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Class 10th Bharati Bhawan Political Science Chapter 1 | Long Answer Questions | लोकतंत्र में सत्ता की भागीदारी | कक्षा 10वीं भारती भवन अध्याय 1 | दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Class 10th Bharati Bhawan Political Science Chapter 1  Long Answer Questions  लोकतंत्र में सत्ता की भागीदारी  कक्षा 10वीं भारती भवन अध्याय 1  दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. सामाजिक विभेदों की उत्पत्ति के कारणों पर प्रकाश डालें। 
उत्तर- किसी भी समाज में सामाजिक विभेदों की उत्पत्ति के अनेक कारण होते हैं। प्रत्येक समाज में विभिन्न भाषा, धर्म, जाति संप्रदाय एवं क्षेत्र के लोग रहते हैं। इन सबों के आधार पर उनमें विभेद बना रहता है। सामाजिक विभेद का सबसे मुख्य कारण जन्म को माना जाता है। किसी व्यक्ति का जन्म किसी परिवार विशेष में होता है। उस परिवार का संबंध किसी न किसी जाति, समुदाय, धर्म, भाषा क्षेत्र से होता है । इस तरह उस व्यक्ति विशेष का संबंध भी उसी जाति, समुदाय, धर्म, भाषा तथा क्षेत्र से हो जाता है । इस प्रकार जाति, समुदाय, धर्म, भाषा, क्षेत्र के नाम पर सामाजिक विभेदों की उत्पत्ति होती है।
कुछ अन्य प्रकार से भी सामाजिक विभेद उत्पन्न होते हैं जिनका जन्म से कोई संबंध नहीं होता है। जैसे लिंग, रंग, नस्ल, धन आदि भी विभेद लोगों में पाया जाता है जो कालांतर में सामाजिक विभेद का रूप ले लेते हैं। स्त्री पुरुष, काला - गोरा लंबा-नाटा, गरीब-अमीर, शक्तिशाली और कमजोर का विभेद भी सामाजिक विभेद की उत्पत्ति का कारण होते है।
व्यक्तिगत पसंद से भी सामाजिक विभेद की उत्पत्ति होती है। कई व्यक्ति धर्म परिवर्तन करके एक अलग समुदाय बना लेते हैं। कुछ लोग अंतरजातीय विवाह संबंध स्थापित कर अपनी अलग पहचान बना लेते हैं। कुछ लोग अपने परिवार की परंपराओं से हटकर अलग विषय का अध्ययन करने, पेशे, खेल, उद्योग-धंधे तथा सांस्कृतिक गतिविधियों का चयन कर अलग सामाजिक समूह | के सदस्य बन जाते हैं और इस तरीके से भी सामाजिक विभेद उत्पन्न होते हैं।
2. सामाजिक विभेदों में तालमेल और संघर्ष पर प्रकाश डालें। 
उत्तर- लोकतंत्र में विविधता स्वाभाविक है। परंतु विविधता में बनता भी लोकतंत्र का ही 24 गुण है। अधिकांश लोकतांत्रिक राज्यों में धर्म निरपेक्षता के सिद्धांत को अपनाया जाता है। धर्मनिरपेक्ष राज्य में विभिन्न धर्मों के माननेवाले लोग मिल-जुलकर साथ रहते हैं। उनमें यह धारणा विकसित हो जाती है कि उनके धर्म अलग-अलग अवश्य हैं, परंतु उनका राष्ट्र एक है। एक से सामाजिक असमानुताएँ कई समूहों में मौजूद हों तो फिर एक समूह के लोगों के लिए दूसरे समूहों से अलग पहचान बनाना मुश्किल हो जाता है। इसका अर्थ यह है कि किसी एक मुद्दे पर कई समूहों के हित एक जैसे हो जाते हैं। विभिन्नताओं के बावजूद लोगों में सामंजस्य का भाव पैदा होता है। उत्तरी आयरलैंड और नीदरलैंड दोनों ही ईसाई बहुल देश हैं। उत्तरी आयरलैंड में वर्ज और र्म के बीच गहरी समानता है ।
सामाजिक विभाजन तब होता है जब कुछ सामाजिक अंतर दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और बड़े हो जाते हैं। अमरीका में श्वेत और अश्वेत का अंतर एक सामाजिक विभाज्य भी बन जाता है क्योंकि अश्वेत लोग आमतौर पर गरीब हैं, बेघर हैं तथा भेदभाव का शिकार हैं। हमारे देश में भी दलित आमतौर पर गरीब और भूमिहीन हैं। उन्हें भी अक्सर भेदभाव और अन्याय का शिकार होना पड़ता है। जब एक तरह का सामाजिक अंतर अन्य अंतरों से ज्यादा महत्वपूर्ण बन जाता है और लोगों को यह महसूस होने लगता है कि वे दूसरे समुदाय के हैं तो इससे एक सामाजिक विभाजन की स्थिति पैदा होती है। विभिन्नताओं में टकराव की स्थिति किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए लाभदायक नहीं हो सकती।
