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Class 9th Bharati Bhawan Geography Chapter 4 | Climate | Long Answer Question | कक्षा 9वीं भारती भवन भूगोल अध्याय 4 | जलवायु | दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Class 9th Bharati Bhawan Geography Chapter 4  Climate  Long Answer Question  कक्षा 9वीं भारती भवन भूगोल अध्याय 4  जलवायु  दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. भारतीय वर्षा को प्रभावित करनेवाले प्रमुख कारकों का वर्णन करें।
उत्तर-(i) उष्ण जलवायु — भारत की स्थिति मुख्यत: उष्ण कटिबंध में है, अतः जलवायु उष्ण रहा करती है। यह हिन्द महासागर के शीर्ष पर है और फिर अरब सागर एवं बंगोपसागर मुख्य भूमि से सटे सुदूर उतर तक फैले हुए हैं जहाँ से चलनेवाले पवन भरपूर आर्द्रता लिए पहुँचते हैं और भारी वर्षा करते हैं ।
(ii) विस्तृत भू-भाग- वर्षा करनेवाले बादल एक छोर से दूसरे छोर तक पहुँचते-पहुँचते अपनी सारी आर्द्रता समाप्त कर डालते हैं।
(iii) प्राकृतिक संरचना की असमानता - उत्तर में दूर तक फैली पर्वतश्रेणियाँ हैं, दक्षिणी भाग पठार है और मध्य में विशाल मैदान है। दक्षिण से आनेवाली मानसूनी हवाओं को ऊपर उठाकर हिमालय पहाड़ भारी वर्षा कराता है। (हिमपात भी ) ।
पश्चिमी घाट दक्षिण-पश्चिम से आनेवाली आर्द्र हवाओं को रोककर अधिक वर्षा लेता है। निःसंदेह, पहाड़ो की स्थिति इस देश में वर्षा का निर्धारण करती है।
(iv) वायुदाब की पट्टियों के खिसकने का भी प्रभाव महत्त्वपूर्ण माना जाता है। 
2. भारतीय मानसून जलवायु की क्षेत्रीय विषमता के कारणों पर प्रकाश डालें। 
उत्तर-(i) यहाँ जाड़े और गर्मी की दो स्पष्ट ऋतुएँ हैं तथा (ii) वर्षा मुख्यतः गर्मी में हुआ करती है। ये दोनों तथ्य मानसून जलवायु की विशेषताएँ हैं। विषमता के कई कारण हैं— 1. भारत की स्थिति मुख्यत: उष्ण कटिबंध में है, अतः जलवायु उष्ण रहा करती है। 
(ii) देश का विस्तार (उत्तर-दक्षिण दिशा में या पूर्व-पश्चिम दिशा में) हजारों किलोमीटर में है। इसलिए देश की जलवायु की एक-सी दशा मिलना कठिन है।
क्षेत्रीय विषमता – सारे देश की प्राकृतिक रचना एक-सी नहीं है। उतर में दूर तक फैली पर्वत श्रेणियाँ हैं, दक्षिणी भाग पठार है और मध्य में विशाल मैदान है। ग्रीष्मकाल में प्रत्येक भाग समान रूप से गर्म नहीं होता। पहाड़ी भाग मैदान की अपेक्षा ठंडे रहते हैं। फिर, हिमालय पहाड़ उत्तरी सर्द हवाओं को रोककर उत्तरी मैदान को कड़ाके की सर्दी से बचाता है और दक्षिण से आनेवाली मानसूनी हवाओं को ऊपर भारी वर्षा कराता है। इसी प्रकार पश्चिम घाट (सह्यद्रि पर्वत) दक्षिण-पश्चिम से आन हवाओं को रोककर अधिक वर्षा लेता है और पूर्वी भाग को वृष्टि-छाया में डाल देता है।
3. भारतीय ऋतु-चक्र का वर्णन करें।
