संसाधन
मानव अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आरंभ में प्रकृति और प्राकृतिक वस्तुओं पर निर्भर रहता था | समय के बदलाव के साथ मानव की आवश्यकताएं बदलती और बढ़ती गई इसके लिए वह मानव प्राकृतिक वस्तुओं के साथ-साथ मानव निर्मित वस्तु पर भी निर्भर रहने लगा |
मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने वाली कोई भी वस्तु संसाधन कहलाती है जैसे मकान थे वह शराब वायु जल आदि |
मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने वाली कोई भी वस्तु संसाधन कहलाती है जैसे मकान थे वह शराब वायु जल आदि |
संसाधन और मूल्य
किसी भी संसाधन का मूल्य उसके रूप और गुण में परिवर्तन से बदला जाता है जैसे कोई वन में पेड़ों की लकड़ी का कोई आर्थिक मूल्य नहीं होता जबकि पेड़ की लकड़ी को काटकर फर्नीचर में बदल दिया जाता है तब उसका आर्थिक मूल्य बढ़ जाता है |
नोट :- सभी संसाधनों का आर्थिक मूल्य नहीं होता कुछ संसाधनों का आर्थिक मूल्य होता है तो कुछ का नहीं होता |
* संसाधनों के मूल्य को चार भागों में व्यक्त किया गया है:-
(i) आर्थिक मूल्य (ii) सौंदर्य शास्त्रीय मूल्य
(iii) कानूनी मूल्य (iv) नैतिक मूल्य
(i) आर्थिक मूल्य :- मुद्रा से संबंधित आर्थिक मूल्य होता है |
(ii) सौंदर्य शास्त्रीय मूल्य :- सुंदरता से संबंधित सौंदर्य शास्त्रीय मूल्य होता है |
(iii) कानूनी मूल्य :- अधिनियम से संबंधित कानूनी मूल्य होता है |
(iv) नैतिक मूल्य :- संरक्षण से संबंधित नैतिक मूल्य होता है |
संसाधनों का निर्माण
संसाधनों के निर्माण में समय और तकनीक बहुत जरूरी है इसके बिना हम संसाधन का निर्माण नहीं कर सकते हैं |
किसी वस्तु के निर्माण या उत्पाद में लगने वाले नवीनतम ज्ञान को हम तकनीक कहते हैं जब हम किसी वस्तु को उपयोग करने की तकनीक जान लेते हैं तब वह वस्तु हमारे लिए संसाधन बन जाती है जैसे बहुत तेजी से बहते हुए जल से उर्जा उत्पादन की तकनीक के बाद जल हमारे लिए संसाधन बन जाता है |
संसाधनों को बनाने का काम प्रकृति, मानव और संस्कृति (मानवीय गतिविधियां) तीनों मिलकर करते हैं |
नोट :- संसाधन होते नहीं बनाए जाते हैं |
संसाधन के प्रकार
(1) प्राकृतिक संसाधन :- प्रकृति में पाई जाने वाली सभी उपयोगी एवं लाभकारी चीजें प्राकृतिक संसाधन है | जैसे जलवायु खनिज आदि |
(i) मृदा :- पर्वत मरवा स्थल और दलदली भूमि को मृदा कहा जाता है जैसे लाल मिट्टी, काली मिट्टी, जलोढ़ मिट्टी आदि |
(ii) जल :- इसमें तालाब, नदी, झील, सागर, महासागर शामिल है |
(iii) वनस्पति :- इसमें पेड़-पौधे, घास और झाड़ियां शामिल है |
(iv) जैविक संसाधन :- इसके अंतर्गत छोटे से लेकर बड़े-बड़े जीव जंतु तक शामिल है |
(v) खनिज :- इसके अंतर्गत लोहा, मैग्नीज, तांबा, सोना, चांदी, कोयला, प्राकृतिक गैस आदि आते हैं |
(2) मानव संसाधन :- मानव खुद एक महत्वपूर्ण संसाधन है जो अन्य संसाधनों का निर्माण और उपयोग दोनों करता है मानव की यह क्षमता उसके दिमागी क्षमता तथा शारीरिक क्षमता से प्रभावित होती है जिस क्षेत्र में शारीरिक श्रम करने वाली अधिक होती है वहां आधुनिक उपकरणों का प्रयोग कब होता है जबकि शिक्षित आबादी वाले क्षेत्रों में आधुनिक मानव निर्मित संसाधनों का उपयोग अधिक होता है |
(3) मानवकृत या मानव निर्मित संसाधन :- उत्पाद उपभोग और आर्थिक विकास के उद्देश्य से मानव जिस संसाधन का निर्माण करता है उसे मानव निर्मित संसाधन कहते हैं जैसे कारखाना, सड़क, रेलमार्ग, औजार, कृषि यंत्र, भवन, औषधि, मशीन आदि |
