Chapter-4 मानव विकास
प्रश्न 1. विकास किसे कहते हैं? यह संवृद्धि तथा परिपक्वता से किस प्रकार, भिन्न है?
उत्तर: विकास गतिशील, क्रमबद्ध तथा पूर्वकथनीय परिवर्तनों का प्रारूप है जो गर्भाधान से प्रारंभ होता है तथा जीवनपर्यंत चलता रहता है। विकास में मुख्यतया संवृद्धि एवं ह्रास, जो वृद्धावस्था में देखा जाता है, दोनों ही तरह के परिवर्तन निहित होते हैं।
संवृद्धि शारीरिक अंगो अथवा संपूर्ण जीव की बढ़ोत्तरी को कहते हैं। इसका मापन अथवा मात्राकरण किया जा सकता हैं, उदाहरण के लिए, ऊँचाई, वज़न आदि में वृद्धि।
परिपक्वता उन परिवर्तनों को इंगित करता हैं जो एक निर्धारित क्रम का अनुसरण करते हैं तथा प्रधानतः उस आनुवांशिक रूपरेखा (ब्लूप्रिंट) से सुनिश्चित होते हैं जो हमारी संवृद्धि एवं विकास में समानता उत्पन्न करते हैं।
उदाहरण के लिए, अधिकांश बच्चे 7 माह की आयु तक बिना सहारे के बैठ सकते हैं, आठवें महीने तक सहारे के साथ खड़े हो सकते हैं तथा एक वर्ष की उम्र तक चलने लगते हैं। एक बार जब बच्चे की आधारभूत संरचन पर्याप्त रूप से विकसित हो जाती है तो इन व्यवहारों में कुशलता प्राप्त करने के लिए उपयुक्त परिवेश एवं थोड़े से अभ्यास की आवश्यकता होती है। परन्तु,यदि बच्चे परिक्वता की दृष्टी से तैयार नहीं हैं तो इन व्यवहारों को त्वरित करने के लिए किये गए विशेष प्रयास का कोई लाभ नहीं मिलता है।
ये प्रक्रियाएँ अन्दर से प्रस्फुटित होती हैं। ये आन्तरिक एवं आनुवंशिक रूप से निर्धारित समय-सरणी, जो प्रजाति विशेष की चरित्रगत विशेषता होती है, के अनुसार घटित होती है।
प्रश्न 2. विकास के जीवनपर्यंत परिप्रेक्ष्य की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए?
उत्तर: विकास के जीवनपर्यंत परिप्रेक्ष्य की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित है:
● विकास जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया है, अर्थात विकास गर्भाधान से प्रारंभ होकर वृद्धावस्था तक सभी आयु समूहों में होता है। इसमें प्राप्तियाँ तथा हानियाँ दोनों ही सम्मिलित है, जो संपूर्ण जीवन-विस्तार में गत्यात्मक तरीके से अन्तःक्रिया करती है।
• जन्म से मृत्यु तक की संपूर्ण अवधि में मानव विकास की विभिन्न प्रक्रियाएँ, अर्थात जैविक, संज्ञानात्मक तथा समाज संवेगात्मक, एक व्यक्ति के विकास में एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबंधित रहते हैं।
● विकास बहु-दिश है। विकास के एक दिए हुए आयाम के कुछ आयामों या घटकों में वृद्धि हो सकती है, जबकि दूसरे हास का प्रदर्शन कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, प्रौढ़ों के अनुभव उन्हें अधिक बुद्धिमान बना सकते हैं तथा उनके निर्णयों को दिशा प्रदान कर सकते हैं। जबकि उम्र बढ़ने के साथ, गति की माँग करने वाले कार्यों, जैसे दौड़ना, पर एक व्यक्ति का निष्पादन कम हो सकता है।
