1. भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर- प्रायः, प्रत्येक देश के संविधान की कुछ विशेषताएँ होती हैं। ठीक उसी प्रकार भारतीय संविधान की भी कुछ प्रमुख विशेषताएँ हैं जो इस प्रकार हैं
(i) लोकतांत्रिक गणराज्य – यह भारतीय संविधान की पहली प्रमुख विशेषता है। यह इस बात की ओर संकेत करता है कि सरकार की वास्तविक शक्ति जनता यानी 'लोग' में निहित है।
(ii) एक विशालकाय तथा लिखित संविधान– यह भारतीय संविधान की दूसरी प्रमुख विशेषता है। यह विश्व का सर्वाधिक विशाल संविधान है। इसमें शासक एवं नागरिक के अधिकारों का विस्तृत वर्णन किया गया है।
(iii) समाजवादी गणराज्य – 42वें संविधान संशोधन द्वारा भारतीय संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक समाजवादी गणराज्य घोषित किया गया है।
(iv) संसदीय शासन प्रणाली – संविधान द्वारा भारत में संसदीय शासन प्रणाली को स्वीकार किया गया है।
(v) धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना – यह भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषता है। 42वें संविधान संशोधन द्वारा भारतीय संविधान की प्रस्तावना में इसे जोड़ा गया है।
(vi) स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका की स्थापना- यहाँ संविधान द्वारा स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका की स्थापना की गई है।
(vii) सार्वभौम वयस्क मताधिकार - भारतीय संविधान जाति, लिंग, क्षेत्र, वर्ग, संप्रदाय, भाषा का भेदभाव किए बिना वैसे समस्त भारतवासी को जिनकी न्यूनतम आयु 18 वर्ष हो वोट देने का अधिकार देता है।
(viii) संघीय शासन-प्रणाली की व्यवस्था— भारत में संविधान द्वारा संघीय शासन प्रणाली की स्थापना की गई है। भारतीय संविधान में यह स्पष्ट कहा गया है कि भारत राज्यों का एक संघ होगा। अतः संविधान द्वारा केंद्र सरकार एवं राज्यों के अधिकारों का स्पष्ट विभाजन कर दिया गया है।
(ix) मूल अधिकार एवं कर्तव्य – भारतीय संविधान की यह मूल विशेषता हैं नागरिकों के मूल अधिकारों के साथ-साथ भारतीय संविधान में नागरिकों के 11 कर्तव्यों की चर्चा भी की गई है। (x) अन्य विशेषताएँ - भारतीय संविधान की उपर्युक्त विशेषताओं के अलावे और भी कई विशेषताएँ हैं, जैसे—राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों का उल्लेख, एकल नागरिकता, एक राष्ट्रभाषा, विश्वशांति का समर्थक, अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के हितों की रक्षा इत्यादि । - अतः, स्पष्ट है कि भारतीय संविधान की अनेक प्रमुख विशेषताएँ हैं। ये विशेषताएँ काफी महत्त्वपूर्ण हैं।
2. भारतीय संविधान की निम्नलिखित विशेषताओं का वर्णन करें
संप्रभुत्वसंपन्न, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी, लोकतांत्रिक गणराज्य
उत्तर - संप्रभुत्व संपन्न - संप्रभुत्व - सम्पन्न राज्य ऐसे राज्य को कहते हैं जो अपने आंतरिक मामलों और बाहरी मामलों में पूर्ण स्वतंत्र होता है। यह किसी दूसरी सरकार या शक्ति के अधीन नहीं होता है। लोगों को अपने सभी मामलों में निर्णय का अंतिम एवं सर्वोच्च अधिकार होता है। भारत की सरकार को कोई बाहरी शक्ति आदेश नहीं दे सकती है।
धर्म निरपेक्ष- धर्म निरपेक्ष राज्य वैसे राज्य को कहते हैं जिसका अपना कोई धर्म नहीं होता। राज्य धार्मिक मामलों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करता है। सरकार सभी धर्म को समान सम्मान प्रदान करती है।
समाजवादी - संविधान की प्रस्तावना के अंतर्गत समाजवादी शब्द का उपभोग किया गया है। यह इस बात को स्पष्ट करता है कि राष्ट्रीय सम्पदा का बँटवारा समानता के आधार पर होना चाहिए। सरकार द्वारा इस प्रकार के नियमों का निर्माण किया जाना चाहिए कि राष्ट्रीय संपत्ति कुछ ही लोगों के हाथों में केन्द्रित न हो । प्राकृतिक संपदा राष्ट्र की धरोहर है। अतः इसका न्यायोचित वितरण हो ।
लोकतांत्रिक गणराज्य - एक लोकतांत्रिक गणराज्य वैसे राज्य को कहते हैं जहाँ जनता अपने शासन का संचालन स्वयं करती है। भारत में प्रतिनिध्यात्मक लोकतंत्र की स्थापना की गई है। इसे कार्यरूप में परिणत करने के लिए अधिकार दिया गया। उनके मतों का मूल्य समान है। शासन संचालन के लिए वे अपने प्रतिनिधियों का स्वयं निर्वाचन करते हैं। इस प्रकार भारत में लोकतंत्र की स्थापना की गई है और जनता को अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से स्वयं शासन संचालन का अधिकार प्रदान किया गया है।
3. भारतीय संविधान की प्रस्तावना का क्या महत्त्व है ? संक्षेप में समझाएँ ।
उत्तर - भारतीय संविधान की प्रस्तावना काफी महत्त्वपूर्ण है। इस प्रस्तावना के अध्ययन से भारतीय संविधान के मूल उद्देश्यों की जानकारी होती है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना के महत्त्व निम्नलिखित हैं—
1. जनता का संविधान - भारतीय संविधान की प्रस्तावना का प्रारंभ ही 'हम भारत के लोग' से किया गया है। इसका यह स्पष्ट अर्थ होता है कि यह लोगों यानी जनता का संविधान है। वास्तव में इस संविधान का जनता ने अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से किया है। अमेरिका एवं दक्षिण अफ्रीका के संविधान की प्रस्तावना का प्रारंभ भी लगभग इसी तरह किया गया है।
2. सरकार के स्वरूप की झलक - इस प्रस्तावना में सरकार के स्वरूप की स्पष्ट झलक मिलती है। भारत एक संप्रभुतासंपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य है, अतः यह आंतरिक एवं बाह्य दबावों से स्वतंत्र है।
3. आदर्शों एवं मूल्यों की झलक – इस संविधान की प्रस्तावना के अध्ययन से तुरंत यह आभास TM हो जाता है कि राष्ट्रीय एकता, अखंडता, समानता, स्वतंत्रता, भाईचारा, विश्वशांति भारतीय संविधान के मूल आदर्श हैं। इसका यह स्पष्ट अर्थ है कि भारत के प्रत्येक शासक को, चाहे वह किसी भी दल की सरकार क्यों न हो, इन आदर्शों एवं मूल्यों का पालन करना पड़ता है एवं उसे आगे भी बनाए रखना उसका एक आवश्यक राजधर्म होता है।
4. धर्मनिरपेक्ष राज्य– भारतीय संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है। 42वें संविधान संशोधन द्वारा 1976 में भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द को जोड़ा गया है। अतः, धर्म के आधार पर भारत के किसी भी नागरिक के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है।
अतः, यह कहा जा सकता है कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना का महत्त्व संविधान के किसी भी भाग के महत्त्व से कम नहीं है।
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