आदि शामिल हैं जो साख के परंपरागत स्रोत प्रभावपूर्ण नियंत्रण नहीं है। राज्य में कार्यरत वित्त के संस्थागत बैंकिंग संस्थाएँ, राज्य की वित्तीय संस्थाएँ तथा राष्ट्रीय वित्तीय महत्त्वपूर्ण हैं। बैंकिंग संस्थाओं में व्यावसायिक बैंक, बैंकों को सम्मिलित किया जाता है।
17. सहकारिता से आप क्या समझते हैं ? बिहार में सहकारी वित्तीय संस्थाओं की क्या स्थिति
उत्तर- सामान्य आर्थिक सहकारिता का अर्थ मिलकर कार्य करना है। सहकारिता एक ऐच्छिक संगठन है जो एवं सामाजिक हितों में वृद्धि के लिए समानता के आधार पर स्थापित किया जाता है। इस प्रकार का संगठन सामूहिक हित के लिए कार्य करता है । सहकारी संगठनों के तीन मुख्य तत्त्व या विशेषताएँ हैं। यह एक ऐच्छिक संगठन है, इसकी स्थापना सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए की जाती है तथा इसका संगठन एवं प्रबंध प्रजातांत्रिक सिद्धांतों के आधार पर होता है। सहकारी संस्थाओं को कृषि ऋण का आदर्श स्रोत माना जाता है। परंतु, बिहार में सहकारी समितियों के पास साधनों का अभाव है, इनका प्रबंध और संचालन दोषपूर्ण है तथा राज्य के कृषि ऋण में सहकारी बैंकों की हिस्सेदारी मात्र 10 प्रतिशत है।
18. प्रारंभिक कृषि साख समितियों तथा प्रारंभिक गैर-कृषि साख समितियों में क्या अंतर है ?
उत्तर- प्रारंभिक कृषि साख समितियाँ ग्राम स्तर पर स्थापित की जाती हैं तथा इनका - कार्य क्षेत्र प्रायः एक गाँव तक ही सीमित रहता है। ये समितियाँ केवल कृषि कार्य के लिए अल्पकालीन एवं मध्यकालीन ऋण प्रदान करती हैं। इन समितियों द्वारा मुख्यतया उत्पादक कार्यों के लिए ही ऋण दिए जाते हैं, जैसे खाद बीज, कृषि यंत्र आदि खरीदने के लिए। इसके विपरीत, प्रारंभिक गैर-कृषि साख समितियाँ कृषि के अतिरिक्त किसी अन्य व्यवसाय में लगे व्यक्तियों को साख-सुविधा प्रदान करती है। इस प्रकार की समितियाँ अधिकांशतः नगरों में स्थापित की जाती हैं जहाँ छोटे कारीगर, शिल्पी तथा श्रमिक इनके सदस्य होते हैं।
19. स्वयं सहायता समूह से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- पिछले कुछ वर्षों के अंतर्गत निर्धन परिवारों को कर्ज या उधार देने के कुछ नए तरीके अपनाए गए हैं। इनमें एक तरीका ग्रामीण क्षेत्र के निर्धन व्यक्तियों को छोटे-छोटे स्वयं सहायता समूहों में संगठित करना और उनकी बचत पूँजी को एकत्रित करने पर आधारित है। एक विशेष सहायता समूह में एक-दूसरे के पड़ोसी लगभग 15-20 सदस्य होते हैं। समूह के ये सदस्य नियमित रूप से बचत करते हैं और इस बचत से ही इनकी पूँजी का निर्माण होता है। सदस्य अपनी ऋण की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए छोटे-मोटे कर्ज इस स्वयं सहायता समूह से ही ले सकते हैं। यदि यह समूह नियमित रूप से बचत करता है तो एक-दो वर्ष बाद वह किसी बैंक लेने योग्य हो जाता है। बैंक समूह के नाम पर ऋण देता है तथा इसका उद्देश्य स्वरोजगार के अवसरों का सृजन करना होता है।
20. सूक्ष्म वित्त योजना क्या है ?