• विकास अत्यधिक लचीला या संशोधन योग्य होता है, अर्थात व्यक्ति के अंतर्गत होने वाले मानसिक विकास में परिमार्जनशीलता पाईं जाती है, यद्यपि इस लचीलेपन में एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्नता पाई जाती हैं। इसका अर्थ यह है कि संपूर्ण जीवन-क्रम में कौशलों तथा योग्यताओं में सुधार या विकास किया जा सकता है।
● विकास ऐतिहासिक दशाओं से प्रभावित होता है। उदाहरणार्थ, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान रहे 20 वर्षीय व्यक्ति का अनुभव आज के 20 वर्षीय व्यक्ति से बहुत भिन्न होगा।
आज के विद्यालय स्तर के विद्यार्थियों का केरियर या जीविका पके प्रति रुझान उन विद्यार्थियों से बहुत भिन्न है जो आज से 50 वर्ष पहले विद्यालय स्तर के थे।
● विकास अनेक शैक्षणिक विद्याओं के लिए एक महत्वपूर्ण सरोकार है। विभिन्न विषयों; जैसे - मनोविज्ञान, मानवशास्त्र, समाजशास्त्र, तथा तंत्रिका विज्ञान में मानव विकास का अध्ययन किया जाता है, प्रत्येक विषय संपूर्ण जीवन क्रम में होने वाले विकास को समझने का प्रयास कर रहा है।
• एक व्यक्ति परिस्थिति अथवा संदर्भ के आधार पर अनुक्रिया करता है। इस संदर्भ के अंतर्गत वंशानुगत रूप से प्राप्त विशेषताएँ, भौतिक पर्यावरण, सामाजिक, ऐतिहासिक, तथा सांस्कृतिक संदर्भ आदि सम्मिलित हैं। उदाहरण के लिए, प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में घटित घटनाएँ एक जैसी नहीं होती हैं, जैसे माता-पिता की मृत्यु, दुर्घटना, भूकंप आदि एक व्यक्ति के जीवन क्रम को जिस प्रकार प्रभावित करती है जैसे ही पुरस्कार जीतना, या एक अच्छी नौकरी पा लेना जैसी सकारात्मक घटनाएँ भी विकास को प्रभावित करती हैं। संदर्थों के बदलने के साथ-साथ लोग बदलते रहते हैं।
प्रश्न 3. विकासात्मक कार्य क्या है? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: यह देखा जा सकता है कि कुछ व्यवहार प्रारूप तथा कुछ कौशल एक विशिष्ट अवस्था में अधिक आसानी से एवं सीखे जाते हैं। व्यक्ति को ये उपलब्धियाँ विकास को उस अवस्था के लिए एक सामाजिक अपेक्षा बन जाती हैं। इन्हें विकासात्मक कार्य कहते हैं। करता है। अपने जीवन के प्रथम सप्ताह में नवजात शिशु यह बताने में सक्षम होते हैं कि ध्वनि किस दिशा से आ रही है, अन्य स्त्रियों को आवाज़ तथा अपनी माँ की आवाज़ में अंतर कर सकते है, एवं सामान्य हावभाव का अनुकरण कर सकते हैं; जैसे - जीभ बाहर निकालना, मुँह खोलना आदि|
जैसे-जैसे शिशु बढ़ता है, मांसपेशियाँ एवं तंत्रिका तंत्र परिपक्व होते है जो सूक्ष्म कौशलों का विकास करते हैं। आधारभूत शारीरिक (पेशीय) कौशलों के अंतर्गत वस्तुओं को पकड़ना एवं उनके पास पहुंचना, बैठना, घुटनों के बल चलना, खड़े होकर चलना और दौड़ना आते हैं।