उत्तर- भारतीय जलवायु की एक विशेषता यह है कि यहाँ वर्षभर ऋतुओं का चक्र चलता रहता है। प्रत्येक ऋतु की अलग-अलग विशेषताएँ होती हैं। भरत में छह ऋतुएँ पाई जाती हैं1. वसंत, 2. ग्रीष्म, 3. वर्षा, 4. शरद, 5. हेमंत, 6. शिशिर भारत चार हैं— 1. शीत ऋतु, 2. ग्रीष्म, 3. वर्षा ( बढ़ते मानसून की ऋतु) और 4. शरद ( लौटते मानसून की ऋतु) । 
4. भारत में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून दो शाखाओं में क्यों बँट जाता है ? दोनों का विवरण दें।
उत्तर - भारत के प्रायद्वीपीय आकार के कारण दक्षिण-पश्चिमी मानसून दो भागों में बँट जाता है। (क) अरब सागर का मानसून और (ख) बंगाल की खाड़ी का मानसून ।
अरब सागर का मानसून पहले चलता है और अधिक शक्तिशाली होता है, पर पश्चिमी घाट पार करने में उसकी शक्ति घट जाती है। उसका अधिकतर मेघ वहीं बरस जाता है। इससे सम्मुख ढालों पर 300 सेंटीमीटर तक वर्षा होती है, पर विमुख ढालों पर मुश्किल से 50 सेंटीमीटर वर्षा हो जाती है पाती है।
बंगाल की खाड़ी का मानसून- अरब सागर के मानसून की अपेक्षा कुछ देर से आता है, पर इससे देश भागों में वर्षा होती है। पहले यह अराकान तट पर पहुँचता है और तब असम की पहाड़ियों से होकर गुजरता है। इससे मेघालय पठार पर सर्वाधिक वर्षा होती है। मासिनराम गाँव में 1,392 सेंटीमीटर वर्षा मापी गई है। हिमालय की स्थिति से इस मानसून को उतर भारत में मुड़ना पड़ता है। इस मानसून से वर्षा पश्चिम की ओर क्रमशः घटती जाती है। राजस्थान पहुँचते-पहुँचते वर्षा नाममात्र की होती है और वहाँ थार की मरुभूमि पाई जाती है ।
5. भारत की शीतऋतु में मौसम की सामान्य दशा कैसी रहती है ? 
उत्तर-शीतऋतु का समय मध्य नवंबर से मध्य मार्च तक माना जाता है जब उत्तरी भारत उच्च वायुदाब का क्षेत्र रहता है और यहाँ औसतन तापमान 10°C से 18°C तक मिलता है। दिसंबर और जनवरी सबसे सर्द महीने होते हैं। सूर्य दक्षिणायन रहने के कारण दक्षिणी भारत में अपेक्षाकृत अधिक तापमान मिलता है (25°C), फिर भी सारे देश में ठंडी मौसमी स्थिति बनी रहती है । हवाएँ उत्तरी उच्च दाब से विषुवतीय निम्नदाब की ओर चला करती है। गंगा के मैदान में ये हवाएँ उतर या उत्तर-पश्चिम की ओर से चलती है। बंगाल की खाड़ी पार करते समय उतर-पूर्व की ओर। इनसे वर्षा केवल उस समय होती है जब ये तमिलनाडु पहुँचती हैं।
उतर- पश्चिमी भारत भूमध्यसागरीय चक्रवातों से, जो फारस की खाड़ी पार कर यहाँ प्रवेश करते हैं। हलकी वर्षा पाता है। उस समय सतलुज मैदान में तो वर्षा होती है, पर हिमालय के पर्वतीय भाग में हिमपात होता है। इससे तापमान इतना गिर जाता है कि वहाँ से आसपास के क्षेत्रों में शीत लहर चल पड़ती है। शीतकालीन वर्षा से रबी फसलों को बड़ा लाभ पहुँचता है।
6. भारत के कौन-कौन से क्षेत्र सूखा से प्रभावित (शुष्क) हैं और क्यों ? 
