मनोविज्ञान में जाँच की विधियाँ, Class 11 Psychology Chapter 2 in Hnidi, कक्षा 11 नोट्स, सभी प्रश्नों के उत्तर

Bharati Bhawan
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मनोविज्ञान में जाँच की विधियाँ, Class 11 Psychology Chapter 2 in Hnidi, कक्षा 11 नोट्स, सभी प्रश्नों के उत्तर

  Chapter-2 मनोविज्ञान में जाँच की विधियाँ  

प्रश्न 1. वैज्ञानिक जाँच के लक्ष्य क्या होते हैं?
उत्तर:  वैज्ञानिक जाँच के निम्नलिखित लक्ष्य हैं:
• वर्णन: मनोवैज्ञानिक अध्ययन में हम व्यवहार अथवा किसी घटना का यथा संभव सही-सही वर्णन करता हैं जिससे किसी व्यवहार विशेष को अन्य व्यवहारों से अलग करने में सहायता मिलती है।
• पूर्वकथन: वैज्ञानिक जाँच का दूसरा लक्ष्य व्यवहार का पूर्वकथन है | यदि आप व्यवहार को सही-सही समझने तथा वर्णन करने में सक्षम हैं तो आप एक व्यवहार विशेष के अन्य व्यवहारों, घटनाओं, अथवा गोचरों से संबंध को सरलवापूर्वक जान सकते हैं। ऐसी स्थिती में इस बात की भविष्यवाणी की जा सकती है कि कतिपय दशाओं में कुछ त्रुटियों के साथ वह व्यवहार विशेष घटित हो सकता है | पूर्वकथन प्रेक्षण किए गए व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि होने पर अधिक सही होता है।
• व्याख्या: मनोवैज्ञानिक जाँच का तीसरा लक्ष्य व्यवहार के कारणों की अथवा उसके निर्धारकों की जानकारी प्राप्त करना है तथा वे कौन सी दशाएँ हैं जिनमें व्यवहार विशेष घटित नहीं होता है।
• नियंत्रण: यदि एक व्यक्ति व्यवहार विशेष के घटित होने की व्याख्या कर लेता है तो वह उक्त व्यवहार की पूर्ववर्ती दशाओं में परिवर्तन करके उसको नियंत्रित कर सकता है | नियंत्रण तीन बातों से संबंधित होता है किसी व्यवहार विशेष को घटित करना, उसे कम करना अथवा बढ़ाना |
● अनुप्रयोग: वैज्ञानिक जाँच का अंतिम लक्ष्य किसी विशेष व्यवहार के प्रयोग के द्वारा लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाना है।
प्रश्न 2. वैज्ञानिक जाँच करने में अंतर्निहित विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर: वैज्ञानिक जाँच करने में अंतर्निहित विभिन्न चरण निम्नलिखित हैं:
समस्या का संप्रत्ययन: वैज्ञानिक शोध का कार्य तब प्रारंभ होता है जब शोधकर्ता अध्ययन के कथ्य अथवा विषय का चयन करता है । इसके बाद वह अपना ध्यान केन्द्रित करता है तथा विशेष शोध प्रश्न अथवा समस्या का विकास करता है। ऐसा पूर्व में किए गए अनुसंधानों की समीक्षा, प्रेक्षणों तथा व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर किया जाता है | समस्या की पहचान के बाद शोधकर्ता समस्या का एक काल्पनिक उत्तर ढूँढता है, जिसे परिकल्पना कहते हैं ।
प्रदत्त संग्रह: वैज्ञानिक विधि का दूसरा चरण प्रदत्त संग्रह होता है | प्रदत्त संग्रह के लिए संपूर्ण अध्ययन का एक अनुसंधान अभिकल्प होना चाहिए ।
इसके लिए अग्रलिखित चार पहलुओं के बारे में निर्णय लेना पड़ता है:
(क) अध्ययन के प्रतिभागी
(ख) प्रदत्त संग्रह की विधि
(ग) अनुसंधान में प्रयुक्त उपकरण एवं
(घ) प्रदत्त संग्रह की प्रक्रिया |
निष्कर्ष निकलना: अगला चरण संगृहित प्रदत्तों का सांख्यिकीय प्रक्रियाओं की सहायता से विश्लेषण करना है जिससे हम समझ सकें कि प्रदत्तों का क्या अर्थ है? यह कार्य ग्राफ द्वारा (जैसे वृत्तखंड, दंड-आरेख, संचयी बारंबारता आदि बनाना) तथा विभिन्न सांख्यिकीय विधियों के उपयोग द्वारा भी किया जा सकता है | विश्लेषण का उद्देश्य परिकल्पना की जाँच करके तदनुसार निष्कर्ष निकालना है।
