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चिकित्सा उपागम, Class 12 Psychology Chapter 5 in Hnidi, कक्षा 12 नोट्स, सभी प्रश्नों के उत्तर, कक्षा 12वीं मनोविज्ञान के सभी प्रश्न उत्तर

चिकित्सा उपागम, Class 12 Psychology Chapter 5 in Hnidi, कक्षा 12 नोट्स, सभी प्रश्नों के उत्तर, कक्षा 12वीं मनोविज्ञान के सभी प्रश्न उत्तर

  Chapter-5 चिकित्सा उपागम  

प्रश्न 1. मनश्चिकित्सा की प्रकृति एवं विषय-क्षेत्र का वर्णन कीजिए। मनश्चिकित्सा में चिकित्सात्मक संबंध के महत्त्व को उजागर कीजिए।
उत्तर: मनश्चिकित्सा का उद्देश्य व्यवहारों को बदलना, व्यक्ति कष्ट की भावना को कम करना तथा रोगी को अपने पर्यावरण से बेहतर ढंग से अनुकूल करने में मदद करना है। अपर्याप्त व्यवहारिक, व्यवहारिक तथा सामाजिक समायोजन की यह आवश्यकता होती है की व्यक्ति के व्यक्तिक पर्यावरण में परिवर्तन किया जाएं। सभी मनचिष्कित्सात्मक उपागमों में निम्न अभिलक्षण पाए जाते है- पहला की चिकित्सा के विभिन्न सिद्धांतो में अंतर्निहित नियमो का व्यवस्थित या क्रमबद्ध अनुप्रयोग होता है, दूसरा, केवल वे व्यक्ति जिन्हे कुशल पर्यवेक्षण में व्यवहारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया हो, मनश्चिकित्सा कर सकते है, हर कोई नहीं। एक प्रशिक्षित व्यक्ति अनजाने में लाभ के बजाये हानि अधिक पंहुचा सकता है। तीसरा की चिकित्सात्मक स्थितियों में एक चिकित्स्क और एक सेवार्थी होता है जो अपनी संवेगात्मक समस्याओ के लिए सहायक चाहता है और प्राप्त करता है तथा चौथा इन दोनों व्यक्तियों, चिकित्स्क और सेवार्थी के बिच की अतः क्रिया के परिणामस्वरूप एक चिकित्सतक संबंध का निर्णय एंव उसका सृढ़ीकरण होता है। यह एक गोपनीय, अंतर्वैयक्तिक एव गत्यात्मक संबंध होता है। यह मानवीय संबंध किसी भी मनोवैज्ञानिक चिकित्सा का केंद्र होता है तथा यही परिवर्तन का माध्यम बनता है।
प्रश्न 2.मनश्चिकित्सा के विभिन्न प्रकार कौन से हैं? किस आधार पर इनका वर्गीकरण किया गया है?
उत्तर: मनश्चिकित्सा को तीन व्यापक समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
1. मनोगतिक मनश्चिकित्सा।
2. व्यवहार मनश्चिकित्सा।
3. अस्तित्वपरक मनश्चिकित्सा |
मनश्चिकित्सा का वर्गीकरण निम्नलिखित प्राचलों के आधार पर किया गया है:
1. क्या कारण है, जिसने समस्या को उत्पन्न किया?
2. कारण का प्रादुर्भाव कैसे हुआ?
3. उपचार की मुख्य विधि क्या है?
4. सेवार्थी और चिकित्सक के बीच चिकित्सात्मक संबंध की स्वीकृति क्या होती है?
5. सेवार्थी के मुख्य लाभ क्या हैं?
6. उपचार की अवधि क्या है?
प्रश्न 3. एक चिकित्सक सेवार्थी से अपने सभी विचार यहाँ तक कि प्रारंभिक बाल्यावस्था के अनुभवों को बताने को कहता है। इसमें उपयोग की गई तकनीक और चिकित्सा के प्रकार का वर्णन कीजिए।
उत्तर: मनोगतिक चिकित्सा में बाल्यावस्था की अतृप्ति इच्छाएं तथा बाल्यावस्था के अनसुलझे भय अंतंरणोदवण्ड को उतपन्न करते है। मनोगतिक चिकित्सा मुक्त साहचर्य विधि और स्वप्न को बताने की विधि का उपयोग सेवार्थी की भावनाओं और विचारो को प्राप्त करने के लिए करती है। इस सामग्री की व्याख्या सेवार्थी के सक्षम की जाती है ताकि इसकी मदद से वह अपने दवंद्वो का सामना और समाधान कर अपनी समस्याओ पर विजय पा सके। मनोगतिक चिकित्सा संवेगात्मक अंतदृष्टि को महत्वपूर्ण लाभ मानती है जो सेवार्थी उपचार बीके के द्वारा प्राप्त करता है। संवेगात्मक अंतदृष्टि तब उपस्थित मानी जाती है जब सेवार्थी अपने दवंदो को बौद्धिक रूप से समझता है। दवदो को संवेगात्मक रूप से स्वीकार करने में समर्थ होता है और दवंदो की ओर अपने संवेगो को परिवर्तित करने में समर्थ होता है।