उत्तर- शुष्क एवं विषम जलवायु क्षेत्र–पश्चिमी राजस्थान मुख्य रूप से इसके अंतर्गत आता ', जहाँ बेहद गर्मी और कड़ाके की सर्दी पड़ने के कारण तापांतर अधिक मिलता है। वर्षा 40 सेंटीमीटर से भी कम होती है।
7. मानसून का पीछे हटना क्या है ? जिस ऋतु में यह होता है, उसका वर्णन करें। 
उत्तर- मानसून का पीछे हटना यानी लौटती मानसून ऋतु यह अक्टूबर से मध्य नवम्बर तक मानी जाती है, जिसमें सूर्य के दक्षिणायन होते ही तापमान में कमी आने लगती है और उतर-पश्चिमी भाग में वायुदाब बढ़ने लगता है। साथ ही, बंगाल की खाड़ीवाले भाग में वायुदाब बटने लगता है। परिणामस्वरूप, मानसून वापस आने या पीछे लौटने लगता है। हवाएँ स्थल की ओर चलने लगती है। बंगाल की खाड़ी पार करते समय लौटते मानसून - पवन आर्द्रता ग्रहण कर दक्षिण-पूर्वी तट पर वर्षा करते हैं। तमिलनाडु में वर्षभर की अधिकतम वर्षा (44% से 60% ) इसी ऋतु में होती है। 
8. भारत में ग्रीष्मऋतु का वर्णन करें।
उत्तर - यह ऋतु मध्य मार्च से मई तक मानी जाती है, जिसमें सूर्य उत्तरायण होता है। इस कारण बेहद गर्मी पड़ती है। मार्च में सबसे अधिक गर्मी दक्षिण भारत में पड़ती है (40°C तक ) मई आते-आते उत्तर पश्चिमी भारत में तापमान 45°C से भी अधिक पहुँच जाता है। राजस्थान - स्थित गंगानगर भारत का सबसे गर्म स्थान बन जाता है, जहाँ तापमान 55°C तक पाया जाता है। वहाँ निम्न वायुदाब क्षेत्र का विकास होने लगता है। धूलभरी आँधियाँ (जिन्हें 'लू' कहा जाता है) चलने लगती हैं और आकाश पीला तथा धूल-धूसरित हो उठता है। दक्षिणी पठार में लू नहीं चलती। वहाँ तथा उसके तटीय प्रदेश में अपेक्षाकृत कम तापमान मिलता है (पठार की ऊँचाई तथा समुद्र की निकटता के कारण ) ।
इन दिनों कुछ स्थानीय हवाएँ विकसित होकर बंगाल की खाड़ी से उत्तर और फिर पश्चिम की ओर चल पड़ती हैं, जो 'काल बैसाखी' या 'नॉरवेस्टर' कहलाती हैं। इन स्थानीय हवाओं से भारी वर्षा होने और ओले तक गिरते देखे जाते हैं। ऐसी चक्रवातीय वर्षा को दक्षिण भारत में, खासकर केरल और कर्नाटक में, 'आम्र बौछार' कहते हैं।
9. मानसून भारत में एकता स्थापित करता है, कैसे ?
उत्तर- भारत में जलबायु की विषमता रहते हुए भी ऋतुचक्र की एकलवता बनी रहती है। यहाँ ऋतु विशेष में मिलनेवाले सूदृश्य, कृषिकार्य पर्व-त्योहार आदि में समानता देखी जाती है। लोगों का पूरा जीवन इसी ऋतुलय के चारों ओर घूमता है, अर्थात इससे प्रभावित रहा करता है। 
10. भारत की जलवायु का यहाँ के जन-जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ? 