शोध निष्कर्षों का पुनरीक्षण: अनुसंधानकर्ता प्रस्तुत परिकल्पना की पुष्टि करते हैं या फिर एक वैकल्पिक परिकल्पना स्थापित करता है तथा नए प्रदत्तों के आधार पर इसका परीक्षण करता है और निष्कर्ष निकालना है | इस परिकल्पना/सिद्धांत की परीक्षा भावी अनुसंधानकर्ताओं द्वारा की जा सकती है, अत: यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है ।
प्रश्न 3. मनोवैज्ञानिक प्रदत्तों के स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: मनोवैज्ञानिक प्रदत्तों के स्वरूप हैं:
• ये व्यक्तियों के अव्यक्त तथा व्यक्त व्यवहारों, आत्मपरक अनुभवों तथा मानसिक प्रक्रियाओं से संबंधित होता है।
• दत्त भौतिक अथवा सामाजिक सन्दर्भों, संबंधित व्यक्तियों तथा व्यवहार के गह्तित होने के समय आदि से स्वतंत्र नहीं होते हैं ।
• प्रदत्त संग्रह की प्रयुक्त विधियाँ (सर्वेक्षण, साक्षात्कार, प्रयोग आदि) तथा सूचना के स्रोत्र (उदाहरण के लिए, व्यक्ति अथवा समूह, युवा अथवा वृध्द, पुरुष अथवा महिला, शहरी अथवा ग्रामीण) प्रदत्त के स्वरुप तथा गुणवत्ता का निर्धारण करते हैं।
प्रश्न 4. प्रायोगिक तथा नियंत्रित समूह एक-दूसरे से कैसे भिन्न होते हैं? एक उदाहरण की सहायता से व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
• प्रायोगिक तथा नियंत्रित समूह एक-दूसरे से भिन्न होते हैं | प्रायोगिक समूह वह समूह होता है जिसमें समूह सदस्यों को अनाश्रित परिवर्त्य प्रहस्तन के लिए प्रस्तुत किया जाता है जो नियंत्रित समूह में अनुपस्थित रहता है। उदाहरण के लिए, लताने और डार्ली के अध्ययन में, दो प्रायोगिक समूह और एक नियंत्रित समूह थे | अध्ययन में प्रतिभागी तीन कक्षों में भेजे गए थे | एक कक्ष में कोई उपस्थित नहीं था (नियंत्रित समूह) । अन्य दो कक्षों में दो व्यक्ति बैठाए गए थे (प्रायोगिक समूह) |
• एक कक्ष में दो व्यक्तियों की उपस्थिति या अनुपस्थिति अनाश्रित परिवर्त्य था | कक्ष में भौतिक एवं अन्य प्रकार की सुविधाएँ दोनों समूहों के लिए एकसमान थीं | प्रायोगिक समूह में, दो व्यक्ति असली प्रतिभागी के रूप में मौजूद थे तथा नियंत्रित समूह में कोई प्रतिभागी नहीं था | इसलिए यह कहा जा सकता है कि नियंत्रित समूह में प्रहस्तित परिवर्त्य अनुपस्थित रहता है ।
प्रश्न 5. एक अनुसंधानकर्ता साइकिल चलाने की गति एवं लोगों की उपस्थिति के मध्य संबंध का अध्ययन कर रहा है। एक उपयुक्त परिकल्पना का निर्माण कीजिए तथा अनाश्रित एवं आश्रित परिवों की पहचान कीजिए।
उत्तर: साइकिल चलाने की गति एवं लोगों की उपस्थिति के मध्य संबंध:
परिकल्पना - जैसे ही साइकिल चलाने की गति बढ़ जाती है, वहाँ उपस्थित लोगों की चाल भी तेजी से बढ़ती है।
क्षेत्र प्रयोग - दो बाजार स्थल
एक लड़के को बाजार में अलग-अलग गति से साइकिल चलाने के लिए कहा जाता है ।
• बाजार 1- यह देखा जाता है कि जब लड़का साइकिल पर उच्च गति के साथ बाजार की - सड़कों से गुजरता है, तो लोग धक्का लगने से बचने के लिए उसके आस-पास के लोग जल्दी भाग जाएँगे |
• बाजार 2- यह देखा जाता है कि जब लड़का बाजार की सड़कों पर सामान्य गति से गुजरता है तो उसके आस-पास के लोग बाजार 1 की तुलना में धीरे-धीरे हटेंगे ।
• निष्कर्ष - जब साइकिल कि गति उच्च होती है तो लोग वहां से जल्दी हट जाते हैं जबकि गति कम होने पर पहले की तुलना में धीरे हटते हैं।
● निष्कर्षों का पुनरीक्षण- निष्कर्ष परिकल्पना से मेल खाता है | इसलिए परिकल्पना सत्य है ।