3. सामाजिक विभेदों की राजनीति के परिणामों का वर्णन करें।
उत्तर- सामाजिक विभेदों का लोकतांत्रिक राजनीति पर प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता है। इसका सबसे दुखद पहलु यह है कि किसी-किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में सामाजिक विभेद राजनीति को इतना प्रभावित कर देता है कि वहाँ सामाजिक विभेदों का ही राजनीति हावी हो जाती है। सबसे बड़ी बात यह है कि जब सामाजिक विभेद राजनीतिक विभेद में परिवर्तित हो जाता है तब इसका घातक परिणाम राजनीतिक व्यवस्था को भुगतना पड़ता है। इसका सर्वोत्कृष्ट उदाहरण यूगोस्लाविया है। यूगोस्लाविया में धर्म और जाति के आधार पर सामाजिक विभेद इस हद तक बढ़ गया कि वहाँ विभेदों की राजनीति ने अपनी सर्वोच्चता स्थापित करके यूगोस्लाविया को कई टुकड़ों में "विखंडित किया। स्पष्ट है कि जब सामाजिक विभेद राजनीतिक विभेद में परिवर्तित हो जाता है तब देश का विखंडन अवश्यंभावी हो जाता है।
सामाजिक विभेद की राजनीति का परिणाम हमेशा दुःखदायी नहीं होता है। इसके सुखद (परिणाम भी होते हैं। अधिकांश लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सामाजिक विभेद और राजनीति में अटूट  संबंध बना रहता है। सामाजिक विभेद की राजनीति के परिणाम निम्नांकित तीन बातों पर निर्भर करते हैं
(i). स्वयं की पहचान की चेतना - सामाजिक विभेद की राजनीति का अच्छा या बुरा परिणाम इस बात पर निर्भर करता है कि लोगों में अपनी पहचान के लिए कितनी चेतना है। 
(ii). समाज के विभिन्न समुदायों की माँगों को राजनीतिक दलों द्वारा उपस्थित करने का तरीका – किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में अलग-अलग समुदायों के लोगों की अपने हित के लिए (अलग-अलग माँगे होती है। उन माँगों के लिए देश के राजनीतिक दल किस प्रकार निर्णय के • लिए सरकार के सामने रखते हैं, उसपर भी सामाजिक विभेद की राजनीति के परिणाम निर्भर करते हैं। (iii). सरकार की माँगों के प्रति सोच- सामाजिक विभेद की राजनीति के परिणाम सरकार की विभिन्न समुदायों की माँगों के प्रति सोच पर भी निर्भर करते हैं।
इस प्रकार सामाजिक विभेदों की राजनीति के अच्छे एवं बुरे दोनों परिणाम होते हैं। 
4. हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं लेती । कैसे ? 
उत्तर- यह आवश्यक नहीं है कि हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप ले ले। सामाजिक विभिन्नता के कारण लोगों में विभेद की विचारधारा अवश्य बनती है, परन्तु यही विभिन्नता कहीं कहीं पर समान उद्देश्य के कारण मूल का काम भी करती है। सामाजिक विभाजन एवं विभिन्नता में बहुत बड़ा अंतर है। सामाजिक विभाजन तब होता है जब कुछ सामाजिक अंतर दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और बड़े हो जाते हैं। सवर्णों एवं के बीच अंतर एक सामाजिक विभाजन है, क्योंकि दलित संपूर्ण देश में आमतौर पर गरीब
वो " सुविधाविहिन एवं भेदभाव के शिकार हैं, जबकि सवर्ण आमतौर पर सम्पन्न एवं सुविधायुक्त हैं। दलितों को यह महसूस होने लगता है कि वे दूसरे समुदाय के हैं। परंतु इन सबके बावजूद जब क्षेत्र अथवा राष्ट्र की बात होती है तो सभी एक हो जाते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं.

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