उत्तर- भारत को जलवायु का प्रभाव विभिन्न भागों के लोगों के रंग-रूप, खान-पान और रहन-सहन पर स्पष्ट देखा जाता है, पर आर्थिक जीवन पर पड़नेवाला प्रभाव सबसे अधिक महत्त्व रखता है।
(i) गर्मी में उच्च तापमान और ग्रीष्मकालीन वर्षा के कारण भारतीय जलवायु में कुछ विशिष्ट फसलों की खेती होती है, जैसे—धान, जूट और चाय व फसलें मानसूनी जलवायु की ही उपज है। 
(ii) धान की खेता से अधिकाधिक लोगों का भरण-पोषण संभव है, अत: ऐसे क्षेत्र घने आबाद होते हैं।
(iii) अधिक गर्मी पड़ने के कारण लोग सुस्त हुआ करते हैं, जो आर्थिक विकास में बाधक है। 
(iv) वर्षभर वर्षा न होने के कारण लोगों को शुष्क ऋतु में बेकार रहना पड़ता है। 
(v) कहा गया है—“मानसून वह धुरी है जिसपर भारत का समस्त जीवनचक्र घूमता है।" तात्पर्य वह है कि इसी पर भारत की अर्थव्यवस्था टिकी हुई है। भारतीय कृषि को मानसून के साथ जुआ खेलना कहा गया है।
(vi) पश्चिमोत्तर भारत में शीतकालीन वर्षा के कारण गेहूँ, जौ आदि अच्छी उपज होती है। 
(vii) अधिक वर्षा से कुछ क्षेत्रों में बाढ़ आ जाती है। 
(viii) मूसलाधार वर्षा से मिट्टी का कटाव होने लगता है।
(ix) अत्यल्प वर्षा के क्षेत्र मरुस्थलों में परिणव होने लगते हैं।
(x) अधिक वर्षावाले मैदानी भाग में धान की तीन-तीन फसलें उगाई जाती हैं। समय पर वर्षा होते रहने से फसलों की उपज में कमी नहीं आती और देश को खाद्यान्नों का आयात नहीं करना पड़ता, साथ ही व्यावसायिक फसलों का व्यापार बढ़ने लगता है और औद्योगिक उत्पादन में कमी नहीं आती। किंतु मानसून की अनिश्चितता से कृषकों को भारी क्षति उठानी पड़ती है और देश की आर्थिक व्यवस्था चरमरा जाती है। यही कारण है कि भारतीय मौसम पूर्वानुमान विभाग रेडियो और दूरदर्शन के माध्यम से मानसून का पूर्वानुमान प्रसारित करता है। इससे कृषकों को अपनी कृषि योजना तैयार करने में सहायता मिलती है।
11. भारत में कितनी ऋतुएँ होती है ? किसी एक ऋतु का भौगोलिक विवरण दें। 
उत्तर- भारत में चार ऋतुएँ पाई जाती हैं- शीत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु और शरद ऋतु । इनकी अलग-अलग विशेषताएँ हैं। इन चार ऋतुओं में शीत ऋतु की अवधि मध्य नवंबर से मध्य मार्च तक की है। इस समय उत्तरी भारत का विशेषकर उत्तर पश्चिमी भारत के ऊपर उच्च वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है। इस समय यहाँ औसत तापमान 10-18°C तक मिलता है। दिसंबर और जनवरी सबसे ठंडा महीना होता है। सूर्य के दक्षिणायन होने के कारण दक्षिणी भात में अपेक्षाकृत अधिक तापमान पाया जाता है जो लगभग 25°C के आसपास होता है। फिर भी, सारे देश में ठंड की स्थिति बनी रहती है।
