उंगली थामे इक नन्हा सा बच्चा
बाप की उंगली थामी, इक नन्हा सा बच्चा
पहले-पहल मेले में गया तो
अपनी भोली-भाली, कंचों जैसी आँखों से
इक दुनिया देखि
ये क्या है और वो क्या है,सब उसने पूछा
बाप ने झुक कर, कितनी फिर सारी चीजों और
खेलों का उसको नाम बताया
नट का ... बाजीगर का ... जादूगर का ...
उसको काम बताया
फिर वो घर की जानिब लौटे
गोद के झूले में, बच्चे ने बाप के
कंधे पर सर रक्खा, बाप ने पूछा-नींद आती है
वक्त भी एक परींदा है, उड़ता रहता है
गाँव में फिर इक मेला आया
बूढ़े बाप ने कांपते हाथों से,
बेटे की बांह को थामा
और बेटे ने ये क्या है और
वो क्या है, जितना भी बन पाया, समझाया
बाप ने बेटे के कंधे पर सर रक्खा
बेटे ने पूछा-नींद आती है
बाप ने मुड़ के, याद की पगडंडी पर चलते
बीते हुए सब अच्छे बुरे, और कड़वे मीठे
लम्हों के पैरों से उड़ती, धुल को देखा, फिर
अपने बेटे को देखा, होंठो पर
इक हलकी सी मुस्कान आई, होले से बोला हाँ !
मुझ को अब नींद आती है
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