नवजात शिशुओं में संवेदी क्षमताएँ भी होती है। नवजात शिशु जन्म के ठीक बाद सुन सकते है। नवजात शिशु जैसे-जैसे विकसित होते है उनकी ध्वनि को दिशा निर्धारण की दक्षता में सुधार होता है। नवजात शिशु स्पर्श के प्रति अनुक्रिया करते है एवं वे पीड़ा की अनुभूति भी कर सकते हैं| घ्राण एवं स्वाद की दोनों क्षमताएँ भी नवजात शिशुओं में होती हैं।
शैशवावस्था में अर्थात जीवन के प्रथम दो वर्ष के दौरान बच्चा ज्ञानेन्द्रियों एवं वस्तुओं के साथ अंत:क्रिया के माध्यम से देखने, सुनने, स्पर्श करने, उन्हें (वस्तुओं को) मुँह में डालने एवं पकड़ने के द्वारा इस संसार का अनुभव करता है।
शिशु जन्म से ही सामाजिक प्राणी होता हैं। एक शिशु परिचित चेहरों को वरीयता देना प्रारंभ कर देता है और फूंकने एवं किलकारी भरने के द्वारा माता-पिता की उपस्थिति के प्रति अनुक्रिया करता है| छ: से आठ माह की आयु तक वे अधिक गतिशील हो जाते है एवं अपनी माता के साथ रहना पसंद करने लगते हैं। जब वे नए चेहरे को देख कर डर जाते है या अपनी माँ से अलग कर दिए जाते है तो वे रोते हैं और पीड़ा की अभिव्यक्ति करते हैं। माता-पिता या देख-रेख करने वाले से पुन: मिलने पर वे मुस्कुराहट या आलिपांन से अपने भाव का प्रदर्शन करते हैं।
प्रश्न 4. ‘बच्चों के विकास में बच्चे के परिवेश की महत्त्पूर्ण भूमिका है।' उदाहरण की सहायता से अपने उत्तर की पुष्टि कीजिए।
उत्तर: बच्चे के विकास में बच्चे के परिवेश की महत्वपूर्ण भूमिका है। उदाहरण के लिए, एक अंतर्मुखता की ओर प्रवृत्त करने वाले जीनप्ररूप से युक्त बच्चे की कल्पना कीजिए जो ऐसे परिवेश में है जो सामाजिक अंतःक्रिया तथा बहिर्मुखता को बढ़ावा देता है। ऐसे परिवेश का प्रभाव बच्चे को थोड़ा बहिर्मुखी बना सकता है। उनके बच्चे किस तरह के परिवेश को पाएँगे?
सैन्ड्रा स्कार (Sandra Scarr, 1992) का मानना है कि अपने बच्चे को माता-पिता जो परिवेश प्रदान करते है वह कुछ हद तक उनकी स्वयं की आनुवंशिक पूर्व-प्रवृत्ति पर निर्भर करता है।
उदाहरण के लिए, यदि माता-पिता बुद्धिमान है तथा अच्छे पाठक है तो वे अपने बच्चे को पढ़ने के लिए पुस्तकें देंगे जिसका संभावित परिणाम यह होगा कि उनके बच्चे अच्छे पाठक बन जाएँगे और वे पढ़ने में आनंद का अनुभव करेंगे। सहयोगी एवं ध्यान देने को प्रवृत्ति जैसे अपने जीन प्ररूप (जो उसे वंशागत रूप से प्राप्त है) के परिणामस्वरूप एक बच्चा, उन बच्चों की तुलना में जो सहयोगी एवं ध्यान देने वाले नहीं है, अध्यापकों तथा माता-पिता से अधिक सुखद अनुक्रियाएँ प्राप्त करेगा।
इसके अतिरिक्त बच्चे अपने जीन प्ररूप के आधार पर स्वयं कुछ परिवेश का चयन करते हैं। उदाहरण के लिए, अपने जीन प्ररूप के कारण वे संगीत या खेल-कूद में अच्छा निष्पादन कर सकते है और वे जैसे परिवेश को ढूंढेंगे तथा उसमें अधिक समय व्यतीत करेंगे जो उन्हें संगीतपरक कौशलों के निष्पादन या अध्याय का अवसर प्रदान करेगा।
प्रश्न 5. विकास को सामाजिक-सांकृतिक कारक किस प्रकार प्रभावित करते हैं?