हवाएँ उत्तरी उच्च दाब से विपुवतीय निम्न दाब की ओर चलने लगती हैं। स्थलीय भाग से आने के कारण ये हवाएँ शुरू और ठंडी होती है। गंगा के मैदान में ये हवाएँ उत्तर या उत्तर-पश्चिम की ओर से चलती हैं पूर्वी भाग में ये हवाएँ उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर चलती हैं। बंगाल की खाड़ी के ऊपर से गुजरते वक्त इन हवाओं को पर्याप्त नमी मिल जाती है। परिणामस्वरूप, पूर्वी घाट की पहाड़ियों से टकराकर इन हवाओं से कोरोमंडल तट पर वर्षा होती है। तमिलनाडु तथा केरल में भी इन हवाओं से शीत ऋतु में वर्षा होती है।
उत्तर-पश्चिमी भारत में इस समय भूमध्यसागरी चक्रवातों या पश्चिमी विक्षोभ से वर्षा होती है। इस चक्रवात को भारत तक लाने में जेट धाराएँ मदद करती है।
शीत ऋतु के दौरान हिमालय पर्वतीय प्रदेश के कई भागों में हिमपात होता है। तापमान इससे इतना गिर जाता है कि संपूर्ण उत्तरी भारत शीत लहर के प्रकोप में आ जाता है। शीतकालीन वर्षा से रबी की फसलों को लाभ होता है।
12. भारतीय मानसूनी वर्षा की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर- भारत में मॉनसूनी वर्षा दो प्रकार की होती है- (क) पर्वतीय वर्षा और (ख) चक्रवातीय वर्षा ।
( क ) पर्वतीय वर्षा के दो प्रमुख क्षेत्र हैं-(i) हिमालय के प्रभाव से होनेवाले वर्षा, जो उत्तर-पूर्वी भारत, हिमालय की दक्षिणी ढाल एवं तराई प्रदेश में होती है। (ii) पश्चिमी घाट की पश्चिमी ढाल और तटवर्ती प्रदेश में दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून से वर्षा होती है। उत्तर पूर्वी मॉनसून से पर्वतीय वर्षा केवल नीलगिरि एवं अन्नामलाय पर्वत के पूर्वी भागों में होती है। 
(ख) चक्रवातीय वर्षा भारत में तीन प्रकार की होती है—
(i) मॉनसून पूर्व की वर्षा - यह वर्षा अप्रैल और मई में होती है। इस वर्षा का प्रमुख कारण तटवर्ती क्षेत्रों में बननेवाले निम्न दाब हैं। ऐसे निम्न दाब क्षेत्र चारों ओर घूमनेवाली वायु जब समुद्र की दिशा में स्थलखंड पर आती है तब इससे हलकी वर्षा होती है। इस वर्षा को पश्चिम बंगाल में काल वैसाखी, तमिलनाडु में आम्र वर्ष एवं कर्नाटक में फूलों की वर्षा कहा जाता है।
(ii) मॉनसून-बाद की वर्षा- मॉनसून समापन के बाद उत्तर-पूर्वी मॉनसून प्रारंभ होने पर पूर्वी तटीय क्षेत्रों में चक्रवात उत्पन्न होते हैं जिससे आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु के तटवर्ती क्षेत्रों में अक्टूबर तथा नवंबर महीने में चक्रवातीय वर्षा हो जाती है। 
(iii) दक्षिण-पश्चिम मॉनसून काल में वर्षा- दक्षिण-पश्चिम मॉनसून से केवल पश्चिमी घाट के सहारे ही पर्वतीय वर्षा होती है। नवीन मौसमी सूचनाओं के अनुसार, मॉनसूनी वर्षा भी चक्रवातीय वर्षा हैं मॉनसूनी हवाएँ हिमालय के तटवर्ती क्षेत्रों के सहारे गुजरने के साथ-साथ आंतरिक भागों में भी निम्न भारत के स्थान परिवर्तन के साथ आगे बढ़ती जाती हैं।  
13. जेट स्ट्रीम क्या है ? भारतीय मॉनसून इससे किस तरह प्रभावित होती है? 