मनोगतिक उपागम अतः मनोदवंद को मनोवैज्ञानिक विकारो का मुख्य कारण समझाता है अतः उपचार में पहला चरण इसी अंडरवंद को बाहर निकालना है। मनोविश्लेषण ने अंत: मनोदवड को बाहर निकलने के लिए दो महत्वपूर्ण विधियो, मुख़्तसाहचर्य विधि तथा स्वप्न व्याख्या विधि का अविष्कार किया। मुक्त साहचर्य विधि में चिकित्सात्मक संबंध स्थापित हो जाने के बाद, सेवा थी आरामदेह महसूस करता है। तब चिकित्सक उसे जाने को कहता है और अपनी आँखों को बंद करने के बाद बिना किसी काट छाटकर अपने मन में आ रहे विचारो को बताने को कहता है इसी विधि को मुक्त साहचार्य विधि कहते है। चुकी चिकित्सक बिच में हस्तक्षेप नहीं करता इसलिए विचारो को मुक्त प्रवाह, अचेतन मन की इच्छाओ और दवड जो अह द्वारा दमित किये जाते हो वह सचेतन मन से प्रकट होने लगते है ।
प्रश्न 4. व्यवहार चिकित्सा में प्रयुक्त विभिन्न तकनीकों की चर्चा कीजिए ।
उत्तर: व्यवहार चिकित्सा का मानना है की मनोवैज्ञानिक कष्ट दोषपूर्ण व्यापार प्रतिरूपो या विचार प्रतिरूपो के कारण उतपन्न होते है। अतः इनका केंद्र बिंदु सेवार्थी में विद्यमान व्यवहार और विचार होते है। उसका अतीत केवल उसके दोषपूर्ण व्यवहार तथा विचार प्रति रूपों की उतपति को समझने के संदर्भ में महत्वपूर्ण होता है। अतीत को फिर से सक्रिय नहीं किया जाता। वर्तमान में केवल दोषपूर्ण प्रतिरूपो में सुधार किया जाता है।

1. निषेधात्मक प्रबलन का तात्पर्य वांछित अनुक्रिया के साथ संलग्न एक ऐसे परिणाम से है जो कष्टकर या पसंद न किया जाने वाला हो । उदाहरणार्थ, एक अध्यापक कक्षा में शोर मचाने के लिए एक बालक को फटकार लगता है। यह निषेधात्मक प्रबलन है।

2. विमुखी अनुबंधन का संबंध अवांछित अनुक्रिया के विमुखी परिणाम के साथ पुनरावृत्त साहचर्य से है। उदाहरण के लिए, एक मद्यव्यसनी को बिजली का एक हल्का आघात दिया जाये और मघ सैघने को कहा जाये। ऐसे पुनरावृत्त युग्मन से मघ की गंध उसके लिए अरुचिकर हो जाएगी क्योंकि बिजली के आघात की पीड़ा के साथ इसका साहचर्य स्थापित हो जायेगा और व्यक्ति मद्य छोड़ देगा।