उत्तर: विकास को सामाजिक-सांस्कृतिक कारक प्रभावित करते हैं। वे इस प्रकार हैं:
1. लंघु मंडल (Microsystem)- वह निकटतम परिवेश है जिसमें व्यक्ति रहता है। यही वह परिवेश है जिसमें बच्चा सामाजिक कारकों या एजेंटों, जैसे परिवार, साथी-सहयोगी, अध्यापक, एवं पड़ोस से प्रत्यक्ष रूप से अंतःक्रिया करता है।
2. इन परिवेशों के मध्य संबंध मध्य मंडल (Mesosystem) के अंतर्गत आते है | उदाहरण के लिए, एक बच्चे के माता-पिता अध्यापकों से केसे संबंध स्थापित करते हैं, या माता-पिता किशोर के मित्र को किस रूप में देखते है ये ऐसे अनुभव है जो एक व्यक्ति के दूसरों से संबंध को प्रभावित करने वाले हैं।
3. बाह्य मंडल (Exosystem) के अंतर्गत सामाजिक परिवेश की वे घटनाएँ आती है जहाँ बच्चा प्रत्यक्ष रूप से प्रतिभागिता नहीं करता है, परंतु वे तात्कालिक परिस्थिति में बच्चे के अनुभव को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए, माता या पिता का स्थानांतरण माता-पिता में तनाव उत्पन्न कर सकता है जो बच्चे के साथ उनकी अंतःक्रिया अथवा बच्चे को उपलब्ध सामान्य सुख-सुविधाएँ; जैसे- विद्यालयों पठन-पाठन में पुस्तकालयी सुविधाएँ, चिकित्सीय देख-रेख, मनोरंजन के साधन आदि को गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है।
4. बृहत् मंडल (Macrosystem) के अंतर्गत वह संस्कृति आती है जिसमें व्यक्ति रहता है।
5. घटना मंडल (Chronosystem) में व्यक्ति के जीवन-क्रम की घटनाएँ तथा उस काल की सामाजिक-ऐतिहासिक परिस्थितियाँ; जैसे- माता-पिता का तलाक या आर्थिक आधात, एवं बच्चों पर उनका प्रभाव आदि निहित हैं।
प्रश्न 6. विकसित हो रहे बच्चों में होने वाले संज्ञानात्मक परिवर्तन की विवेचना कीजिए।
उत्तर: बच्चे में वस्तु स्थायित्व के संप्रत्यय को सीखने की योग्यता उसे वस्तुओं को निरूपित करने के लिए मानसिक प्रतीकों का उपयोग करने में सक्षम बनाती है। परंतु, इस अवस्था में बच्चों में उस योग्यता का अभाव होता है जो उन्हें शारीरिक रूप से किए गए कार्यों को मानसिक रूप से करने को सुविधा प्रदान करती है।
व्यक्तियों, वृक्षों, कुता, घर आदि को निरूपित करने के लिए बच्चे रूपरेखा/चित्र बनाते हैं। प्रतीकात्मक विचार में संलग्न रहने की बच्चे को यह योग्यता उसके मानसिक संसार को विस्तृत करने में सहायक होती है। प्रतीकात्मक विचार में प्रगति होती रहती हैं। बच्चे दुनिया को केवल अपने दृष्टिकोण से देखते हैं और दूसरों के दृष्टिकोण के महत्व को समझने में सक्षम नहीं होते हैं। बच्चों में केन्द्रीकरण की प्रवृत्ति, अर्थात एक घटना को समझने के लिए किसी एक विशेषता या पक्ष पर ध्यान देने से परिभाषित होती है। जब बच्चा बड़ा होता है और लगभग 7 से 11 वर्ष की आयु तक हो जाता है (मध्य और विलंबित बाल्यावस्था की अवधि) अंतर्बोधपरक विचार तार्किक विचार के द्वारा विस्थापित हो जाता है। मूर्त संक्रियाएँ बच्चे को वस्तु की विभिन्न वस्तुओं पर न कि मात्र एक विशेषता पर ध्यान देने की सुविधा प्रदान करती है। यह बच्चे की इस बात को समझने के भिन्न-भिन्न तरीके हैं, जिसके परिणामस्वरूप उसके अहकेंद्रवाद में भी कमी आती है। चिंतन अधिक लचीला हो जाता है और समस्या समाधान करते समय बच्चे विकल्पों के बारे में सोच सकते हैं। बच्चे की बढ़ती हुई संज्ञानात्मक योग्यताएँ भाषा अर्जन को सुगम बना देती हैं।