उत्तर- जेट स्ट्रीम या जेटधाराएँ ऊपरी वायुमंडल में और विशेषकर समतामंडल में तीव्र गति से प्रभावित होनेवाली हवाएँ हैं। इनकी प्रवाह दिशा जलधाराओं की तरह निश्चित है, इसलिए इसे जेट स्ट्रीम नाम दिया गया है। जेट स्ट्रीम चार प्रकार की होती हैं—
(i) ध्रुवीय रात्रि जेट हवाएँ, 
(ii) ध्रुवीय सीमाग्र जेट हवाएँ, 
(iii) उपोष्ण जेट हवाएँ एवं 
(iv) पूर्वी जेट हवाएँ ।
इन चारों जेट हवाओं में से उपोष्ण एवं उष्ण कटिबंधीय पूर्वी जेट हवा मॉनसून को प्रभावित करती है। उपोष्ण जेट हवा जाड़े की ऋतु में भारतीय उपमहाद्वीन के ऊपर से गुजरती है। इस स्थिति में ये हवाएँ नीचे बैठने की प्रवृत्ति के कारण भारतीय क्षेत्र में उच्च वायुदाब का निर्माण करती हैं जिससे उत्तर पूर्वी मॉनसूनी हवाएँ स्थल से समुद्र की तरफ चलने लगती हैं। 
ग्रीष्म ऋतु में परिस्थितियाँ भिन्न हो जाती हैं। 15 मार्च के बाद से ही दक्षिण भारत में एक नवीन जेट हवा का आगमन होता है जो पूर्वी जेट हवा कहलाती है। यह हवा तेजी से उत्तर की तरफ फैलने लगती है। इस गर्म हवा के फैलने से पूर्ववर्ती उपोष्ण जेट हवाएँ गर्म होकर अधिक ऊँचाई पर जाती है और भारतीय क्षेत्र में विलुप्त हो जाती है। मई का अंत आते-आते भारतीय क्षेत्र पर यह पूर्वी जेट हवा पूरी तरह से छा जाती है तथा उपोष्ण जेट हवा तिब्बत के पठार पर चली जाती है। पूर्वी जेट हवा गर्म होती है। इसलिए, इसके प्रभाव से सतह की हवा गर्म होने लगती है तथा गर्म होकर तेजी से ऊपर उठने लगती है। इससे पश्चिमोत्तर भारत सहित पूरे भारत में एक निम्न वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है। इस निम्न वायुदाब क्षेत्र की ओर अरब सागर से नमीयुक्त उच्च वायुदाब की हवाएँ चलती हैं। अरब सागर से चलनेवाली यही नमीयुक्त हवा भारत दक्षिण-पश्चिमी मानसून के नाम से जानी जाती है जिससे भारत की 80% वर्षा होती है।
14. भारतीय जलवायु को अथवा, भारतीय जलवायु कई कारकों का सम्मिलित परिणाम है। स्पष्ट करें। 
उत्तर- भारत मॉनसूनी जलवायुवाला प्रदेश है जिसमें कई आंतरिक विषमताएँ पाई जाती हैं। यहाँ राजस्थान जैसा गर्म प्रदेश है तो जम्मू-कश्मीर जैसा ठंडा प्रदेश भी है। यहाँ मौसिमराम जैसा अत्यधिक वर्षा का क्षेत्र है तो जैसलमेर जैसा शुष्क प्रदेश भी है। वास्तव में भारतीय जलवाय किसी एक कारण का परिणाम न होकर कई कारकों का परिणाम है। दूसरे शब्दों में, भारतीय जलवायु को प्रभावित करनेवाले मुख्य कारक हैं—
(i) अक्षांशीय स्थिति एवं आकार का प्रभाव – भारत अक्षांशीय दृष्टि से उष्ण एवं उपोष्ण, कटिंध में पड़ता है। इसका सुदूर दक्षिणी भाग विषुवतरेखा के निकट भी है। फलस्वरूप, यहाँ जाड़ा एवं गर्मी दोनों ही पड़ता है। दक्षिणी भाग तुलनात्मक रूप से सालोंभर गर्म रहता है ।
(ii) उच्चावच का प्रभाव- पर्वत, पठार एवं मैदानी विशेषताओं की उपस्थिति के कारण हिमालय पर्वत जलवायु विभाजक का काम करता है। साथ ही, पर्वतीय भाग ऊँचाई के कारण ठंडा रहता है जबकि पठारी भाग तुलनात्मक रूप से गर्म रहता है। मैदानी भागों में गर्म एवं ठंडा का मौसम समयानुसार पाया जाता है।