• अनाश्रित परिवर्त्य - साइकिल की गति |
• आश्रित परिवर्त्य- लोगों की चाल |
प्रश्न 6. जाँच की विधि के रूप में प्रायोगिक विधि के गुणों एवं अवगुणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: जाँच की विधि के रूप में प्रायोगिक विधि के गुणों एवं अवगुणों की व्याख्या : प्रायोगिक विधि के गुण:
1. वैज्ञानिक विधि - सामाजिक व्यवहारों का अध्ययन करने में प्रायोगिक विधि क्रमबद्धता पर अधिक ध्यान देता है।
2. नियंत्रक – यह प्रयोग की तीव्रता को प्रदूषण मुक्त रखता है तथा उसे अव्यावहारिक होने से बचाता है।
3. वस्तुनिष्ठता - प्रायोगिक विधि द्वारा प्राप्त सभी प्रदत्त वस्तुनिष्ठ तथा पूर्वधारणा मक्त होते हैं।
4. सहजता - प्रायोगिक विधि से प्राप्त परिणामों को सांख्यिकीय निरूपण के माध्यम से तुलनात्मक अध्ययन के लिए सहज माना जाता है।
5. अनुसंधानकर्ता के लिए रुचिकर- अनाश्रित परित्वयों का चयन अपनी रुचि के अनुसार करता है। अनुसंधानकर्ता किसी संदर्भ में आश्रित एवं
6. स्पष्ट व्याख्या - अनुसंधानकर्ता आश्रित एवं अनाश्रित परित्वयों के मध्य कार्य करण सम्बन्ध की स्पष्ट व्याख्या करने में सक्षम होता है।
7. बहुआयामी क्षेत्र - प्रायोगिक विधि के माध्यम से मानव जीवन से जुड़े भिन्न-भिन्न क्षेत्रों (व्यवहार, संवेदना, दक्षता) का सरल अध्ययन करता है।
प्रायोगिक विधि के अवगुणः
1. अक्षमता - किसी विशिष्ट समस्या का अध्ययन प्रायोगिक विधि से सदैव संभव नहीं होता है। जैसे-बुद्धि स्तर पर पौष्टिक आहार के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए किसी को भूखा रखना संभव नहीं है।
2. जानकारी का अभाव - समस्त प्रासंगिक परिवयों को पूर्णत: जानना और उनका नियंत्रण करना कठिन होता है।
3. प्रतिकूल दशा - प्रयोग प्रायः बहुत नियंत्रित प्रयोगशाला परिस्थितियों में किए जाते हैं जो वास्तविक व्यवहार में सुलभ नहीं हो पाते हैं। जैसे, तापमान, आँधी, प्रकाश, ध्वनि आदि प्रतिकूल दशा भी उत्पन्न कर सकते हैं।
4. क्षेत्र प्रयोग के कारण उत्पन्न कठिनाई - शोधकर्ताओं को अव्यवस्थित किए बिना क्षेत्र प्रयोग संभव नहीं होता।
5. प्रयोग कल्प विधि की बाध्यता - भूकंप, बाढ़, अकाल, अपहरण जैसी विपदाओं से जूझते बच्चों को प्रयोगशला के माध्यम से मदद नहीं किया जा सकता है।
प्रश्न 7. डॉ. कृष्णन व्यवहार को बिना प्रभावित अथवा नियंत्रित किए एक नर्सरी विद्यालय में बच्चों के खेल-कूद वाले व्यवहार का प्रेक्षण करने एवं अभिलेख तैयार करने जा रहे हैं। इसमें अनुसंधान की कौन-कौन सी विधि प्रयुक्त हुई है? इसकी प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए तथा उसके गुणों और अवगुणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर: डॉ. कृष्णन के अनुसंधान में असहभागी प्रेक्षण विधि प्रयुक्त हुई है । वह नर्सरी विद्यालय में बच्चों के खेलकूद वाले व्यवहार का प्रेक्षण करने के लिए एक विडियो कैमरा लगा सकते हैं या फिर बिना अवरोध पैदा किए अथवा सामान्य गतिविधियों में भाग लिए बिना कक्षा के एक कोने में बैठ सकता है और फिर इसका विश्लेषण कर निष्कर्ष निकाल सकता है।
• गुण अनुसंधानकर्ता लोगों और उनके व्यवहारों का प्रकृतिवादी स्थिति में जैसे वह घटित होती है अध्ययन करता है।
• अवगुण यह विधि श्रमसाध्य है, अधिक समय लेता है, तथा प्रेक्षक के पूर्वाग्रह के कारन इसमें गलती होने का डर रहता है।
प्रश्न 8. उन दो स्थितियों का उदाहरण दीजिए जहाँ सर्वेक्षण विधि का उपयोग किया जा सकता है ? इस विधि की सीमाएँ क्या हैं?