प्रश्न 7. ‘बचपन में विकसित हुए आसक्तिपूर्ण बंधनों का दूरगामी प्रभाव होता है। दिन-प्रतिदिन के जीवन के उदाहरणों से इनकी व्याख्या कीजिए।
उत्तर: शिशु एवं उनके माता-पिता (पालनकर्ता) के बीच स्नेह का जो सांवेगिक बंधन विकसित होता है उसे आसक्ति कहते हैं। मानव शिशु अपने माता-पिता अथवा देख-रेख करने वाले के प्रति भी आसक्ति विकसित करते है जो लगातार और उपयुक्त ढंग से उनके प्यार और दुलार के संकेतों का उपयुक्त प्रत्युत्तर देते हैं।
एरिक एरिक्सन (1968) के अनुसार जीवन का प्रथम वर्ष आसक्ति के विकास के लिए महत्वपूर्ण समय होता है। यह विश्वास अथवा अविश्वास के विकास को अवस्था की निरूपित करता है। विश्वास का बोध भौतिक सुख की अनुभूति पर निर्मित होता है जो संसार के प्रति एक प्रत्याशा विकसित करता है कि यह सुरक्षित और अच्छा स्थान है। बच्चों में विश्वास का बोध सहानुभूतिपूर्ण एवं संवेदनशील पैतृक प्रभाव द्वारा विकसित होता है। यदि माता-पिता संवेदनशील हैं, स्नेहिल एवं उनमें स्वीकृति प्रदान करने बाले है तो यह बच्चे में परिवेश को जानने का मजबूत आधार प्रदान करता है। ऐसे बच्चों में सुरक्षित लगाव के विकास को संभावना बढ़ जाती है।
दूसरी तरफ, यदि माता-पिता असंवेदनशील हैं एवं असंतोष प्रदर्शित करते हैं तथा बच्चों में दोष देखते है तो इससे बच्चे में आत्म-संदेह को भावना विकसित हो सकती है। सुरक्षित लगाव वाले बच्चे गोद में लेने पर सकारात्मक व्यवहार करते है, स्वतंत्रतापूर्वक घूमते है एवं खेलते हैं जबकी असुरक्षित लगाव वाले बच्चे अलग होने पर दुश्चिंता की अनुभूति करते हैं तथा रोते-चिल्लाते है क्योकि उनमें भय पाया जाता है और वे विचलित हो जाते हैं। बच्चे के स्वस्थ विकास के लिए संवेदनशील एवं स्रेहिल प्रौढ़ों के साथ घनिष्ठ अंतरक्रियात्मक संबंध प्रथम चरण होता है।
प्रश्न 8. किशोरावस्था क्या है? अहं केन्द्रवाद के संप्रत्यय की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: किशोरावस्था को सामान्यतया जीवन की उस अवस्था के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसका प्रारंभ यौवनावस्था से होता है, जब यौन परिपक्वता या प्रजनन करने की योग्यता प्राप्त कर ली जाती है। इसे जैविक तथा मानसिक दोनों ही रूप से तीव्र परिवर्तन को अवधि माना गया है। किशोर भी एक विशिष्ट प्रकार का अहंकेन्द्रवाद विकसित करते हैं। डेविड एलकाईंड के अनुसार काल्पनिक स्रोता एवं व्यक्तिगत दंतकथा है। किशोरों के अहंकेन्द्रवाद के दो घटक हैं। काल्पनिक श्रोता किशोरों का एक विश्वास है कि दूसरे लोग भी उनके प्रति उतने ही ध्यानाकर्षित हैं जितने कि वे स्वयं| वे कल्पना करते है कि लोग हमेशा उन्हीं पर ध्यान रहे है एवं उनके प्रत्येक व्यवहार का प्रेक्षण कर रहे है।
प्रश्न 9. किशोरावस्था में पहचान निर्माण को प्रभावित करने वाले कौन-कौन से कारक हैं। उदाहरण की सहायता से अपने उत्तर की पुष्टि कीजिए