(iii) वायुदाब का असर- उच्चावच में भिन्नता के कारण भारत का पश्चिमोत्तर स्थलीय भाग ग्रीष्म ऋतु में निम्न दाब एवं शीत ऋतु में उच्च दाब का केंद्र बन न जाता है। फलत: इससे पवन के संचार में परिवर्तन आ जाता है ।
(iv) जल एवं धूल का वितरण- प्रायद्वीपीय आकृति के कारण जल एवं थल के वितरण के कारण देश के आंतरिक भाग में गर्म एवं ठंड का व्यापक असर होता है जबकि तटीय भागों में सालोंभर एकसमान मौसम होता है।
(v) जेट धाराओं का असर – भारतीय जलवायु पर उपोष्ण जेट एवं उष्ण कटिबंधीय जेट हवाओं का व्यापक प्रभाव है, जिससे शीत ऋतु में उच्च दाब और ग्रीष्म ऋतु में निम्न दाब बन जाता है। इस प्रकार, भारतीय जलवायु कुछ विशिष्ट भौगोलिक कारकों का सम्मिलित प्रभाव है।
15. भारतीय मॉनसून की विशेषताओं का विस्तृत विवरण दें।
उत्तर- मॉनसून अनिश्चितताओं से भरी हुई एक मौसमी हवा है, जिसका भारत की सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियों पर जबरदस्त प्रभाव है। वास्तव में यह मॉनसूनी हवा भारत में वर्षा लाती है, जिसके बाद कृषि कार्य आरंभ होता है। फिर भी, भारतीय मॉनसून न केवल अनिश्चितताओं के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसकी कई अन्य विशेषताओं भी हैं, जिनमें मुख्य हैं
(i) यह मौसम विशेष हवा है जो वर्ष के छह महीने दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर तथा अगले छह महीने उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर चला करती है। हवाओं के बहने की यह प्रवृत्ति ग्रीष्म एवं शीत ऋतु में होती है। इसलिए, यह वृहत स्तरीय समुद्री एवं स्थलीय समीर भी माना जाता है। ये हवाएँ वस्तुतः तापीय विषमता के परिणाम है।
(ii) मॉनसून के द्वारा वर्षा पर्वतीय एवं चक्रवातीय रूप में होती है। पर्वतीय वर्षा पश्चिमी घट के सहारे तथा हिमालय की दक्षिणी ढाल पर होती है। चक्रवातीय वर्षा मॉनसून पूर्व, मॉनसून के बाद एवं मॉनसून के दौरान भी होती है।
(iii) मॉनसूनी वर्षा का वितरण काफी असमान है। मौसिमराम में यह 1,392 सेंटीमीटर से (iii) अधिक राजस्थान की पश्चिमी सीमा में 12 सेंटीमीटर वार्षिक से भी कम है। 
(iv) मॉनसून का आगमन काफी अनिश्चित है। सामान्यतः, 1 जून तक केरल के तट पर पहली वर्षा हो जाती है। परंतु, मॉनसूनी वर्षा की अनियमितता वायु प्रवाह से जुड़ी हुई है तथा इस अनियमितता से भी अनिश्चितता है।
(v) मॉनसूनी वर्षा काफी अनिश्चित है। इसके कारण कभी बाढ़ तो कभी सूखे की स्थिति आती है। भारतीय वर्षा में 150% तक विचलन की संभावनाएँ रहती हैं।
(vi) वर्षा की विश्वसनीयता संदिग्ध है। 200 सेंटीमीटर से अधिक वर्षवाले क्षेत्रों में विश्वसनीयता अधिक है। जलवायु विशेषज्ञों के अनुसार, 200 सेंटीमीटर से अधिक वर्षावाले क्षेत्र में वर्षा होने की 90% विश्वसनीयता है जबकि इसमें कम वर्षावाले क्षेत्रों में 10% विश्वसनीयता है।  
16. मॉनसूनी जलवायु का भारत के जनजीवन पर प्रभाव की समीक्षा करें।