3. यदि कोई अनुकूली व्यवहार कभी-कभी ही घटित होता है तो इस न्यूनता को बढ़ाने के लिए सकारत्मक प्रचलन दिया जाता है। उदाहरण के लिए यदि एक बालक गृहकार्य नियमित रूप से नहीं करता तो उसकी माँ नियम समय गृहकार्य करने के लिए सकारात्मक प्रबलन के रूप में बच्चे को मनपसंद पकवान बनाकर दे सकती है। मनपसंद भोजन का सकारात्मक प्रबलन उसके नियम समय पर गृह कार्य करने के व्यवहार को बढ़ाएगा। व्यवहारत्मक समस्याओं वाले लोगो को कोई वांछित व्यवहार करने पर हर बार पुरस्कार के रूप में एक टोकन दिया जा सकता है। ये टोकन संगृहीत किये जाते है और किसी पुरस्कार से उनका विनिमय यो आदान प्रदान किया जाता है ।  
प्रश्न 5. उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए कि संज्ञानात्मक विकृति किस प्रकार घटित होती हैं।उत्तर: संज्ञानात्मक चिकित्सा आरन बेक की है। दुश्चिंता या अवसाद द्वारा अभिलक्षित मनोवैज्ञानिक कष्ट संबंधी उनके सिद्धांत के अनुसार परिवार और समाज द्वारा दिए गए बाल्यावस्था में दिए गए अनुभव मूल अन्विति योजना या तंत्र के रूप में विकसित हो जाते हैं। जिनमें व्यक्ति के विश्वास और क्रिया के प्रतिरूप सम्मिलित होते हैं। इस प्रकार एक सेवार्थी जो बाल्यावस्था में अपने माता पिता द्वारा उपेक्षित था एक ऐसा मूल स्कीमा विकसित कर लेता है, " मैं वांछित हूँ"। जीवन काल के दौरान कोई निर्णायक घटना उसके जीवन में घटित होती है। विद्यालय में सबके सामने अध्यापक के द्वारा हंसी उड़ाई जाती है। यह निर्णायक घटना उसके मूल स्कीमा, मैं वांछित हूं, को क्रियाशील कर देती है जो नकारात्मक स्वचालित विचारों को विकसित करती है। नकारात्मक विचार सतत अविवेक की विचार होते हैं, जैसे- मुझसे कोई प्यार नही करता, मैं बुरा हूँ, मैं मूर्ख हूँ। इन नकारात्मक स्वचालित विचारों में संज्ञानात्मक विकृतियाँ आने लगती है। संज्ञानात्मक विकृतियाँ चिंतन के ऐसे तरीके हैं जो सामान्य प्रकृति के होते हैं किंतु वह वास्तविकता को नकारात्मक तरीके से विकृत करते हैं।
प्रश्न 6. कौन-सी चिकित्सा सेवार्थी को व्यक्तिगत संवृद्धि चाहने एवं अपनी संभाव्यताओं की सिद्धि के लिए प्रेरित करती है? उन चिकित्साओं की चर्चा कीजिए जो इस सिद्धांत पर आधारित हैं।
उत्तर: मानवतावादी - अस्तित्वरक चिकित्सा की धरना है की मनोवैज्ञानिक कष्ट व्यक्ति के अकेलेपन, विसंबंधिन तथा जीवन का अर्थ समझने और यथार्थ संतुष्टि प्राप्त करने में योग्यता की भावनाओं के कारण उतपन्न होते है। मनुष्य व्यक्तिगत संवृद्धि एवं आत्मसिद्धि की इच्छा तथा संवेगात्मक रूप से विकसित होने की सहज आवयश्कता से प्रेरित होते है। जब समाज और परिवार के द्वारा ये आवश्यकता बधित की जाती है तो मनुष्य मनोवैज्ञनिक कष्ट का अनुभव करता है। आत्मसिद्धि को सहज शक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है।
व्यक्ति को जटिल, संतुलित और समाकलित होने के लिए अथार्त बिना खंडित हुए जटिलता एवं संतुलन प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती है। जब सेवार्थी अपने जीवन में आत्मसिद्धि के लिए आवश्यक है संवेगो की मुक्ति अभिव्यक्ति। इसमें मूल पूर्व धरना यह है की वेसारथी को अपने व्यवहारो का नियंत्रण करने की स्वतंत्रता है तथा यह उसका ही उत्तरदायी है। चिकित्सक केवल एक सुगमकर्ता और मार्गदर्शन होता है। चिकित्सा की सफलता के लिए सेवार्थी सव्य उत्तदायी होता है। चिकित्सा का मुख्य उद्देश्य सेवार्थी की जागरूकता को बढ़ाना है। जैसे-जैसे सेवार्थी अपनी व्यक्तिगत अनुभवों को समझने लगता है वह स्वस्थ होने लगता है। सेवार्थी आत्मसंवृद्धि की प्रक्रिया को प्रारंभ करता है।
प्रश्न 7. मनश्चिकित्सा में स्वास्थ्य लाभ के लिए किन कारकों का योगदान होता है? कुछ वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों की गणना कीजिए।
उत्तर: मनश्चिकित्सा में स्वास्थ्य लाभ में योगदान देनेवाले कारक निम्नलिखित हैं:

1. स्वास्थ्य लाभ में एक महत्त्वपूर्ण कारक है चिकित्सक द्वारा अपनाई गई तकनीक तथा रोगी/सेवार्थी के साथ इन्हीं तकनीकों का परिपालन। यदि दुश्चित सेवार्थी को स्वस्थ करने के लिए व्यवहार पद्धति और संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा शाखा अपनाई जाती है तो विभ्रांति की विधियाँ और संज्ञानात्मक पुनः संरचना तकनीक स्वास्थ्य-लाभ में बहुत बड़ा योगदान देती है।

2. चिकित्सात्मक मैत्री जो चिकित्सक एवं रोगी/सेवार्थी के बीच में बनती है, में स्वास्थ्य लाभ से गुण विद्यमान होते हैं क्योंकि चिकित्सक नियमित रूप से सेवार्थी से मिलता है तथा उसे तदनुभूति और हार्दिकता प्रदान करता है।

3. चिकित्सा के प्रारंभिक सत्रों में जब रोगी/सेवार्थी की समस्याओं की प्रकृति को समझने के लिए उसका साक्षात्कार किया जाता है, जो वह स्वयं द्वारा अनुभव किए जा रहे संवेगात्मक समस्याओं को चिकित्सक के सामने रखता है। संवेगों को बाहर निकालने की इस प्रक्रिया को भाव-विरेचन या केथार्सिस कहते हैं और इसमें स्वास्थ्य लाभ के गुण विद्यमन होते हैं।

4. मन चिकित्सा से संबंधित अनेक अवशिष्ट कारक है। इनमे से कुछ कारक सेवार्थी से संबंधित बताये जाते है तथा कुछ चिकित्स्क से संबंधित। यह कारक अवशिष्ट इसलिए कहे जाते है क्योकी यह मन चिकित्सा की विभिन्न पद्धतियों, भिन्न सेवार्थियों मन चिकित्स्कों के आर पार घटित होती है। सेवार्थी पर लाग होने वाले अवशिष्ट कारक है परिवर्तन के लिए अभिप्रेरण उपचार के कारण सुधार की प्रत्याशा इत्यादि । चिकित्सक लागू होने वाले अवशिष्ट कारक है - सकारात्मक स्वभाव अंसुलझे संवेगात्मक द्वंद्व की अनुपस्थित, अच्छे मानसिक स्वास्थ्य की उपस्थिति इत्यादि।