उत्तर: वे दो स्थितियाँ जहाँ सर्वेक्षण विधि का उपयोग किया जा सकता है:
● परिवार नियोजन के प्रति लोगों की अभिवृति में इसका उपयोग किया जाता है।
● पंचायती राज की संस्थाओं, शिक्षा, स्वच्छता आदि से संबंधित कार्यक्रमों के संचालन हेतु शक्ति प्रदान करने के प्रति लोगों की अभिवृति जानने के लिए भी किया जाता है।
इस विधि की सीमाएँ निम्नलिखित हैं:
 लोग गलत सूचनाएँ दे सकते हैं। वे स्मृति की गड़बड़ी से अथवा शोधकर्ता को यह बताना चाहते हैं कि किसी मुद्दे पर उनके वास्तविक विचार क्या हैं वे कैसा विश्वास करते हैं । 
 लोग कभी-कभी वैसी प्रतिक्रियाएँ देते हैं जैसा शोधकर्ता जानना चाहता है।
प्रश्न 9. साक्षात्कार एवं प्रश्नावली में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: 
साक्षात्कार 
1. यह अंतः क्रिया का वह रूप है जहाँ साक्षात्कारदाता अथवा प्रतिक्रियादाता से सीधे प्रश्न पूछे जाते हैं। 
2. स्थिति के अनुसार इसके प्रश्न उनके अनुक्रम में भिन्न हो सकते है
3. अनुसंधानकर्ता तथा साक्षात्कार आमने-सामने संपर्क में रहते हैं। 
4. प्रश्नों की संख्या घटाई या बढ़ाई जा सकती है। 
प्रश्नावली 
1. यह एक रुपरेखा है जिसमें वैज्ञानिक प्रश्नों के उत्तर लिख क्र दिया जाता है।
2. इसमें पूर्वनिर्धारित प्रश्न व्यवस्थित होते है  
3. अनुसंधानकर्ता तथा साक्षात्कार के आमने-सामने संपर्क की आवश्यकता नहीं होती। 
4. प्रश्नों की संख्या में कोई परिवर्तन नहीं होता।
प्रश्न 10. एक मानकीकृत परीक्षण की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर: एक मानकीकृत परीक्षण की विशेषताएँ निम्नलिखित है:
● विश्वसनीयता - इसका संबंध दो भिन्न अवसरों पर एक ही परीक्षण पर किसी व्यक्ति द्वारा प्राप्त लब्धांकों की संगति से है | परीक्षण-पुनः परीक्षण कालिक स्थिरता का द्योतक है तथा विभक्तार्ध परीक्षण की आंतरिक संगति की मात्रा का संकेत देती है।
• वैधता- परीक्षण का उपयोग होने के लिए उसकी वैधता भी आवश्यक है जिससे यह पता चलता है कि क्या परीक्षण उस चीज का मापन कर रहा है जिसका कि वह मापन करने का दावा करता है ।
• मानक- कोई परीक्षण प्रामाणिक परीक्षण तब होता है जब परीक्षण के लिए मानक विकसित कर लिए जाते हैं। इससे एक व्यक्ति के निष्पादन समूह के अन्य व्यक्तियों के साथ तुलना करने में सहयता मिलती है ।
प्रश्न 11. मनोवैज्ञानिक जाँच की सीमाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर: मनोवैज्ञानिक जाँच की सीमाएँ निम्नलिखित हैं:
• वास्तविक शून्य बिंदु का अभाव : मनोवैज्ञानिक मापन में हमें शून्य बिंदु नहीं मिलते हैं । उदाहरण के लिए, इस दुनिया में किसी किसी भी व्यक्ति की बुद्धि शून्य नहीं होती । मनोवैज्ञानिक अध्ययन में जो कुछ लब्धांक प्राप्त करते हैं वे अपने आप में निरपेक्ष नहीं होते बल्कि उनका सापेक्षिक मूल्य होता है।