उत्तर- अब अनेक विकासशील देश यह अनुभव कर रहे हैं कि सकरार द्वारा चलाए जा रहे पारंपरिक गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों से निर्धनता की समस्या का समाधान संभव नहीं है। इसका प्रमुख कारण यह है कि इस प्रकार की निर्धनता मुख्यतया इन देशों की कमजोर ग्रामीण अधिसंरचना के कारण उत्पन्न होती है। इस दृष्टि से सूक्ष्म वित्त निर्धनता निवारण का एक सक्षम विकल्प है। सूक्ष्म वित्त बैंक तथा सहकारी क्रम द्वारा स्वयं सहायता समूहों को व्यावसायिक बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण से सहलग्न करने अर्थात जोड़ने का प्रयास किया जाता है। इस प्रकार इस योजना से निर्धन परिवारों को स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से बैंक आदि संस्थागत स्रोतों अथवा ऋण सुविधाएँ उपलब्ध हो जाती हैं।
21. कृषि उद्योग एवं व्यापार को दीर्घकालीन ऋण प्रदान करनेवाली विशिष्ट वित्तीय संस्थाओं का उल्लेख करें।
उत्तर- स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात कृषि, उद्योग एवं व्यापार की दीर्घकालीन वित्त की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भारत सरकार की सहायता से देश में कई विशिष्ट वित्तीय संस्थाओं की स्थापना हुई है। कृषि साख की दृष्टि से इनमें राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (National Bank for Agriculture and Rural Development, NABARD) सबसे प्रमुख है। इसकी स्थापना 1982 में हुई। इस बैंक का मुख्य कार्यालय मुंबई में है तथा इसकी देश में 16 क्षेत्रीय कार्यालय हैं। उद्योग एवं व्यापार को दीर्घकालीन सारख प्रदान करनेवाली संस्थाओं में भारतीय औद्योगिक वित्त निगम (Industrial Finance Corporation of India, IFCI), भारतीय औद्योगिक विकास बैंक (Industrial Development Bank of India, IDBI), भारतीय औद्योगिक साख एवं निवेश निगम (Industrial Credit and Investment Corporation of India, ICICI), भारतीय जीवन बीमा निगम (Life Insuracne Corporation of , LIC), यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया (Unit Trust of India, UTI), निर्यात- आयात बैंक (Export-Import Bank) आदि महत्त्वपूर्ण हैं। ये संस्थाएँ औद्योगिक संस्थानों की स्थापना तथा उनके विकास एवं विस्तार के लिए बहुत वृहत पैमाने पर वित्त या साख की व्यवस्था करती हैं। इन संस्थाओं द्वारा इस बात की भी देखदेख की जाती है कि व्यावसायिक संस्थान इनके वित्त का नियोजित ढंग से उपयोग करते हैं।
लेकिन, इन विशिष्ट वित्तीय संस्थाओं की स्थापना होने पर भी भारत में दीर्घकालीन पूँजी का अभाव है। इसका एक प्रमुख कारण हमारे देश में बचत की निम्न दूर है।  
22. बिहार में सहकारिता आंदोलन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। 
उत्तर- सहकारिता आंदोलन के विकास की दृष्टि से बिहार भारत का एक पिछड़ा राज्य है। यद्यपि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राज्य में इस आंदोलन की प्रगति हुई है, फिर भी बिहार इस क्षेत्र में कई अन्य राज्यों से पीछे है। बिहार राज्य में 1904 से सहकारी साख- समितियों की स्थापना होने लगी। 1941 में प्रांतीय सरकार ने बिहार में सहकारिता आंदोलन के पुनरुत्थान के लिए एक 'सहकारिता पुनरुत्थान-योजना' प्रस्तुत की। पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत राज्य में सहकारिता के विकास पर विशेष बल दिया जा रहा है। इस समय राज्य में कई प्रकार की सहकारी समितियाँ कार्य कर रही हैं। लेकिन, ऋण वापसी का प्रतिशत कम होने के कारण बिहार में सहकारी समितियों की वित्तीय स्थिति संतोषजनक नहीं है। कृषि एवं समवर्गी क्षेत्रों के विकास में सहकारिता के महत्त्व को देखते हुए अभी हाल में सहकारी प्रक्षेत्र के लिए सरकार ने एक कार्ययोजना तैयार की है। इसमें पाँच विशिष्ट क्षेत्रों की पहचान की गई है जिनमें सहकारिता की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है— अल्पकालिक कृषि ऋण, कृषि लागत सामग्रियों की आपूर्ति, फसल बीमा, भंडारण एवं-विपणन तथा कृषि विस्तार सेवाएँ । 
बिहार में बुनकरों की बड़ी संख्या होने के कारण बुनकर सहकारी समितियों का विशेष महत्त्व है। राज्य में लगभग 1,071 सहकारी बुनकर समितियाँ हैं जिनके पास 10,000 से अधिक हथकरघे हैं। राज्य सरकार ने बुनकरों के लिए विपणन सहायता, प्रशिक्षण केंद्रों का आधुनिकीकरण तथा कार्यस्थल की मरम्मत आदि की योजनाएँ आरंभ की हैं। ऋण माफी योजना के अंतर्गत सरकार ने इनके 12.24 करोड़ रुपये के ऋणों की माफी का अनुमोदन किया है।

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