योग, ध्यान, ऐक्यूपंक्चर, वनौषधि, उपचार आदि वैकल्पिक चिकित्साएँ हैं। योग एक प्राचीन भारतीय पद्धति है जिसे पतंजलि के योग सूत्र के अष्टांग योग में विस्तृत रूप से बताया गया है। योग, जैसा कि सामान्यत: आजकल इसे कहा जाता है, का आशय केवल आसन या शरीर संस्थति घटक अथवा श्वसन अभ्यास अथवा किसी वस्तु या विचार या किसी मंत्र पर ध्यान केन्द्रित करने के अभ्यास से है। जहाँ ध्यान केन्द्रित किया जाता है। विपश्यना ध्यान जिसे सतर्कता-आधारित ध्यान के नाम से भी जाना जाता है, में ध्यान बाँधे रखने के लिए कोई नियत वस्तु या विचार नहीं होता है। व्यक्ति निष्क्रिय रूप से विभिन्न शारीरिक संवेदनाओं एवं विचारों, जो उसकी चेतना में आते रहते हैं, प्रेक्षण करता है।
प्रश्न 8. मानसिक रोगियों के पुनः स्थापन के लिए कौन-सी तकनीकों का उपयोग किया जाता है? अथवा, मानसिक रोगियों के पुनःस्थापन पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर: मनोवैज्ञनिक विकारो के उपचार के दो घटक होते है, अर्थत लक्षणों में कमी आना तथा क्रियाशीलता के स्तर में सुधर लाना। मनोविदलता जैसी गंभीर मानसिक विकारो के लक्षणों में कमी आना जीवन की गुद्वता में सुधर से संबंधित नहीं हो सकता है। कई रोगी नकारात्मक लक्षणो से ग्रसित होते है, जैसे- काम करते-करते दूसरे लोगो के साथ में अभिरुचि तथा अभिप्रेरणा का आभाव। इस तरह के रोगियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए पुनः स्थापना की आवश्यकता होती है पुनः स्थापना का उद्देश्य रोगी को सशक्त बनाना होता है। जिससे जितना संभव हो सके वह समाज का एक उत्पादक सदस्य बने । पुनः स्थापना में रोगियों का व्यवसायिक चिकित्सा, सामाजिक कौशल प्रशीक्षन तथा व्यवसायिक प्रशिक्षन दिया जाता है। व्यवसायिक चिकित्सा में रोगियों को मोमबत्ती बनाना कागज की बनाना और कपडा बुनना सिखाया जाता है जिससे वे एक कार्य अनुशासन बना सके। भूमिका निर्वाह अनुकरण और अनुदेश, के माध्यम से रोगियों को सामाजिक कौशल प्रशिक्षन दिया जाता है जिससे की वे अतः व्यक्ति कौशल विकशित प्ररकार्यो से सुधार लाने वे लिए दिया जाता है। जब रोगी में पर्याप्त सुधार आ जाता है तो उसे व्यवसायिक प्रशिक्षन दिया जाता है जिसमे उत्पादक रोजगार प्रारंभ करने के लिए आवश्यकता कौशलो के अर्जन में उसकी मदद की जाती है।
प्रश्न 9. छिपकली / तिलचट्टा के दुर्भीति भय का सामाजिक अधिगम सिद्धांतकार किस प्रकार स्पष्टीकरण करेगा? इसी दुर्भीति का एक मनोविश्लेषक किस प्रकार स्पष्टीकरण करेगा?
उत्तर: छिपकली/तिलचट्टा आदि से होनेवाले भय को दुर्भीति कहते हैं। जिन लोगों को दुर्भीति होती है उन्हें किसी विशिष्ट वस्तु लोग या स्थितियों के प्रति अविवेकी या अर्वक भय होता है। यह बहुधा दुश्चिता विकार से उत्पन्न होती है। दुर्भीति या अविवेकी भय के उपचार के लिए वोल्प द्वारा प्रतिपादित क्रमित विसंवेदनीकरण एक तकनीक है। छिपकली/तिलचट्टा के दुर्भीति भय वाले व्यक्ति का साक्षात्कार मनोविश्लेषक भय उत्पन्न करनेवाली स्थितियों को जानने के लिए किया जाता है तथा सेवार्थी के साथ-साथ चिकित्सक भय उत्पन्न करनेवाले उद्दीपकों का एक पदानुक्रम तैयार करता है तथा सबसे नीचे रखता हैं मनोविश्लेषक सेवार्थी को विभ्रांत करता है और सबको कम दुश्चिता उत्पन्न करनेवाली स्थिति के बारे में सोचने को कहता है।