उत्तर- भारत के जलवायु का देश के विभिन्न भागों के रहन-सहन, खान-पान एवं रंग-रूप पर स्पष्ट भाव है। यही नहीं, इसका आर्थिक गतिविधियों पर भी असर है। ग्रीष्म ऋतु में उच्च तापमान और ग्रीष्मकालीन वर्षा के कारण धान, जूट, चाय जैसी विशिष्ट फसलों की खेती की जाती है। धान की खेती से अधिकाधिक लोगों का भरण-पोषण संभव है जिससे ऐसे क्षेत्रों में सघन जनसंख्या पायी जाती है। अधिक गर्मी के कारण मार्च से मई महीने तक देश में सुस्ती का आलम होता है जो आर्थिक विकास में बाधक होता है, परंतु इसी समय फ्रीज, कूलर, एसी जैसी बिजली से चलनेवाले सामानों की बिक्री बढ़ जाती है। बिजली से अधिक माँग के कारण आपूर्ति की निरंतरता में बाधा आती है। कृषिकार्य वर्षा आरंभ होने पर ही शुरू होता है। यहाँ वर्षा की काफी अनिश्चित एवं असमान है। वर्षा की कमी को पूरा करने के लिए खेतों में सिंचाई की व्यवस्था करनी पड़ती है। पश्चिमोत्तर भारत में शीतकालीन वर्षा के कारण गेहूँ की अच्छी उपज होती है। कभी-कभी अत्यधिक वर्षा के कारण लगी फसलें नष्ट हो जाती हैं। कुछ क्षेत्रों में भीषण बाढ़ के प्रभाव से धन एवं जन की अपार क्षति भी होती है। चक्रवातीय वर्षा से भी फसलों, पशुओं एवं धन-जन की अपार क्षति भारत में होती है। मूसलाधार वर्षा से पर्वतीय एवं पठारी क्षेत्रों में विशेष रूप से मिट्टी का कटाव होता है। अधिक वर्षा के कारण मैदानी भागों में धान की तीन फसलें उगाई जाती हैं। फसलों की उपज अधिक होने र उनका आयात नहीं करना पड़ता है जिससे देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर नकारात्मक असर नहीं पड़ता है। अन्यथा, कम उपज की स्थिति में आयात करने पर विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आती है।
17. भारत में वर्षा और तापमान एक-दूसरे से जुड़े हैं। कैसे ?
अथवा, भारत को वर्षा के आधार पर मुख्य जलवायु प्रदेशों में विभाजित करें। 
अथवा, भारत में वर्षा के वितरण को स्पष्ट करें।
उत्तर- वर्षा के वितरण के आधार पर भारत को चार मुख्य जलवायु क्षेत्रों में बाँटा जा सकता है
(1) अत्यधिक आद्र एवं उष्ण क्षेत्र- औसतन 25°C तापमान वाला क्षेत्र इसमें शामिल है जहाँ 200 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा होती है। इसके अंतर्गत मालाबार तट एवं उत्तर-पूर्वी भारत का क्षेत्र तथा निम्न गंगा का मैदानी भाग शामिल है 
(2) आर्द्र एवं उष्ण क्षेत्र - औसतन 18°C जनवरी की तापमानवाला क्षेत्र इसमें शामिल है जहाँ 100-200 सेंटीमीटर वर्षा होती है। इसके अंतर्गत मध्य गंगा का मैदान तथा उत्तर-पूर्वी पठारी भाग शामिल है। यहाँ समुद्रतट से दूर जाने पर तापमान की विषमता बढ़ती है और वार्षिक वर्षा घटती है।
(3) साधारण आद्र एवं उष्ण क्षेत्र- इसके अंतर्गत तीन क्षेत्र शामिल हैं— (क) दक्षिण-पूर्वी तटीय मैदान, जहाँ वर्षा 100 सेंटीमीटर से कम होती है, (ख) दक्षिणी लावा क्षेत्र, जो पश्चिमी घाट की वृष्टि-छाया में पड़ने के कारण अत्यंत कम वर्षा पाता है तथा (ग) ऊपरी गंगा मैदान, पंजाब मैदान एवं उत्तरी अरावली क्षेत्र, जहाँ वर्षा ऋतु की अपेक्षा शुष्क ऋतु अधिक लंबी होती है। इस जलवायु क्षेत्र में वर्षा 100 सेंटीमीटर से लेकर 50 सेंटीमीटर तक होती है।
(4) शुष्क एवं विषम जलवायु क्षेत्र- पश्चिमी राजस्थान मुख्य रूप से इसमें शामिल है जहाँ अत्यधिक गर्मी एवं कड़ाके की सर्दी पड़ने के कारण तापांतर सर्वाधिक मिलता है। यहाँ वर्षा 40 सेंटीमीटर से भी कम होती है।

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