उत्तर: किशोरावस्था में पहचान का निर्माण अनेक कारकों से प्रभावित होता है। सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, परिवारिक तथा सामाजिक मूल्य, संजातीय पृष्ठभूमि, तथा सामाजिक-आर्थिक स्तर, ये सभी समाज में एक स्थान प्राप्त करने के लिए किशोरों द्वारा किए गए प्रयास पर प्रभावी रहते है। जब किशोर घर से बाहर अधिक समय व्यतीत करने लगता है तो परिवारिक संबंध कम महत्वपूर्ण हो जाते है और वे समकक्षियों के सहयोग एवं स्वीकृति को प्रबल आवश्यकता विकसित कर लेते है| समकक्षियों के साथ अधिक अंत:क्रिया उम्हें अपने सामाजिक कौशलों को सुधारने तथा भिन्न-भिन्न प्रकार के सामाजिक व्यवहारों को परखने का अवसर प्रदान करती है। समकक्षों तथा माता-पिता ये दो शक्तियाँ है जिनका किशोरों पर विशेष प्रभाव पड़ता हैं। समय-समय पर माता-पिता के साथ संघर्षपूर्ण परिस्थितियों समकक्षियों के साथ तादात्म्य स्थापित करने की प्रवृत्ति को बढ़ाती है। परंतु सामान्यतया समकक्षों एवं माता-पिता अनुपूरक का कार्य करते है और किशोरों की भिन्न-भिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। व्यावसायिक प्रतिबद्धता किशारों को पहचान निर्माण के संभावित करने वाला एक दूसरा कारक है। बड़े होकर आप क्या बनेंगे? इस प्रश्न के लिए भविष्य के संबंध में सोचने को योग्यता एवं वास्तविक तथा प्राप्य लक्ष्यों को निर्धारित करने की आवश्यकता होती है। कुछ संस्कृतियों में युवाओ को व्यवसाय चयन को स्वतंत्रता दी जाती है जबकि कुछ दूसरी संस्कृतियों में इस चुनाव के लिए बच्चों को विकल्प नहीं दिए जाते हैं। माता-पिता के द्वारा लिए गए निर्णय को ही बच्चों द्वारा स्वीकार किए जाने की संभावना रहती है। विषयों के चयन के संबंध में जब आप निर्णय कर रहे थे उस समय का आपका अपना अनुभव क्या है? विद्यालयों में व्यावसायिक परामर्श विद्यार्थियों को विभिन्न पात्यक्रमों एवं नौकरियों के मूल्यांकन करने के लिए सूचनाएँ प्रदान करता है और व्यवसाय चयन के संबंध में निर्णय लेने के लिए निर्देशन प्रदान करता हैं।
प्रश्न 10. प्रौढावस्था में प्रवेश करने पर व्यक्तियों को कौन-कौन-सी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?
उत्तर: प्रारंभिक प्रौढ़ावस्था के दो मुख्य कार्य हैं, प्रौढ़ जीवन की संभावनाओं को तलाशना तथा एक स्थायी जीवन की संरचना का विकास करना |
जीविका एवं कार्य: उम्र के 20वें एवं 30वें वर्ष के लोगों के लिए एक जीविका प्राप्त करना, व्यवसाय का चयन करना तथा एक जीविका विकसित करना महत्वपूर्ण कार्य होता है। व्यावसायिक जीवन में प्रवेश करना किसी भी व्यक्ति के जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना होती है। विभिन्न प्रकार के समायोजन करने, अपनी दक्षता व निष्पादन को सिद्ध करने, प्रतिस्पर्धा का सामना करने तथा अपने एवं नियोजक को प्रत्याशाओं के पति समायोजन स्थापित करने से संबंधित अनेक प्रकार की आशंकाएँ होती है। नयी भूमिकाओं एवं दायित्वों का यह आरंभ भी होता है। जीविका विकसित करना एवं उसका मूल्यांकन करना प्रौढ़ावस्था का एक मुख्य कार्य बन जाता है।
विवाह, मातृपितृत्व एवं परिवार: वैवाहिक जीवन में प्रवेश करने पर युवा वयस्कों को दूसरे व्यक्ति को समझना (यदि वह पहले से ज्ञात नहीं है) एवं एक दूसरे की पसंद, नापसंद एवं रुचि को जानना इत्यादि के प्रति समायोजन स्थापित करना पड़ता हैं। यदि दोनों साथी कार्यरत हैं तो समायोजन के लिए घर को भूमिकाओं और दायित्वों के निष्पादन में सहभागिता अनावश्यक होती है।
विवाह के अतिरिक्त, माता या पिता बनना युवा वयस्क के जीवन में एक कठिन एवं दबावमय संक्रमण होता है, यद्यपि यह सामान्यतया बच्चे के लिए प्रेम की अनुभूति से जुड़ा होता है।
Hello My Dear, ये पोस्ट आपको कैसा लगा कृपया अवश्य बताइए और साथ में आपको क्या चाहिए वो बताइए ताकि मैं आपके लिए कुछ कर सकूँ धन्यवाद |