• मनोवैज्ञानिक उपकरणों का सापेक्षिक स्वरुप : मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का निर्माण किसी सन्दर्भ विशेष के प्रमुख पक्षों को ध्यान में रखकर किया जाता है। उदाहरण के लिए, शहरी क्षेत्र के छात्रों के लिए विकसित परीक्षण ग्रामीण क्षेत्र के छात्रों पर लागू नहीं किया जा सकता है।
● गुणात्मक प्रदत्तों की आत्मपरक व्याख्या: गुणात्मक अध्ययनों में प्रदत्त प्राय: आत्मपरक होते हैं क्योंकि इनकी व्याख्या अनुसंधानकर्ता एवं प्रदत्त प्रदान करने वाले होते हैं । एक व्यक्ति की व्याख्या दूसरे से भिन्न हो सकती है।
प्रश्न 12. मनोवैज्ञानिक जाँच करते समय एक मनोवैज्ञानिक को किन नैतिक मार्गदर्शी सिद्धांतों का पालन करना चाहिए?
उत्तर: मनोवैज्ञानिक जाँच करते समय एक मनोवैज्ञानिक को निम्न वर्णित मार्गदर्शी सिद्धांतों का पालन करना चाहिए -
नैतिक सिद्धांत:
अध्ययन में भाग लेने के लिए व्यक्ति की निजता एवं रुचि का सम्मान, अध्ययन के प्रतिनिधियों को उपकार अथवा किसी खतरे से उसकी सुरक्षा तथा अनुसंधान के लाभ में सभी प्रतिभागियों की भागीदारी वांछनीय है। इसके पक्ष में निम्न बिन्दुओं पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है -
1. स्वैच्छिक सहभागिता:
अध्ययन में जुटे प्रतिभागियों को अध्ययन के लिए विषय को चयन करने में तथा समय निर्धारण में बिल्कुल स्वतंत्र छोड़ देना चाहिए। प्रतिभागियों के निर्णय पर प्रलोभन, दंड, त्याग का प्रभाव नहीं डालना चाहिए।
2. सूचित सहमति:
प्रतिभागियों की दक्षता का उपयोग, प्रदत्त संगणक का प्रयोग, विचार को बदलने के लिए बाध्य करना आदि नैतिक सिद्धांत के विरुद्ध किया है। अच्छा तो यह होगा कि प्रतिभागियों को संभावित घटनाओं अथवा त्रुटियों की सूचना देकर उनकी सहमति ले लेनी चाहिए। प्रतिभागियों को अनायास शारीरिक या मानसिक उलझन में नहीं डालना चाहिए।
3. स्पष्टीकरण:
अध्ययन के विषय एवं विधियों का स्पष ज्ञान प्रतिभागियों को अवश्य दे देना चाहिए। झूठा भरोसा देना प्रतिभागियों से धोखा करना माना जाएगा।
4. अध्ययन के परिणाम की भागीदारी:
प्रदत्त संग्रह, प्रेक्षणों का अध्ययन, निष्कर्ष निकालना तथा अध्ययन के परिणाम की सही-सही सूचना प्रतिभागियों को मिल जानी चाहिए। अध्ययन के परिणाम के कारण कौन चिंतित है, कौन खुश है, कौन उससे फायदा उठाना चाहता है आदि अंधकार में रखने वाली स्थिति नहीं है। प्रतिभागियों की प्रत्याशा पर विशेष ध्यान रखना चाहिए।
5. प्राप्त स्रोत की गोपनीयता:
प्रतिभागियों से संबंधित सभी सूचनाओं को अत्यन्त गोपनीय रखा जाना चाहिए। प्राप्त स्रोत की गोपनीयता के अभाव में बाहरी व्यक्तियों के द्वारा सुरक्षा खतरे में पड़ सकता है। उसके लिए संकेत संख्या, शब्द संकेत की रचना की जानी चाहिए।

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