प्राकृतिक संसाधनों का वर्गीकरण
प्राकृतिक संसाधनों का वर्गीकरण विकास, प्रयोग, उपलब्धता, उत्पत्ति और स्वामित्व के आधार पर किया जाता है |
*विकास की अवस्था के आधार पर
(i) संभाव्य संसाधन :- इसकी कुल मात्रा का पता नहीं होता परंतु, उसके होने की संभावनाएं होती है जैसे ही हमें इसकी तकनीकी ज्ञान होगी तो भविष्य में इसका उपयोग किया जाएगा जैसे लद्दाख क्षेत्र में यूरेनियम और केरल में थोरियम इसकी जानकारी होते ही हम लोग इसकी उपयोग करने लगेंगे |
(ii) विकसित या वास्तविक संसाधन :- इसको ज्ञात संसाधन भी कहा जाता है इनका वर्तमान में उपयोग किया जाता है जितने भी खनिज पदार्थ जिनका खनन किया जा रहा है वास्तविक संसाधन है जैसे तांबा, चांदी, सोना, लोहा आदि |
प्रयोग की दृष्टि से प्राकृतिक संसाधन
(i) नवीकरणीय संसाधन :- इसकी उपलब्धता प्रकृति में हमेशा बनी रहती है मानव के उपयोग से इनके कुल भंडार पर कोई असर नहीं होता जैसे सूर्य की किरणें, पवन |
नोट :- मृदा और जल जाते संसाधनों पर मानवीय गतिविधियों का प्रभाव पड़ सकता है इसका उपयोग के लिए पुनः चक्रण विधि को अपनाना चाहिए |
(ii) अनवीकरणीय संसाधन :- इसका भंडार सीमित होता है एक बार उपयोग में आने और समाप्त होने के बाद इसकी पुनः प्राप्ति नहीं कर सकते इन्हें दोबारा प्राप्त करने में हजारों लाखों वर्ष लग जाते हैं जैसे पेट्रोलियम, कोयला, कीरोशनी तेल, तांबा आदि |
* उपलब्धता के आधार पर प्राकृतिक संसाधन*
(i) सर्वव्यापक संसाधन :- इसको सर्वत्र उपलब्ध संसाधन भी कहा जाता है ऐसे संसाधन हर जगह पाए जाते हैं जब मृदा, वायु आदि |
(ii) स्थानिक या स्थानवध संसाधन :- यह संसाधन कुछ निश्चित स्थानों या क्षेत्रों में पाए जाते हैं जैसे पेट्रोलियम, कोयला इत्यादि |
* उत्पत्ति की दृष्टि से प्राकृतिक*
(i) जैव संसाधन :- इस संसाधन में सभी सजीव शामिल होते हैं जैसे पेड़-पौधे, जीव जंतु |
(ii) अजैव संसाधन :- यह तो संसाधन में सभी निर्जीव वस्तुएं शामिल है जैसे चट्टान, खनिज, रेल, सड़क, भवन इत्यादि |
* स्वामित्व के आधार पर प्राकृतिक संसाधन*
(i) निजी संसाधन :- इस तरह के संसाधनों में निजी व्यक्ति या व्यक्ति समूह का अधिकार होता है जैसे मकान, मोबाइल, साइकिल इत्यादि |
(ii) सार्वजनिक संसाधन :- यह से संसाधन में समुदाय के सभी सदस्यों के लिए उपलब्ध होते हैं जैसे पार्क, सड़क, मंदिर, मस्जिद आदि |
(iii) राष्ट्रीय संसाधन :- इस संसाधन में देश की राजनीति सीमा के अंदर उपलब्ध सभी प्रकार के संसाधन शामिल होते हैं |
(iv) अंतर्राष्ट्रीय संसाधन :- यह से संसाधन में देश की राजनीति सीमा के बाहर उपलब्ध सभी प्रकार के संसाधन शामिल होते हैं |
* प्राकृतिक संसाधनों का वितरण एवं उपयोग *
अस्थल रूप में भिन्नता के कारण ही पृथ्वी पर प्राकृतिक संसाधनों के वितरण एवं उपयोग में भी बताएं मिलती है जैसे अस्थल रुक जलवायु आदि |
* संसाधनों का संरक्षण एवं सतत पोषणीय विकास *
अनवीकरणीय संसाधनों का उपयोग सही ढंग से किया जाना जरूरी है संसाधनों के बिना कोई भी देश उन्नति नहीं कर सकता इन के निरंतर उपलब्ध रहने पर ही समाज की निरंतर प्रगति संभव है यदि मानव जनित के अस्तित्व को आगे भी बरकरार रखना चाहते हैं तो हमें संसाधनों का संरक्षण आवश्यक करना होगा |
संसाधनों का सही ढंग से उपयोग करना एवं इनके नवीकरण के लिए पर्याप्त समय देना संसाधन संरक्षण कहलाता है |
Hello My Dear, ये पोस्ट आपको कैसा लगा कृपया अवश्य बताइए और साथ में आपको क्या चाहिए वो बताइए ताकि मैं आपके लिए कुछ कर सकूँ धन्यवाद |