सेवार्थी से कहा जाता है कि जरा-सा भी तनाव महसूस करने पर भयानक स्थिति के बारे में सोचना बंद कर दे। कई सत्रों के पश्चात् सेवार्थी विश्रांति की अवस्था बनाए रखते हुए तीव्र भय उत्पन्न करनेवाली स्थितियों के बारे में सोचने में समर्थ हो जाता है। इस प्रकार सेवार्थी छिपकली या तिलचट्टा के भय के प्रति विसंवेदनशील हो जाता है। जहाँ अन्योन्य प्रावरोध का सिद्धांत क्रियाशील होता है। पहले विश्रांति की अनुक्रिया विकसित की जाती है तत्पश्चात् धीरे से दुश्चिता उत्पन्न करनेवाले दृश्य की कल्पना की जाती है और विश्रांति से दुश्चिता पर विजय प्राप्त की जाती है। इसके अतिरिक्त मनोविश्लेषक सौम्य बिना धमकी वाले किन्तु सेवार्थी के दुर्भीति भय का खंडन करनेवाले प्रश्न करता हैं। ये प्रश्न सेवार्थी को दुर्भीति भय की विपरीत दिशा में सोचने को बाध्य करते हैं जो दुश्चिता को घटाती है। सामाजिक अधिगम सिद्धान्तकार सामाजिक पक्षों को पर्यावरण परिवर्तन द्वारा स्पष्ट करेगा।
प्रश्न 10. क्या विद्युत आक्षेपी चिकित्सा मानसिक विकारों के उपचार के लिए प्रयुक्त की जानी चाहिए? 
उत्तर: विद्युत-आक्षेपी चिकित्सा जैव आयुर्विज्ञान चिकित्सा का एक दूसरा प्रकार है। इलेक्ट्रोड द्वारा बिजली के हलके आघात रोगी के मस्तिष्क में दिए जाते हैं जिससे आक्षेप उत्पन्न हो सके। जब रोगी के सुधार के लिए बिजली के आघात आवश्यक समझे जाते हैं तो यह केवल मनोरोगविज्ञानी के द्वारा ही दिए जाते हैं। विद्युत आक्षेपी चिकित्सा एक नेमी उपचार नहीं है और यह तभी दिया जाता है जब दवाएं रोगी के लक्षणों को नियंत्रित करने में प्रभाव नही होती। मुझे ऐसा लगता ही कि जब तक दवाओं से रोग को ठीक किया जा सकता है तब तक यह प्रयोग में नहीं लाना चाहिए। लेकिन जब रोग की दशा बिगड़ने लगे और विद्युत का प्रयोग करना आवश्यक हो जाये तो डॉक्टर के निगरानी में सीमित बिजली के झटके दिए जानने चाहिए और रोगी को ठीक करना चाहिए।
प्रश्न 11. किस प्रकार की समस्याओं के लिए संज्ञानातमक व्यवहार चिकित्सा सबसे उपयुक्त मानी जाती है?
उत्तर: मनश्चिकित्सा की प्रभावित एवं परिणाम पर किये गए अनुसंधन ने निर्णायक रूप प्रामाणिक किया है की संज्ञातात्मक व्यवहार चिकित्सा विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिक विकारो जैसे दुष्चित, अवसाद आतंक दौरा सीमावर्ती व्यक्तित्व इत्यादि के लिए एक संक्षीप्त और प्रभावोत्पादक उपचार है। मनोविकृत की रूप रेखा बताने के लिए संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा जैव - मनोसामाजिक उपागम का उपयोग करती है। यह संज्ञात्मक चिकित्सा को व्यवहारपरक तकनीकों के साथ संयुक्त करती है।

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